बुधवार, 26 मई 2010

कविता


पंजाबी कविता

[देवेन्द्र सत्यार्थी जी के जन्म दिवस (२८ मई २०१०) पर विशेष ]


कोट उदास है

-तरसेम

हिंदी रूपांतर : सुभाष नीरव

खूंटी पर टंगा कोट उदास है
कि मेरे अंदर का आदमी किधर गया
जिसके कंधों पर
मैं खस्ता हाल में भी था

मैंने तो उस आदमी के साथ
धरती के हर कोने को छुआ
हर आवाज़ को सुना
हर गीत को पहचाना
मैंने उसकी हँसी में भी नमी देखी है
मैं उसके संग
लाखों कोस पैदल चला हूँ
उसके हर सांस के साथ धड़का हूँ
वह धड़कन सरीखा व्यक्ति कहाँ गया ?
‘भदौड़’ की मिट्टी में खेलता
लाहौर की सड़कें नापता
किसी शरारती बच्चे की तरह
दिल्ली की बुक्कल में आ घुसा
जहाँ ग़ालिब भी चलता फिरता था
बावा1 भी यहाँ की तेज धूपों का शिकार हो गया
हरिभजन2 तो अभी राह में ही होगा
टगौर, बेदी, मंटो का प्यारा कहाँ गया ?

वह तो चलता-फिरता दरख़्त था
जो भी करीब आया, उसे छांव दी
स्वयं धूप में जला
कोहरे में ठिठुरा
दु:खों के मौजू उड़ाता
दाढ़ी वाला ॠषि कहाँ गया ?

सच, फ़कीर था वह तो
रिज़क कैसे बनता है
कहाँ जानता था वो
यह तो ‘लोकमाता’3 जानती थी
धुन का पक्का
लोक गीत खोजता-खोजता
लोक गीत ही बन गया
भला तुम ही बताओ
कभी लोक गीत भी मरा करते हैं…
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1-बावा बलवंत(पंजाबी कवि),
2-डा0 हरिभजन सिंह(प्रसिद्ध पंजाबी कवि)
3-सत्यार्थी जी की पत्नी जिसे लोग ‘लोकमाता’ कहकर बुलाया करते थे।
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जन्म : 21 जुलाई 1967, बरनाला(पंजाब)।

शिक्षा : एम.ए.(पंजाबी,हिंदी), बी.एड.

कृतियाँ : दो कविता संग्रह -'खुली अक्ख दा सुपना' और 'माया', बाल कहानी संग्रह-'हरी किश्ती' । इसके अतिरिक्त 'महाकवि संतोख सिंह : जीवन ते रचना', साक्षात्कार की दो पुस्तकें - 'मंथन' और 'रू-ब-रू', तीन संपादित पुस्तकें - 'सतरां दे रंग(कविता)', 'अदबी मुहांदरे(लेखकों के पैन स्कैच)', 'साहित सिरजणा और समीखिया(डा. सतिंदर सिंह नूर की मुलाकातें)'। लगभग दस पुस्तकों का हिंदी से पंजाबी व पंजाबी से हिंदी में अनुवाद।

संप्रति : अध्यापन।
संपर्क : बी-IV/814, दशमेश गली, गांधी आर्य हाई स्कूल के पास,
बरनाला-148101 (पंजाब)
फोन : 098159-76485
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वरिष्ठ कथाकार , कवि और अनुवादक सुभाष नीरव का जन्म २७ दिसम्बर, १९५३ को मुरादनगर, गाजियाबाद (तब मेरठ) में हुआ था.

* नीरव के अब तक दो कविता संग्रह, तीन कहानी संग्रह, लघुकथा संग्रह, बाल कहानी संग्रह सहित सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं.

** पंजाबी भाषा से अब तक पन्द्रह पुस्तकों का अनुवाद, जिनमें ’काला दौर’, ’कथा पंजाब-२’, ’पंजाबी की चर्चित लघुकथाएं’, ’रेत’ (हरजीत अटवाल) और ’छांग्या रुक्ख’ ( वरिष्ठ पंजाबी कवि और पत्रकार बलबीर मधोपुरीI की आत्मकथा ) अधिक चर्चित. आलोचकों ने ’छांग्या रुक्ख’ को भारतीय भाषाओं में सर्वश्रेष्ठ दलित आत्मकथा माना है.
संप्रति :भारत सरकार के परिवहन मंत्रालय में अनुभाग अधिकारी.
ईमेल : subhashneerav@gmail.com
Mob. No. 09810534373

3 टिप्‍पणियां:

PRAN SHARMA ने कहा…

Roop jee,Aapne Devendra satyarthee
ko yaad karke bade punya kaa kaam
kiyaa hai.Kash aap aur Subhash Neerav kee tarah kuchh aur sampadak
bhee hote jo unke janm divas par
kuchh likhte - likhaate.Janaab
tarsem kee unpar kavita badee steek
hai.Anuvaad khoob hai

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सन्तुलित शब्दों मे एक सार्थक आलेख है। आपसे शत प्रतिशत सहमत हूँ कि लोग अधुनिक युग मे भी अठाहर्वीं सदी की सोच रखते हैं और नारी की स्थिती का सहीाँकलन है। बधाई इस आलेख के लिये। बहुत दिनों बाद आने के लिये क्षमा चाहती हूँ। आभार्

ashok andrey ने कहा…

Tarsem jee ki likhi tatha Subhash jee dwara hindi me rupantarit kavita KOt oodas hai padi bahut achchhi lagi, badhai