tag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post1297823975482899251..comments2024-01-30T07:29:55.670-08:00Comments on वातायन: वातायन - नवम्बर ’२००९रूपसिंह चन्देलhttp://www.blogger.com/profile/01812169387124195725noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-7213241900003150322009-11-17T16:51:35.760-08:002009-11-17T16:51:35.760-08:00हम वस्तुत: धर्मभीरु भी नहीं, धर्मभ्रष्ट हैं। यों त...हम वस्तुत: धर्मभीरु भी नहीं, धर्मभ्रष्ट हैं। यों तो पूरा ही लेख विचारणीय है लेकिन आपका यह पैरा विशेष रूप से उद्धृत करना चाहूँगा--'आज चीन चारों ओर से हमें घेरता जा रहा है और पंडितों-पाखण्डियों और धर्मगुरुओं ने सभी को पाखंड और परम्पराओं के ऐसे नशे में डुबा दिया है कि छोटे से लेकर बड़े तक केवल अपने लिए भयभीत है। जिन कुछ को देश की चिन्ता है वे अधिक कुछ कर नहीं पा रह या उन्हें करने नहीं दिया जा रहा। इन्हीं के मध्य एक और वर्ग पनप रहा है जो न धर्म के विषय में सोचता है न देश के विषय में।' वर्तमान भारत में धर्म वस्तुत:व्यवसाय बन चुका है। जब तक इसकी गति को नहीं सुधारा जायगा--किसी की भी गति में सुधार सम्भव नहीं है।<br /><br />Balram AgarwalAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-9630816472916499812009-11-12T11:45:03.146-08:002009-11-12T11:45:03.146-08:00आपके सम्पादकीय में जो प्रश्न उठाएं हैं, बड़े सधे, ...आपके सम्पादकीय में जो प्रश्न उठाएं हैं, बड़े सधे, स्पष्ट और सशक्त शब्दों में लिखे हैं. धर्म, परंपरा, बाजारवाद, उपहार, भ्रष्ट नेता गण, ब्यूरोक्रेसी आदि ज्वलंत प्रश्नों को जिस प्रकार से सामने लायें हैं, आँखें खोलने में सक्षम हैं. हम आतंकवाद की बातें करते हैं, यदि सोचें तो ये पोंगा पंडित, नेता आदि असली आंतकवादी हैं जिनके कार्यों ने परोक्ष रूप से अधिकाँश समाज को आतंकित कर दिया है. <br />भाई चंदेल जी, आपके सम्पादकीय से प्रेरित हो कर यहाँ अपनी ग़ज़ल देने से रहा नहीं गया: <br />धर्म के नाम पर.....<br />धर्मात्मा बन लूटते हैं धर्म ही के नाम पर<br />शैतान भी हंसने लगा है आदमी के नाम पर<br />ऐसे घिनौने कत्ल भी अब धर्म कहलाने लगे<br />ज़िंदा चिता में झोंक दी विधवा, सती के नाम पर<br />ये मन्त्रों के जाप से उपचार का दावा करें <br />सब खोखले अल्फ़ाज़ हैं संजीवनी के नाम पर<br />बाबा चमत्कारी मदारी की कला में कम नहीं<br />अब तो विदेशी गाड़ियां हैं स्वामी जी के नाम पर <br />बस राख माथे पर लगा दी,रोग के उपचार में <br />ये ज़िन्दगी से खेलते हैं ज़िन्दगी के नाम पर<br />नकली दवा बिकती रहे, बीमार की पर्वाह किसे<br />बिकने लगी है मौत भी अब ज़िन्दगी के नाम पर<br />कोई जगह ऐसी नहीं आतंक से महरूम हो<br />आतंक की बुनियाद भी है धर्म ही के नाम पर<br />मासूम बच्चों के लबों से मुस्कुराहट छीन ली<br />क्यों जान लेते हो ख़ुदा की बन्दगी के नाम पर ?<br />जब आदमी हैवानियत की गोद में पलने लगा<br />इनसानियत रोने लगी है बेकसी के नाम पर <br /> महावीर शर्मामहावीरhttps://www.blogger.com/profile/00859697755955147456noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-47761394611683931892009-11-10T13:59:25.592-08:002009-11-10T13:59:25.592-08:00७ नवम्बर को 'प्रथम शिक्षण संस्था' का कार्य...७ नवम्बर को 'प्रथम शिक्षण संस्था' का कार्यक्रम था, हम उस के द्वारा अपने शहर से ही $२५०,००० इकट्ठे करके देतें हैं और पूरे अमेरिका से जो पैसा इकठ्ठा होता है उससे ३४ मिलियन बच्चे पढ़ते हैं...आप सोचेंगे कि मैं यह क्या बात लिख रही हूँ और क्यों लिख रही हूँ ? यह सब बताने का क्या औचित्य है ? रूप जी, आप के सम्पादकीय (आलेख ) में जो मुद्दे ,जो बातें उठाई गईं वहाँ भी उठाई गईं..हम यहाँ से जब पैसा भेजते हैं तो कहीं न कहीं अपने खर्चों पर कट लगाते हैं तभी भेज पाते हैं.क्योंकि हम सोचते हैं कि शिक्षा के बल पर ही हम विदेश में आकर कुछ कर पाए, भारत में कुछ परिवारों को सुखी कर पाए--तो क्यों न उन बच्चों को पढ़ादें जो लिख- पढ़ नहीं सकते ,ताकि नई सोच और तरक्की के द्वार खुल सकें पर भारत में जिन्हें सोचना चाहिए वे बावन करोड़ का सोने का छत्र और नौ किलो सोना किसी मंदिर को दान दे सकते हैं और हर इन्सान और बच्चे में स्वयं भगवान बसता है उस तरफ ध्यान नहीं दिया जाता. आप के आलेख की तक़रीबन सभी बातें वहाँ उठाई गईं और अंत में यही सोचा कि हम जो कर सकते हैं करें -दूर बैठे यही कर सकते हैं अपने देश के लिए..आप का आलेख बहुत पढ़ा और सराहा गया है ---बधाई.Dr. Sudha Om Dhingrahttps://www.blogger.com/profile/10916293722568766521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-54732976004076297912009-11-06T05:52:40.656-08:002009-11-06T05:52:40.656-08:00AAPKE SAMPAADKIY LEKH MEIN SADAA
SMAAJ AUR DESH KE...AAPKE SAMPAADKIY LEKH MEIN SADAA<br />SMAAJ AUR DESH KE NAAM KOEE N KOEE<br />VICHARNIY BAAT HOTEE HAI.AAJ<br />PAKHANDIYON ,PONGA PANDITON ,<br />DHARMGURUON AUR BHRASHT RAJNETAAON<br />KAA BOLBAALAA HAI.KOEE RAHBAR NAHIN<br />HAI .KISEE NE SACH HEE KAHAA THA-<br />JAESA RAJA VAESEE PRAJA.PRAN SHARMAnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-28718865134825353922009-11-06T03:37:47.982-08:002009-11-06T03:37:47.982-08:00priya chandel tumhaara sampaadkiya padaa tumne usm...priya chandel tumhaara sampaadkiya padaa tumne usme kaaphee achchhe mudde oothae hain jin par har vyktee ko apne samaajik mulyon ke saath apne avdano ko nye seere se vishleshit karnaa hogaa tabhee samaj kee is pakhandee soch ko dharashaaee karne mai saksham ho payenge yeh chintaa sirph tumhaaree hee nahee balki poore samaaj kee honee chahye tabhee sadandh chhodti vayaysthaa kaa nirakaran ho payegaa mai tumhaaree ischintaa ko samajh saktaa hoon lekin pehlaa kadam is dishaa kee taraph koun oothaaegaa yahee mukhya sawaal hai aaj jo ham sabhee jo udvelit kartaa hai<br /> mai tumhe badhai detaa hoon aakhir tum is dishaa kee aur sawaal to oothaa rahe ho<br /><br /> ashok andreyashok andreyhttps://www.blogger.com/profile/03418874958756221645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-27595254641843691842009-11-05T01:40:55.814-08:002009-11-05T01:40:55.814-08:00भाई चन्देल, यूँ तो तुम्हारा हर सम्पादकीय कुछ प्रश्...भाई चन्देल, यूँ तो तुम्हारा हर सम्पादकीय कुछ प्रश्नों को लेकर दमदार तरीके से अपनी बात कहता है पर "वातायन" के इस अंक में तो तुमने कमाल कर दिखाया। बधाई !सुभाष नीरवhttps://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-80909249774745952902009-11-04T17:39:00.304-08:002009-11-04T17:39:00.304-08:00बहुत बढ़िया और सठिक लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सल...बहुत बढ़िया और सठिक लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!Urmihttps://www.blogger.com/profile/11444733179920713322noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-24739335090955515812009-11-04T07:16:54.166-08:002009-11-04T07:16:54.166-08:00भाई चंदेल जी,आप ने बहुत ही सार्थक प्रश्न उठाये हैं...भाई चंदेल जी,आप ने बहुत ही सार्थक प्रश्न उठाये हैं.किसी भी जिन्दा समाज की पहचान ऐसे ही सवाल होते हैंऔर हम निरंतर इनसे कट कर चलते हैं.अंध विश्वास किसी भी समाज का और राष्ट्र का दुर्भाग्य होता है.आप को धन्यवाद.सुरेश यादवhttps://www.blogger.com/profile/16080483473983405812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-51462193350132817802009-11-04T04:43:22.847-08:002009-11-04T04:43:22.847-08:00' वातायन ' की जितनी भी प्रशंसा करूँ , वह क...' वातायन ' की जितनी भी प्रशंसा करूँ , वह कम होगी....बस यूँ कहूँगी कि मैं भी इससे जुड़ना चाहूँगी <br />शुभकामनायें .रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.com