रविवार, 10 फ़रवरी 2013

कहानी


पीड़ा
अर्चना ठाकुर
छोटी बहन स्कूल गई है| माँ बाज़ार से सौदा लेने अभी निकली है और पिताजी
शाम से पहले  दफ़्तर से घर नहीं आएगें| माँ के जाते सुषमा ने बाहर का
किवाड़ जल्दी से बंद कर लिया और दरवाजे की सारी कुंडियाँ लगा ली फिर एक एक
करके सारे घर की खिड़कियाँ और बाहर को खुलने वाले सभी दरवाजे बंद कर लिए
और बिल्कुल अंदर वाले कमरे में जाकर बैठ गई| आक्रोश और तड़प से उसकी आँखों
की लालिमा और गहरी हो उठी थी| बंधे चेहरे और वेदना में भिंची हुई आँखों
से वह कमरे के चारों ओर देखती है| फिर ऊपर की ओर मरमरी आवाज़ में चलते
पंखे को देखती है| 'जहर खा कर मर जाऊँ पर जहर तो है ही नहीं, मिट्टी का
तेल छिड़क कर जल जाऊँ पर अपनी वज़ह से घर को भी आग में क्यों स्वाहा करूँ|
यही सही है, हाँ पंखे से लटक कर मर जाती हूँ| एक पल में ही सारी पीड़ा का
अंत हो जाएगा| रोज़ रोज़ की मौत से एक दिन की मृत्यु भली| नहीं जीना चाहती
इस तरह तिल तिल मर कर, आज मैं ये किस्सा यही समाप्त कर दूँगी|'
सुषमा जल्दी से उठती है और कमरे की अलमारी खोल कर बैठ जाती है फिर एक
सरसरी नज़र अलमारी के एक एक बड़े खाने में सिमटी साड़ियों पर डालती है| 'अब
कौन सी साड़ी लूँ, जो मजबूत हो और मेरे मर जाने के बाद बेकार भी न हो| कोई
नई साड़ी नहीं निकालूँगी|'

कुछ ही पल में कई साड़ियाँ फ़र्श पर दिखने लगी| 'एक एक करके सारी साड़ियाँ
देख डाली, क्या करूँ, एक तो वैसे ही माँ अपने लिए कभी कुछ नहीं खरीदती -
कितनी ही पुरानी हो जाने पर भी वे साड़ी संभाले रहती है - कितनी बार मैंने
कहा माँ कम से कम त्योहारों पर तो एक अदद नई साड़ी ले लिया करो, पर नहीं -
हमेशा हँस कर टाल जाती - अगर कभी मैं ही पैसे जोड़ जाड़ कर साड़ी ले आती तभी
भी तो नहीं पहनती वो साड़ी - तब ये कह कर रख देती कि तुम दोनों की शादी
में काम आएगी - हुअः ! शादी, अब तो मेरी चिन्ता छोड़ दोगी न माँ, आज
तुम्हारी बेटी सदा के लिए विदा होने जा रही है|'
सुषमा ने साड़ी लेने का विचार छोड़कर एक पुरानी चादर उठा ली और स्टूल पर चढ़
कर चादर का फंदा लगाने लगी| 'पुराने और छोटे से घर के एक पुराने से पंखे
पर पुरानी सी चादर का फंदा लगा कर एक पुरानी ज़िन्दगी खत्म कर रही हूँ|'
मन ही मन बुदबुदाई वो|

पंखे पर चादर लटकाते उसे याद आया- 'अरे! मैंने अभी तक कोई सुसाइड नोट भी
नहीं लिखा - कहीं मेरी आत्महत्या को हत्या मान पुलिस वाले बेवज़ह ही मेरे
माता पिता को तंग न करे|' चादर वैसा ही लटका छोड़ सुषमा स्टूल से नीचे उतर
आती है और कागज़ पेन निकाल कर बैठ जाती है|
'
किसको संबोधित करके लिखूँ - दुखी तो सभी होंगे पर माँ की हालत का अंदाज़ा है मुझे|'
'
माँ, आपकी ये बेटी आज आत्महत्या कर रही है| अपने ही हाथों अपनी ज़िंदगी
का गला घोंट रही है| मुझे माफ कर देना| आपने अब तक अपनी इस बेटी का बहुत
साथ दिया|मेरे पल पल में विश्वास किया पर माँ.। मैं अब लोगों की तिरछी
नजरों के सवालों से बहुत आहत हो चुकी हूँ| गली का एक गुंडा मुझे सालों से
छेड़ रहा है और सालों से मैं इस पीड़ा को सह रही हूँ पर अब तो लोग मेरी इस
डर मिश्रित चुप्पी को मेरी स्वीकृति मान मुझे ही टेढ़ी नजरों से देखने लगे
है| मेरे कॉलेज के लड़के मुझे देख फब्तिया कसते है,लड़कियाँ हँसती है|बाज़ार
से सौदा लेते दुकानदार हाथों को छूते हुए सामान देता है, गली से गुज़रते
रिक्शेवाले,आता जाता हर राहगीर मेरे देह में अपनी नजरों के दंश चुभाता
गुज़र जाता है|माँ..अब मेरे लिए इस पीड़ा को लगातार सह पाना मुश्किल हो रहा
है| मैं हार चुकी हूँ माँ, मैं हार चुकी हूँ| माना आपको अपनी बेटी पर
पूर्ण विश्वास है पर बाहर निकल कर मुझमें उन चुभती नजरों का सामना करने
की हिम्मत नहीं है| कल को कोई और अनहोनी हो उससे पहले ही मैं अपने इस
शरीर को जो मेरी आत्मा का दुश्मन बना जा रहा है ,खत्म कर रही हूँ| माँ
मुझे माफ करना , शायद आप मुझे मेरे इस कृत्य के लिए कभी माफ़ नहीं करेंगी
पर इसके सिवा मेरे पास अब कोई रास्ता नहीं है...|'
कलम भींचें सुषमा अपने बहते आँसू पर एक गहरी गटकन से साथ काबू करती है और
फिर विचारों और शब्दों में गोता खाने लगती है|

'माँ मुझे नहीं पता था की स्त्री होना मेरे लिए मेरा सबसे बड़ा अपराध बन
जाएगा| शायद ये हर स्त्री की पीड़ा है| यकीनन माँ आप भी कहीं न कहीं इस
पीड़ा से गुज़री होंगी तो आपने कैसे हिम्मत की होगी इसे सहने के लिए| पिता
जी द्वारा आपको दी हुई यातना को तो मैंने अपनी आँखों से देखा है| जब
नौकरी चले जाने पर पिताजी शराब पीकर घर आते और नशे में आपको मारते| कितनी
चुप्पी में आपने वो दर्द सहा कि कहीं कोई बाहर आपके चीखने की आवाज़ न सुन
ले| शरीर पर लगी चोट का मरहम्म तो मिला होगा पर पति द्वारा दी हुई
यातनाओं की मानसिक क्षति की भरपाई शायद ही कभी हुई होगी| तब भी आप हर साल
आने वाले त्योहारों में अपने पति के लिए पूजा करती रही,अपना पत्नी धर्म
निभाती रही| माँ सचमुच तुम महान हो| हर वक़्त बेवक्त हम दोनों बहनों का भी
आप एक मात्र सहारा रही| माना पिता जी ने हमारी पढ़ाई में धन खर्च किया पर
जीवन में आगे बढ़ने की हिम्मत,प्रेरणा हमें आपसे ही मिली| मैं सोचती हूँ
अगर कभी आप इतनी परेशानी, दुख, और प्रताड़ना को सहते हुए हार जाती और आप
भी वही कदम उठा लेती जो आज मैं उठा रही हूँ तो हमारा क्या होता माँ ? आज
मैं जो कुछ हूँ वो न होती| पिताजी आप के जाने पर कुछ दिन गम मानते और फिर
दादी की कसम पर दूसरी शादी को राज़ी हो जाते| वो आने वाली हमारी माँ
कहलाती और संभव हो कि वो हमारे सब काम भी कर देती जो आप हमारे लिए करती
है पर क्या वो हमें वही विश्वास और स्नेह दे पाती जो एक माँ अपने बच्चों
को देती है| अच्छा ही हुआ माँ जो आपने हिम्मत से काम लिया| आप का कल का
साहस हमारी आज की हिम्मत है| सच माँ आप ही हमारी प्रेरणास्रोत हो|'
लिखते लिखते सुषमा नज़र उठा कर सामने की दीवार पर लगी अपने माता पिता की
तस्वीर देखती है| धुमिल फ्रेम में भी अपनी माँ की चमकती मुस्कान से वो
नज़र नहीं हटा पाती| एक गहरे उच्छ्वास के साथ वह अब ऊपर पंखे की ओर नज़र
डालती है फिर कुछ सोच उसके चेहरे के भाव बदल जाते है|
'
फिर मैं ये क्या करने जा रही हूँ| मैं तो अपनी माँ के सारे किए कराई
मेहनत पर पानी फेरने जा रही हूँ| आज उनकी एक बेटी नहीं बल्कि उनका एक हाथ
कट जाएगा| नहीं चंद लोगों के एक झूठ के लिए मैं अपना इतना सारा सच नहीं
बदल सकती| वे कौन लोग होते है मेरा नसीब तय करने वाले| मैं अपने बिगड़े आज
के लिए अपना आने वाला कल भी खराब कर रही हूँ| मेरी आत्महत्या  इस बात का
सबूत हो जाएगा की लोगों का झूठ जीत गया और मेरा सच हार गया| सिर्फ उनके
कह देने मात्र से मैं चरित्र हीन नहीं हो जाऊँगी| मैं ज़िन्दा रह कर अपना
सच साबित करूँगी और झूठ के मुँह में तमाचा मारूँगी| मेरी आज की हिम्मत
मेरा कल का भविष्य तय करेगी| मैं..|'

अचानक दरवाजे की तेज़ दस्तख की आवाज़ से वो चौंक जाती है| अपनी सुर्ख आँखों
से वह एक पल पंखे से लटकते चादर को तो दूसरे ही पल बंद दरवाजे की ओर
देखती है| फिर जल्दी से संभलते हुए 'आती हूँ' की आवाज़ देकर बिजली की
फुर्ती सी वह उठी, मुँह धो कर चादर उतार कर किनारें फेंक कर तेज़ी से
दरवाज़े की ओर बढ़ जाती है|

दरवाज़े को खोल बाहर अपनी छोटी बहन को देख मुस्कराती हुई बोली -'आ गई|'
आगे वो कुछ कह पाती की छोटी ने जल्दी से अंदर आकर किवाड़ बंद कर लिया|
सुषमा छोटी के चेहरे की ओर देखती है उसकी आँखों का डर देख सुषमा की आँखें
सचेत हो उठती है| उसने उन आँखों में अपनी बहन की पीड़ा नहीं बल्कि एक
स्त्री की पीड़ा महसूस की| आज जो कुछ उसके साथ गुज़र रहा है अब क्या वही
उसकी छोटी बहन को भी सहना होगा|
'
नहीं, एक स्त्री होना मैं एक अपराध नहीं होने दूँगी|'
'
दीदी - कहाँ जा रही हो?'
'
तू यहीं ठहर - मैं अभी आती हूँ|'सुषमा के अंदर का उद्वेग उफन कर आँखों
में जलजले की तरह दिखने लगा|
दीदी - वो वही गुंडा है - आप कहाँ जा रही हो?' उसकी घबराहट शब्दों में झलक आई|
पर सुषमा तेज़ी से बिन सुने कहे बाहर निकल गई|
गली तक निकलते सुषमा को देख गली के शोहदे यूँ निकल आए जैसे बारिश के बाद
जगह जगह कुकुरमुत्ते उग आए हो|
'
अरे वाह! आज रानी बेवक्त भी दरबार से बाहर आ गई -|'
इन फब्तियों के बाद मुँह से तरह तरह की अश्लील आवाज़ों ने सुषमा को और भी
जला कर राख कर दिया|

अपनी माँ का चेहरा आगे रख हिम्मत करके वह आगे बढ़ती रही और गली के मोड़ पर
जा कर रुक गई| पीछे शोहदे खड़े ललचाई नज़रों से उसे ताक रहे थे| सुषमा बिना
समय गवाएँ फुर्ती के साथ पलटी और पास के हलवाई की जलती कढ़ाई में पड़ी
कल्छुन उठा कर घुमाते हुए एक ज़ोर के साथ उन शोहदों के ऊपर टूट पड़ी| एक
साथ कईयों के चेहरे जलन से तड़प उठे| उन सभी की आह की आवाज़ ने सुषमा में
हिम्मत की अग्नि और भी प्रज्वलित कर दी| वह लगातार उन पर वार करती रही|
ये देख आस पास के खड़े सभी लोग सकते में आ गए|
'
ले - कमीनों - तुम्हारी ये हिम्मत, लो मेरा इज़हार|'
लोग भी आगे बढ़े - 'अरे लड़की को छेड़ता है- चलो पुलिस को बुलाते है|'
लोग भी उन शोहदों पर अपने अपने हाथ आज़माने लगते है|
अब सुषमा गहरी गहरी साँसे भरती सारा तमाशा अपनी हिकारत भरी नज़रों से देख
रही थी कि तभी उसने अपने कंधे पर एक भार महसूस किया|
'
अगर लड़की हिम्मत दिखाए तो उसकी एक हिम्मत चार की हिम्मत बन जाती है|'
पीछे से आकर माँ ने सुषमा को संभाला और नई ताज़गी भरी सुबह की भोर सी
मुस्कान के साथ वह उनके साथ वापस घर चल दी|
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जन्म : 05 मार्च,
जन्म स्थान : कानपुर(उत्तर प्रदेश)
शिक्षा : मनोविज्ञान ,हिंदी साहित्य में  स्नातकोत्तर उपाधि,परामर्श में
डिप्लोमा, एम0 फिल (मनोविज्ञान)
प्रकाशन : विभिन्न मुद्रित एवम अंतरजाल  पत्र-पत्रिकाओं में
कविताएँ,कहानियाँ,लघु कथा ,यात्रा व्यतांत  आदि का प्रकाशन
सम्पर्क :  अर्चना ठाकुर, तेजपुर ,सोनित पुर जिला ,आसाम
             arch .thakur30 @gmail .com
            archana.thakur.182@facebook.com

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