रविवार, 6 अप्रैल 2008

वातायन- अप्रैल,2008

हम और हमारा समय

हिंदी कथाकार-कवि सुभाष नीरव की कहानियाँ जहाँ घर, परिवार और समाज में मरती हुई संवेदनाओं पर गहरी चिंता प्रकट करती हैं, वहीं उनकी कविताएं भी व्यक्ति, समाज और देश के विद्रूप चेहरों को चीन्हने का काम करती प्रतीत होती हैं। सुभाष नीरव के अब तक तीन कहानी-संग्रह- “दैत्य तथा अन्य कहानियाँ”(आत्माराम एंड संस), “औरत होने का गुनाह”(मेधा बुक्स) तथा “आख़िरी पड़ाव का दु:ख”(भावना प्रकाशन), दो कविता-संग्रह – “यत्किंचित” और “रोशनी की लकीर”, एक बाल कहानी संग्रह – “मेहनत की रोटी” आदि पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हिंदी में मौलिक लेखन के साथ-साथ गत कई वर्षों से अनुवाद कार्य में भी संलग्न रहे हैं। पंजाबी से हिंदी में इनके द्वारा अनूदित 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें “काला दौर”, “छांग्या रुक्ख(दलित आत्मकथा)”, “कथा पंजाब” और “कुलवंतसिंह विर्क की चुनिंदा कहानियाँ”, पंजाबी की चर्चित लघुकथाएं” और “रेत(उपन्यास)” प्रमुख हैं। इन दिनों नेट पर “सेतु साहित्य”, “वाटिका”, “साहित्य सृजन” और “गवाक्ष” नाम से अपने चार साहित्यिक-वैचारिक ब्लागों के कारण काफी चर्चा का विषय बने हुए हैं। “हम और हमारा समय” के अंतर्गत प्रस्तुत हैं - हमारे समय और समाज के सच को रेखांकित करती सुभाष नीरव की पाँच कविताएं…
सुभाष नीरव की पाँच कविताएं

(1) बधाइयों की भीड़ में

‘जब न मिलने के आसार बहुत हों
जो मिल जाए, वही अच्छा है’
एक अरसे के बाद
सुनने को मिलीं ये पंक्तियां
उनके मुख से
जब मिला उन्हें लखटकिया पुरस्कार
उम्र की ढलती शाम में
उनकी साहित्य-सेवा के लिए ।

मिली बहुत–बहुत चिट्ठियाँ
आए बहुत-बहुत फोन
मिले बहुत-बहुत लोग
बधाई देते हुए।

जो अपने थे
हितैषी थे, हितचिंतक थे
उन्होंने की जाहिर खुशी यह कह कर
‘चलो, देर आयद, दुरस्त आयद
इनकी लंबी साधना की
कद्र तो की सरकार ने ...
वरना
हकदार तो थे इसके
कई बरस पहले ... ।’

जो रहे छत्तीस का आंकड़ा
करते रहे ईर्ष्या
उन्होंने भी दी बधाई
मन ही मन भले ही वे बोले
‘चलो, निबटा दिया सरकार ने
इस बरस एक बूढ़े को ...’

बधाइयों के इस तांतों के बीच
कितने अकेले और चिंतामग्न रहे वे
बत्तीस को छूती
अविवाहित जवान बेटी के विवाह को लेकर
नौकरी के लिए भटकते
जवान बेटे के भविष्य की सोच कर
बीमार पत्नी के मंहगे इलाज, और
ढहने की कगार पर खड़े छोटे-से मकान को लेकर ।

जाने से पहले
इनमें से कोई एक काम तो कर ही जाएं
वे इस लखटकिया पुरस्कार से
इसी सोच में डूबे
बेहद अकेला पा रहे हैं वे खुद को
बधाइयों की भीड़ में ।

(2) बेहतर दुनिया का सपना देखते लोग

बहुत बड़ी गिनती में हैं ऐसे लोग इस दुनिया में
जो चढ़ते सूरज को करते हैं नमस्कार
जुटाते हैं सुख-सुविधाएं और पाते हैं पुरस्कार ।

बहुत बड़ी गिनती में हैं ऐसे लोग
जो देख कर हवा का रुख चलते हैं
जिधर बहे पानी, उधर ही बहते हैं ।

बहुत अधिक गिनती में हैं ऐसे लोग
जो कष्टों-संघर्षों से कतराते हैं
करके समझौते बहुत कुछ पाते हैं ।

कम नहीं है ऐसे लोगों की गिनती
जो पाने को प्रवेश दरबारों में
अपनी रीढ़ तक गिरवी रख देते हैं ।

रीढ़हीन लोगों की इस बहुत बड़ी दुनिया में
बहुत कम गिनती में हैं ऐसे लोग जो
धारा के विरुद्ध चलते हैं
कष्टों-संघर्षों से जूझते हैं
समझौतों को नकारते हैं
अपना सूरज खुद उगाते हैं ।

भले ही कम हैं
पर हैं अभी भी ऐसे लोग
जो बेहतर दुनिया का सपना देखते हैं
और बचाये रखते हैं अपनी रीढ़
रीढ़हीन लोगों की भीड़ में ।

(3) जब मुझे

जब मुझे रास्ते की ज़रूरत थी
खड़ीं की तुमने दीवारें
खोदीं खाइयाँ।

जब मुझे ज़रूरत थी आलोक की
तुमने धकेल दिया
अंधी गुफाओं में।

जब मुझे ज़रूरत थी प्यार की
मेरे तलुवों के नीचे
बिछा दिया तुमने
नफ़रत का तपता रेगिस्तान।
सोचता हूँ
जो न तुम
खड़ीं करते दीवारें
न खोदते खाइयाँ
न धकेलते मुझे अंधी गुफाओं में
न बिछाते तपता रेगिस्तान
समझ कहाँ पाता
संघर्ष किस चिड़िया का नाम होता है
और मंजिल पाने का
सुख क्या होता है
संघर्ष के बाद।

(4) शिखरों पर लोग

जो कटे नहीं
अपनी ज़मीन से
शिखरों को छूने के बाद भी
गिरने का भय
उन्हें कभी नहीं रहा।

जिन्होंने छोड़ दी
अपनी ज़मीन
शिखरों की चाह में
वे गिरे
तो ऐसे गिरे
न शिखरों के रहे
न ज़मीन के।

(5) कविता मेरे लिए

कविता की बारीकियाँ
कविता के सयाने ही जाने।

इधर तो
जब भी लगा है कुछ
असंगत, पीड़ादायक
महसूस हुई है जब भी भीतर
कोई कचोट
कोई खरोंच
मचल उठी है कलम
कोरे काग़ज़ के लिए।

इतनी भर रही कोशिश
कि कलम कोरे काग़ज़ पर
धब्बे नहीं उकेरे
उकेरे ऐसे शब्द
जो सबको अपने से लगें।

शब्द जो बोलें तो बोलें
जीवन का सत्य
शब्द जो खोलें तो खोलें
जीवन के गहन अर्थ।

शब्द जो तिमिर में
रोशनी बन टिमटिमाएं
नफ़रत के इस कठिन दौर में
प्यार की राह दिखाएं।

अपने लिए तो
यही रहे कविता के माने
कविता की बारीकियाँ तो
कविता के सयाने ही जाने।

संपर्क : 248, टाईप-3, सेक्टर-3
सादिक़ नगर, नई दिल्ली-110049
दूरभाष : 09810534373
ई-मेल : subhneerav@gmail.com

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