सोमवार, 10 अगस्त 2009

कविता

शैल अग्रवाल की पांच कविताएं
(१)
आकुल नभ
नीरव रात का मौन
और बूँद-बूँद
पानी की यह टिपटिप
सिहरता रहा आकुल नभ
और बेचैन उँगलियाँ
मिटाती गइँ बारबार
सुनहरा एक अक्स
पानी की सतह पर
थिरकता और नाचता
झिलमिल वो चादर
लहर-लहर बिंधीं-गुथी
तारों-जड़ी धाती नभकी
पलभर को भी ना अपनी
ललक की डोर पे
डोल आया नटी मन---
सँधे पैर फिर काँपे
आसाँ तो नहीं होता
पलट के लौट पाना
मन में छुपी हसरतें
और अँजुरियों में
उकेर लाना----
***

2)
क्यों
वक्त के लिफाफे में
बन्द यह जिन्दगी
और उड़े हम
आवारा बादलों से
लेकर देश देश की भाप
नदी-नदी का पानी
जान ना पाए पर कभी
किस देश किस गली
किस घर या किस बगिया पर
बेबस ही बरस जाना है
पूछा है रोज ही अब तो
अंतस के इस अँधियारे ने .
कैसा था वह देश
जिसे तुम यूं छोड़ आए
क्या कमी थी उस अपनेपन में
वापस जो न तुम्हें खींच पाई
बूँद बूँद तैरीं फिर आँखों में
चमक उठी फिर वही
बिजली एक पुरानी है
बांध सकता था जो नदियों को
मोड़ सका क्यों न उनका ही रुख
कैसी है यह मरुधर सी जिन्दगी
प्यासी ही जो हमें भटकाती
प्यार तो नम एक लचीली धार
शिलाएँ ना जिसके आगे टिक पार्इं
प्यार तो नम एक लचीली धार
शिलाओं को कैसे भिगो पाती--?
***
3)
पुल नहीं है जीवन
पुल नहीं है जीवन
अहसास और अरमानों का
बगुला खड़ा रहजाता
गंदले पानी में
और फिसलती जातीं मझलियाँ
ताक और आस के जाल से
सीपियाँ ये धंसी पडी
भटकते पैरों के चन्द
वे गंदले निशान
पुल नहीं है जीवन
रीते बेजान हम
बेबस से देखते
दूर बहुत दूर
सुनहरी चमकती लहरें
सवार जिनपर बहते
टूटे फूटे बुदबुदे
सोती आँखों का
जागता सपना
पुल हो भी तो क्या
आने वाला कल
मिलता नहीं कभी
इस आज से-------
अलग है यह
अलग है वह
देखते रहजाना
इसे तो बस
यूँ ही
खड़े-खड़े---
****

4)
एक और सच
माना कि सच है आजभी
आकाश में खेलता चँदा
फूल-फूल इतराती तितली
और बन्द आँखों में
रचे-बसे धुत् वे सपने------
पर रोज ही तो निकलता है
चाँद को निगले हुए
झुलसाता हुआ सूरज
और लस्त तितली
बिखरे पँखों सँग
घास पर तिनके-तिनके
लुढ़की नजर आती है
ले उड़ा है आजफिर क्यों
टूटा-काँपता जर्जर मेरा मन
एक तेज हवा का झोंका
और एक और सच
जिन्दगी सा
सामने बिखरा पड़ा
एक अधलिखी चिठ्ठी
एक अधपढ़ी किताब
मन की झूठी प्याली पर
कल की प्यास के कुछ
आधे-अधूरे निशान
और थके होठोंकी
वही पुरानी अथक
एक मुस्कान----
****

5)
काश्
तुम मेरे पीछे क्या सोचते हो
क्या करते हो---------
मैं सब जान लेना चाहती हूँ
काश् इस अनदेखी हवा-सी
साथ-साथ चलकर मैं भी तुम्हारे
दिल और दिमाग में उतर पाती
साँसों सी तुम्हारी एक जरूरत
एक मजबूरी बन पाती
पर ऐसा कुछ भी तो नही होता
क्योंकि गुलाम हैं हम सब
अपनी-अपनी आदतों के
न टूटने वाले नियमों के
खुद पर लादी हुई
सैकड़ों जरूरतों के
वैसे भी तो जिन्दगी में
हर अच्छी चीज के संग
कुछ अनचाहा सा
जरूर ही जुड़ा होता है
छिलके मे बन्द जैसे केला
रसीले आम में छुपी गुठली
या फिर जीवन का
अँतिम वह सच
साँसों के रथ पे चढ़ा
पलपल नजदीक आता
बीतजाते यूँ ही
जिसके इँतजार में
वर्ष, मास, दिन और पल
चाहा-अनचाहा हर जीवन
अच्छा ही तो है
जो मन
सब ना ही जाने !
****
शैल अग्रवाल
जन्म वाराणसी, भारत, शिक्षा एम.ए. अँग्रेजी साहित्य।
रुझान--- दार्शनिक,कलात्मक व मानवीय संवेदनाओं से भरपूर। रुचि- जीवन, मृत्यु और बीच का सबकुछ। जिज्ञासा-उसके बाद क्या? संक्षेप में सत्यं शिवं और सुन्दरम् के साथ जीने की चाह। देश विदेश की विभिन्न, मान्य व प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और संकलनों में प्रकाशित। कुछ रचनाएं, दूराभाष, दूरदर्शन और इन्द्रजाल पर भी। समय समय पर कला और साहित्यिक आयोजनों में सहयोग व भागीदारी। विधा-- कहानी, कविता, लेख। चन्द कहानियाँ मराठी और नेपाली भाषा में अनुवादित व संकलित। कुछ पर क्षात्रों द्वारा शोधकार्य।
प्रकाशित पुस्तकें---
समिधा ---(81 कविताएँ) काव्य संग्रह (रेवती प्रकाशन-2003) जोधपुर। साहित्य अकादमी और अक्षरम के संयुक्त अलंकरण- ‘श्री लक्ष्मीमल सिंघवी अंतर्राष्ट्रीय कविता सम्मान-2006’ से सम्मानित।ध्रुवतारा- ( 17 कहानियाँ) कहानी संग्रह (रेवती प्रकाशन-2003) जोधपुर।लंदन पाती---(29 सामयिकी निबंध) निबंध संग्रह ( रेवती प्रकाशन सहयोग विश्वनाथ प्रकाशन-2007वाराणसी)।
उपन्यास –शेष अशेष व काव्य संग्रह- नेति-नेति( 81 कविताएँ) शीघ्र प्रकाश्य)
ब्रिटेन और भारत के बीच साहित्यिक व सांस्कृतिक समन्वय हेतु मार्च मार्च 2007 से ' लेखनी.नेट’ नामक द्विभाषीय ( हिन्दी व अँग्रेजी) की मासिक साहित्यिक ई.पत्रिका का सम्पादन व प्रकाशन।
www.lekhni.net
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘ विदेश में हिन्दी प्रचार व प्रसार सम्मान- वर्ष2007’ से सम्मानित।


6 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

शैल की कवितायें अपने में गीत की ध्वन्यामकता लिए हुए अद्भुत रस देती हैं. वह प्रश्नाकुल भी करती हैं और भीतर की व्यग्रता से उबरने को एक अलग रम्य संसार भी देती है. उनकी कविताओं में लन्दन की धरती से उपजाई हुई भारतीयता है. यह बड़ी बात है.

इस अंक में अभी बहुत कुछ पढ़ना बाकी है, इसलिए दुबारा भी दस्तक दे सकता हूँ. अभी यह तात्कालिक प्रतिक्रया है.

अशोक gupta

बेनामी ने कहा…

वातायन में शैल अग्रवाल की सभी कविताएं अच्छी लगीं ।

अँग्रेज़ी में एम.ए. होने के बावजूद उनकी हिंदी भी बहुत अच्छी है।

देवमणि पाण्डेय

बेनामी ने कहा…

शैल की कवितायें अपने में गीत की ध्वन्यामकता लिए हुए अद्भुत रस देती हैं. वह प्रश्नाकुल भी करती हैं और भीतर की व्यग्रता से उबरने को एक अलग रम्य संसार भी देती है. उनकी कविताओं में लन्दन की धरती से उपजाई हुई भारतीयता है. यह बड़ी बात है.

इस अंक में अभी बहुत कुछ पढ़ना बाकी है, इसलिए दुबारा भी दस्तक दे सकता हूँ. अभी यह तात्कालिक प्रतिक्रया है.

अशोक gupta

बेनामी ने कहा…

वातायन में शैल अग्रवाल की सभी कविताएं अच्छी लगीं ।

अँग्रेज़ी में एम.ए. होने के बावजूद उनकी हिंदी भी बहुत अच्छी है।

देवमणि पाण्डेय

सुभाष नीरव ने कहा…

शैल जी की कविताएं कई जगहों पर मैंने पढ़ी हैं। उनकी कविताओं में संवेदना का गहरा पुट देखने को मिलता है। यही कारण हैं कि कविताएं स्पर्श करती हैं।

Dr. Sudha Om Dhingra ने कहा…

शैल जी की कविताएँ अभिभूत कर गईं.
बधाई!
सुधा ओम धींगरा