शनिवार, 6 अगस्त 2011

वातायन-अगस्त,२०११


हम और हमारा समय
रूपसिंह चन्देल

अण्णा हजारे एक बार पुनः संघर्ष के मार्ग पर चलने के लिए विवश हैं. उन्होंने घोषणा की है कि १६ अगस्त,२०११ से वह दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर आमरण अनशन प्रारंभ करेंगे. उनके इस अभियान को रोकने के लिए सरकार ने अपने दांव-पेंच चलाने प्रारंभ कर दिए हैं, जिसकी पहली कड़ी के रूप में जन्तर-मन्तर तथा उसके आस-पास के क्षेत्र में धारा १४४ लगा दी गई है. लेकिन अण्णा अनशन के लिए कटिबद्ध हैं. उनके अनुसार वह ऎसा करना नहीं चाहते लेकिन उन्हें ऎसा करने के लिए विवश कर दिया गया है. ऎसा सरकार ने ’सिविल सोसाइटी’ द्वारा प्रस्तुत ’जन लोकपाल बिल’ को अस्वीकार करके किया है. जनता वास्तव में किस बिल के पक्ष में है उसके लिए अण्णा टीम ने दिल्ली, मुम्बई,नागपुर आदि कुछ शहरों में सर्वेक्षण किए. ८१ प्रतिशत से लेकर ९८ प्रतिशत जनता ने ’जन लोकपाल बिल’ का समर्थन किया. चांदनी चौक, जो ’जन लोकपाल बिल’ के मुखर विरोधी मानव संसाधन मंत्री श्री कपिल सिब्बल जी का चुनाव क्षेत्र है, की ८५ प्रतिशत जनता ने ’जन लोकपाल बिल’ का समर्थन किया. भले ही सरकार के मंत्री, प्रवक्ता और पदाधिकारी इस सर्वेक्षण का उपहास कर रहे हों और अण्णा टीम को २०१४ में लोकसभा चुनाव लड़ने की खुली चुनौती दे रहे हों, लेकिन इन सर्वेक्षणों से वे विचलित अवश्य हैं. वे यह भी जानते हैं कि चुनाव जीतने के लिए जिन हथकंडों की आवश्यकता होती है अण्णा टीम उसमें सक्षम नहीं है और न ’सिविल सोसाइटी’ के किसी सदस्य के पास इतना धन है जितना चुनाव लड़ने और जीतने के लिए अपेक्षित होता है. यदि सरकार को ’सिविल सोसाइटी’ के सर्वेक्षण पर भरोसा नहीं है तो वह किसी निष्पक्ष एजेंसी से स्वयं सर्वेक्षण करवा कर देख ले, वास्तविकता सामने आ जाएगी.
देश भ्रष्टाचार की गिरफ्त में इस कदर आ चुका है कि यदि उस पर अब अंकुश नहीं लगाया जा सका तो देश का विकास हवा में ही झूलता रह जाएगा और हम अशक्त आंखें फाड़कर देखते रहेंगे और पड़ोसी देश अपनी मनमानी करते हुए हमारे जन-धन को भयंकर क्षति पहुंचाते रहेंगे. जिस प्रकार चीन इस देश को घेरने के प्रयत्न कर रहा है वह चिन्ता का विषय है, लेकिन हमारे कर्णधार इस प्रयास में व्यस्त हैं कि काले धन के अपराधियों को कैसे सुरक्षा दी जा सके. सरकारी लोकपाल बिल का खतरनाक पक्ष यह है कि किसी भ्रष्टाचारी के विरुद्ध शिकायत करने वाला व्यक्ति यदि अपनी बात सिद्ध नहीं कर पाया तो उसके विरुद्ध इतनी कठोर कार्यवाई होगी कि दूसरा शिकायत करने का साहस नहीं कर पाएगा. और पूरा देश जानता है कि बड़े अपराधियों के विरुद्ध कुछ भी सिद्ध करना सहज नहीं है. दूसरे शब्दों में प्रस्तुत होने वाले लोकपाल बिल के आधार पर भ्रष्टाचार समाप्त होना तो दूर बढ़ने की संभावना ही अधिक होगी. ऎसी स्थिति में देश के सभी जागरूक नागरिकों को अण्णा हजारे के समर्थन में खुलकर सामने आना चाहिए.
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वातायन के इस अंक में ’पुस्तक चर्चा’ के अंतर्गत भावना प्रकाशन द्वारा सद्यः प्रकाशित मेरे कहानी संग्रह ’साठ कहानियां’ की संक्षिप्त चर्चा, मेरे द्वारा अनूदित संस्मरण पुस्तक ’लियो तोल्स्तोय का अंतरंग संसार’ से उनकी पत्नी सोफिया अन्द्रेएव्ना की डायरी के उन अंशों की पहली किस्त जो उन्होंने विशेष रूप से लियो को केन्द्र में रखकर लिखे थे. इसके अतिरिक्त चर्चित कवयित्री विनीता जोशी की दो कविताएं प्रकाशित हैं. आशा है अंक आपको पसंद आएगा.
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साठ कहानियां – रूपसिंह चन्देल

वरिष्ठ कथाकार रूपसिंह चन्देल की कहानियां हाशिए पर पड़े लोगों के जीवन को गहनता से चित्रित करती हैं. कुछ अपवादों को छोड़कर उनके कथाकार ने शोषित, दलित, दमित, और निम्न-मध्यवर्गीय चरित्रों को आधार बनाया है. वे ऎसे वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं जिसे आम आदमी कहा जाता है. चंदेल का अनुभव संसार व्यापक है. यही कारण है कि जिस सशक्तता से उन्होंने ग्राम्य जीवन को व्याख्यायित किया है उसी सजीवता का परिचय उनकी महानगरीय जीवन पर आधारित कहानियों में हमें प्राप्त होता है. लुप्तप्रायः किस्सागोई शैली और भाषा की सहजता उनकी कहानियों की विशेषता है. यही विशेषता समकालीन कथा-साहित्य में उन्हें अलग पहचान प्रदान करती है.

ग्रामीण वैषम्य, अशिक्षा, सामंती अवशेषों की नृशंसता, संबंधों की अर्थहीनता के साथ लोक-जीवन की विशेषताओं का चित्रण जहां उनकी कहानियों में प्रात होता है, वहीं महानगरीय संत्रास, भ्रष्टाचार, राजनैतिक पतन, पाखंड, असंतोष, छल-छद्म, अफसरशाही आदि को वास्तिविकता के साथ इन कहानियों में अभिव्यक्त किया गया है. किसी हद तक क्रूर हो चुके वर्तमान सामाजिक स्थितियों तथा टूटने-बिखरने के कगार पर पहुंचे पारिवारिक जीवन को जिस सशक्तता के साथ ये कहानियां प्रस्तुत करती हैं, वह कथाकार के सामाजिक सरोकारों, सूक्ष्म पर्यवेक्षण दृष्टि और अनुभवों की व्यापकता का परिचायक है.
चंदेल का भाषा-शिल्प सहज है. सायास चमत्कृत करने का प्रयास वहां नहीं है. कहानियों की एक विशिष्टता यह भी है कि लेखक स्वयं को कहानियों में आरोपित नहीं करते--- वे स्वतः स्फूर्त हैं.

(प्रकाशक)
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‘साठ कहानियां’ – रूपसिंह चन्देल
पृ.५७६ , मू. ६९५/-
*भावना प्रकाशन
109-A, पटपड़गंज, दिल्ली-११००९१
फोन: -011-22756734
011-22754663

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

सोफिया अन्द्रेएव्ना की डायरी

चित्र : आदित्य अग्रवाल

सोफिया अन्द्रेयेव्ना तोल्स्तोया की डायरी

अनुवाद : रूपसिंह चन्देल

१४ जनवरी, १८६३

लेव की आध्यात्मिक गतिविधियां इन दिनों शांत प्रतीत हो रही हैं, फिर भी मैं जानती हूं कि उनकी आत्मा कभी नहीं सोती बल्कि सदैव नीतिपरक समस्याओं में व्यस्त रहती है.

जनवरी १७, १८६३

अभी मैं गुस्से में थी. मैं उनसे उनकी प्रत्येक वस्तु और प्रत्येक व्यक्ति को प्यार करने प्रकृति के कारण नाराज थी, जबकि मैं चाहती हूं कि वह केवल मुझे ही प्रेम करें. इस समय मैं अकेली हूं और देख सकती हूं कि मैं पुनः दुराग्रही हो गयी हूं. यह उनकी सहृयता और भावप्रवण समृद्धता है जो उन्हें विशिष्ट बनती है. लेकिन जब उन्हें क्रोध आता है वह उग्र हो उठते हैं. तब वह मुझे इस सीमा तक परेशान और उत्पीड़ित करते हैं कि झुक जाने में ही मुझे मुक्ति मिल पाती है. लेकिन उनका क्रोध शीघ्र ही समाप्त हो जाता है और फिर वह बिल्कुल परेशान नहीं करते.

फरवरी २५, १८६५
कल लेव ने कहा कि उन्होंने अपने को एक तरुण की तरह अनुभव किया और मैंने उनकी बात भलीप्रकार समझी-----उन्होंने कहा कि युवा अनुभव करने का अर्थ है कि सब कुछ उसकी सामर्थ्य में है. दुन्याशा कहती है कि वह बूढ़ी हो गयी है. क्या यह सच हो सकता है ? वह कभी प्रफुल्ल नहीं रहते. मैं प्रायः उन्हें नाराज कर देती हूं. उनका लेखन उन्हें व्यस्त रखता, लेकिन वह उन्हें सुख नहीं दे पाता.

मार्च ६, १८६५

लेव चुस्त, प्रसन्न, स्वतंत्र, और एक संकल्प के साथ काम कर रहे हैं. मैं अनुभव करती हूं कि उनमें स्फूर्ति और सामर्थ्य है और मैं उन पर रेंगती एक मामूली कीड़ा हूं और उन्हें नष्ट कर रही हूं.

मार्च १५, १८६५

मै भयानकरूप से उन्हें प्यार करती हूं. उनके साथ रहने वाला कोई उनके प्रति बुरा नहीं हो सकता. उनके आत्मज्ञान और सभी मामलों में उनकी ईमानदारी मुझे अपनी नजरों में गिरा देती है और मुझे आत्मविश्लेषण करने और अपनी रंचमात्र त्रुटियों को खोज लेने के लिए प्रेरित करती है.

मार्च २६, १८६५

लेव की इच्छा एक कवि की भांति जीवन जीने और उसका उपभोग करने की है. मैं सोचती हूं कि ऎसा इसलिए है क्योंकि उनके अंदर मौजूद कविता अत्यंत सुन्दर, अत्यंत प्रचुर और अत्यंत अमूल्य है.

मार्च १२, १८६६

मास्को में हमने छः सप्ताह बिताये. ७ को लौटकर लेव मूर्तिकला और जिमनास्टिक की कक्षाओं में गये. हमने दिलचस्प समय बिताया . लेव ने अपने चितकबरे घोड़े को सजाया.

जुलाई १९, १८६६

हमारा एक नया कारिन्दा, अपनी पत्नी के साथ यहां आया हुआ है. वह युवा , सुदर्शना और निहिलिस्ट है. उसने और लेव ने साहित्य और दर्शन पर लंबी और जीवंत चर्चा की---- मैं कहना चाहूंगी---- बहुत लंबी और गैरजरूरी. निश्चित ही वह मुझे बोर और उसकी चाटुकारिता कर रहे थे.

अगस्त १०, १८६६

कल बिबिकोव ने हमें एक भयानक कहानी सुनाई. सेन के एक लिपिक को अपने कम्पनी कमांडर के मुंह पर मारने के लिए गोली मार दी गई. कोर्ट मार्शल में लेव ने उसे बचाने का प्रयास किया, लेकिन दुर्भाग्य से बचाव, सामान्यतया, एक औपचारिकता से अधिक नहीं था.

जनवरी १२, १८६७

लेव पूरी सर्दियों भर आवेश और क्षोभ सहित, कभी-कभी आंखों में आंसू भरे निरन्तर लिखते रहे.

मार्च १५, १८६७

कल रात १० बजे हमारे वनस्पति उगाने के तापघर में आग लग गयी और जलकर वह धराशायी हो गया. मैं सो रही थी. लेव ने मुझे जगाया और मैंने खिड़की से लपटें देखीं. लेव ने माली के बच्चों और चीजों को वहां से हटाया ---- सभी पौधे (उन्हें उनके दादा ने लगाया था और जिन्होंने तीन पीढ़ियों को खुशी प्रदान की थी ) नष्ट हो गये थे. जो नष्ट नहीं हुए या तो उनपर बर्फ जम गयी थी अथवा वे झुलस चुके थे----- लेव को देख मुझे बहुत दुख हो रहा था, क्योंकि वह बहुत दुखी दिख रहे थे----. वह अपने पौधों और फूलों के प्रति बहुत अनुरक्त थे और उन्हें पर्याप्त समय देते थे. उनके लगाये पौधे जब फलने-फूलने लगे थे तब वह प्रसन्न हुए थे.

अक्टूबर ६, १८७८

सुबह मैंने लेव को नीचे की मंजिल में डेस्क पर लिखते हुए पाया. उन्होंने कहा कि वह अपनी नयी पुस्तक के प्रारंभ को दसवीं बार पुनः लिख रहे थे. यह एक मुझिक (रूसी कृषक) द्वारा अपने मालिक के विरुद्ध चलाये गये मुकदमे की जांच-पड़ताल से प्रारंभ होता है. लेव ने मामले को रिकार्ड से सीधे लिया था, यहां तक कि तारीखें भी सही दी थीं. इस मुकदमें की कहानी सेण्ट पीटर्सबर्ग और अन्य स्थानों के किसानों और उनके मालिकों को चित्रित करती एक झरने की भांति बहती है.

अक्टूबर २३, १८७८
शाम के समय लेव ने वेबर का सोनाटा और शुबर्ट बजाया, कुछ को वायलिन में-----. आज उन्होंने कहा कि उन्होंने इतनी अधिक ऎतिहासिक सामग्री पढ़ी है कि वह उससे थक गये हैं, और अब डिकेन्स की ’मार्टिन शुजविट’ (Martina Chuzzlewit) पढ़ते हुए आराम कर रहे थे. मैं जानती हूं कि जब लेव अंग्रेजी उपन्यासकारों की ओर उन्मुख होते हैं तब वह कुछ नया लिखने वाले होते हैं.

अक्टूबर २४, १८७८

वह अभी तक लिख नहीं सके हैं. आज उन्होंने कहा : "सोन्या, यदि मैं लिखता हूं, तो उसे इतना बोधगम्य होना चाहिए कि छोटे बच्चे भी उसके प्रत्येक शब्द को समझ सकें.

नवम्बर १, १८७८

कल सुबह लेव ने मुझे अपनी नयी पुस्तक का प्रारंभिक अंश पढ़कर सुनाया था. उनकी परिकल्पना स्पष्ट, गहन और रुचिकर है. यह एक किसान द्वारा जमीन के एक टुकड़े को लेकर अपने मालिक के विरुद्ध दायर एक मुकदमें से प्रारंभ होता है, फिर मास्को में प्रिंस चेर्निशेव और उनके परिवार के आगमन, और एक धर्मानुरागी वृद्धा के उद्धारक मन्दिर की आधार शिला रखने आदि को चित्रित करता है. शाम के समय अचानक लेव लंबे समय तक पियानो बजाते रहे. इस दिशा में भी वह बहुत प्रतिभा संपन्न हैं.

नवम्बर ४, १८७८

लेव मुश्किल से ही कुछ लिखते हैं और उदास हैं----- मैं बच्चों को पढ़ाती हूं. लेव और मुझमें सेर्गेई को फ्रेंच पढ़ाने को लेकर बहस हुई. मैं मानती हूं कि उसे फ्रेंच साहित्य पढ़ना चाहिए, जबकि लेव ऎसा नहीं चाहते.

नवम्बर ११, १८७८

लेव---- को शिकायत है कि वह नहीं लिख सकते. शाम के समय जब वह डिकेंस का ’डाम्बे एण्ड सन’ पढ़ रहे थे, अचानक मेरी ओर मुड़कर बोले, "आह, अभी क्या ही खूबसूरत विचार मुझे आया !" मैंने पूछा, वह क्या था, लेकिन उन्होंने बताया नहीं. फिर उन्होंने स्पष्ट किया, "मैं एक वृद्धा के विषय में सोच रहा हूं, वह कैसी दिखनी चाहिए, उसकी आकृति, उसके विचार, और विशेषकर----- उसकी अनुभूतियां. यही मुख्य बात है ---- उसका अनुभव करना. उदाहरण के लिए उसका पति गेरासिमोविच आधा सिर घुटाये जेल में बैठा है, जबकि वह निर्दोष है; यह अनुभूति एक क्षण के लिए भी उससे अलग नहीं होनी चाहिए.

नवम्बर ६, १८७८

लेव ने आज कहा कि सब कुछ सुस्पष्ट होता जा रहा है. उनके चरित्र जीवन से ग्रहण किये गये हैं. आज उन्होंने काम किया और अच्छी मनःस्थिति में थे. वह जो कुछ कर रहे हैं उस पर विश्वास करते हैं. लेकिन उन्होंने सिर दर्द की शिकायत की, और उन्हें खांसी है.

मार्च २४, १८८५

कल लेव क्रीमिया से वापस लौटे. वह विशेषरूप से उरूसोव के साथ गये थे , जो बीमार हैं. क्रीमिया में उन्हें सेवस्तोपोल के युद्ध की याद ताजा हो आयी थी. वह पहाड़ों पर चढ़े और समुद्र की प्रशंसा की. सिमीज जाते हुए, वह और उरूसोव उस स्थान से गुजरे जहां युद्धकाल में लेव अपनी तोप के साथ रुके थे. वहां उन्होंने केवल एक बार उसे दागा था. यह लगभग तीस वर्ष पहले की बात है. वह उरूसोव के साथ यात्रा कर रहे थे जब अचानक वह गाड़ी से नीचे कूद गये और कुछ देखने लगे. उन्हें सड़क के पास तोप का एक गोला दिखाई दे गया था. क्या वह वही गोला था जिसे सेवस्तोपोल युद्ध के दौरान लेव ने दागा था ! उस स्थान पर किसी और ने तोप नहीं दागी थी. उस क्षेत्र में केवल एक ही तोप थी.

जून १८, १८८७

लेव हमारी दो बेटियों और कुजमिन्स्की की दो लड़कियों के साथ चहल-कदमी करते युए यसेन्की गये. दूसरी शाम उन्होंने घण्टॊं पियानो बजाकर अपना मन बहलाया. वायलिन पर मोजार्ट, वेबर और हेदन बजाया. प्रतीत होता था कि इससे उन्हें अत्यधिक आनंद प्राप्त हुआ था.

अमेरिका में मिली अपनी सफलता से , अथवा कहना चाहिए कि जिस सहानुभूतिपूर्वक उनके काम को वहां स्वीकार किया गया , उससे वह अत्यंत प्रसन्न हैं. लेकिन सफलता और यश में उनकी बहुत रुचि नहीं है. आजकल वह अधिक ही प्रसन्न दिखाई देते हैं और प्रायः कहते हैं कि जीवन कितना अद्भुत है.

जुलाई २, १८८७

शाम सेर्गेई वाल्ट्स (जर्मन नृत्य) नृत्य कर रहा रहा था. लेव अंदर आये और मुझसे बोले, "अब हमे नृत्य करने दो". युवाओं को आनंदित करते हुए हमने नृत्य किया. वह बहुत प्रफुल्ल और फुर्तीले हैं, लेकिन कमजोर हो गये हैं. जब वह घास लगाते अथवा टहलते हैं, जल्दी ही थक जाते हैं. स्त्राखोव के साथ विज्ञान , कला और संगीत पर उन्होंने लंबी चर्चा की. आज उन्होंने फोटोग्राफी पर भी चर्चा की.

अगस्त १९, १८८७

कलाकार, रेपिन, यहां आए हुए थे. वह ९ को पहुंचे और १६ की शाम को गये. उन्होंने लेव निकोलायेविच के दो पोट्रेट बनाए. पहला नीचे की मंजिल में उनकी स्टडी में उन्होंने बनाना प्रारंभ किया, लेकिन रेपिन उससे असंतुष्ट थे और उन्होंने ऊपर की मंजिल पर ड्राइंगरूप में रोशनी की पृष्ठभूमि के सामने बनाना प्रारंभ किया. पोट्रेट अप्रत्याशित रूप से अच्छा है. वह अभी यहीं सूख रहा है. उन्होंने पहला बहुत तेजी से समाप्त किया था और उसे मुझे भेंट किया था.

शाम के समय लेव ने हम सभी को गोगोल का ’डेड सोल’ पढ़कर सुनाया.

दिसम्बर २८, १८९०

कल उहोंने (तोल्स्तोय) लेव (तोल्स्तोय का बेटा) को बताया कि उन्होंने ’क्रुट्जर सोनाटा’ लिखते समय किस प्रकार का साहित्यिक प्रयोग किया. उन्होंने कहा कि एक बार अभिनेता अन्द्रेयेव बुरलक ने, जो स्वयं एक अच्छे कथाकार हैं, उनसे --- एक कहानी लिखने का अनुरोध किया और बताया कि वह रेल में यात्रा करते समय एक ऎसे सज्जन से मिले थे जिसकी पत्नी उसके प्रति बेवफा थी. लेव निकोलायेविच ने उसी विषय का उपयोग करने का निर्णय किया था.

जनवरी १७, १८९१

डिनर के समय हम मजाक कर रहे थे कि यदि सभी भद्र लोग एक सप्ताह के लिए नौकरों से अपना स्थान बदल लें तो कैसा रहे ! लेव नाराज हो गये और नीचे चले गये. मैं उनके पास गयी और पूछा क्या बात थी ? उन्होंने कहा, "अतिरस्करणीय विषय पर मूर्खतापूर्ण बातें ! मैं पर्याप्त बर्दाश्त करता हूं क्योंकि हम नौकरों से घिरे हुए हैं, और तुम उनका मजाक करती हो खासकर बच्चों के सामने. यह मुझे आहत करता है."

मार्च ६, १८९१

डिनर के बाद, अभ्यास के लिए, छोटे बच्चों के साथ हम लेव के साथ खेलने लगे. प्रतिदिन डिनर के बाद लेव उन्हें घर के आस-पास ले जाते हैं. उनमें से एक को एक खाली बास्केट में बैठाते हैं, उसका ढक्कन बंद कर देते हैं और वहां से चले जाते हैं. कुछ देर बाद वह लौटकर आते हैं और पूछते हैं कि बास्केट के अंदर जो भी है, अनुमान लगाये कि वह किस कमरे में बैठा है.

मार्च २२, १८९१

डिनर के बाद लेव और मैंने पियानो पर युगलवादन किया . शाम को सालीटेयर (ताश का खेल ) के बजाय, उन्होंने अविरंजित (कोरे) धागों का गोला मेरे लिए उछाला. सभी धागे उलझे हुए थे, और उन्हें सुलझाने के काम में वह गहराई से तल्लीन हो गये थे.

(अप्रैल २० के लगभग ) १८९१

जार से मेरे मिलने जाने का लेव विरोध कर रहे थे. पहले वह और जार एक दूसरे की उपेक्षा करते रहे थे और अब मेरे कहने का प्रयास हमें क्षति पहुंचा सकता है और उसके अप्रिय परिणाम हो सकते हैं.

मई २२, १८९१

हमारा इरादा शाम पढ़ने का था, लेकिन साहित्य, प्रेम , कला और पेण्टिंग के विषय में दिलचस्प चर्चा छिड़ गई थी. लेव ने कहा कि उस पेण्टिंग्स से घृणा उत्पन्न करने वाला कुछ और नहीं हो सकता, जिसमें कामुकता को चित्रित किया गया हो. उदाहरणस्वरुप एक सन्यासी का एक स्त्री पर दृष्टि रखना, अथवा क्रीमियन तातार द्वारा एक लड़की का घोड़े पर बैठाकर अपहरण करना, अथवा एक व्यक्ति का अपनी पुत्रवधू की ओर लंपटतापूर्वक देखना. ये बातें कैनवस में उतारे बिना ही जीवन में पर्याप्त बुरी हैं.

सितम्बर १९, १८९१

नोवोये व्रेम्या समाचार पत्र की एक कटिंग के साथ लेस्कोय से एक पत्र प्राप्त हुआ. कटिंग का शीर्षक है -- " दुर्भिक्ष पर एल.एन.तोल्स्तोय के विचार." लेव निकोलायेविच द्वारा दुर्भिक्ष को लेकर लेश्कोव को लिखे एक पत्र में से लेश्कोव ने कुछ अंश प्रकाशित करवा दिए थे. अंश में कहीं कहीं भोंडें शब्द हैं और निश्चित ही उसे प्रकाशित करवाने की लेव की मंशा नहीं थी. इससे लेव दुखी थे. पूरी रात वह सो नहीं पाये, और अगली सुबह उन्होंने कहा कि दुर्भिक्ष के कारण वह अशांत रह रहे थे, कि अकाल-ग्रस्त लोगों के भोजन के लिए जन-भोजनालय खोले जाने चाहिए, कि मुख्य बात यह कि दुर्भिक्ष से निबटने के लिए निजी स्तर पर प्रयत्न किये जाने चाहिए और यह कि वह आशा करते थे कि मुझे आर्थिक सहयोग देना चाहिए. उन्होंने कहा कि वह योजना का कार्य संभालने के लिए पिरोगोवो के लिए प्रस्थान करेंगे और उस विषय पर लिखेंगे. किसी को किसी विषय पर तब तक आलेख नहीं लिखना चाहिए जब तक उसने स्वयं उस विषय का अनुभव प्राप्त न किया हो और यह आवश्यक है, कि अपने भाई और उस क्षेत्र के आस-पास के जमींदारों के सहयोग से दो-तीन जन-भोजनालय खोलूं, जिससे उस विषय पर लिख सकूं."

अक्टूबर ८, १८९१

अभी मैंने अपनी डायरी में पिछला उल्लेख देखा. मैंने लिखा था कि लेव और तान्या पिरोगोवो और दूसरे गांवों में अकाल की जानकार प्राप्त करने के लिए जा चुके थे. पिरोगोवो में उनके भाई सेर्गेई द्वारा निरुत्साह प्रदर्शित करने के बाद लेव और तान्या बिबीकोव के यहां गये और वहां दुर्भिक्ष के शिकार लोगों की सूची तैयार की. तान्या बिबीकोव परिवार में ठहर गयी जबकि लेव ने कुछ धनी महिलाओं के यहां जाने के लिए अपनी यात्रा जारी रखी और वहां से वह स्वेचिन के यहां गये. बिबीकोव और उन महिलाओं ने जन-भोजनालयों के विचार के प्रति ठण्डा रुख प्रदर्शित किया. कोई भी अपना पैसा देना नहीं चाहता. सभी अपने मामलों तक ही सोचते हैं. केवल स्वेचिन ने ही सहानुभूति प्रकट की.

लेव और तान्या पांचवें दिन वापस लौट आये, और २३ को एपीफैन उयेज्द के लिए रेल द्वारा माशा के साथ उन्होंने पुनः प्रस्थान किया. वे राफेल अलेक्जेयेविच पिसारेव के यहां ठहरे, जहां से उन्होंने प्रभावित (दुर्भिक्ष) गांवों में जांच-पड़ताल की. रायेव्स्की उनसे वहां आ मिले , और उन लोगों ने भूखे लोगों के लिए जन-भोजनालयों के विषय में चर्चा की. लेव ने तुरंत निर्णय किया कि वह अपनी दो पुत्रियों के साथ रायेव्स्की के यहां जाड़ा बिताने और जन-भोजनलाय खोलने के लिए चले जायें. उन्होंने, सौ रूबल, जो मैंने उनको यहां से जाने से पहले दिये थे, आलू और लाल शलगम खरीदने के लिए दिए.



क्रमशः जारी

कविताएं






विनीता जोशी की दो कविताएँ

क्या तुम भी

भगवान
क्यों पहनते हो
ये रत्नजड़ित मुकुट, रेशमी वस्त्र
और स्वर्णाभूषण
क्यों जीमते हो
छप्पन भोग
क्यों फहराती है तुम्हारे मंदिर में
चालीस मीटर कपड़े की पताका
क्यों देखते नहीं
भूख से बिलखते नंगे-बूढ़े
बचपन को

कहाँ खो गई
तुम्हारी काली कमली
और लाठी
चढ़ावे की मन्नत
मांगे बिना
तुम भी पूरी नहीं
कर सकते
छोटी-सी मुराद
साहूकार की तरह…

अब क्यों नहीं पड़ती
तुम्हारी दिव्य-दृष्टि
किसी सुदामा की झोपड़ी पर
वृदावन में
भजन गातीं गोपियों पर
अब क्यों नहीं करते
प्रेमवर्षा…

क्षमा करना
क्या तुम भी
राजा बनकर
करना चाहते हो
शासन ?
0

सोना चाहती हूँ मैं

खिड़कियाँ खोलकर
हवाओं की थपकियाँ
महसूसते हुए
सोना चाहती हूँ मैं
जी भर
अपने घर की नींद

तुम
बड़े-बड़े काम करके
नाम कमाओ
रिश्ते-नाते निभाओ

मैं बहुत थक गई हूँ
भीड़ के साथ
यूँ ही चलते-चलते

अब तपता हुआ
तकिया
भिगोना चाहती हूँ

नकार चुकी
बहुत बार
अपनी छोटी-छोटी ज़रुरतें
अब नींद की नदी में नहाकर
तरोताज़ा होना चाहती हूँ

सोना चाहती हूँ मैं।
0

विनीता जोशी
शिक्षा : एम.ए., बी.एड(हिंदी साहित्य, अर्थशास्त्र)
प्रकाशन : कादम्बिनी, वागर्थ, पाखी, गुंजन, जनसत्ता, अमर उजाला, दैनिक जागरण, सहारा समय, शब्द सरोकार में कविताएँ, लघुकथाएँ और बाल कविताएँ प्रकाशित। अभी हाल में एक कविता संग्रह ''चिड़िया चुग लो आसमान'' पार्वती प्रकाशन, इन्दौर से प्रकाशित हुआ है जिसका पिछले दिनों भोपाल में नामवर जी ने विमोचन किया। “वाटिका” ब्लॉग के जून अंक 2011 पर दस कविताएं प्रकाशित।

सम्मान : बाल साहित्य के लिए खतीमा में सम्मानित।
सम्प्रति : अध्यापन।
सम्पर्क : तिवारी खोला, पूर्वी पोखर खाली
अल्मोड़ा-263601(उत्तराखंड)
दूरभाष : 09411096830