सोमवार, 30 सितंबर 2013

वातायन-अक्टूबर,२०१३



                हम और हमारा समय
              राजनीति और अपराधों का बढ़ता ग्राफ
                              रूपसिंह चन्देल

देश में भ्रष्टाचार और अपराधों की जो स्थिति है उसके लिए एक मात्र राजनीति दोषी है. गांधी जी ने आजादी प्राप्त होने के पश्चात कहा था कि कांग्रेस ने देश को आजाद करवाने का अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है और उसे भंग कर दिया जाना चाहिए, लेकिन कांग्रेसी नेताओं में तब तक सत्ता का लोभ जाग्रत हो चुका था और आगे बढ़कर एक भी शीर्ष नेता ने गांधी जी के  कथन का समर्थन नहीं किया था. शायद उनके अंतःकरण में यह आकांक्षा पहले से ही उपस्थित थी कि जिस आजादी के लिए उन्होंने रात-दिन एक किया उसका उपभोग वे सत्ता में रहकर ही कर सकते हैं. शायद वे यह भी जानते थे कि आजादी तक जिस प्रकार राजनीतिज्ञों ने आजादी के लिए बलिदान हुए क्रान्तिकारियों की भूमिका को भुलाने का प्रयास किया है यदि वे सत्ता में नहीं रहे तो माया तो हाथ से जाएगी ही उन्हें भी शायद जनता केवल स्वंतत्रता के एक मामूली सिपाही के रूप में ही जानेगी. सत्ता-भोग की लालसा और उससे चिपक जाने की मानवीय कमजोरी ने प्रारंभ के कुछ नेताओं को छोड़कर उन्हें वह सब करने के लिए प्रेरित किया जिसका दुष्परिणाम आज देश भोग रहा है. इंदिरा जी के आते-आते देश में भ्रष्टाचार का ग्राफ ऊंचे उठने लगा था. आपात्काल के दौरान वह बढ़ा. आर्थिक भ्रष्टाचार के साथ अपराध के अन्य कारनामें भी उसमें शामिल होते गए. अपहरण, बलात्कार, डकैती, उगाही----अपराध के जितने भी स्वरूप हो सकते हैं वे सब राजनीजिज्ञों की ही देन हैं.

राज्यों में छोटी पार्टियों के उदय ने इस वृद्धि में घी में आग का काम किया. स्थानीय नेताओं ने चुनाव जीतने के लिए घोर अपराधियों और खूंखार डकैतों का सहारा लिया और ये अपराधी राजनीतिक भावना जाग्रत होते ही  स्वयं भी राजनीति का हिस्सा बन गए. स्थानीय शीर्ष नेताओं को ये अपराधी चाहिए थे और त्रिशंकु की स्थिति को प्राप्त सरकारों को सत्ता में काबिज रहने के लिए स्थानीय शीर्ष नेता. और उन सरकारों ने उनका समर्थन प्राप्त करने के लिए उन्हें हर तरह के अपराध करने के लिए अभयदान दे दिया. वे जनता का खजाना लूटते रहे और सरकारों को आंख दिखाकर अपने विरुद्ध सभी जांचों को बंद करवाते रहे. लोकतंत्र का इससे बड़ा मखौल क्या होता!

आज देश लाखों करोड़ रुपयों के घोटालों से कराह रहा है लेकिन राजनीति अविचल/अटल है. हर दिन एक नया घोटाला उजागर होता है. हर दिन किसी न किसी राज्य/केन्द्र के मंत्री पर आरोप लगते हैं, लेकिन वे मुस्कराकर कह देते हैं कि इसमें कोई तथ्य नहीं है. स्पष्ट है कि वे राजनीतिज्ञ हैं और कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता. ’बाल भी बांका’ न कर सकने की भावना ने उन्हें अन्य अपराधों के लिए प्रेरित किया. गोपाल कांडा, मदेरणा जैसे अपराधियों की संख्या तीव्रता से बढ़ी. जनता अपने कर्णधारों के काले कारनामों से अछूती कैसे रह सकती थी और जनता में भी अपराधों का ग्राफ बढ़ा. चोरी,डकैती,गिरहकटी,झपटमारी आदि छोटे-मोटे अपराध बेकारी की देन माने जा सकते हैं, लेकिन बड़े अपराध राजनीतिज्ञों से प्रेरित होकर किए जाने लगे. टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक विश्लेषण प्रकाशित किया. उसके अनुसार प्रत्येक ३० सांसद में १ हत्या या उस जैसे मामले में आरोपित है, जबकि आम जनता में १०६१ में से १ व्यक्ति. २३ में से १ सांसद हत्या के प्रयास में, जबकि आम आदमी में ४२२० में से १ है. उसी प्रकार अपहरण मामलों में ५४ सांसदों में १ और आम जनता में से ५५१० में से १, डकैटी/लूट जैसे मामलों में ५४ सांसदों में से १ और आम जनता में से ३८३२ में से १, जबकि दंगों में ५४ में से १ सांसद और आम जनता में से १४३६ में से १ व्यक्ति होता है. मेरा मानना है कि दंगों  की पृष्ठभूमि में राजनीतिज्ञ ही होते हैं. चाहे १९८४  का सिख विरोधी दंगा हो, २००२ का गुजरात दंगा या हाल में घटित मुजफ्फरनगर दंगा. सभी की पटकथा राजनीतिज्ञों के कुत्सित कलम से ही लिखी गयी.

ऊपर जो भी आंकड़े दिए गए उसमें दूसरे तमाम अपराध शामिल नहीं हैं. यदि उन्हें भी शामिल कर लिया जाए तो स्पष्ट है कि पांच प्रतिशत से अधिक साफ छवि वाले राजनीतिज्ञ नहीं मिलेंगे. ऎसी स्थिति में यदि उच्चतम न्यायालय के निर्णय का पालन किया गया और राष्ट्रपति ने हाल में मिले ऑर्डिनेंस को लौटा दिया तो कुछ उम्मीद की जा सकती है. शायद उसके बाद देश में अपराधों में किंचित अंकुश लग सके.

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व्यस्तताओं के कारण दो माह की चुप्पी के बाद ’वातायन’ में इस बार प्रस्तुत है वरिष्ठ साहित्यकार प्राण शर्मा की गज़लें. आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी.

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प्राण शर्मा जी की दस गज़लें
                
 1

काँटों पर भी जरा निखार आये 
काश ऐसी कभी बहार आये 

ऐसे बोले वे सामने सबके 
जैसे हर शर्म को उतार आये 

कुछ कमी न्यौते में रही होगी 
जश्न पर लोग बस दो - चार आये 

कामयाबी पे यार की यारो 
क्यों किसी यार को बुखार आये 

आओ कुछ देर `प्राण` सो जाओ 
ख्वाहिशों को ज़रा करार आये 
           
2

क्या हुआ जो तू मालामाल नहीं 
चैन दिल से मगर निकाल नहीं 

कौन है दोस्त , है सवाल मेरा 
कौन दुश्मन है ये सवाल नहीं 

काश , हमदर्द भी कोई होता 
दोस्तों का यहाँ अकाल नहीं 

यूँ तो खाते हैं सब नमक यारो 
हर कोई पर नमक हलाल नहीं 

सूख जाएगा पानी सब उसका 
दूध को इतना भी उबाल नहीं 

इक वही तो है उसका धन प्यारे 
पगड़ी मजदूर की उछाल नहीं 

जी भले ही उठाके सर अपना 
`प्राण` लेकिन घमंड पाल नहीं 
           
  

गुनगुनी सी धुप में छाया कर 
मस्त मौसम का मज़ा ज़ाया कर 

डालियाँ झंझोड़ कर जाया कर 
नन्हीं कलियों पर सितम ढाया कर 

हर किसीकी ज़ात को कुछ तो समझ 
हर किसी को दिल में बिठलाया कर 

बेरुखी , नाराजगी , शिकवा , गिला 
हर किसीके घर में ले जाया कर 

बच्चों की खुशियों को तू घर में ही रख 
शहर में ढिंढोरा पिटवाया कर 

लाज रख `प्राण` अपनी उम्र की 
चोचले हर बार दिखलाया कर 
             

नादान दोस्तो , सुनो ये बात ध्यान से
सोना निकलता है कहाँ कोयले की खान से 

तुम करते हो तरक्की तो अच्छा लगे मुझे 
ज्यों पंछी प्यारा लगता है ऊँची उड़ान से 

सारे का  सारा शहर भले छान मारिये 
मिलता नहीं है चैन किसी भी दुकान से 

कितना है बदनसीब वो इंसान दोस्तो
अनजान ही रहा है जो दुनिया के ज्ञान से 

उम्मीद उससे क्यों बँधे मुझको दोस्तो 
अब तक तो वो फिरा नहीं अपनी ज़बान से 

कब तक छिपाता ही रहेगा अपने जुर्म को 
कब तक बचेगा `प्राण` वो झूठे बयान से 
               
    

अपने बच्चों को सलीके से बसाना आता है 
हर चिड़ी को घोंसला अपना बनाना आता है 

पीछे - पीछे चलता है  हर कोई उसके दोस्तो 
जिस किसीको प्यार लोगों पर लुटाना आता है 

मुस्कराने को उसे कहते नहीं तो ठीक था 
हर किसीको दोस्तो कब मुस्काना आता है 

पास उसके क्यों भला वे जायेंगे दोस्तो 
जिस बशर को बच्चों को आँखें दिखाना आता है 

`प्राण` उसकी क्या कहें जादूगरी या सादगी 
दुश्मनों को भी जिसे अपना बनाना आता है 
                   
   

उनको  मत दिल से कभी अपने लगाना 
अच्छा रहता है सभी झगडे भुलाना 

टूटने लगता है सारा ताना - बाना 
आँधियों में टिकता है कब आशियाना 

एक दिन की बात हो तो चल भी जाए 
रोज़ ही चलता नहीं लेकिन बहाना 

हो भले ही सूना - सूना कोई आँगन 
ढूंढ लेता है परिंदा दाना - दाना 

कुछ कुछ तो खूबियाँ होंगी कि अब भी 
याद करते हैं सभी बीता ज़माना 

लेना तो आसान होता है किसी से 
दोस्त , मुश्किल होता है कर्ज़ा चुकाना 

`प्राण` इन्सां हो भले ही हो परिंदा 
हर किसीको प्यारा है अपना ठिकाना 
                 

माँ की बाहों के लिए तड़पा हुआ 
देखिये बच्चा कभी सहमा हुआ 

साफ़ पानी बरसा था आकाश से 
नाले में मिलते ही वो मैला हुआ 

बिक गयी लोगों के आते  ही सभी
सस्ती चीज़ों का बड़ा सौदा हुआ 

बंद पिंजरे में करो उसको नहीं 
पंछी प्यारा लगता है उड़ता हुआ 

कब किसी को दोस्तो अच्छा लगा 
आदमी हर वक़्त ही रोता हुआ 

ये जरूरी तो नहीं है दोस्तो 
पूरा ही हो काम हर सोचा हुआ 
            
क्यों हो उसके सफ़र पर हम फ़िदा 
उसका हर पग अब भी है बढ़ता हुआ 
             

जिस किसी से जब कभी झगडा हुआ 
मेरा दिल भी दोस्तो खट्टा  हुआ

सर से लेकर पाँव तक बदला हुआ 
हर बशर को देखा है ढलता हुआ 

हर तरह से तोल  कर परखा उसे 
भारी पलड़ा ही दिखा झुकता हुआ 

गीला तो हो जाएगा दोस्तो 
कपड़ा पानी से ही कब उजला हहा 

काश , हम भी साफ़ करते रोज़ ही 
बढ़ते - बढ़ते कचरे पर कचरा हुआ 
             

मन किसीका दर्द से बोझल हो 
आँसुओं  से भीगता काजल हो 

प्यासी धरती के लिए गर जल नहीं 
राम जी , ऐसा कभी बादल हो 

हो भले ही कुछ कुछ नाराजगी 
दोस्तों के बीच में कलकल हो 

आया है तो बन के जीवन का रहे 
ख्वाब की मानिंद सुख ओझल हो 

धुप में राही को छाया चाहिए 
पेड़ पर कोई भले  ही फल हो 
             
  10 

आँधी में दीपक बुझे होंगे 
जिन घरों के दर खुले होंगे 

कितने ही मेहमां जुटे घर में 
कुछ तो अपनों से रहे होंगे 

हम तो कह आये खरी बातें 
बाद में किस्से बने होंगे 

मौलवी - पंडित जो मिल बैठे 
तय है ये झगडे खड़े होंगे 

बस्तियों में मजहबी नारे 
लोग वे वहशी रहे होंगे 

उठ रही हैं आग की लपटें 
बेबसों के घर घर जले होंगे 

डाल  आये रोटियों को वो 
गलियों के कुत्ते  लड़ें  होंगे 

हम कहते थे कि तोड़ो मत 
कच्चे फल खट्टे लगे होंगे 

`प्राण` वो बैसाखियों के बल 
राह में कुछ तो चले होंगे 

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एक शेर 

आदमी दुश्मन है माना आदमी का 
आदमी का दोस्त फिर भी आदमी है  
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प्राण शर्मा - परिचय 
                                            (बाएं से तीसरे काव्य रंग सम्मान के साथ प्राण जी)

जन्म - 13 जून , 1937 
स्थान - वजीराबाद ( अब पकिस्तान )
शिक्षा - एम हिंदी , पंजाब युनिवर्सिटी 

लब्ध प्रतिष्ठ वरिष्ठ साहित्यकार प्राण शर्मा 1966 से यू.के में निवास कर रहे हैं और 
एक छोटे से शहर कोवेंट्री में बैठे निरंतर विभिन्न विधाओं में समय की आवाज़ और 
उसकी धड़कन को क़लम से कागज़ पर ईमानदारी से उतार रहे हैं।  स्टेज पर कविता ,
गीत या ग़ज़ल पढने पढने में माहिर हैं लेकिन उन्होंने उसे पेश नहीं बनाया है। 
प्राण शर्मा ने लिखना छोटी आयु में ही आरम्भ कर दिया था था किन्तु 1955 से उनके 
लिखने ने गंभीर मोड़ लिया।  यू . के की एकमात्र साहित्यिक पत्रिका ` पुरवाई ` में उनके 
लघु कथा का स्तम्भ ` खेल निराले हैं दुनिया में ` पिछले डेढ़ शतक से निरंतर चल रहा 
है।  उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं - सुराही - मुक्तक संग्रह , ग़ज़ल कहता हूँ - ग़ज़ल 
संग्रह और पराया देश - छोटी बड़ी कहानियों का संग्रह 

सम्मान , पुरस्कार - 1961 में भाषा विभाग , पटियाला द्वामें रा आयोजित निबन्ध -
प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार। 1982 में कादम्बिनी द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय 
कहानी प्रतियोगिता में सांत्वना पुरस्कार। 1986 में मिडलैंड आर्ट्स , लेस्टर , यू .के 
द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार। 2006 में यू . के हिदी समिति 
द्वारा ` हिंदी साहित्य के कीर्ति पुरुष ` सम्मान। 2013 में कव्यरंग , नॉटिंघम द्वारा 
` साहित्यिक सम्मान ` . 

रपट

 (बाएं से दूसरे प्राण शर्मा और दाएं से प्रथम उषा राजे सक्सेना)


'काव्यरंग' द्वारा सम्मान कविसम्मेलन 

                                          (डॉ.) कविता वाचक्नवी    


प्रतिवर्ष भारतीय उच्चायोग तथा भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) के संयुक्त तत्वावधान में केशरी नाथ त्रिपाठी जी के नेतृत्व में 5 कवि अगस्त माह में ब्रिटेन आते हैं और यहाँ की स्थानीय संस्थाओं के संयोजकत्व में अलग अलग नगरों में कवि सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं। इस वर्ष ये कार्यक्रम 14 अगस्त से 27 अगस्त तक आयोजित हुए। लगभग दो सप्ताह के वार्षिक कार्यक्रम के लिए इस वर्ष यहाँ आने वाले कवि थे - सर्व श्री केशरीनाथ त्रिपाठी, ममता किरण, कविता किरण, कुश चतुर्वेदी, तेज नारायण शर्मातेजऔर विज्ञान व्रत !

इसी क्रम का अन्तिम कवि सम्मेलन नोटिंघम नगर में 'काव्यरंग' संस्था के स्थानीय संयोजकत्व में दिनांक 26 अगस्त को  दोपहर 2 बजे से सायं साढ़े पाँच बजे तक आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता नोटिंघम के शेरिफ़ ने की तथा मुख्य अतिथि थे भारतीय उच्चायोग के मंत्री (समन्वय) श्री एस एस सिद्धू।  सम्मेलन से पूर्व जय वर्मा द्वारा कवि परिचय ज्योति धर ने माथे पर तिलक लगा मुख्य अतिथियों कवियों का स्वागत एक-एक कर मंच पर किया।  'काव्यरंग' के दस वर्ष पूर्ण होने के विशेष अवसर के कारण कार्यक्रम का शुभारम्भ 10 दीपों को प्रज्वलित कर किया गया। पश्चात् पंडित कपिलदेव द्वारा सरस्वती वन्दना का पाठ हुआ। 
     काव्यरंग कविसम्मेलन


प्रतिवर्ष संस्था 'काव्यरंग' अपने इस वार्षिक कवि सम्मेलन में किसी एक वरिष्ठ हिन्दी रचनाकार को सम्मानित भी करती आई है। इस वर्ष यह सम्मान कॉवेंट्री निवासी वरिष्ठ  ग़ज़लकार प्राण शर्मा को प्रदान किए जाने की घोषणा की गई थी। संस्था की ओर से सम्मान के रूप में पुष्पा राव ने प्राण शर्मा का औपचारिक परिचय उपस्थित जनसमुदाय को पढ़ कर सुनाया तदुपरान्त  मुख्य अतिथियों के हाथ से शॉल, प्रशस्ति पत्र राशि भेंट कर प्राण शर्मा का सम्मान/ अभिनंदन किया गया। सम्मानित होने वाले दूसरे व्यक्ति थे संस्था के सदस्य नोटिंघमवासी प्रो. हरमिन्दर दुआ। उनका औपचारिक परिचय संजय सक्सेना द्वारा पढ़ा गया नगर के शेरिफ़, मंत्री (समन्वय), नाथ पुरी तथा जय वर्मा द्वारा शॉल तथा प्रशस्ति पत्र प्रदान कर उनका भी सम्मान किया गया। हरमिन्दर दुआ ने अपने वक्तव्य में संस्था पदाधिकारियों का धन्यवाद किया। पश्चात संस्था के सदस्य डॉ. श्रीहर्ष शर्मा की पुस्तक "तेरी धुन और मेरे गीत" का लोकार्पण अतिथियों द्वारा सम्पन्न हुआ।

                                                  कवि सम्मेलन में उपस्थित श्रोतागण   


सम्मानित हुए रचनाका प्राण शर्मा से उनकी ग़ज़लों को सुनाने का आग्रह किया गया, उन्होंने अपनी दो - तीन  प्रमुख रचनाएँ उपस्थितों से बाँटीं, जिनकी खूब वाह-वाह हुई खूब तालियों से उन्हें सराहा गया। प्राण शर्मा ने संस्था पदाधिकारियों का आभार भी व्यक्त किया। 

 कार्यक्रम के दूसरे सत्र का प्रारम्भ इटावा से ​आए​ कवि कुश चतुर्वेदी की कविताओं से हुआ। फिर ममता किरण, विज्ञानव्रत, तेजनारायण तेज, कविता किरण केशरीनाथ जी ने काव्यपाठ किया सभी ने श्रोताओं की खूब तालियाँ बटोरीं। पूरी सभा मानो कविताओं के आनन्द में डूबी थी। समापन की ओर बढ़ते कार्यक्रम को श्री केशरीनाथ त्रिपाठी, मंत्री श्री सिद्धू नगर शेरिफ़ ने सम्बोधित किया। कार्यक्रम का सबसे रोचक पक्ष था कि अध्यक्षता कर रहे सबसे पहले पधारे नगर के रिफ़ Councillor Ian Malcolm हिन्दी का एक शब्द समझ पाते हुए भी पूरी सतर्कता से एक दम मौन पूरे कार्यक्रम में अद्भुत धैर्य से अंत तक आस्वादन करते रहे। अपने वक्तव्य में उन्होने कहा कि अंग्रेजी के कार्यक्रमों में बीच में तालियाँ प्रतिक्रियाएँ (वाह वाह आदि) नहीं बोली जातीं, किन्तु इस कार्यक्रम में  श्रोताओं की निरन्तर प्रतिक्रियाएँ, ठहाके आदि ने उन्हें कार्यक्रम की भाषा समझ पाने के बावजूद कार्यक्रम को समझ पाने में सहायता की और वे निरन्तर उनके माध्यम से रचनाकारों को समझते रहे। संस्था की ओर से भारत से पधारे कवियों को भेंटस्वरूप उपहार आदि देकर उनका सत्कार किया गया। हरमिन्दर दुआ द्वारा धन्यवाद ज्ञापित करने के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम के प्रथम सत्र का संचालन रवि महाजन द्वारा तथा ​कवि सम्मेलन​ का संचालन जुगनू महाजन द्वारा सम्पन्न हुआ। आयोजन के उपरान्त अल्पाहार की व्यवस्था भी संस्था द्वारा की गई थी। 

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16 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

प्राण साहब की सभी ग़ज़लें जीवन दर्शन लिए, सहज ओर सरल भाषा में दिल को छूती हुई गुज़र जाती हैं ... शायद यही सादगी उनकी शक्सियत में है जो गज़लों के माध्यम से बह उठती है ...
आभार इतनी सारी लाजवाब ओर खूबसूरत गज़लों का ...

vandana gupta ने कहा…

कौन है दोस्त , है सवाल मेरा कौन दुश्मन है ये सवाल नहीं
काश , हमदर्द भी कोई होता दोस्तों का यहाँ अकाल नहीं हो भले ही सूना - सूना कोई आँगन ढूंढ लेता है परिंदा दाना - दाना
कुछ न कुछ तो खूबियाँ होंगी कि अब भी याद करते हैं सभी बीता ज़माना
लेना तो आसान होता है किसी से दोस्त , मुश्किल होता है कर्ज़ा चुकाना

हमेशा की तरह बेहद उम्दा गज़लें ………… सरल शब्दों में गहरी मार करते शेर एक से बढकर एक हैं ज़िन्दगी की सच्चाइयों से भरे दिल में उतर जाते हैं।

vandana gupta ने कहा…

कौन है दोस्त , है सवाल मेरा कौन दुश्मन है ये सवाल नहीं
काश , हमदर्द भी कोई होता दोस्तों का यहाँ अकाल नहीं हो भले ही सूना - सूना कोई आँगन ढूंढ लेता है परिंदा दाना - दाना
कुछ न कुछ तो खूबियाँ होंगी कि अब भी याद करते हैं सभी बीता ज़माना
लेना तो आसान होता है किसी से दोस्त , मुश्किल होता है कर्ज़ा चुकाना

हमेशा की तरह बेहद उम्दा गज़लें ………… सरल शब्दों में गहरी मार करते शेर एक से बढकर एक हैं ज़िन्दगी की सच्चाइयों से भरे दिल में उतर जाते हैं।

Usha Raje Saxena ने कहा…

नॉटिंघम की संस्था 'काव्य-रंग' ने आदरणीय प्राण शर्मा जी को सम्मानित कर स्वयं को भी गौरवान्वित किया है. भाई प्राण शर्मा जी और जया जी दोनों ही बधाई के पात्र हैं. आपने वातायन में उन्हें जो कवरेज दिया है वह वस्तुतः उनके व्यक्तित्व के लिए आदर सूचक है. प्राण जी के ये शेर वक़्त की सच्चाइयों को किस करीने से व्यक्त करते है....
'हम कह आए खरी खरी बातें, बाद में किस्से बने होंगे.'
'डाल आए रोटियों को वो, गलियों के कुत्ते लड़े होंगे'



Usha Raje Saxena ने कहा…

नॉटिंघम की संस्था 'काव्य-रंग' ने आदरणीय प्राण शर्मा जी को सम्मानित कर स्वयं को भी गौरवान्वित किया है. भाई प्राण शर्मा जी और जया जी दोनों ही बधाई के पात्र हैं. आपने वातायन में उन्हें जो कवरेज दिया है वह वस्तुतः उनके व्यक्तित्व के लिए आदर सूचक है. प्राण जी के ये शेर वक़्त की सच्चाइयों को किस करीने से व्यक्त करते है....
'हम कह आए खरी खरी बातें, बाद में किस्से बने होंगे.'
'डाल आए रोटियों को वो, गलियों के कुत्ते लड़े होंगे'

Usha Raje Saxena ने कहा…

नॉटिंघम की संस्था 'काव्य-रंग' ने आदरणीय प्राण शर्मा जी को सम्मानित कर स्वयं को भी गौरवान्वित किया है. भाई प्राण शर्मा जी और जया जी दोनों ही बधाई के पात्र हैं. आपने वातायन में उन्हें जो कवरेज दिया है वह वस्तुतः उनके व्यक्तित्व के लिए आदर सूचक है. प्राण जी के ये शेर वक़्त की सच्चाइयों को किस करीने से व्यक्त करते है....
'हम कह आए खरी खरी बातें, बाद में किस्से बने होंगे.'
'डाल आए रोटियों को वो, गलियों के कुत्ते लड़े होंगे'

Unknown ने कहा…

प्राण जी की सभी गज़लों मे कथ्य उच्चकोटि का है, शिल्प के बारे मे उनकी रचना पर टिप्पणी करने की योज्ञता मुझमे नहीं है। चंदेल जी का लेख भी सच्चाई से भरा अच्छा लगा।

ashok andrey ने कहा…

प्रिय भाई चंदेल तुमने भाई प्राण शर्मा जी की नौं गजलों को पोस्ट करके पड़ने का जो मौका दिया है अच्छा लगा उसके लिए तुम्हें धन्यवाद, उनकी हर गजल कुछ न कुछ कहती हुई प्रतीत हुई और पूरे समय बांधे रखने में सक्षम हैं-
कुछ न कुछ तो खूबियाँ होंगी कि अब भी
याद करते हैं सभी बीता जमाना
तथा
आंधी में दीपक बुझे होंगें
जिन घरों के दरवाजे खुले होंगे.
बहुत सुन्दर,बधाई भाई प्राण शर्मा जी को इतनी अच्छी गजलों के लिए.
संस्था काव्य रंग द्वारा श्री प्राण जी को तथा प्रो.हरमिंदर दुआ जी को सम्मानित होने पर मैं अपनी और से बधाई देता हूँ.
भाई चंदेल तुमने जो आज की राजनितिक व् सामाजिक माहौल पर अपने लेख में चित्रित किया है उसे पड़ कर मन दुख से भर उठा ,आज हम कहा आ गए हैं और कहाँ पहुंचेगे पता नहीं.महात्मा गाँधी जी अगर आज होते पता नहीं इस दुर्दशा पर क्या कहते.

Udan Tashtari ने कहा…

प्राण साहब की गज़लें पढ़कर आनन्द सागर में गोता लगाया. उनको और कविता जी कोबहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.

’काव्य रंग’ संस्था के बारे में जानकर अच्छा लगा!!

Udan Tashtari ने कहा…

प्राण साहब की गज़लें पढ़कर आनन्द सागर में गोता लगाया. उनको और कविता जी कोबहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.

’काव्य रंग’ संस्था के बारे में जानकर अच्छा लगा!!

नीरज गोस्वामी ने कहा…

सीधे सादे सरल शब्दों में गहरी बात कहने का सलीका अगर सीखना हो तो प्राण साहब की ग़ज़लें पढनी चाहियें .मैंने जीवन में उनसे बहुत कुछ सीखा है . ग़ज़ल लेखन में तो वे मेरे गुरु रहे हैं . उनकी ग़ज़लें जीवन के घूसर और इंद्र धनुषी रंगों से भरपूर होती हैं .उन्हें जितनी बार भी पढो मन नहीं भरता .उनका सम्मान सच्ची अच्छी ग़ज़ल का सम्मान है .
एक साथ रन साहब की इतनी साड़ी ग़ज़लें पढ़ कर लग रहा है जैसे कोई खज़ाना हाथ लग गया है .हम को उनकी ग़ज़लें पढवाने के लिए आपका दिल से आभार।

नीरज

vijay kumar sappatti ने कहा…

प्राण शर्मा जी ने ग़ज़ल की दुनिया को अपने अस्तित्व से चार चाँद लगाए है . उनकी गज़ले , इस युग की और हमारे समय की बेहतरीन गज़लों में से एक है .

किस किस शेर की तारीफ करे.. हर शेर उम्दा है , हर ग़ज़ल शानदार.

कभी कभी तो सोचता हूँ की पिछली ग़ज़ल ज्यादा अच्छी थी तो हमेशा प्राण साहेब कुछ नया लेकर आते है और मैं फिर स्तब्ध रह जाता हूँ .... उनके हुनर के आगे .

उन्हें मेरा सलाम !!!

विजय

बलराम अग्रवाल ने कहा…

'हम और हमारा समय' में आपका विश्लेषण जबर्दस्त है। क्या आपको नहीं लगता कि वर्तमान संविधान में अपराधियों ने अनेकानेक छिद्र तलाश लिए हैं और इसकी पुन: समीक्षा होनी चाहिए? प्राण शर्मा जी की ग़ज़लें हमेशा की तरह मन को मोहने वाली हैं। इनमें पहली ग़ज़ल का पहला शे'र--'काँटों पर भी जरा निखार आय। काश ऐसी कभी बहार आये॥' हुज़ूर, इन दिनों तो शैतान की दुआ से ऐसी ही बहार से इंसानियत गुज़र रही है! तथा, 'नादान दोस्तो, सुनो ये बात ध्यान से। सोना निकलता है कहाँ कोयले की खान से?' ठीक कहा सर, कोयले खान से तो हीरा निकलता है!!(आ॰ प्राण जी, कभी-कभी बड़े भाइयों से भी मज़ाक करने का मूड होता है, इसीलिए इन्हें कोट किया है,कृपया अन्यथा न लें।)। 'आदमी दुश्मन है माना आदमी का। आदमी का दोस्त फिर भी आदमी है॥'की सकारात्मकता का जवाब नहीं।

PRAN SHARMA ने कहा…

प्रिय रूप जी , मैं आपका आभारी हूँ कि आपने मेरी ग़ज़लों को बड़ी आत्मीयता से

लगाया है। मैं उन सभी महानुभावों का शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने बेबाक़ टिप्पणियों

की हैं। शुभ कामनाएँ

Shashi Padha ने कहा…

प्राण जी की ग़ज़लें जितनी बार पढ़ें एक नया अर्थ , एक नया जीवन दर्शन मिलता है | एक -एक शेर में कबीर की साखी पढ़ने जैसा अनुभव होता है | आभार ऐसी सुन्दर प्रस्तुति के लिए | उन्हें एक बार फिर से सम्मान के लिए हार्दिक बधाई |

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

प्राण शर्मा जी को पढना हर बार जैसे ज़िंदगी का नया पाठ सीखना है. एक साथ इनकी १० गज़लें पढना बहुत अच्छा लगा. सम्मान के लिए प्राण शर्मा जी को हार्दिक बधाई.