गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

वातायन-अक्टूबर,२०११

इंडिया गेट में अन्ना हजारे समर्थकों का प्रदर्शन
चित्र : बलराम अग्रवाल

हम और हमारा समय


क्रूर समय का सच
रूपसिंह चन्देल

देश की आजादी से पहले और उसके बाद आम-भारतीय के लिए जीवन कभी सहज नहीं था. लेकिन आज शायद वह समय के सर्वाधिक क्रूर दौर से गुजर रहा है. सर्वत्र अराजकता की स्थिति है. भ्रष्टाचार और अपराध ने आम व्यक्ति का जीवन नर्क बना दिया है. इस स्थिति के लिए केवल और केवल देश की राजनीति जिम्मेदार है. आजादी के बाद जनता के स्वप्नों को जिसप्रकार राजनीतिज्ञों ने रौंदा और सब्जबाग दिखाते हुए उसे जिसप्रकार वोट बैंक में तब्दील कर अरबों के घोटाले किए वह अब छुपा रहस्य नहीं रहा. लेकिन इस उद्घाटित रहस्य के बावजूद जनता अपने को विवश पाती रही है. अण्णा के आंदोलन ने उसमें जाग्रति उत्पन्न की है, लेकिन सत्ता के अहम में चूर राजनीतिज्ञों ने आखों में पट्टी बांध ली है. जन लोकपाल बिल के विषय में वे वक्तव्य दे रहे हैं कि सरकार की गरदन पर पिस्तौल रखकर बिल पास नहीं करवाया जा सकता. राजनीतिक निरकुंशता का नग्न स्वरूप सत्ताधीशों के काले कारनामों में देखा जा सकता है. नवम्बर, १९८४ का दिल्ली, कानपुर या अन्य शहर रहा हो, या गोधरा के बाद का गुजरात इनके पीछे राजनीतिक षडयंत्र ही थे. वैसे इस देश में हर साम्प्रदायिक दंगा राजनीतिक कारणॊं से जन्मता रहा और उसे लेकर घड़ियाली आंसू बहाने वाले भी वही रहे. लेकिन पिछले दिनों राजनीति का जो विद्रूप चेहरा जनता के सामने उजागर हुआ उसने देश को कम से कम पचीस वर्ष पीछे अवश्य धकेल दिया है. कामनवेल्थ गेम्स, टू जी जैसे अनेक घोटाले हुए और अरबों की लूट हुई. इस लूट में राजनीतिज्ञों के साथ बहती गंगा में ब्यूरोक्रेट्स ने भी जमकर हाथ धोये. ब्यूरोक्रेट्स ने पहली बार ऎसा किया ऎसा नहीं----ब्रिटिश हुकूमत के समय से वे ऎसा करते आ रहे हैं. लेकिन अब वे मुक्तभाव से कर रहे हैं. जनता विवश देख रही है. ये देश की सम्पदा लूटने तक ही सीमित नहीं हैं. इनके खूनी पंजे विवश महिलाओं की इज्जत तार-तार कर रहे हैं. हाल में राजस्थान की नर्स भंवरी देवी कांड इसका ज्वलंत उदाहरण है. अपने काले कारनामों की सीडी बनाकर उन्होंने भंवरी देवी की आवाज बंद कर दी. लेकिन जब उनके ब्लैकमेलिंग से परेशान उसने सीडी का रहस्य सार्वजनिक करने की बात कही उसका अपहरण हो गया. (शायद हत्या भी) जो मंत्री संदेह के घेरे में हैं वह अब अपनी जाति का शक्ति प्रदर्शन कर यह संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं कि उनपर हाथ डालने की गलती न की जाए, क्योंकि उनके पीछे उनकी जाति की शक्ति विद्यमान है. गांधी, सुभाष, नेहरू और भगतसिंह का देश कहां से कहां पहुंच गया----बलात्कार और हत्या के बाद राजनीतिज्ञ अपनी जाति के वोट बैंक की ओट लेकर अपने को बचा ले जाने की जुगत बना ले पाने में सफल हो रहे हैं, जो किसी चमत्कार से कम नहीं कहा जाएगा. दुनिया में पहले से ही भारत चमत्कारों के देश के रूप में चर्चित रहा है. दूसरे चमत्कार हों या न हों लेकिन राजनीति के अपराधीकरण ने जिसप्रकार चमत्कारी चोला पहना है वह बेहद घृणास्पद है.

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वातायन के इस अंक में प्रस्तुत है सोफिया अंद्रेएव्ना तोल्स्तोया की डायरी के उन अंशों की अगली किस्त जो उन्होंने अपने पति लियो तोल्स्तोय को केन्द्र में रखकर लिखे थे. (डायरी के ये अंश मेरी शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक – ’लियो तोल्स्तोय का अंतरंग संसार’ में संग्रहीत हैं) और पंजाबी की वरिष्ठ और चर्चित लेखिका राजिंदर कौर की कहानी.

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2 टिप्‍पणियां:

PRAN SHARMA ने कहा…

AAPKAA SAMPAADKIY LEKH VICHARNIY
HAI . JAB TAK BHRASHT NETAAON MEIN
` NOTE FOR VOTE ` KEE GANDEE PRAVRITTI BARQRAAR HAI TAB TAK
DESH SE BHRASHTACHAAR KAA MALIYAMET
NAHIN HONE WAALAA AUR GHOTAALE PAR
GHOTAALE HOTE RAHENGE .

ashok andrey ने कहा…

bahut hee jawalant sawaal uthaen hai apne aalekh jiske jawaab dhoondhne men kitna samay lagegaa pataa naheen.kayonki hum log jaation men baten hue hain, maine bhee ek kavita likhi thee shayad tumhaari nigaah se gujri thee ya nahi keh nahi saktaa, lekin is aalekh ke liye badhai.