शनिवार, 4 जून 2011

हाइकु




सुभाष नीरव के दस हाइकु

खूब उलीचा
दुख न हुआ कम
समन्दर –सा।
0

चंचल मन
उड़ने को व्याकुल
इक पंछी-सा।
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काँच-सा रिश्ता
टूट कर बिखरा
जुड़ न पाया।
0

जपते माला
रात दिन लेकिन
दिल है काला।
0

थका सूरज
सो गया ओढ़कर
काली चादर।
0

उगा सूरज
समेट के चादर
भागा अँधेरा।
0

घर बनाये
सागर तट पर
फिर भी प्यासे।
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पंछी ये चाहें
उड़ान में भर लें
सारा आकाश।
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बतला गए
मन की व्यथा सब
भीगे नयन।
0

छिपाएं भी क्या
जीवन तो अपना
खुली किताब।
00
हिंदी कवि-कथाकार व अनुवादक
कई मौलिक और अनूदित किताबें।
नेट पर अनुवाद और साहित्य को लेकर कई ब्लॉग्स।
सम्पर्क : 372, टाइप-4, लक्ष्मीबाई नगर, नई दिल्ली-110023
ई मेल : subhashneerav@gmail.com

5 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

हर हाईकू गहन अर्थ समेटे हुए

ashok andrey ने कहा…

subhash jee ki haekoo padi achchhi lagin,haan-
thakaa suraj
so gaya odkar
kaali chaadar.
bahut hii saargarbhit rachnaa hai badhai.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 07- 06 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 07- 06 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच

रंजना ने कहा…

गहन अर्थ लिए सभी के सभी हाइकू मन को छू जाने वाले...

बहुत बहुत सुन्दर..