tag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post3838699638742552819..comments2024-01-30T07:29:55.670-08:00Comments on वातायन: वातायन - जुलाई, २००९रूपसिंह चन्देलhttp://www.blogger.com/profile/01812169387124195725noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-58823778323615739392009-07-14T18:15:09.682-07:002009-07-14T18:15:09.682-07:00goodgoodRandhir Singh Sumanhttps://www.blogger.com/profile/18317857556673064706noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-49273510337993920402009-07-13T05:07:47.390-07:002009-07-13T05:07:47.390-07:00भाई चंदेल जी ,आप के विचार जिन तानाशाह शाशकों के भृ...भाई चंदेल जी ,आप के विचार जिन तानाशाह शाशकों के भृष्ट आचरण पर वार करहैं ते उसकी जड़ें गहरी हैं और निरंतर शाषक इस ओर बेशर्मी से बढ़ रहे हैं .इस चिंता के लिए आप को बधाई और आप के द्वारा महान लेखक तालस्ताय के जीवन के महत्वपूर्ण विचारों को रचनात्मक और सहज अनुवाद के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है ,उसके लिए विशेष वधाई.सुरेश यादवhttps://www.blogger.com/profile/16080483473983405812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-57431286167839555012009-07-08T09:08:33.807-07:002009-07-08T09:08:33.807-07:00तोल्स्तोय के पूरा व्यक्तित्व और साहित्य और समाज क...तोल्स्तोय के पूरा व्यक्तित्व और साहित्य और समाज को लेकर उनकी सोच को उद घाटित करती यह बातचीत सचमुच पठनीय है। अनुवाद न होकर मौलिक कृति लगती है! बधाई!<br />इलाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-42877519964299778132009-07-07T06:44:45.805-07:002009-07-07T06:44:45.805-07:00CHANDEL JEE KE LEKHAN KO MAIN JAB-
JAB PADHTA HOON...CHANDEL JEE KE LEKHAN KO MAIN JAB-<br />JAB PADHTA HOON APNE AAP MEIN MUJHE GAURANVIT HONE KEE BHAVNAA KAA AABHAAS HOTA HAI.VE SHEERSH<br />SAHITYAKAAR HAIN.VISHESH BAAT TO <br />YAH HAI KI UNKAA ANUVAD BHEE MAULIK<br />JAESA HEE LAGTA HAI.TOLSTOY SE<br />SAMBADDH SANSMARNON KAA UNKA ANUVAD<br />JEEVANT UDAHRAN HAI.PRAN SHARMAnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-15427175908705782432009-07-07T05:54:23.816-07:002009-07-07T05:54:23.816-07:00रूप भाई,
आप के सम्पादकीय से सहमत हूँ. पर इतिहास की...रूप भाई,<br />आप के सम्पादकीय से सहमत हूँ. पर इतिहास की कौन परवाह करता है? अगर करते हों तो यह हाल न होता .संस्मरण पढ़ कर ऐसा नहीं लगता कि हम अनुवाद पढ़ रहे हैं. बहुत सुघड़ता से अनुवाद किया है, मौलिक रचना का भास होता है. सुभाष भाई से सहमत हूँ कि इसका मूल्यांकन ज़रूर होगा.<br />बधाई!Dr. Sudha Om Dhingrahttps://www.blogger.com/profile/10916293722568766521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-17005516181758082192009-07-03T20:43:19.782-07:002009-07-03T20:43:19.782-07:00भाई चन्देल, मैं तुम्हारे ब्लाग पर और विशेषकर तुम्ह...भाई चन्देल, मैं तुम्हारे ब्लाग पर और विशेषकर तुम्हारे संपादकीयनुमा लेख एवं ताल्स्ताय से जुड़े तुम्हारे द्वारा अनूदित संस्मरण पर यह टिप्पणी इस लिए नहीं कर रहा हूँ कि तुम मेरे मित्र हो और मुझे टिप्पणी करनी ही है। कई बार हम चाहते हुए भी वक्त की कमी के बावजूद अपने आप को टिप्पणी छोड़ने से नहीं रोक पाते क्योंकि जिस मैटर को हमने पढ़ा होता है, वह हमारा पीछा नहीं छोड़ता… वाकई तुमने अपने संपादकीय में एक बेहद क्ड़वे सच पर उग़ली रख दी है। हम सब जानते हैं कि भ्रष्ट राजनीति का आज चेहरा कितना विद्रूप हो चुका है और ये हमारे तथाकथित राजनीतिज्ञ(नेता) जब भी अवसर पाते हैं जनता के पैसे का ही दुरपयोग करने की पहल करते हैं, चाहे वे इसे अपना घर भरने के लिए घोटालों का सहारा लें अथवा अपनी झूठी शान औ शौकत को भविष्य में सुरक्षित रखने के लिए मूर्तियां या पार्क आदि बनवाने का। गाज तो बेचारी आम जनता पर ही गिरती है जिसे दो जून की रोटी के लिए न जाने क्या कुछ नहीं करना पड़ता। ताल्स्ताय' पर तुम्हारे द्वारा अनूदित संस्मरण बहुत बढ़िया है और एक महान लेखक को और अधिक बेहतर ढ़ंग से जानने-समझने का अवसर देता है। अनुवाद की भाशा बहुत अच्छी है और अनुवाद में जो मौलिकता-सा प्रवाह होना चाहिए, उसे बरकरार रखती है। अनुवाद के क्षेत्र में किए गए तुम्हारे इस श्रम का आने वाले समय में मूल्यांकन अवश्य होगा, ऐसी मैं उम्मीद करता हूँ। बधाई !सुभाष नीरवhttps://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.com