मंगलवार, 31 जनवरी 2012

कहानी




सांताक्लाज हँसता है!


इला प्रसाद

हो, हो हो! सांताक्लाज हँसता है।

उसके साथ हँसते हैं वेरा, बेन और जेनी। उसे घेर कर नाचते हैं।

वेरा उसकी दाढी छूकर देखती है- कितनी मुलायम और ठंढी… बर्फ़ के फ़ाहे लगे हुए… उत्तरी ध्रुव से आता है सांता… चिमनी से घर में घुसता है और बैठके में क्रिसमस ट्री पर छुपाकर रखे उनके पत्र पढ़ता है। फ़िर उनकी माँगी चीजें रख जाता है। उसे सब पता है अब। आज पकड़ा गया। वेरा ने सब देख लिया है।
वह बाहर झाँक कर देखना चाहती है – सांता की स्लेज बाहर होगी। सुनहले सीगोंवाले हरिण जुते होंगे। क्या उनके सींगों पर भी बर्फ़ है, उजले हो गये हैं वे भी यहाँ तक आते –आते…
वह सांता से बात करना चाहती है, पूछना चाहती है- पिछले तीन सालों से आया क्यों नहीं।
लेकिन सांता के फ़ोन की घंटी बजने लगी है। सांता यह जा, वह जा……
बाय-बाय सांता। कम अगेन.. नेक्स्ट ईयर…
सांता हँसा – हो, हो ….
वेरा चौंक कर जागी। सांता आया था।
मॉम रसोई में है। बेन और जेनी सो रहे हैं। वह माँ को बताना चाहती है।
‘गुड मार्निंग मॉम।“
“गुड मार्निंग बेबी।“
“मम, मैंने सांता को देखा! हमारे घर आया था।”
“वेरी गुड!”
“वह इस साल आयेगा, है न?”
“हो सकता है। ब्रश करो, नाश्ता करो। बेन और जेनी कहाँ हैं? मुझे हॉस्पीटल जाना है। तुमसब को सारा आंट के घर रहना है – शाम छ्ह बजे तक।“

“अम.. आज भी? कल क्रिसमस है मॉम।“
“मैं छह बजे तक आ जाऊँगी।“
वेरा सोचती-सी खड़ी रही। बेन और जेनी को सांता के बारे में बतायेगी। क्या पता, उन्हें पता हो। जब सांता आया था तो वे भी तो साथ में थे… सचमुच ही आया था क्या? क्रिसमस ट्री के पास जा कर देखना होगा। के-मार्ट के ले-अवे में उसकी चाबी वाली तितली रखी है, बेन की पतंग और जेनी की बार्बी। मॉम ने सब के कुछ डालर चुका रखे थे, क्या पता बाकी उसने दे दिये हों और ले आया हो। बिल्कुल वैसे ही तो थे। वैसे क्या, वही थे। लेकिन कहाँ है क्रिसमस ट्री। पिछले तीन साल से तो मॉम लाती ही नहीं। सपना ही होगा! … लेकिन मम से बात करना बेकार है। उन्हें तो आज भी ड्यूटी पर जाना है। मॉम की कभी छुट्टियाँ नहीं होतीं……
“वेरा!” मम की कड़ी आवाज कानों में पड़ी।
“यस मॉम।“
वेरा दौड़ गई।

फ़ोन बज रहा है।
करेन का हाथ फ़ोन उठाने को उठा फ़िर शिथिल हो कर हवा में झूळ गया। सुबह के आठ बज चुके हैं। यह वेरा आठ साल की हो गई तब भी इतनी अक्ल नहीं है कि सच और सपने का फ़र्क समझ सके। बेन और जेनी तो तब भी छोटॆ हैं छह और चार साल के। सांता आया था!.....
उसे अक्सर ही इच्छा होती है कि उन्हें बिठाकर समझा दे कि कोई सांताक्लाज नहीं होता। जो उपहार उन्होंने अपने दोस्तों के पास हर साल क्रिसमस पर देखे हैं वे उनके माँ- बाप या अभिभावक ले आते हैं और क्रिसमस ट्री में छुपा देते हैं। सांता केवल कहानी है, सच नहीं।
फ़िर उसे अपने पर खीझ हुई। बच्चों पर क्यों गुस्सा हो रही है। उसकी नर्स की नौकरी अगर उसे इतने डालर नहीं देती कि बिजली- पानी, इन्श्योरेंस, राशन और घर के किराये के बाद कुछ बचा सके तो इसमें बच्चों का क्या दोष !
तीन सालों से वह वही नाटक कर रही है।
हर साल क्रिसमस के लिये बच्चों के उपहार के- मार्ट में ले- अवे में रखवा आती है कि बाकी की किश्तें चुका कर ले लेगी और वह चुकाना कभी नहीं होता। बच्चे उदास होते हैं। बच्चे रो- धो कर भूळ जाते हैं और फ़िर अगले क्रिसमस तक बात टल जाती है।
उसे याद आया उसके बचपन में उसकी माँ भी यही किया करती थी। हर साल ले-अवे में उसके लिये खिलौने रखे जाते.. और वे कभी करेन को नहीं मिले।
परम्परायें पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती हैं। अभाव और गरीबी भी।
खिलौने रखवाने की परम्परा वह निभा रही है। कुछ समय के लिये बच्चॊं को बहलाने की परम्परा….
सांताक्लाज आयेगा!
खिलौनों लायेगा और उनके घर में चिमनी से प्रवेश कर क्रिसमस ट्री के नीचे रख जायेगा। देखॊ, सांताक्लाज के हरे-लाल मखमली मोजे अब भी चिमनी से लटक रहे हैं। और टोपी भी। लाल टोपी, सफ़ेद फ़ुदने वाली…. हड़बड़ी में छूट गये… इतने सारे घरों में जाना होता है न!
बच्चे खुश!
वेरा की तितली घर्र- घर्र करती उसके सिर पर मंडरायेगी।
बेन की पतंग रिमोट के इशारों पर आसमान में उड़ेगी और नाचेगी।
जेनी बार्बी के साथ सोयेगी- जागेगी। उसे अपने साथ लेकर स्कूळ जायेगी।
कल क्रिसमस है। वेरा ने तो सपने में देख भी लिया कि सांता आया था!
करेन ने गहरी साँस ली। तीनों खिलौनों की कीमत कुछ दो सौ साठ डालर। महीने का अन्तिम सप्ताह… जेब में तो अब केवल पचास डालर बचे हैं और उन्हीं में यह क्रिसमस सप्ताह निकालना है। केक बना लेगी लेकिन उसके लिये सामान खरीदने में और चाकलेट खरीदने में दस-पन्द्रह डालर खर्च हो जायेंगे। क्रिसमस ट्री लगाने, सजाने का क्या मतलब जब बच्चों के उपहार आ ही नहीं सकते। उसमें भी बीस-पच्चीस डालर खर्च होते। उससे कम में तो आता नहीं। क्रेडिट कार्ड के इतने सारे लोन पहले से सिर पर। एक और उदास क्रिसमस और क्या। क्रिसमस के दिन हँसता घर और खुशी से किलकते बच्चे अब सपना हो गये हैं!
रसोई निपट चुकी है। वह जाने को तैयार है। बच्चे नाश्ता कर गराज में खेल रहे हैं। नौ बज चुके हैं। उसे दस बजे हॉस्पीटल में होना है। एक घंटे की ड्राइव है। उससे पहले इन तीनों को सारा के घर छोड़ देना है।
फ़ोन कई बार बज- बज कर बंद हो चुका है।
करेन जानती है, के- मार्ट याद दिला रहा है। उसे कीमतें चुकानी हैं। आज आखिरी दिन है। इसके बाद वे ले- अवे से हटा दिये जायेंगे। किसी अन्य ग्राहक को दे दिये जायेंगे जो पूरी कीमत चुकायेगा।
लेकिन किसी और का फ़ोन नहीं हो सकता, वह चौंक कर सोचती है, उसने तो उठाया नहीं! सुनना तो था। कहीं हॉस्पीटल से? सारा का? कोई और… नहीं, वही होगा…… और कोई हो ही नहीं सकता। ठीक किया नहीं उठाया, जब कुछ कर ही नहीं सकती…..
के-मार्ट वाले भी समझ गये होंगे।
उन खिलौनों को भी अपना यह भविष्य पता ही होगा। बच्चों को भी शायद…..
उसने जल्दी से जूते पैरों में डाले। ड्राइव -वे में कार स्टार्ट की। वेरा, बेन और जेनी को पुकारा। यंत्रवत रास्ते में सारे काम निपटाती, सारा को मुस्करा कर बाय कहती, दस माइल की ड्राइव कर वह हॉस्पीटल में हाजिर हो गई। तब रात की पारी की नर्स जेनिफ़र जा चुकी थी। जा चुके थे वे सब जिन्होंने रात की ड्यूटी की थी। सुबह की ड्यूटी वालों ने अपनी जगह ले ली थी। उसने जल्दी-जल्दी सारे चार्ट देखे। छह नम्बर बेड पर के मरीज का पेसमेकर ट्रांस्प्लांट हुआ था। नार्मल है। ब्लड प्रेशर, टेम्परेचर सबकुछ नार्मल। उसे आज डिस्चार्ज होना है। वह उसके कमरे की ओर बढ़ी।
“करेन, तेरा फ़ोन है।“
वह खीझ गई। बात कर ही लेगी।
“हाई,करेन हियर।“
“हाई मैम, कैसी हैं आप।“
“डूइंग गुड। थैंक यू। बट आई केन्ट…..”
“रिलैक्स। मैं जिम, स्टॊर मैनेजर के- मार्ट, बोल रहा हूँ। आपके ले- अवे के खिलौनों की कीमत किसी ने चुका दी है। आप उन्हें ले जा सकती हैं।“
“कौन है वह?” करेन चौंक गई। ऐसा कैसे हो सकता है!
“हम उसका नाम नहीं बता सकते। यह नियम विरुद्ध है। उसने कई लोगों के उपहारों की कीमतें चुकाई हैं। हम सुबह से आपसे सम्पर्क करने की कोशिश कर रहे हैं। आप खिलौने ले जा सकती हैं।“
‘सीक्रेट सांता?”*
“यप। मेरी क्रिसमस!”
कई दिनों से – सालों से जम रहा तनाव पिघल-पिघल कर बहने लगा…बह गया एकबारगी। नहीं, वह इतना नहीं सह सकती। इतनी खुशी नहीं बर्दाश्त कर सकती….
करेन रो पड़ी-
“मेरी क्रिसमस।“



*सीक्रेट सांता अमेरिका की एक संस्था है जिसके सदस्य हर साल, अनाम रहकर, क्रिसमस के मौके पर हजारों डालर अपरिचित, अभावग्रस्त लोगों की सहायता में देते हैं। सांताक्लाज की वेशभूषा में वे राह चलते लोगों को मिलते हैं और सौ डालर के नोट थमा देते हैं या फ़िर उनके बिल चुका देते हैं। सांता की वेशभूषा में होने के कारण और अपनी पहचान उद्घाटित न करने के कारण भी उन्हें सीक्रेट सांता नाम मिला हुआ है।
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इला प्रसाद

जन्म : ३ जून, रांची, झारखण्ड.

शिक्षा : पी-एच.डी.(भौतिकी) काशी, हिन्दू विश्वविद्यालय.

छात्र जीवन से लेखन की शुरुआत. प्रारंभ में कॉलेज पत्रिका एवं आकाशवाणी तक सीमित. साहित्य की कई विधाओं- कतिवा, कहानी, व्यंग्य, आलेख, संस्मरण आदि में एक साथ सक्रिय. अब तक भारत सहित देश/विदेश की लगभग सभी प्रमुख पत्रिकाओं यथा, वागर्थ, हंस, पाखी, कादम्बिनी, रचना समय, समकालीन भारतीय साहित्य, वर्तमान साहित्य, युद्धरत आम आदमी, आधारशिला, कथाबिम्ब, कथाक्रम, पुनर्नवा (दैनिक जागरण वार्षिकांक), ’शब्द दुर्ग पर दस्तक’ (द संडे पोस्ट का वार्षिकांक), निकट (यू ए इ), स्पाइल-दर्पण (नार्वे), पुरवाई (यू.के.), विश्वा (अमेरिका), हिन्दी जगत (अमेरिका), हिन्दी चेतना (कनाडा), हिन्दी पुष्प (आस्ट्रेलिया) आदि में रचनाएं प्रकाशित. कई संकलनों में रचनाएं संकलित. कुछ रचनाओं के तमिल और ओड़िया में अनुवाद. आरंभिक दिनों में इला नरेन के नाम से भी लेखन.

अमेरिका की पत्रिका ’हिन्दी जगत’ के सम्पादक मंडल में. कनाडा की पत्रिका ’हिन्दी चेतना’ के कामिल बुल्के विशेषांक में सम्पादन सहयोग. भारत की पत्रिका ’शोध-दिशा’ के अमेरिका प्रवासी कथाकार अंक का सम्पादन. कुछ रचनाएं डेनमार्क के रेडियो सबरंग पर सुनी जा सकती हैं.

विश्व हिन्दी न्यास की पत्रिका ’विज्ञान प्रकाश के लिए विज्ञान संबन्धी लेखों का हिन्दी अनुवाद और स्वतंत्र लेखन. कंप्यूटर के माध्यम से हिन्दी के प्रचार-प्रसार का कार्य भी.

द संडे इंडियन्स द्वारा विश्व भर की हिन्दी की एक सौ ग्यारह लेखिकाओं में उल्लिखित.

प्रकाशित कृतिया: ’धूप का टुकड़ा’ (कतिवा संग्रह), ’इस कहानी का अंत नहीं’ और ’उस स्त्री का नाम’ (कहानी संग्रह).

व्यवसाय : अध्यापन
संपर्क : 12934 Meadow Run
Houston, TX 7706 , USA
Phone : 281-586-7399

1 टिप्पणी:

ashok andrey ने कहा…

bahut khubsurat kahani padne ko mili,badhai.Ila jee ki jo bhee rachnaen ab tak padi hain achchha prabhav chhodtin hain jisme koee do rai naheen hai.