मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

कविताएं

(सभी चित्र : जी मनोहर)


सुभाष नीरव की तीन कविताएँ


नाखून

इन दिनों
नाखून
मेरी कविता का
हिस्सा होना चाहते हैं।

इस पर
मेरे कवि मित्र हँसते हैं
और कहते हैं-
कविता की संवेदन-भूमि पर
नाखूनों का क्या काम ?
नाखूनों पर बात हो सकती है
कविता नहीं।

जैसे
यह जानते हुए भी कि
नाखून रोग का कारण होते हैं
फिर भी
फैशनपरस्त और पढ़ी-लिखी स्त्रियों को
बहुत प्रिय होते हैं नाखून।

या फिर
खाज में खुजलाना
बेमजा होता है
बगैर नाखूनों के।

अधिक कहें तो
एक निहत्थे आदमी का
हथियार होते हैं नाखून
जो मौका मिलने पर
नोंच लेते हैं
दुश्मन का चेहरा।

पर दोस्तो
मेरे सामने एक ओर नाखून हैं
और दूसरी तरफ
धागे की गुंजलक-सा उलझा मेरा देश
और हम सब जानते हैं
गांठों और गुंजलकों को खोलने में
कितने कारगर होते हैं नाखून।
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नाशुक्रे हम

राहों ने कब कहा
हमें मत रोंदो
उन्होंने तो चूमे हमारे कदम
और खुशामदीद कहा।

ये हम ही थे
जो पैरों तले उन्हें रौदते भी रहे
और पहुंचकर अपनी मंजिल पर
नाशुक्रों की तरह भूलते भी रहे।
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ठोकरें

पहली ठोकर
उसके क्रोध का कारण बनी ।

दूसरी ने
उसमें खीझ पैदा की ।

तीसरी ठोकर ने
किया उसे सचेत ।

चौथी ने भरा आत्म-विश्वास
उसके भीतर ।

अब नहीं करता वह परवाह
ठोकरों की !
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सम्पर्क :
372, टाइप -4, लक्ष्मीबाई नगर
नई दिल्ली-110023
मेल :subhashneerav@gmail.com

4 टिप्‍पणियां:

PRAN SHARMA ने कहा…

SUBASH NEERAV JI KEE LEKHNI KAA
PRASHANSAK HOON MAIN . VE PADYA
AUR GADYA DONON LIKHNE KE
MAAHIR HAI . EK AUR BAAT KE VE
MAAHIR HAI . PANJABEE BHASHA KAA
HINDI MEIN ANUWAAD KARNE KAA UNKAA KOEE SAANEE NAHIN HAI . ANUWAADIT
RACHNAA HINDI KEE HEE LAGTEE HAI
UNKEE IN KAVITAAON KEE TAREEF MEIN
YAHEE KAHUNGA - UMDA , BAHUT UMDA !

Devi Nangrani ने कहा…

Sabse pahle Subash Neerav ji ko "nashukre " kavita ke liye badhayi pesh hai. Choti Rachna apne aap mein sampoorn arth liye hue.
Anarth vahan hota hai jahan arth ko badslooki v badsoorthi se pesh kiya jaata hai. Jin Blogs ki upasthiti kharij hui hai..ve sahitya ke sthamb the jahan anudit any bhashaon ka sahitya padhne ko mil jaata hai.
Roopsinh Chandel ji ko is prastutikaran ke liye badhayi.

बलराम अग्रवाल ने कहा…

तुम्हारी 'नाखून' ने मुझे चौंकाया। मैं सोच भी नहीं सकता था कि नाखूनों के इस उपयोग का इस्तेमाल कविता में नितांत खूबसूरती से हो सकता है। दूसरी कविता आदमी के कृतघ्न हो जाने का संकेत करती है तो तीसरी तुम्हारे सहनशील और अनुभवी हो उठने की। मुझ-जैसा गैर-अनुभवी और जनवादी-नारेबाज इसका अन्त यों करता: अब नहीं करता कोई भी/जुर्रत/उसे ठोकर मारने की।
तुम्हारी सधी-सोच को सलाम।

rachana ने कहा…

nakhun pr kavita kabhi soch nahi sakti thi pr aap ki lekhni ko salam
thokar kitni sahi baat kahi aapne
aap sada hi achchha likhte hai kahani ho ya kavita
saader
rachana