शनिवार, 31 दिसंबर 2011

वातायन-जनवरी,२०१२

(चित्र- बलराम अग्रवाल)

वातायन के पाठकों को नववर्ष की मंगल कामनाएं


हम और हमारा समय

टूटना एक सपने का
रूपसिंह चन्देल

विगत नौ महीने पहले देश ने एक सपना देखा था. सपना था एक मजबूत लोकपाल बिल का जो देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के उन्मूलन में सार्थक भूमिका निर्वाह कर सकता, जिसके लिए अन्ना हजारे के नेतृत्व में लाखों लोगों ने आंदोलन किया. उनके आंदोलन की कहानी देश - देशांतर तक सभी जानते हैं. यद्यपि सरकार ने यह आभास पहले ही दे दिया था कि वह वह सब नहीं करने जा रही जो अन्ना, उनकी टीम और आंदोलन कर रही जनता चाह रही है अर्थात वह ’लोकपाल बिल’ उस रूप में प्रस्तुत नहीं करने वाली जो ’जन लोकपाल बिल’ के रूप में ’सिविल सोसाइटी’ ने प्रस्तुत किया था. सरकार वह बिल प्रस्तुत करेगी जिसे वह बेहतर मानती है और दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना के अनशन को तोड़वाने के लिए किए गए वायदों से अपने को दरकिनार करते हुए सरकार ने एक ऎसा बिल प्रस्तुत किया जिसे न केवल ’सिविल सोसाइटी’ ने खारिज कर दिया बल्कि विपक्षी दलों ने उसे बेहद कमजोर करार दिया.

अन्ना ने कहा था कि भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए एक सशक्त लोकपाल बिल (उनके शब्दों में ’जन लोकपाल बिल) देश की जनता को मिलना चाहिए और इसे उन्होंने देश की दूसरी आजादी स्वीकार किया था. यहां मैं एक बार पुनः वातायन के पाठकों को याद दिला दूं कि ठीक यही बात कानपुर के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी हलधर बाजपेई ने भी अपनी मृत्यु से पहले कही थी. वे मार्क्सवादी पार्टी के सक्रिय सदस्य थे और वहां से मोहभंग होने के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी. उसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हुए, लेकिन वहां भी उनका मोहभंग हुआ और उन्होंने अपने अनुभव के आधार यह कहा था कि देश को जो आजादी मिली वह अधूरी है. दूसरी आजादी की लड़ाई एक बार पुनः लड़ी जानी होगी. असमय ही असम में भूकंप पीड़ितों की सेवा करते हुए १९५० में उनकी मृत्यु हो गयी थी. दूसरी आजादी की लड़ाई की बात निश्चित ही अन्ना की अपनी सोच और अनुभव से उत्पन्न हुई, क्योंकि आजीवन समाज सेवा करते हुए उन्होंने भ्रष्टाचार के जितने रूप देखे होंगे दूसरों ने भी उनसे कम नहीं देखे होगें. आज आम और खास जिसप्रकार भ्रष्टाचार का शिकार हो रहा है यही कारण रहा कि अन्ना के आह्वान पर लाखों की संख्या में लोग सड़कों पर निकल आए, लेकिन सरकार ने उस जन भावना की उपेक्षा की और जो लोकपाल बिल संसद में प्रस्तुत किया वह इतना लचर और बेदम था कि उससे भ्रष्टाचार से मुक्ति तो दूर बढ़ावा ही मिलने वाला था. लोकसभा में वह पास भले ही हो गया था, लेकिन स्पष्ट था कि राज्यसभा में वह पास नहीं होनेवाला था. मैं कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त जस्टिस संतोष हेगडे की इस बात से पूरी तरह सहमत हूं और शायद आप भी होंगे कि सभी राजनीतिक दलों की मंशा लोकपाल बिल को पास करवाने की थी ही नहीं. उन राजनीतिक दलों के तर्क भले ही कुछ भी क्यों न हों, लेकिन वे सभी एक ही खेल खेल रहे थे---बिल पर अपने को गंभीर प्रदर्शित करना लेकिन उसे किसी भी कीमत में पास न होने देना. यह सब अकारण नहीं था. पूरा देश जानता है कि हर पार्टी में कितने नेता भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं. सशक्त लोकपाल बिल आने से उन सभी के बेनकाब होने का खतरा कौन पार्टी उठाना चाहती!

हमने देखा कि संसद में अन्ना के विरुद्ध कौन से नेता बढ़चढ़कर ----यहां तक कि भाषा और लोक मर्यादा को ताक पर रखकर बोल रहे थे और क्यों बोल रहे थे यह भी पूरा देश जानता है. रामविलास पासवान और लालू प्रसाद यादव की भाषा बेहद आपत्तिजनक थी, लेकिन वे सांसद हैं----आज के राजा ---और राजा के सभी खून माफ होते हैं. वे यह भूल गए कि देश में अब राजतंत्र नहीं लोकतंत्र है और जनता अब पहले जैसी मूर्ख नहीं रही.

राजनीतिज्ञों ने देश को पुनः भ्रष्टाचार के कीचड़ में हाथ पैर मारने के लिए छोड़ दिया है क्योंकि उनकी चिन्ता ’लोकपाल बिल’ से अधिक आगे आने वाले चुनावों पर टिकी हुई थी. कुछ को सशक्त लोकपाल बिल आने से यह खतरा भी सता रहा था कि कभी कोई थानेदार आकर उन्हें हथकड़ी पहनाकर जेल में ठूंस देगा, लेकिन अब वे उस भय से मुक्त हैं और यही उनका ध्येय था. यदि वे अपने को पाक-साफ मान रहे हैं तो उन्हें यह खतरा क्यों सता रहा है! हकीकत पूरा देश जानता है. शायद इसी हकीकत को पहचानकर एक दिन सत्तादल के मणिशंकर अय्यर ने कहा था कि देश की जनता का सब्र का घड़ा फूट न जाए इसलिए कुछ किया जाना चाहिए. यही बात यशवंत सिन्हा ने कही, लेकिन संसद ने और खासकर सरकार ने उनकी बातों पर कान नहीं दिया. यदि भ्रष्टाचार के विरुद्ध सरकारें गंभीर न हुईं तो जनता कब तक लुटती-पिटती रहेगी! देश की सन सत्तावन की क्रान्ति या हाल-फिलहाल मिश्र की जनक्रांति को राजनीतिज्ञों को याद रखना चाहिए. अपने आलस्य और ज्यादितियों को बर्दाश्त करने के लिए दुनिया में प्रसिद्ध भारतीय जनता जब जागती है तब इतिहास बदल देती है. इतिहास इस बात का साक्षी है. इसलिए राजनीतिज्ञों को समय से जाग जाना चाहिए --- उससे पहले कि जनता जाग जाए.
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इस बार के वातायन में प्रस्तुत है वरिष्ठ कथाकार और कवि सुभाष नीरव की तीन लघुकथाएं और भावना प्रकाशन, पटपड़गंज, दिल्ली से सद्यः प्रकाशित उनकी लघुकथा पुस्तक - ’सफ़र में आदमी’ पर वरिष्ठ कथाकार और कवि बलराम अग्रवाल का आलेख.

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5 टिप्‍पणियां:

PRAN SHARMA ने कहा…

ROOP SINGH CHANDEL JI AAPNE YUKTI -
YUKT LIKHA HAI - ` RAJNEETIGYON KO
SAMAY SE JAAG JAANAA CHAHIYE ,USSE
PAHLE KI JANTA JAAG JAAYE .`

JAN KEE JAB AAWAAZ NAHIN
SUNTAA HAI RAJA
BAJ JAATAA HAI IK DIN USKE
NAASH KAA BAJA

ashok andrey ने कहा…

chandel tumhaara yeh lekh bahut hee prabhavshali hai tatha har aadmi ko sochne ke liye badhya kartaa hai, kayonki yeh bahut hee chintaniy isthati ban rahee hai ki aakhir ham kahaan jaa rahe hain.

बेनामी ने कहा…

आदरणीय चंदेल जी
नमस्कार,

हम और हमारा समय- टूटना एक सपने का के माध्यम से आपने आज के राजनेताओं की सही तस्वीर प्रस्तुत करते हुए बिल्कुल सही कहा है कि बिल पास करके कौन नेता अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना चाहेगा।
एक सार्थक टिप्पणी के लिए बधाई।

Udanti.com

बेनामी ने कहा…

नववर्ष-2012 के आगमन के अवसर पर आपको हार्दिक मंगलकामनाएँ। आप स्वस्थ रहें, सक्रिय रहें। खुशहाल रहें, समृद्ध रहें- यही कामना है।
नया वर्ष
संगीत की बहती नदी हो
गेहूँ की बाली दूध से भरी हो
अमरूद की टहनी फूलों से लदी हो
खेलते हुए बच्चों की किलकारी हो नया वर्ष

नया वर्ष
सुबह का उगता सूरज हो
हर्षोल्लास में चहकता पाखी
नन्हे बच्चों की पाठशाला हो
निराला-नागार्जुन की कविता

नया वर्ष
चकनाचूर होता हिमखंड हो
धरती पर जीवन अनंत हो
रक्तस्नात भीषण दिनों के बाद
हर कोंपल, हर कली पर छाया वसंत हो

anil janvijay

Moscow, Russia
+7 495 422 66 89 ( office)
+7 916 611 48 64 ( mobile)

बेनामी ने कहा…

प्रिय भाई
नव वर्ष आपके लिए भी मंगलमय हो , नव वर्ष में वातायन साहित्य जगत को और अधिक उर्जा प्रदान करे,अपनी रचनात्मक भूमिका निभाए एवं अपने साहित्यिक दायित्व का इसी प्रकार निर्वाह करती रहे
Dr. Prem Janmejai
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