मंगलवार, 8 सितंबर 2009

आलेख

फ्योदोर मिखाइल दॉस्तोएव्स्की


रूपसिंह चन्देल

उन्नीसवीं शताब्दी के रूसी लेखक फ्योदोर मिखाइलोविच दोस्तोएव्स्की न केवल महान रचनाकार थे, बल्कि वह एक असाधरण व्यक्ति और प्रेमी भी थे। उनका सम्पूर्ण जीवन उथल-पुथलपूर्ण था और उसके लिए परिस्थितियों के साथ वह स्वयं भी जिम्मेदार थे।दोस्तोएव्स्की के विषय में यह कहा जाता है कि वह मनोमुग्धकारी कथाकार थे। उनके उपन्यासों ने उनकी मनोवैज्ञानिक अंतदृ‍र्ष्टि और दार्शनिक गहनता के कारण आधुनिक पाठकों में उन्हें प्रिय बना दिया था। वे अनूठे कथानकों, विलक्षण पात्रों, अविस्मरणीय स्थितियों और आश्चर्यजनक अंतो से परिपूर्ण हैं। फिर भी, उनका कोई भी कार्य शायद ही इतना चौंकानेवाला हो, जितना उनका स्वयं का जीवन… विशेषरूप से वेश्याओं, आदर्शवादी विवाहिता महिलाओं, आकर्षक और स्वतंत्र-उन्मुक्त औरतों और कामुक युवतियों के साथ बिताया गया उनका जीवन था। यही नहीं, जुआ उनकी विशेष कमजोरी था।दोस्तोएव्स्की की दूसरी पत्नी अन्ना और उनकी पुत्री ल्यूबोव ने उनके विषय में लिखते हुए ऐसे अनेक तथ्यों के उल्लेख से अपने को बचाया जो उस महान लेखक के जीवन पर नकारात्मक प्रकाश डालते। उन्होंने दोस्तोएव्स्की की छवि एक पवित्र और सच्चरित्र व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया। यही नहीं, अन्ना ने स्वयं को उनके कृष्णपक्ष के उल्लेख से बचाने के साथ ही उनके पत्रों और अन्य दस्तावेजों के अनेक उन अंशों पर काली स्याही पोत दी जिन्हें वह खतरनाक, लज्जास्पद और आपत्तिजनक मानती थी। इसके अतिरिक्त दूसरों से अपने को ‘रिजर्व’ रखने की दोस्तोएव्स्की की प्रकृति ने भी किसी हद तक हम तक पहुँचने वाली उनकी जटिलताओं और रत्यात्मक अनुभवों की झूठी तस्वीर प्रस्तुत की। अपने पत्राचारों, और यहॉं तक कि वार्तालाप में, वह अपने अंतरंग विचारों और कार्यों के प्रति इतनी सावधानी बरतते थे कि अनेक दृष्टान्तों में हमें सचाई की केवल एक आकस्मिक झलक ही प्राप्त होने का अवसर प्रदान करते हैं। उन्होंनें लंबे समय तक अपनी मिरगी की बीमारी को मित्रों से छुपाए रखा था। एक उदाहरण पर्याप्त है। उनके मित्र डा0 स्टिपेन द्मित्रीएविच’ यनोव्स्की ने एक स्थान पर लिखा था, ‘‘ जब हम गहरे मित्र बन गये थे, दोस्तोएव्स्की ने अपने कष्टकर और उदास बचपन की स्थितियों के विषय में बताया था। अपनी माँ, बहनों और भाइयों के विषय में वह बहुत गहन भावुकता के साथ बताते थे। लेकिन अपने पिता के विषय में बात करना पसंद नहीं करते थे और अनुरोध करते थे कि उनके विषय में कोई प्रश्न न करूं।" (स्टीपेन दिमत्रीएविच यनोव्स्की ( 1817 - 1897 ) गृहमंत्रालय के सरकारी मेडिकल वितरण विभाग में डाक्टर था, जहाँ से 1871 में उसने अवकाश ग्रहण किया था। 1877 में वह स्विट्जरलैण्ड चला गया था जहाँ वह मृत्युपर्यन्त रहा था। दोस्तोएव्स्की से उसकी मुलाकात 1842 में हुई थी। जल्दी ही वे अच्छे मित्र बन गये थे।)
कहना अनुचित न होगा कि दोस्तोएव्स्की एक रहस्यमय व्यक्ति थे। युवावस्था में (साइबेरिया में सश्रम कारावास की सज़ा के लिए भेजे जाने से पहले) बारह वर्षीया एक बच्ची के साथ उनके बलात्कार की घटना का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। लेकिन उनके जीवन के रहस्यमय पक्षों और उनके चर्चित तीन प्रेम प्रसंगों (मारिया, अपेलिनेरिया और अन्ना) के विषय में उनके जीवनीकारों और अन्य विद्वानों ने पर्याप्त प्रकाश डाला है। वह एक ऐसे दुर्धर्ष लेखक भी थे जो दो उपन्यासों पर एक साथ कार्य करना चाहते थे। जोसेफ फ्रैंक और डेविड आई गोल्डस्टीन के अनुसार ‘ दि गैम्बलर’ और ‘ क्राइम एण्ड पनिषमेण्ट’ वे उपन्यास थे और तुर्गनेव का उपहास उड़ाते हुए वह कहते कि ‘‘ वह यह सोचकर ही पागल हो जायेगा।" यहाँ यह विचारणीय है कि तुर्गनेव वह व्यक्ति थे जिन्होंनें दोस्तोएव्स्की की आर्थिक सहायता की थी। यह भी कम आश्चर्यजनक बात नहीं कि लियो तोल्स्तॉय और दोस्तोएव्स्की समकालीन होते हुए भी एक दूसरे से मिलने से बचते रहे। लेकिन इससे अधिक महत्वपूर्ण और विचारणीय बात यह है कि ऐसे कौन-से कारण रहे जिससे दोस्तोएव्स्की का जीवन पतनोन्मुख बना।
फ्योदोर दोस्तोएव्स्की पाँच भाई और दो बहनें थे। परिवार में पिता का कठोर अनुशासन था जो मास्को के ‘मारिन्स्की’ अस्पताल में डाक्टर थे। वह गर्म मिजाज, चिड़चिडे़ और शंकालु स्वभाव के थे। वह अपनी पत्नी को निरंतर प्रताड़ित करते रहते थे। ऐसा माना जाता है कि पिता द्वारा माँ की प्रताड़ना से आहत और आत्मकेन्द्रित दोस्तोएव्स्की कालांतर में मिरगी की बीमारी का शिकार बन गये थे। घर में पिता का ऐसा आतंक था कि दोस्तोएव्स्की बंधुओं को किसी से प्रेम करने का अवसर युवावस्था तक नहीं प्राप्त हुआ था। उन्हें कभी-कहीं स्वयं जाने की अनुमति न थी और न ही कभी उन्हें जेब खर्च प्राप्त होता था। सत्रह वर्ष की आयु तक फ्योदोर दोस्तोएव्स्की को निजी खर्च के लिए एक भी पैसा नहीं दिया गया था। शायद यही कारण था कि जीवन में पैसों के मूल्य को वह समझ नहीं पाये थे। हजारों रूबल की रायल्टी वह पानी की तरह बहा देते थे। संकीर्णता, निरंकुशता और चिड़चिड़ाहट फ्योदोर मिखाइलोविच दोस्तोएव्स्की को अपने पिता से विरासत में प्राप्त हुई थी।दोस्तोएव्स्की की माँ की मृत्यु युवावस्था में 1837 में हो गयी थी। पिता ने फ्योदोर और उनके भाई माइकल को पीटर्सबर्ग के ‘मिलटरी इंजीनियरिंग’ कॉलेज में भर्ती करवा दिया था। यह विद्यालय उच्च शैक्षिक स्तर के लिए प्रतिष्ठित था। सीनियर छात्र फ्योदोर को प्राय: परेशान करते रहते थे। दोस्तोएव्स्की के साथ पढ़ने वाले एक छात्र कोन्स्तान्तिन त्रतोव्स्की, जो बाद में एक कलाकार और शिक्षाविद के रूप में विख्यात हुआ था, के अनुसार, ‘‘ 1838 में दोस्तोएव्स्की दुबले और बेढंगे दिखते थे, क्योंकि उनके कपड़े उनके शरीर पर बोरे की भाँति लटकते रहते थे। व्यवहार में वह चिड़चिड़े और प्रकट में परेशान दिखाई देते थे ।… वह लोगों से मिलने से बचते थे। लोगों के साथ कैसे व्यवहार किया जाये, वह यह नहीं जानते थे और महिलाओं के बीच वह बुरी तरह घबड़ा जाते थे।"
पत्नी की मृत्यु के पश्चात् डाक्टर दोस्तोएव्स्की ने नौकरी छोड़ दी थी और अपनी रखैल कैथरीन अलेक्जैण्ड्रोव्ना, जो मास्को में उनकी नौकरानी थी, के साथ गाँव जाकर रहने लगे थे, जहॉं उन्होंनें छोटी-सी जागीर खरीद रखी थी। वह अत्यधिक पीते और मामूली कारणों से कृषि-दासों और घरेलू नौकरों पर कोड़े बरसाते थे। गाँव के किसान उनसे घृणा करते थे। उन लोगों ने अलेक्जैण्ड्रोव्ना के चाचा एफिम मैक्सिमोव के साथ मिलकर डाक्टर दोस्तोएव्स्की की हत्या कर दी थी।पिता की मृत्यु ने भी फ्योदोर दोस्तोएव्स्की को गहराई तक प्रभावित किया था। अत: कहा जा सकता है कि दोस्तोएव्स्की के व्यक्तित्व निर्माण में अनेक बातें सहायक थीं। पालन-पोषण के समय पिता द्वारा संयम की शिक्षा, मर्यादित और संतुलित आदत का दबाव, माँ की मृत्यु, पिता की नशाखोरी, रखैल सौतेली
माँ, किसानों और नौकरों के प्रति पिता का क्रूर व्यवहार , किसानों की पिता के प्रति घृणा , उनके अपने प्रति लोगों का व्यवहार, ये सभी एक प्रकार से प्रारंभिक दुर्व्यवस्था के उद्भव के कारक थे और भावी भयंकर खतरे की चेतावनी इनमें छिपी हुई थी। विद्यालय जीवन काल में एक बार फ्योदोर ने अपने भाई माइकल से कहा था, ‘‘मेरे पास एक योजना है… पागल हो जाने की।"1841 में दोस्तोएव्स्की को जूनियर सेकेण्ड लेफ्टीनेण्ट बनाया गया। 1843 में वह सेकेण्ड लेफ्टीनेण्ट के रूप में स्नातक बने और उन्हें इंजीनियरिगं विभाग में सरकारी नौकरी मिल गयी थी। एक अधिकारी के रूप में उन्होंने बहुत संक्षिप्त समय ही कार्य किया। 1844 में उन्होंने अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया था। त्यागपत्र देने के बाद उन्होंने अपने भाई माइकल को लिखा था, ‘‘अपने महत्वपूर्ण वर्षों को बरबाद क्यों करूं? अब मैं स्वतंत्र हूँ। एक शैतान की भांति काम करूंगा।"दरअसल दोस्तोएव्स्की लेखक बनना चाहते थे। उन दिनों वह बाल्जाक के उपन्यासों के अनुवाद कर रहे थे और अपने उपन्यासों की योजना बना रहे थे। जीवन के प्रति बहुत ही लापरवाह थे। सदैव कर्ज में डूबे रहते थे। वह माइकल के जर्मन मित्र डा0 रीसेन्कैम्प के मकान में रहते थे। एक बार उन्हें अपने प्रकाशक से एक हजार रूबल प्राप्त हुए, लेकिन ठीक दूसरे दिन सुबह ही वह डाक्टर को आश्चर्यचकित करते हुए उससे पाँच रूबल मांग रहे थे। 1 फरवरी, 1844 को दोस्तोएव्स्की को प्रकाशक से एक और बड़ी राशि (संभवत: एक हजार रूबल) प्राप्त हुई, लेकिन शाम तक उनके पास मात्र एक सौ रूबल ही बचे थे। शेष राशि उन्होंने बिलियर्ड और डोमिनोज (ताश के एक प्रकार के खेल) में नष्ट कर दिये थे।
दोस्तोएव्स्की के अंदर प्रेम पाने की उत्कट अभिलाषा हिलोरे लेने लगी थी। अपने आत्मकथात्मक लघु उपन्यास ‘‘ह्वाइट नाइट्स" जो ‘पुअर फॉक’ के तुरंत बाद लिखा गया था और 1848 में प्रकाशित हुआ था, दोस्तोएव्स्की ने एक ऐसे नौजवान का चित्रण किया है जो राजधानी की सड़कों में प्यार के प्रतिदान की प्रतीक्षा में भटकता है। लेकिन उसका प्यार केवल कल्पना में ही होता है। दोस्तोएव्स्की महिलाओं के विषय में सोचते, लेकिन उनके सामने पड़ने पर उनसे बचने का प्रारंभ में प्रयत्न भी करते रहे थे।‘पुअर फॉक’ की सफलता से सेण्ट पीटर्सबर्ग के बंद दरवाजे दोस्तोएव्स्की के लिए खुल गये थे। इवान पानेव के घर में 15 नवम्बर, 1845 को उनका परिचय पानेव की पत्नी अवदोतिया (ईडोक्सिया) से हुआ। उन्होंने 16 नवम्बर, 1845 को माइकल को लिखा, ‘‘कल मैं पहली बार पानेव के घर गया था और मैं सोचता हूँ कि मैं उसकी पत्नी को प्यार करने लगा हूँ।"अवदोतिया ने अपने संस्मरण में लिखा था, ‘‘यह स्पष्ट था कि वह भयानक रूप से विकल और अतिसंवेदनशील युवक थे… मेरे यहाँ उपस्थित साहित्यकार किसी न किसी विवाद में दोस्तोएव्स्की को खींचकर उनके विषय में ऐसी चुभती हुई बातें करते, जिससे उनका अहम आहत होता था। वह चिड़चिड़ा उठते थे। तुर्गनेव उनमें सबसे आगे होते थे। ‘‘यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि ऐसा उस महिला की उपस्थिति में होता था जिसे वह प्यार करते थे, लेकिन जो उनके प्रति केवल अपमानजनक विनम्रता ही प्रदर्शित करती थी। शायद यही करण रहा होगा कि दोस्तोएव्स्की और तुर्गनेव के सम्बन्ध आगे मधुर नहीं रहे थे।
अधिकांश मिरगी के शिकार लोगों की भांति दोस्तोएव्स्की में वासनात्मक उत्तेजकता का आधिक्य था। देह के प्रति यह आकर्षण पानेवा के प्रति सम्मोहन के रूप में उनमें नहीं प्रकट हुआ था, बल्कि वेश्यागमन और गंदी बस्तियों में सहजरूप से उपलब्ध होने वाली महिलाओं के कारण था। लेकिन नौजवान दोस्तोएव्स्की प्रेम और शारीरिक सुख में भेद करना समझने लगे थे। संभव है कि पानेवा पर शारीरिक अधिकार पाने की असफलता उन्हें वेश्यालयों और पीटर्सबर्ग की गंदी बस्तियों की महिलाओं तक खींच ले गई हो। उन्होंने माइकल को लिखे 16 नवम्बर के पत्र में आगे लिखा था, ‘‘मैं इतना बिगड़ गया हूँ कि सामान्य ढंग से नहीं रह सकता," उन दिनों दोस्तोएव्स्की जिस समाज में विचरण करते थे, उसमें उनकी शामें प्राय: वेश्यालयों में व्यतीत होती थीं। उन्होंने स्वयं एक स्थान पर यह स्वीकार किया था कि वह अपने मित्रों के साथ रंग-रेलियाँ मनाया करते थे। यह भी विश्वसनीय नहीं प्रतीत होता कि मधुशालाओं में शामें बिताने वाले दोस्तोएव्स्की वेश्याओं से बचे कैसे रह सके थे जैसा कि उनकी पत्नी और पुत्री ने कहना चाहा था। अपने जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने ओपोचिनिन से कहा था कि वासना किस प्रकार मनुष्य को विचलित करती है और किस प्रकार वह यौनेच्छा के वशीभूत हो जाता है। उन्होंने यह भी कहा था कि देहेच्छा की मानसिक उत्तेजना स्वयं पाप से भी अधिक बदतर होती है। क्रान्तिकारी गतिविधियों के लिए अपनी गिरफ्तारी के बाद 1849 में जेल से उन्होंने माइकल को लिखा था, ‘‘ बंदी जीवन ने पूरी तरह मेरी दैहिक आवश्यकताओं, जो कि पूरी तरह परिशुद्ध नहीं थीं, को अब तक लगभग नष्ट कर दिया है।"
दोस्तोएव्स्की माइकल पेत्राशेव्स्की बुराशेविच के सम्पर्क में आये थे, जो एक क्रान्तिकारी दल का नेता था। अफवाह थी कि खुफिया पुलिस को जार के विरुद्ध एक षडयंत्र का पता चला था, जो कि एक दल समाजवाद, नागरिक अधिकारों और किसानों की मुक्ति के लिए क्रान्तिकारी गतिविधियों में संलग्न था। बीस लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें दोस्तोएव्स्की भी थे। उन्हें 23 अप्रैल 1849 गिरफ्तार करके पीटर्सबर्ग की ‘सेण्ट पीटर एण्ड पाल’ किले की एक काल कोठरी में बंद कर दिया गया था। सभी को मृत्यु दण्ड की सजा सुनाई गई थी। 22 दिसम्बर 1849 को उन्हें मृत्यु दण्ड दिया जाना था। लेकिन जार ने मृत्युदण्ड की सजा बदल दी थी। दोस्तोएव्स्की को चार वर्ष की साइबेरिया में सश्रम कारावास की सजा दी गई थी। उसकी समाप्ति के पश्चात् चार वर्षों तक उन्होंने सेना के अधीन कार्य करना था।22 दिसम्बर, 1849 के बाद दोस्तोएव्स्की ने माइकल को लिखा, ‘‘ … हां, यह पूरी तरह सच है कि मस्तिष्क जो रचनात्मकता का आदी हो, जो जीवन की उच्चतम कलात्मकता में जीता हो, और जो आत्मा की उच्चाकांक्षाओं का अभ्यस्त हो, वह मस्तिष्क मेरे स्कंध से कट गया है… ऐसा हो सकता है कि मैं कभी पेन न पकड़ सकूं ? … हाँ , यदि मेरे लिए लिखना असंभव हुआ तो मैं मर जाऊंगा। कारावास की कालकोठरी के पन्द्रह वर्ष अच्छे लेकिन हाथ में पेन हो… विदा !…।"माइकल को विदा कहने के दो दिन बाद, क्रिसमस की पूर्वसंध्या को, दोस्तोएव्स्की के पैरों में आठ पौण्ड की बेडि़यां डालकर स्लेज में बैठा दिया गया था जो एक राजनैतिक अपराधी के रूप में युरोस्लाव और निनी नावगोरोद के रास्ते दो हजार मील दूर उन्हें सश्रम कारावास हेतु साइबेरिया ले जाने वाली थी। आगामी चार वर्ष का समय उन्होनें ओमस्क बंदीगृह में कठोर सजा के रूप में काटे थे, जिसके विषय में उनका कथन था कि ताबूत का ढक्कन उन पर जड़ दिया गया था और उन्हें जीवित ही दफ्न कर दिया गया था। बंदीगृह में वह हत्यारों, चोरों, हिसंक और विक्षिप्त लोगों से घिरे हुए थे। उस भीड़ के मध्य एकाकी ही उन्होनें वह सजा काटी थी।फरवरी, 1854 में दोस्तोएव्स्की को जेल से रिहा करके सेमीपलातिन्स्क की साइबेरियन इन्फैण्ट्री रेजीमेण्ट में निजी तौर पर कार्य करने के लिए भेज दिया गया था। कुछ दिनों बाद उन्हें कस्बे के एक छोर में वीरान स्थान में एक निजी झोपड़ी किराये पर लेकर रहने की अनुमति मिल गयी थी। उनकी मकान मालकिन एक सैनिक की विधवा थी और उसकी प्रतिष्ठा खराब थी। उसकी छोटी बेटी अत्यंत सुन्दर थी और दोस्तोएव्स्की के उसके साथ संबन्ध स्थापित हो गये थे। कठोर दण्ड और संयम की बाध्यता के पश्चात् अत्यन्त सम्मोहक रूप से वह महिलाओं की ओर खिंचे थे और हर नयी महिला से उनकी मुलाकात का उन पर गहन प्रभाव पड़ता था। उन्होंने सत्रह वर्षीया लिजान्का नेवारोतावा से भी मित्रता गांठ ली थी, जो बाजार में एक स्टॉल पर सफेद पाव रोटी बेचती थी। सेमीपलातिन्स्क आने के कुछ महीनों बाद वह अलेक्जेण्डर इसाएव और उसकी पत्नी मारिया से मिले थे। इसाएव उन दिनों बेकार था। शराब ने उसे बर्बाद कर दिया था। खराब स्वास्थ्य और कमजोर इच्छाशक्ति के कारण शराबियों और बदमाशों का साथ उसे भाने लगा था। दोस्तोएव्स्की ने इसाएव से मित्रता कर ली थी। वह मारिया के प्रति आकर्षित थे। मारिया का पति घर की मधुशाला में रहना पसंद करता था, या नशे में धुत्त दीवान पर पसरा होता था, जबकि मारिया फ्योदोर के साथ अकेली होती थी। 1855 में इसाएव को कर-निर्धारक के रूप में सेमीपलातिन्स्क से पाँच सौ मील दूर कुजनेत्स्क में पुन: नौकरी मिल गयी थी। कुछ समय पश्चात् ही इसाएव की मृत्यु हो गयी थी। दोस्तोएव्स्की मारिया के प्रति अत्यधिक आसक्त थे और उससे विवाह करना चाहते थे। अतंत: मारिया विवाह के लिए तैयार हो गयी थी। लेकिन मारिया के साथ उनका वैवाहिक जीवन सफल नहीं रहा था। इसके अनेक कारण थे,
जिनके विषय में मेरी पुस्तक (‘दॉस्तोएव्स्की के प्रेम’ संवाद प्रकाशन, आई–499, शास्त्रीनगर, मेरठ – 250 004, पृ0 232, मूल्य : 200/– पेपर बैक और 350/– हार्ड बाउण्ड) में वर्णन किया गया है।मारिया के जीवित रहते ही दोस्तोएव्स्की जिस युवती के प्रेम में पड़ गये थे- वह थी अपोलिनेरिया। वह उसके प्रति भी चुम्बकीय रूप से आकर्षित हुए थे, लेकिन वहाँ भी वह असफल रहे थे। इस असफलता के लिए वह अपनी बीमारियों को दोष देते थे। वह मिरगी और बवासीर का शिकार तो थे ही… अस्थमा का प्रकोप भी कभी-कभी उन्हें झेलना पड़ता था। इतना सब होने के बावजूद जुआ और शराब की लत से वह अपने को मुक्त नहीं कर पाये थे। प्राय: कर्जदार रहते थे।मारिया की मृत्यु और अपोलिनेरिया के असफल प्रेम के बाद वह अन्य युवतियों के प्रति भी आकर्षित हुए थे, जिनमें उनके मित्र डाक्टर स्टीपेन द्मित्रीएविच यनोव्स्की की पत्नी ए. आई शुबर्ट भी थी, लेकिन उन्हें वहाँ भी सफलता नहीं मिली थी। इससे पहले वह मार्था ब्राउन नाम की युवती के साथ लगभग डेढ़ वर्ष तक रहे थे। उनके विषय में उनके मित्र और उनके प्रथम जीवनीकार एन. एन. स्त्राखोव ने लियो तोल्स्तॉय को 28 नवबंर,1883 के अपने पत्र में लिखा था कि, ‘‘वह (दोस्तोएव्स्की) पाशविक कामुकता वाले व्यक्ति थे।" यहां बताना अनुपयुक्त न होगा कि समकालीन होते हुए भी तोल्स्तोय और दॉस्तोएव्स्की एक दूसरे कभी नहीं मिले थे। दॉस्तोएव्स्की की मृत्यु पर तोल्स्तोय ने लिखा – ‘‘मेरा कितना जी चाहता है कि दॉस्तोएव्स्की के बारे में मैं जो कुछ महसूस करता हूँ वह सब बयान कर सकूं।…मैं उनसे कभी नहीं मिला और न ही उनसे मेरा कभी कोई संपर्क रहा, लेकिन उनके मर जाने के बाद मेरी समझ में आया कि वह मेरे कितने निकट, कितने प्रिय और मेरे लिए कितने आवश्यक व्यक्ति थे। … मैं उन्हें अपना मित्र समझता था और मैनें सोचा कि यह संयोग की ही बात है कि मैं उनसे अब तक नहीं मिल सका, पर कभी न कभी अवश्य मिलूंगा। एक दिन दोपहर का भोजन करते समय- मैं अकेला ही भोजन कर रहा था, क्योंकि मुझे देर हो गयी थी- मैंने पढा : वह मर गये। मेरे अंदर जैसे कोई आधार सहसा टूट गया। मुझे गहरा आघात पहुंचा, और फिर यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो गयी कि वह मुझे कितने प्रिय थे, और मैं रो पड़ा, और अब तक रो रहा हूँ।"
जीवन के पैंतालीसवें वर्ष में अन्ना ने उनके जीवन में प्रवेश किया था। अन्ना तब बीस वर्ष की थी। ज़िन्दगी भर वह इस कुंठा का शिकार रहे कि वह अन्ना को दैहिक सुख प्रदान करने में अक्षम थे। इस कारण वह पूर्वापेक्षा अधिक ही चिड़चिड़े हो गये थे। लेकिन वास्तविकता बिल्कुल इसके विपरीत थी। अन्ना उनके प्रति पूर्णरूप से समर्पित थी। मारिया और अपोलिनेरिया ने गृहस्थ जीवन के प्रति जहां अरुचि दिखाई थी, वहीं अन्ना ने एक सद्गृहणी के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वाह किया था। उसने पति को नियंत्रित करने का प्रयत्न किया था। वह कितना सफल रही थी, कहना कठिन है। लेकिन उसने उनकी पुस्तकों के प्रकाशन, रॉलल्टी और विवरण की व्यवस्था संभाल ली थी। एक समय ऐसा आया जब उनके सम्पूर्ण साहित्य के, जिसमें से अधिकांश गार्जियन के पास था, प्रकाशन का कार्य उसने स्वयं संभाल लिया था। अन्ना से लियो तोल्स्तोय की पत्नी सोफिया अन्द्रेएव्ना ने प्रेरणा ग्रहण करते हुए तोल्स्तोय का साहित्य स्वयं प्रकाशित करना प्रारंभ कर दिया था। यद्यपि दॉस्तोएव्स्की और तोल्स्तोय आजीवन एक दूसरे नहीं मिले थे लेकिन सोफिया अन्द्रेएव्ना से दॉस्तोएव्स्की की अच्छी मित्रता थी। अन्ना ने अपने संस्मरणों में यह उल्लेख किया है कि सोफिया प्राय: दॉस्तोएव्स्की से मिलने आया करती थीं और उनसे सलाहें भी लिया करती थीं।कहना उचित होगा कि अन्ना ने दॉस्तोएव्स्की के अराजक जीवन को किसी हद तक संभाल लिया था।

’दॉस्तोएव्स्की के प्रेम’

संवाद प्रकाशन

मुम्बई/मेरठ

4 टिप्‍पणियां:

Dr. Sudha Om Dhingra ने कहा…

बहुत खूब रूप भाई....
अनुवाद कहीं भी महसूस नहीं हुआ, आप की रचना लगी.
बधाई.

रूपसिंह चन्देल ने कहा…

Sudha ji,

Yeh anuvad hai bhi nahin. Yed 'Dostoevsky ke prem' ki bhumika hai aur apane sampadakiy 'Ham aur hamara samay' ke antargat maine isiliye spasht kiya hai ki pathak galat soch lete hain ki Dostoevsky ke prem bhi meri anudit pustak hai. Yeh pustak to aapane 'Pustak Org.' ke madhyam se manga rakhi hai aur yadi apne use padhana shuru kiya hai to is bhumika se bhi avashya gujari hongi. Yaa abhi tak shuru hi nahin kiya hoga. Ek bar fir batana chahunga ki yeh meri maulik kriti hai jis par sare rachanatmak kaam chhod kar maine pura 1 saal lagaya thaa, yeh baat bhi 'Ham aur hamara samay' mein kahi hai.

Khair,

Saadar,

Chandel

Dr. Sudha Om Dhingra ने कहा…

रूप जी मेरी एक समस्या है, मुझे टिप्पणी छोड़नी नहीं आती उसी में कई बार गड़बड़ हो जाती है. मैं तो जानती हूँ कि यह आप का कार्य है. पुस्तक मेरे पास आ गई है, अभी एक बड़ी सी पुस्तक पढ़नी शुरू की हुई है, उसे समाप्त कर रही हूँ. उसे पढ़ कर आप को बताऊंगी ज़रूर. टिप्पणी जो ठीक तरह से पोस्ट नहीं हुई वह इस तरह से है--

बहुत खूब रूप भाई....
कैसे कोई सोच सकता है कि यह अनुवाद है.......
अनुवाद कहीं भी महसूस नहीं हुआ, आप की रचना लगी.
बधाई.
हाँ,cut & paste करते समय लापरवाही हुई , क्षमा प्रार्थी हूँ.
मेरे एक सीनियर बहुत सी रचनाओं की तारीफ करते हैं पर टिप्पणी नहीं छोड़ते. जब भी पूछती हूँ कि दादा आप टिप्पणी क्यों नहीं छोड़ते ? उनका हमेशा जवाब होता है कि जल्दी में छोड़ी गई टिप्पणी नुकसान कर सकती है.

सुरेश यादव ने कहा…

भाई चंदेल जी,रुसी साहित्यकार दोस्तोस्व्सकी के जीवन पर शोध परक कथ्य प्रस्तुत किया है,उनके जीवन का ऐसा सत्य है जो लेखक को लेखक बनाता है.आप को हार्दिक बधाई.सुधा जी की टिप्पडी अच्छी थी सफाई में पुनः पूरी टिप्पडी न होती तो अच्छा था.
m-9818032913