शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

रपट


सभागार में बैठे साहित्यकार और विद्वान




लोकार्पण और विचार संगोष्ठी




साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था ’दिल्ली संवाद’ की ओर से ९ दिसम्बर,२०११ को साहित्य अकादमी सभागार, नई दिल्ली में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ आलोचक डॉ. नामवर सिंह ने की और मुख्य अतिथि थे डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय. कार्यक्रम का संयोजन और संचालन वरिष्ठ लेखक और पत्रकार बलराम ने किया. इस आयोजन में भावना प्रकाशन, पटपड़गंज, दिल्ली से प्रकाशित चर्चित चित्रकार और लेखक राजकमल के उपन्यास ’फिर भी शेष’ पर चर्चा से पूर्व भावना प्रकाशन से सद्यः प्रकाशित दो पुस्तकों – वरिष्ठतम कथाकार हृदयेश की तीन खण्डों में प्रकाशित ’संपूर्ण कहानियां’ और वरिष्ठ कथाकार रूपसिंह चन्देल की ’साठ कहानियां’ तथा वरिष्ठ व्यंग्यकार प्रेमजनमेजय पर केंद्रित कनाडा की हिन्दी पत्रिका ’हिन्दी चेतना’ का लोकार्पण किया गया.

चन्देल ने कभी नीलाम होना स्वीकार नहीं किया : बलराम

कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए बलराम ने भावना प्रकाशन, उसके संचालक श्री सतीश चन्द्र मित्तल और नीरज मित्तल के विषय में चर्चा करने के बाद वरिष्ठतम कथाकार हृदयेश के हिन्दी कथासाहित्य में महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे अपने समय के सशक्त रचनाकार रहे हैं जो अस्सी पार होने के बावजूद आज भी निरंतर सृजनरत हैं.
(साठ कहानियां’ का लोकार्पण : बाएं से - बलराम, डॉ. नामवर सिंह, नीरज मित्तल(पीछे), रूपसिंह चन्देल, डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय और डॉ. राजेन्द्र गौतम(बैठे हुए).


”कथाकार रूपसिंह चन्देल के उपन्यासों और कहानियों की चर्चा करते हुए बलराम ने कहा कि चन्देल के न केवल कई उपन्यास चर्चित रहे बल्कि अनेक कहानियां भी चर्चित रहीं. उन्हीं में से श्रेष्ठ कहानियों का संचयन है उनका कहानी संग्रह – ’साठ कहानियां’. उन्होंने कहा कि चन्देल समकालीन कथा साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं जो अपनी सृजनशीलता में विश्वास करते हैं. चन्देल के विषय में मित्रगण जो बात गहनता से अनुभव करते हैं उसे सार्वजनिक मंच से उद्घोषित करते हुए बलराम ने कहा - “चन्देल ने कभी नीलाम होना स्वीकार नहीं किया.”

प्रसिद्ध व्यंग्यकार प्रेमजनमेजय की व्यंग्ययात्रा पर प्रकाश डालते हुए बलराम ने कहा कि समकालीन व्यंग्यविधा के क्षेत्र में उनका महत्वपूर्ण योगदान है और उनके योगदान का ही परिणाम है कि कनाडा की हिन्दी चेतना ने उनपर केन्द्रित विशेषांक प्रकाशित किया.

(हिन्दी चेतना का लोकार्पण: बाएं से - डॉ. अर्चना वर्मा, बलराम, डॉ.नामवर सिंह, नीरज मित्तल, डॉ. श्रोत्रिय और डॉ. गौतम)


लेखकों पर बलराम की परिचायत्मक टिप्पणियों के बाद दोनों पुस्तकों और पत्रिका के लोकार्पण डॉ. नामवर सिंह, डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय और डॉ. अर्चना वर्मा द्वारा किया गया.

’फिर भी शेष’ पर विचार संगोष्ठी

लोकार्पण के पश्चात राजकमल के उपन्यास ’फिर भी शेष’ पर विचार गोष्ठी प्रारंभ हुई. डॉ. अर्चना वर्मा ने अपना विस्तृत आलेख पढ़ा. आलेख की विशेषता यह थी कि उन्होंने विस्तार से उपन्यास की कथा की चर्चा करते हुए उसकी भाषा, शिल्प और पात्रों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की. वरिष्ठ गीतकार डॉ. राजेन्द्र गौतम ने उपन्यास की प्रशंसा करते हुए उसे एक महत्वपूर्ण

(उपन्यास पर विचार गोष्ठी - बाएं से डॉ.श्रोत्रिय, डॉ. गौतम, डॉ.ज्योतिष जोशी, उपन्यासकार राजकमल और राजकुमार गौतम)

उपन्यास बताया. वरिष्ठ कथाकार अशोक गुप्ता ने उपन्यास पर अपना सकारात्मक मत व्यक्त करते हुए उसके कवर की प्रशंसा की. डॉ. ज्योतिष जोशी ने उसके पात्र आदित्य के चरित्र पर पूर्व वक्ताओं द्वारा व्यक्त मत से अपनी असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि उपन्यास ने उन्हें चौंकाया बावजूद इसके कि उसमें गज़ब की पठनीयता है जो पाठक को अपने साथ बहा ले जाती है. इन वक्ताओं के बोलने के बाद डॉ. नामवर सिंह ने जाने की इजाजत मांगी और “मैंने उपन्यास पढ़ा नहीं है, लेकिन वायदा करता हूं कि उसे पढ़ूंगा अवश्य और जो भी संभव होगा करूंगा.” कहते हुए उपस्थित भीड़ को हत्प्रभ छोड़कर नामवर जी तेजी से उठकर चले गए. नामवर जी के जाने के पश्चात उपन्यास पर अपना मत व्यक्त करते हुए बलराम ने कहा कि यह एक महाकाव्यात्मक उपन्यास है.

कार्यक्रम के अंत में डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय ने अपना लंबा वक्तव्य दिया. उन्होंने उपन्यास के अनेक अछूते पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए पूर्व वक्ताओं से अपनी असहमति व्यक्त की, लेकिन लेखक की भाषा और शिल्प की प्रशंसा करने से अपने को वह भी रोक नहीं पाए.

भावना प्रकाशन के नीरज मित्तल ने उपस्थित लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया. इस अवसर पर बड़ी मात्रा में दिल्ली और दिल्ली से बाहर के साहित्यकार और साहित्य प्रेमी उपस्थित थे. डॉ. कमलकिशोर गोयनका,डॉ. रणजीत शाहा, बलराम अग्रवाल,सुभाष नीरव, रमेश कपूर, प्रदीप पंत, उपेन्द्र कुमार, गिरिराजशरण अग्रवाल, राजकुमार गौतम सहित लगभग पचहत्तर साहित्यकार और विद्वान उपस्थित थे.

प्रस्तुति – सुभाष नीरव

1 टिप्पणी:

पखेरू ने कहा…

राजकमल के उपन्यास " फिर भी शेष " की 9th दिसंबर 2011 को हुई विचारगोष्ठी में प्रो. नामवर सिंह अध्यक्ष के तौर पर उपस्थित थे और उन्होंने पहले ही आयोजकों से कहा था कि किन्हीं व्यस्तताओं के कारण वह सात बजे के बाद नहीं ठहर पाएंगे. सभागार में उपस्थित जन निश्चित रूप से उनके जाने से निराश हुए, लेकिन हतप्रभ नहीं थे. हतप्रभ शब्द यह आभास देता है मानो नामवर सिंह जी का जाना उनका कोई प्रतिक्रियात्मक कदम था, जब कि ऐसा कोई प्रसंग नहीं था और उनके जाने के बाद प्रभाकर श्रोत्रिय जी ने निरंतरता बनाए रखते हुए उनका दायित्व सम्हाल लिया था.
अशोक गुप्ता