बुधवार, 1 अगस्त 2012

खलील जिब्रान की लघुकथाएं एवं सूक्तियां

(सभी लघुकथाएं और सूक्तियां बलराम अग्रवाल द्वारा अंग्रेजी से अनूदित)   


खलील जिब्रान की मां का पोट्रेट

’यह मेरी मां की जुझारुता का पोट्रेट है’(खलील जिब्रान)




लघुकथाएं
  
चतुर कुत्ता

एक चतुर कुत्ता एक दिन बिल्लियों के एक झुण्ड के पास से गुज़रा.
कुछ और निकट जाने पर उसने देखा कि वे कोई योजना बना रही थीं और उसकी ओर से लापरवाह थीं. वह रुक गया.
उसने देखा कि झुंड के बीच से एक दीर्घकाय, गंभीर बिल्ला खड़ा हुआ था. उसने उन सब पर नज़र डाली और बोला, “भाइयो! दुआ करो. बार-बार दुआ करो. यक़ीन मानो, दुआ करोगे तो चूहों की बारिश ज़रूर होगी.”
यह सुनकर कुत्ता मन-ही-मन हंसा.
“अरे अंधे और बेवकूफ़ बिल्लो! शास्त्रों में क्या यह नहीं लिखा है और क्या मैं, और मुझसे भी पहले मेरा बाप, यह नहीं जानता था कि दुआ के, आस्था के और समर्पण के बदले चूहों की नहीं; हड्डियों की बारिश होती है.” यह कहते हुए वह पलट पड़ा.

अंतर्दष्टा

मैंने और मेरे दोस्त ने देखा कि मंदिर के साये में एक अंधा अकेला बैठा था. मेरा दोस्त बोला, “देश के सबसे बुद्दिमान आदमी से मिलो.”
मैंने दोस्त को छोड़ा अर अंधे के पास जाकर उसका अभिवादन किया. फिर बातचीत शुरू हुई.
कुछ देर बाद मैंने कहा, “मेरे पूछने का बुरा न मानना, आप अंधे कब हुए?”
“जन्म से अंधा हूं.” उसने कहा.
“और आप विशेषज्ञ किस विषय के हैं?” मैंने पूछा.
“खगोलविद हूं.” उसने कहा.
फिर अपना हाथ अपनी छाती पर रखकर वह बोला, “ये सारे सूर्य, चन्द्र और तारे मुझे दिखाई देते हैं.”


अंधेर नगरी

राजमहल  में एक रात भोज दिया गया.
एक आदमी वहां आया और राजा के आगे दंडवत लेट गया. सब लोग उसे देखने लगे. उन्होंने पाया कि उसकी एक आंख निकली हुई थी और खखोड़ से खून बह रहा था.
राजा ने उससे पूछा, “तुम्हारा यह हाल कैसे हुआ?”
आदमी ने कहा, “महाराज! पेशे से मैं एक चोर हूं. अमावस्या होने की वजह से आज रात मैं धनी को लूटने उसकी दुकान पर गया. खिड़की के रास्ते अंदर जाते हुए मुझसे ग़लती हो गई और मैं जुलाहे की दुकान में घुस गया. अंधेरे में मैं उसके करघे से टकरा गया और मेरी आंख बाहर आ गई. अब, हे महाराज! उस जुलाहे से मुझे न्याय दिवलाइए.”
राजा ने जुलाहे को बुलवाया. वह आया. निर्णय सुनाया गया कि उसकी एक आंख निकाल ली जाए.
“महाराज!” जुलाहे ने कहा, “आपने उचित न्याय सुनाया है. वाकई मेरी एक आंख निकाल ली जानी चाहिए. किंतु मुझे दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि कपड़ा बुनते हुए दोनों ओर देखना पड़ता है इसलिए मुझे दोनों ही आंखों की ज़रूरत है. लेकिन मेरे पड़ोस में एक मोची रहता है, उसके भी दो ही आंखें हैं. उसके पेशे में दो आंखों की ज़रूरत नहीं पड़ती है.”
राजा ने तब मोची को बुलवा  लिया. वह आया. उन्होंने उसकी एक आंख निकाल ली.
न्याय सम्पन्न हुआ.

लोमड़ी

सूर्योदय के समय अपनी परछाईं देखकर लोमड़ी ने कहा, “आज लंच में मैं ऊंट को खाऊंगी.”
सुबह का सारा समय उसने ऊंट की तलाश में गुजार दिया.
फिर दोपहर को अपनी परछाईं देखकर उसने कहा, “एक चूहा ही काफी होगा.”

रेत पर इबारत

एक आदमी ने दूसरे से कहा, “सागर में जबर्दस्त ज्वार के समय, बहुत बरस पहले, अपनी छड़ी की नोक से रेत पर मैंने एक लाइन लिखी थी. लोग आज भी उसे पढ़ने को रुक जाते हैं. और वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि यह मिट न जाए.”
दूसरा बोला, “रेत पर एक लाइन मैंने भी लिखी थी. लेकिन वह भाटे का समय था. विशाल समुद्र की लहरों ने उसे मिटा दिया. अच्छा बताओ, तुमने क्या लिखा था?”
जवाब में पहले ने कहा, “मैंने लिखा था—’ अहं ब्रह्मास्मि’. तुमने क्या लिखा था?”
इस पर दूसरे ने कहा, “मैंने लिखा था—’मैं इस महासागर की एक बूंद से अधिक कुछ नहीं.”

सपने

आदमी ने एक सपना देखा.
नींद से जागकर व्ह स्वप्नविश्लेषक के पास गया और उससे स्वप्न का अर्थ बताने की विनती की.
स्वप्नविश्लेषक ने उससे कहा, “मेरे पास अपने वे सपने लेकर आओ, जिन्हें तुमने चेतन अवस्था में देखा हो. मैं उन सबका अर्थ तुम्हें बताऊंगा. लेकिन सुप्त अवस्था के तुम्हारे सपनों को खोलने जितनी या तुम्हारी कल्पना की उड़ान को जान लेने जितनी बुद्धि मुझमें नहीं है.”

ताकि शांति बनी रहे

पूनम का चांद शान के साथ शहर के आकाश में प्रकट हुआ. शहर भर के कुत्तों ने उस पर भौंकना शुरू कर दिया.
केवल एक कुत्ता नहीं भौंका. उसने गुरु-गंभीर वाणी में अपने साथियों से कहा, “शांति को भंग मत करो. भौंक-भौंककर चांद को धरती पर मत लाओ.”
सभी कुत्तों ने भौंकना बंद कर दिया. नीरव सन्नाटा पसर गया.
लेकिन उन्हें चुप करने वाला कुत्ता रातभर भौंकता रहा, ताकि शांति बनी रहे.

अहं ब्रह्माSस्मि

अपनी जाग्रत अवस्था में उन्होंने मुझसे कहा – “वह दुनिया जिसमें तुम रहते हो अन्तहीन किनारे वाला असीम सागर है और तुम उस पर पड़े एक कण मात्र हो.”
और अपने सपने में मैंने उनसे कहा –“मैं असीम सागर हूं और पूरी सृष्टि मेरे किनारे पर पड़ा एक कण मात्र है.”

युद्ध और शांति

धूप सेंकते हुए तीन कुत्ते आपस में बात कर रहे थे.
आंखें मूंदकर पहले कुत्ते ने जैसे स्वप्न में बोलना श्रू किया, “कुत्ताराज में रहने का निःसंदेश अलग ही मज़ा है. सोचो, कितनी आसानी से हम समन्दर के नीचे, धरती के ऊपर और आसमान में विचरते हैं. कुत्तों की सुविधा के लिए आविष्कारों पर हम अपना ध्यान ही नहीं, अपनी आंखें, अपने कान और नाक भी केन्द्रित करते हैं.”
दूसरे कुत्ते ने कहा, “कलाओं के प्रति हम अधिक संवेदनशील हो गए हैं. चन्द्रमा की ओर हम अपने पूर्वजों के मुकाबले अधिक लयबद्ध भौंकते हैं. पानी में अपनी परछाईं हमें पहले के मुकाबले ज्य़ादा साफ दीखती हैं.”
तीसरा कुत्ता बोला, “इस कुत्ताराज की जो बात मुझे सबसे अधिक भाती है, वह यह कि कुत्तों के बीच बिना लड़ा-झगड़ा किए, शान्तिपूर्वक अपनी बात कहने और दूसरे की बात सुनने की समझ बनी है.”
उसी दौरान उन्होंने कुत्ता पकड़ने वालों को अपनी ओर लपकते देखा.
तीनों कुत्ते उछले और गली में दौड़ गए. दौड़ते-दौड़ते तीसरा कुत्ता बोला, “भगवान का नाम लो और किसी तरह अपनी ज़िन्दगी बचाओ. सभता हमारे पीछे पड़ी है.”

नर्तकी

बिरकाशा के दरबार में एक बार अपने साज़िन्दों के साथ एक नर्तकी आई. राजा की अनुमति पाकर उसने वीणा, बांसुरी और सारंगी की धुन पर नाचना शुरू कर दिया.
वह लौ की तरह नाची. तलवार और नेज़े की तरह नाची. सितारों और नक्षत्रों की तरह नाची. हवा में झूमते फूलों की तरह नाची.
नाच चुकने के बाद वह राज-सिंहासन के सामने गई और अभिवादन में झुक गई. राजा ने उसे निकट आने का न्योता देते हुए कहा, “सुन्दरी! लावण्य और दीप्ति की मूरत!! कब से यह कला सीख रही हो? गीत और संगीत पर तुम्हारी पकड़ कमाल की है.”
नर्तकी पुनः महाराज के आगे झुक गई. बोली, “सर्वशक्तिमान महाराज! आपके सवालों का कोई जवाब मेरे पास नहीं है. मैं बस इतना जानती हूं कि दार्शनिक की आत्मा उसके मस्तिष्क में, कवि की उसके हृदय में, गायक की उसके गले में वास करती है लेकिन इन सबसे अलग नर्तक की आत्मा उसके पूरे शरीर में फैली होती है.”


 खलील जिब्रान(१९३१)

खलील जिब्रान की सूक्तियां

शाश्वत सत्य

जब दो औरतें बात करती हैं, वे कुछ नहीं कहतीं.
जब एक औरत बोलती है, वह ज़िन्दगी के सारे रहस्यों को खोल देती है.

नक़ाब

औरत एक मुस्कान से अपने चेहरे को ढंक सकती है.

लोमड़ी

सूर्योदय के समय अपनी परछाईं. देखकर लोमड़ी ने कहा, “आज लंच में मैं ऊंट को खाऊंगी.”
सुबह का सारा समय उसने ऊंट की तलाश में गुजार दिया.
फिर दोपहर को अपनी परछाईं देखकर उसने कहा, “एक चूहा ही काफी होगा.”

भुलक्कड़

भ्लक्कड़पन आज़ादी का ही एक रूप है.

गुणवत्ता

आदमी की गुणवत्ता इसमें नहीं है कि उसकी उपलब्धियां क्या हैं. उसकी गुणवत्ता इसमें है कि उपलब्धियों तक पहुंचने के उसके प्रयास क्या रहे.

संदेश

तुम मुझे कान दो, मैं तुम्हें आवाज़ दूंगा.

जीवंत न्याय

ईश्वरीय न्याय में अपने विश्वास को मैं क्यों न कायम रखूं?
जबकि मैं देख रहा हूं कि सोफों पर सोने वालों के सपने पत्थरों पर सोने वालों के सपनों से बेहतर नहीं हैं.

पेड़

पेड़ आसमान में धरती द्वारा लिखी हुई कविता हैं. हम उन्हें काटकर कागज़ में तब्दील करते हैं और अपने खालीपन को उस पर दर्ज़ करते हैं.

असल संबन्ध

अगर पतझड़ कहता—’वसंत का जनक मैं हूं’—कौन मानता?

आदत अपनी-अपनी

मैं चलते हुए लोगों के साथ चल सकता हूं. किनारे खड़े होकर सामने से गुज़रते हुए जुलूस को देख नहीं सकता.

हताशा

मुझे शेर का निवाला बना दे हे ईश्वर! या फिर एक खरगोश मेरे पेट के लिए दे दे.

अटल सत्य

महान से महान आत्मा भी दैहिक  जरूरतों की अवहेलना नहीं कर सकती.

स्पर्श

आप अंधे हैं और मैं गूंगा-बहरा.
इसलिए चीज़ों को समझने के लिए हमें परस्पर-स्पर्श का सहारा लेना चाहिए.

फरिश्ता और मनुष्य

ईश्वर का पहला चिंतन था—फरिश्ता.
ईश्वर का पहला शब्द था—मनुष्य

सफाई पसंद

देहरी पर रोककर मैंने अपने मेहमान को टोका, “नहीं, पैरों को आते समय मत पोंछो. इन्हें जाते हुए पोंछना.”

निरुत्तर

मैं एक बार लाजवाब हुआ. सिर्फ़ उस समय, जब एक आदमी ने मुझसे पूछा—“तुम कौन हो?”

खाई

मनुष्य की इच्छा और सफलता के बीच एक खाई है. उसे उसके वंशज ही तय करते हैं.

स्वर्ग

स्वर्ग, उस दरवाज़े के पीछे वाले कमरे में है. दुर्भाग्य से उसकी चाभी मुझसे गुम हो गई है.
काश, मैं उसे सिर्फ़ भूला होता.

अन्तर

उन्होंने मुझे पागल करार दिया क्योंकि मैंने सोने के बदले अपना समय उन्हें नहीं बेचा था.
और मैंने उन्हें पागल करार दिया क्योंकि वे सोचते थे कि मेरा समय बिकाऊ है.

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बलराम अग्रवाल

जन्म : 26  नवंबर, 1952 को उत्तर प्रदेश के जिला बुलन्दशहर में
शिक्षा : एम॰ ए॰, पीएच॰ डी॰ (हिन्दी), अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा
पुस्तकें : कथा-संग्रहसरसों के फूल(1994), ज़ुबैदा(2004), चन्ना चरनदास (2004); बाल-कथा संग्रहदूसरा भीम(1997), ग्यारह अभिनेय बाल एकांकी (2012)
  समग्र अध्ययनउत्तराखण्ड(2011); खलील जिब्रान(2012)
अंग्रेजी से
अनुवाद : फोक टेल्स ऑव अण्डमान एंड निकोबार (2000); लॉर्ड आर्थर सेविलेज़ क्राइम एंड अदर स्टोरीज़(ऑस्कर वाइल्ड); अनेक विदेशी कहानियाँ व लघुकथाएँ।
सम्पादन : मलयालम की चर्चित लघुकथाएँ(1997), तेलुगु की मानक लघुकथाएँ(2010), समकालीन लघुकथा और प्रेमचंद(आलोचना:2011), जय हो!(राष्ट्रप्रेम के गीतों का संचयन:2012); कुछ वरिष्ठ कथाकारों की चर्चित कहानियों के 12 संकलन; 1993 से 1996 तक  साहित्यिक पत्रिका वर्तमान जनगाथा का प्रकाशन/संपादन; सहकार संचय (जुलाई 1997), द्वीप लहरी(अगस्त 2002, जनवरी 2003 व अगस्त 2007) तथा आलेख संवाद(जुलाई 2008) के विशेषांकों का संपादन।  हिन्दी साहित्य कला परिषद, पोर्टब्लेयर की साहित्यिक पत्रिका द्वीप लहरी को 1997 से अद्यतन संपादन सहयोग।
 संपर्क : ई-मेल : 2611ableram@gmail.com मोबाइल : 09968094431

3 टिप्‍पणियां:

ashok andrey ने कहा…

khaleel jibran kii laghakathaon ke sath unki suktiyon ne bahut prabhavit kiya,unse gujarna ek anubhav se gujarne jaisa mehsoos huaa.laajwaab.

डॉ नीरज शर्मा ने कहा…

अप्रतिम। खलील ज़िब्रान के एक एक वाक्य में संपूर्ण शास्त्र समाया हुआ है।

मनन कुमार सिंह ने कहा…

बढ़िया।