बुधवार, 1 अगस्त 2012

वातायन-अगस्त,२०१२










हम और हमारा समय

गंगा-यमुना--तेरा पानी----

रूपसिंह चन्देल

व्यवस्थागत सैकड़ों करोड़ का घोटाला-भ्रष्टाचार हमें चौंकाता नहीं. जिस देश में हजारों-हजारों करोड़ के घोटाले हो रहे हों--- एक साथ अनेक—आठ हजार करोड़ का चारा जानवरों के बजाए नेताओं-अफसरों ने मिलकर खा लिया. कुछ नहीं हुआ. उस घोटाले से लेकर टू जी तक चारा के आपपास की राशियों के कितने ही घोटाले हुए, लेकिन प्रकाश में नहीं आए. आए तो केन्द्र के, राज्यों के राज्यों ने दबा दिए. टू जी को सबसे बड़ा घोटाला माना गया, लेकिन उसे पीछे छोड़ गया कोयला घोटाला. कॉमनवेल्थ गेम्स में हुआ भ्रष्टाचार इन सबके सामने चहबच्चा सिद्ध हुआ. जहां लाखों करोड़ के घोटाले हो रहे हों, वहां अठारह सौ करोड़ रुपये क्या मायने रखते हैं!

गंगा और यमुना को साफ करने के लिए १९९२ में सबसे पहले योजना बनाई गई. जापान ने इसके लिए पचासी प्रतिशत तक ऋण दिया. यह राशि लगभग बारह सौ करोड़ रुपये थी, जिसमें अकेले उत्तर प्रदेश को पांच सौ करोड़ से अधिक मिले. हरियाणा को दो सौ पचास करोड़ के लगभग. लगभग इतनी ही राशि दिल्ली को मिली. लेकिन गंगा और यमुना जैसी १९९२ में थीं, आज उससे कई गुना अधिक मैली हैं. पहले फेज में इन दोनों नदियों को कितना साफ दिखाया गया कि दूसरे फेज के लिए जापान से पुनः पचासी प्रतिशत धन ऋण के रूप में मिल गया. बीस वर्षों में दोनों नदियों की साफ-सफाई के लिए सरकारी आंकड़ों के अनुसार २०१२ तक अठारह सौ करोड़ खर्च किए जा चुके हैं. स्पष्ट है कि यह राशि नेताओं और अफसरों के खातों की शोभा बढ़ा रही होगी और कागजों में उन्हें साफ कर दिया गया होगा. इन दोनों नदियों की साफ-सफाई के लिए इस धनराशि को समाप्त दिखाकर नयी राशि प्राप्त करने के प्रयास पुनः प्रारंभ हो चुके हैं और एक बार पुनः जापान भारत सरकार को ऋण देकर उपकृत करने के लिए आगे आएगा. ऋण देने से पहले क्या कभी जापान ने इन नदियों का सर्वेक्षण करवाने का प्रयत्न किया? क्या उसने यह जानने का प्रयास किया कि यमुना को टेम्स बनाने की घोषणा करने वाली सरकारों ने अब तक क्या किया! संभव है सर्वेक्षण करवाया  हो. उन्हें साफ करवाकर कोई एक स्थान या घाट दिखा दिया गया हो.

मैं प्रतिदिन दो बार यमुना के वजीराबाद पुल से होकर गुजरता हूं. मई-जून में पुल पर लगे जाम से बचने के लिए नावों पर बने पंटून पुल से निकलता रहा. वहां से गुजरते हुए यमुना का काला-बदबूदार पानी नाक बंद करने के लिए विवश करता था. वजीराबाद घाट के चारों ओर फैली गंदगी-कूड़ा-कचरा सरकार की सफाई की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है. यह स्थिति केवल यहीं की नहीं ---यमुना की यहां से कहीं अधिक बदतर स्थिति दिल्ली के आगे है. यही स्थिति कानपुर और उससे आगे गंगा की है.

अब यह रहस्य नहीं रहा कि ये नदियां किन कारणों से मैली हैं और सरकारें प्रचार के अतिरिक्त इनकी सफाई को लेकर कितना संजीदा हैं. लेकिन सारा दोष सरकारों पर डाल देना भी उचित नहीं है. सरकारों का मुख्य दोष यह तो है ही कि सफाई के नाम पिछले बीस वर्षों में अठारह सौ करोड़ की राशि की घनघोर लूट हुई और नदियों को मरने के लिए छोड़ दिया गया. यही नहीं आगे लूट के रास्ते भी खुले रखे गए. लेकिन इन नदियों के प्रति अपनी श्रृद्धा के बावजूद जनता ने अपने कर्तव्य का कितना पालन किया? पंडितों के पाखंडों से प्रभावित-प्रेरित जनता पूजा-अर्चना की सामग्री इन्हीं नदियों में फेककर स्वर्ग के पायदान पर पैर रख लेने का स्वप्न पालती रही. जिन नदियों के जल का आज भी आचमन (कीटाणुयुक्त विषाक्त जल) बड़े गर्व से लोग करते हैं उनकी सफाई के प्रति वे स्वयं कितना गंभीर हैं? विश्वकर्मा पूजा, विजयादशमी, सरस्वती पूजा, छठ आदि के बाद मूर्तियों और अन्य सामग्री को इन्हीं नदियों के हवाले किया जाता है. क्यों? मैं प्रतिदिन देखता हूं कि लोग प्लास्टिक के बैग भरकर पूजा का कचरा यमुना में उछालकर ऎसे फेंकते हैं, मानो अपने पाप और दारिद्र्य इनके हवाले कर रहे हों. यह  अंधविश्वास की पराकाष्ठा है. आज भी यह देश अठाहरवीं शताब्दी में जी रहा है. वही अर्थहीन कर्मकांड और पूजा-पाठ. पंडितों का व्यवसाय फलफूल रहा है और गंगा और यमुना मरने के लिए अभिशप्त हैं.

आभिप्राय यह कि सरकार में बैठे लोगों, जिनमें नेता, मंत्री, अफसर, बाबू---,को लूटने के लिए बहाने चाहिए. सरकारें यदि सफाई के प्रति ईमानदार हो जाएं तो वे गंदे नालों और फैक्ट्रियों के पानी को उनमें जाने से रोकने का प्रयत्न कर सकती हैं. अभियान के तौर पर कचरा उठवा सकती हैं, लेकिन जब तक जनता जागरूक नहीं होती नदियां मैली ही रहेंगी. सरकारें साफ-सफाई के प्रति ईमानदर होने के साथ ऎसे सख्त कानून बनाएं कि जो भी व्यक्ति-संस्था नदियों में कचरा फेंकता पकड़ा जाएगा सजा के तौर पर उसपर न केवल भारी जुर्माना होगा, बल्कि उसे तीन वर्ष तक की कैद की सजा भी दी जाएगी.

-0-0-0-0-

वातायन का यह अंक खलील जिब्रान के जीवन और रचनाओं पर केन्द्रित है. खलील जिब्रान पर प्रस्तुत संपूर्ण सामग्री ’मेधा बुक्स’ नवीन शाहदरा, दिल्ली-३२ से वरिष्ठ कथाकार-कवि बलराम अग्रवाल की सद्यः प्रकाशित पुस्तक ’खलील जिब्रान’ से प्राप्त की गई है. सभी लघुकथाओं और सूक्तियों का अनुवाद बलराम अग्रवाल ने किया है.

साथ में प्रस्तुत हैं  वरिष्ठ कवयित्री विजया सती की कविताएं.

आशा है अंक आपको पसंद आएगा.

--0-0-0-0-0-

4 टिप्‍पणियां:

सुभाष नीरव ने कहा…

तुमन सही कहा, सरकार और सत्ता में बैठे लोग चाहे वे किसी भी पार्टी के हों, इन सफ़ाई-अभियानों से अपने ही घर भरते हैं,उन्हें इन नदियों की सफ़ाई से कुछ लेना देना नहीं है… परन्तु, इन नदियों को लगातार गन्दा करने की भूमिका में हम ही बहुत आगे हैं…हम ही नहीं चाहते कि ये साफ़ रहें…अपने घरों का कचरा, अपने कारखानों का गन्द बड़ी श्रद्धा से इन नदियों के हवाले कर देते हैं…अगर हम ही जागरूक न हुए तो कुछ नहीं होने वाला… हम जागरूक हो जाएं तो नदियां कभी मैली न हों और जब नदियां मैली नहीं होंगी तो सत्ता और सरकार में बैठे इन स्वार्थी और लोलुप लोगों को इनके नाम पर अपने घर भरने का अवसर नहीं मिलेगा… खलील जिब्रान पर 'वातायन' का यह अंक नि:संदेह जोरदार है…

PRAN SHARMA ने कहा…

AAJ AAPKE AALEKH SE RAVINDRA JAIN
DWAARA SWARBADDH KIYA GEET YAAD AA
RAHAA HAI -

RAM ,TEREE GANGA MAILEE HO GAYEE
PAAPIYON KE PAAP DHOTE - DHOTE

PRAN SHARMA ने कहा…

AAJ AAPKE AALEKH SE RAVINDRA JAIN
DWAARA SWARBADDH KIYA GEET YAAD AA
RAHAA HAI -

RAM ,TEREE GANGA MAILEE HO GAYEE
PAAPIYON KE PAAP DHOTE - DHOTE

ashok andrey ने कहा…

chandel tumne apne is aalekh men nadiyon par ho rhe atyaachar ka sahee aanklan kiya hai lekin iska hal to dikh nahee rhaa hai kyonki yahaan har kisee kii ichchha shakti mar chukee hai. ab ko ishwar khair kare.