tag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post8356596686539966582..comments2024-01-30T07:29:55.670-08:00Comments on वातायन: वातायन - अक्टूबर २००९रूपसिंह चन्देलhttp://www.blogger.com/profile/01812169387124195725noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-75615336685586650322009-11-02T09:42:12.871-08:002009-11-02T09:42:12.871-08:00महत्वपूर्ण सवाल उठाने के लिए आप को धन्यवादमहत्वपूर्ण सवाल उठाने के लिए आप को धन्यवादसुरेश यादवhttps://www.blogger.com/profile/16080483473983405812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-26359886274240382232009-10-22T05:27:15.834-07:002009-10-22T05:27:15.834-07:00रूप जी आप की चिंताएँ औरों की भी चिंताएँ हैं, पर आप...रूप जी आप की चिंताएँ औरों की भी चिंताएँ हैं, पर आप का गुण है कि आप सिर्फ चिंता नहीं करते, कलम उठा लेखक का धर्म निभाते हैं --कई बार हम लोग सिर्फ सोचते ही रहते हैं. यही सोच कर चुप रह जाते हैं कि कुछ बदलने वाला तो है नहीं. बुलंद लिखने की बधाई.Dr. Sudha Om Dhingrahttps://www.blogger.com/profile/10916293722568766521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-88726571099290326422009-10-14T00:55:08.731-07:002009-10-14T00:55:08.731-07:00आदरणीय चंदेलजी
आपकी और हमारी चिंताएं लगभग एक ही है...आदरणीय चंदेलजी<br />आपकी और हमारी चिंताएं लगभग एक ही हैं. लेकिन इन चिंताओं पर किसी बड़े हस्तक्षेप की आवश्यकता भी है, जिसे लेकर कोई बड़ा आंदोलन इन दिनों कहीं दिखाई नहीं दे रहा है. खैर आपने लेख में बहुत ही खरी-खरी कही है.<br />बधाई एवं दीप पर्व की शुभकामनाओं सहित<br />- प्रदीप जिलवाने, खरगोन म.प्र.प्रदीप जिलवानेhttps://www.blogger.com/profile/08193021432011337278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-46986685276183876652009-10-11T08:18:45.654-07:002009-10-11T08:18:45.654-07:00ROOP JEE,
AAPKEE CHINTAA SABKEE CHINTA
HAI....ROOP JEE, <br /> AAPKEE CHINTAA SABKEE CHINTA<br />HAI.DESH KO DESH KE NETAA HEE<br />LOOT RAHE HAIN.SACHIV HO YAA NETA<br />HO UNKO DEE HUEE SARKAREE GAADIYAN<br />UNKE RISHTEDARON AUR MEHMAANON KE<br />SAIR-SPAATON KE LIYE ISTEMAAL KEE<br />JAATEE HAIN.U.K MEIN BHEE YAHEE<br />HAAL HAIN.MP LOGON KEE MONEY KO <br />USE KAR RAHE HAIN APNON PAR.YAHAN<br />KE LAGBHAG 300 MP KO PUBLIC MONEY <br />LAUTAANE KE LIYE KAHAA GAYA HAI.<br />DHAANDHLEE HAR DESH MEIN HAI.<br />KURSIYON PAR BAITHE HUE " BADE LOG"<br />APNEE MUTHIYAN GARM KARNE MEIN LAGE<br />HUE HAIN.JANTA SOYEE HUEE HAI.KYA<br />KIYA JAAYE? KISEE CHOOHE KO HALDEE<br />KAA TUKDA MILTA HAI ,VO BHEE APNE-<br />AAPKO PANSAAREE SAMAJHNE LAGTA HAI.<br />BHRASHTACHAAR KE MAGARMACHH KEE<br />LAPET MEIN HAR KOEE HAI.ZAROORAT<br />HAI MAGARMACHH KO NIGALNE KEE.PRAN SHARMAnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-46026402336752970192009-10-10T06:39:56.513-07:002009-10-10T06:39:56.513-07:00भाई चन्देल, तुम्हारी चिन्ता जायज है। ऐसा नहीं है क...भाई चन्देल, तुम्हारी चिन्ता जायज है। ऐसा नहीं है कि जैसा तुम सोचते हो और लोग भी नहीं सोचते होंगे। पर यह कटु सच्चाई है कि तुम्हारी तरह कुछ ही लोग अपनी चिन्ता को लिखकर शेयर करते हैं। उत्तर प्रदेश के 'बुत प्रदेश' की बात तुमने अच्छी कही। सर्वोच्च न्यायालय ही इस पर कुछ कर सकता है। वह कर भी रहा है। पर हमारे राजनीतिज्ञ अपने वोट की खातिर क्या कुछ न अपने स्वार्थ में कर/करवा लें। तुम्हारी ये चिन्ताएं एक लेखक की ही नहीं, तुम्हारे अन्दर के भारतीय नागरिक की भी हैं।सुभाष नीरवhttps://www.blogger.com/profile/03126575478140833321noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-67933267359394018142009-10-09T08:50:49.792-07:002009-10-09T08:50:49.792-07:00आ० चंदेल जी,
वातायन का अक्टूबर अंक पढ़ा | निजी क...आ० चंदेल जी, <br /> वातायन का अक्टूबर अंक पढ़ा | निजी कंपनियों के शिखर अधिकारिओं के वेतन को ले कर <br />राजनैतिक हलकों में जो हाय तोबा मची उसके सम्बन्ध में सांसदों व मंत्रिओं की वास्तविक <br /> आय की तुलना में मुकेश अम्बानी और और बड़ी कंपनियों के सी० ई० ओ० की आय तो नगण्य <br />लगती है | राजनीतिबाजों ने जब कंपनियों के अधिकारिओं के वेतन सम्बन्धी चर्चा को उछाला ही <br />है तो क्या देश के स्वतंत्र अर्थ-शास्त्रिओं और वित्तीय लेखकों की जमात सोयी हुई है जो जनता के <br />धन के सरकारी दुरूपयोग पर लेखनी नहीं उठाते | समाचार-पत्रों में निजी कंपनी अधिकारिओं के <br />वेतन की तुलना, जिस पर वे तीस प्रतिशत आय-कर भरते हैं, सांसद और मंत्री की वास्तविक आय <br />जिसका भुगतान इन करों के पैसों से हो रहा है और जो मूल वेतन पर नाम-मात्र कर दे कर <br />सुविधाओं के रूप में लाखों रूपया प्रतिमास डकार रहे हैं उनकी इस लूट पर देश का प्रबुद्ध लेखक-वर्ग <br />चुप क्यों है ? क्या देश के सारे समाचार-पत्र संपादक और अर्थ-शास्त्री बिक गये हैं ? राजनैतिक हलकों <br />में सांसद और मंत्री वर्ग ने अपनी लूट बढाने के उद्देश्य से ही इस बेचारगी को उछाला है, इस कूट-नीति <br />को पहचानने वाले क्या कहीं कोई नहीं बचे ? वास्तविक आंकड़े प्रकाशित कर मीडिया इस सत्य को उजागर <br />करने से क्यों डर रही है ? काश! इन प्रश्नों का उत्तर मुझे कहीं मिल पाता ?<br /> वातायन की कवितायें और अन्य सामग्री बहुत रुचिकर, सारगर्भित, और पठनीय लगीं |<br />कमलAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-41664934867213259202009-10-09T06:25:46.138-07:002009-10-09T06:25:46.138-07:00आपकी चिन्ता सबको चिन्तित करती है; परन्तु जनता के ख...आपकी चिन्ता सबको चिन्तित करती है; परन्तु जनता के खून -पसीने की कमाई से अचानक करोड़पति बननेवाले नेताओं को नहीं ।सहज साहित्यhttps://www.blogger.com/profile/09750848593343499254noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-417740764999982630.post-49039416221624633912009-10-09T05:25:07.177-07:002009-10-09T05:25:07.177-07:00पूँजीपति होना उतना घातक शायद नहीं है जितना कि पूँज...पूँजीपति होना उतना घातक शायद नहीं है जितना कि पूँजीवादी मानसिकता का होना। इस मानसिकता के व्यक्ति को मैं ऐसे जानवर के रूप में देखता हूँ जो लगातार अपनी पूँछ को निगल रहा हो और इस खुशफहमी में जी रहा हो कि उसके पड़ोसी की पूँछ उसके जबड़ों में है और बहुत जल्द उसे वह पूरा का पूरा निगल जाएगा। भले ही यह कारनामा हमारी और आपकी जिन्दगी में न हो, लेकिन हमारे बच्चे देखेंगे कि कि ये सारे के सारे जानवर खुद को पूरा निगल चुके होंगे।बलराम अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.com