tag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post8328086244375471822..comments2024-01-30T07:29:55.670-08:00Comments on वातायन: टुकड़ा-टुकड़ा इतिहासरूपसिंह चन्देलhttp://www.blogger.com/profile/01812169387124195725noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-85401268472210607802013-03-25T23:48:00.605-07:002013-03-25T23:48:00.605-07:00आप ने बहुत अच्चा लिखा ...बहुत बड़ी-बड़ी जानकारियाँ...आप ने बहुत अच्चा लिखा ...बहुत बड़ी-बड़ी जानकारियाँ मिलीं परन्तु यह बात आप सफाई के साथ नहीं बता पाए कि बहादुरशाह ज़फर पहली बार कहाँ ( लाल किला या हुमायूं का मकबरा )से गिरफ्तार हुए और गिरफ्तार होने के कितने दिनों तक उन्हें दिल्ली में और रखा गया ....<br /><br /><br /><br /><br /><br />Asrar Khanhttps://www.blogger.com/profile/04948107867193054692noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-79070624783143009982011-03-02T00:40:24.702-08:002011-03-02T00:40:24.702-08:00This article gives a deep insight into Indian hist...This article gives a deep insight into Indian history. While reading this, I was thinking how our country suffered due to the selfishness of our some rulers and the Britishers could rule us.<br />Here I like to share some good lines of a song which I really like.<br /><br />हम करें राष्ट आराधना<br />तन से मन से धन से<br />तन मन धन जीवनसे<br />हम करें राष्ट आराधना………………।।…धृ<br /><br />अन्तर से मुख से कृती से<br />निश्र्चल हो निर्मल मति से<br />श्रध्धा से मस्तक नत से<br />हम करें राष्ट अभिवादन…………………। १<br /><br />अपने हंसते शैशव से<br />अपने खिलते यौवन से<br />प्रौढता पूर्ण जीवन से<br />हम करें राष्ट का अर्चन……………………।२<br /><br />अपने अतीत को पढकर<br />अपना ईतिहास उलटकर<br />अपना भवितव्य समझकर<br />हम करें राष्ट का चिंतन…।………………।३<br /><br />है याद हमें युग युग की जलती अनेक घटनायें<br />जो मां के सेवा पथ पर आई बनकर विपदायें<br />हमने अभिषेक किया था जननी का अरिशोणित से<br />हमने शृंगार किया था माता का अरिमुंडो से<br /><br />हमने ही ऊसे दिया था सांस्कृतिक उच्च सिंहासन<br />मां जिस पर बैठी सुख से करती थी जग का शासन<br />अब काल चक्र की गति से वह टूट गया सिंहासन<br />अपना तन मन धन देकर हम करें पुन: संस्थापन………………।४Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-19023303836670628912011-01-09T02:36:11.300-08:002011-01-09T02:36:11.300-08:00priya chandel tumhara yeh aalekh jo itihaas par aa...priya chandel tumhara yeh aalekh jo itihaas par aadharit hai kaphii achchha ban padaa hai ek do ghatnaon ko chhod kar (aasehmat hote hue bhii) mai poore lekh ko badi gambhiirta se padta chala gayaa, kaee ghatnaon ka achchha varnan kiya hai baki kabhi milenge to charcha karenge itne sargirbhit lekh ke liye mai bahai deta hoonashok andreyhttps://www.blogger.com/profile/03418874958756221645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-58344100326287787542010-12-29T23:54:53.524-08:002010-12-29T23:54:53.524-08:00भाई चन्देल, बहादुर शाह ज़फ़र पर तुम्हारा यह आलेख भीत...भाई चन्देल, बहादुर शाह ज़फ़र पर तुम्हारा यह आलेख भीतर तक दस्तक दे गया। मैं जानता हूँ, इतिहास तुम्हारा प्रिय विषय रहा है, मुझे वो दिन याद आते हैं जब तुम दिल्ली प्रैस की पत्रिका 'सरिता' के लिए धुंआदार ऐतिहासिक कहानियाँ लिखा करते थे। ऐसी मन को छू लेने वाली ऐतिहासिक पात्रों की प्रामाणिक कहानियाँ कि तब भी मैं उन्हें बड़े चाव से एक सिटिंग में पढ़ जाता था, जबकि सच्चाई यह है कि इतिहास मेरा प्रिय विषय नहीं है और यह मुझे शुरूआत से ही बहुत शुष्क और उबाऊ सा लगता रहा है। पर "इतिहास की एक उदास ग़ज़ल' को पढ़कर जाना कि यदि इतिहास को रोचक और बांध लेने वाले आलेखों से अथवा कहानियों से जाना जाए तो वह शुष्क और उबाऊ नहीं रहता। भाई बहुत ही छू लेने वाला आलेख लगा! बधाई !सुभाष नीरवhttps://www.blogger.com/profile/06327767362864234960noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-46057204439283214752010-12-29T19:10:46.229-08:002010-12-29T19:10:46.229-08:00Dhanyawad Roop singh ji. Ank padh kar achha laga, ...Dhanyawad Roop singh ji. Ank padh kar achha laga, aapka lekh bhi bahoot achha hai. Nagargun ji kavitayen bhi padhti gaye. Sadatpur mein unke smman mein aye logon to mera pranam. Jankavi to eise hi yaad kiya jana chahiye.<br /> <br />Shubhkamnayen. Nav Varsh ki.<br /> <br />Savita Singh aur Pankaj singhAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-75898347208318150202010-12-29T11:02:19.513-08:002010-12-29T11:02:19.513-08:00BADEE ROCHAK SHAILEE MEIN LIKHA
AAPKA LEKH EK BAIT...BADEE ROCHAK SHAILEE MEIN LIKHA<br />AAPKA LEKH EK BAITHAK MEIN HEE<br />PADH GAYAA HOON . ITIHAAS PAR <br />AAPKEE BAHUT MAJBOOT PAKAD HAI .<br />MUGHAL SAMRAJYA KE PATAN KE KAEE<br />KARAN THE . OONCHE AUDON PAR TIKE<br />LOGON MEIN BHAVNAATMAK EKTA KA NITAAT <br />ABHAAV THA . KUCHH SATTADHAREE HAMESHA HEE PRALOBHAN<br />MEIN AAKAR JHUKTE AAYE THE VIDESHEE AAKAMANKARIYON KE AAGE. AAJ<br />BHEE VAHEE STHITI HAI . ZAFAR KE<br />DAUR KE HEE EK URDU SHAAYAR KAA <br /> KATHAN PADHIYE -<br /><br />DIL KE FAFOLE JAL UTHE <br />SEENE KE DAAG SE<br />IS GHAR KO AAG LAG GAYEE <br />GHAR KE CHIRAAG SE <br /><br /> AAPKAA LEKH ITIHAAS KE <br />VIDYARTHIYON KE LIYE ATYANT <br />MAHATTAVPOORN HAI . AAPKO DHERON<br />BADHAAEEYAN AUR SHUBH KAMNAAYEN .PRAN SHARMAnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-36924442837265120192010-12-29T08:02:25.460-08:002010-12-29T08:02:25.460-08:00यह ग़ज़ब का इतिहास लेखन है। सन् 2007 की बात है। मैं ...यह ग़ज़ब का इतिहास लेखन है। सन् 2007 की बात है। मैं उन दिनों कश्मीरी गेट, दिल्ली पोस्ट ऑफिस में कार्यरत था और पोर्ट ब्लेयर से प्रकाशित होने वाली हिन्दी पत्रिका 'द्वीप लहरी' के '1857 की 150वीं वर्षगाँठ' पर विशेषांक की तैयारी कर रहा था। वहाँ, तारघर के सामने सड़क के बीचों-बीच बने पार्क के एक स्तम्भ पर मेरी नजर पड़ी तो मैंने उसे निकट जाकर देखा और उसे सन् 1857 के स्वाधीनता-संग्राम से जुड़ा पाया। उसका एक फोटो उतार और उसके बारे में एक छोटा लेख लिखकर मैं कादम्बिनी में कार्यरत भाई धनंजय के साथ दैनिक हिन्दुस्तान की सम्बन्धित डेस्क के संपादक के पास गया। बजाय इसके कि वह दो शब्द उत्साहवर्द्धक बोलते, उनका पहला सवाल था--'क्या आप इतिहासकार है?' यानी क्या आप इस विषय पर लिखने के अधिकारी हैं? उनके इस सवाल का कोई जवाब न तो उस दिन मेरे पास था और न ही आज मेरे पास है। यह वस्तुत: एक विशेष प्रकार का अभिजात्य-चरित्र था जिसकी भर्त्सना की जानी चाहिए। यह वैसा ही सवाल था जैसे कि स्कूल में बच्चे का दाखिला कराने गए किसी दलित पिता से ब्राह्मंणवादी अध्यापक पूछे कि 'क्या इसे पढ़ने का अधिकार है?' मेरी उक्त पीड़ा को आप यों समझिए कि यह लेख पढ़ने के बाद अगर मैं आपसे उपर्युक्त सवाल करूँ तो आप यह प्रतिप्रश्न मुझसे जरूर करेंगे कि--'इतिहास किसे कहते हैं क्या यह जानने की तमीज तुझमें है?' दरअसल, यह प्रतिप्रश्न ही उस दिन मेरे मस्तिष्क में उभरा था जिसे उस समय मुझे बोल देना चाहिए था लेकिन भाई धनंजय का लिहाज़ करते हुए मैंने बोला नहीं। मेरे लिए 'भारतीय स्वाधीनता का इतिहास एक गरिमापूर्ण पीड़ा है।' आपके इस लेख ने मेरी इस धारणा को और-अधिक पुख्ता कर दिया है। 'गरिमा' इस बात की कि आर्य-अनार्य के बन्धनों से मुक्त हम विशाल-हृदय देशभक्तों के वंशज हैं और 'पीड़ा' इस बात कि ऐसे देशभक्तों पर लिखने का समय समकालीन लेखक निकाल नहीं पाते हैं और गरिमापूर्ण साहित्य को समकालीन आलोचक कानी आँख से भी देखने को तैयार नहीं हैं। साधुवाद भाई आलोक श्रीवास्तव को कि उन्होंने आपसे इतना महत्वपूर्ण लेख लिखवा लिया।बलराम अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.com