शनिवार, 11 फ़रवरी 2023

अंग्रेजी बाल कहानी

 दो खण्डों में नीलकंठ प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली से ’श्रेष्ठ बालकानियों’ के रूप में प्रकाशित मेरी सम्पूर्ण बाल कहानियों में संग्रहीत कहानी

डिक ह्विटिंगन और उसकी बिल्ली

अंग्रेजी – पी.एच.म्योर

अनुवाद -रूपसिंह चन्देल

पृष्ठ - 124, मूल्य-400/- सजिल्द 

 

क्रेसी के युद्ध के बाद जब एडवर्ड तृतीय इंग्लैंड का राजा बना, उन दिनों एक अनाथ गरीब लड़का एक गांव में रहता था. उसका नाम डिक ह्विटिंगन था. उसके पास अपना घर नहीं था. उसने सुना था कि लंदन की सड़कें सोने से पटी रहती हैं, इसलिए उसने गांव छोड़कर लंदन जाने का निर्णय किया. वह देखना चाहता था कि उस जैसा गरीब लड़का छोटे गांव की खराब जिन्दगी से अच्छी जिन्दगी जी सकता है या नहीं. उसके पास जो भी थोड़ा-सा सामान था उसे एक पोटली में बांध पोटली को डण्डे के सहारे कंधे से लटका वह लंदन के लिए चल पड़ा.

पृष्ठ - 120,मूल्य-400/- सजिल्द


जब वह गांव के बाहर सड़क पर पहुंचा, उसे एक चौपहिया गाड़ी दिखाई दी जिसे आठ घोड़े खींच रहे थे. उसने गाड़ीवान से गाड़ी में बैठाने के लिए अनुरोध किया. गाड़ीवान उस सुन्दर लड़के का साथ पाकर प्रसन्न हुआ और डिक यह जानकर प्रसन्न हुआ कि गाड़ी लंदन जा रही थी. उसने गाड़ीवान को अपनी योजना के विषय में उत्साह से बताया. गाड़ीवान चुप रहने वाला व्यक्ति था, इसलिए वह कुछ नहीं बोला. लेकिन जब उसने लंदन की सड़कों का सोने से पटा हुआ होना सुना तब वह हंसे बिना नहीं रह सका, लेकिन वह लड़के का उत्साह भंग नहीं करना चाहता था इसलिए चुप रहा.

जैसे ही वे लंदन पहुंचे, लड़के का धैर्य चुक गया और वह गाड़ीवान को धन्यवाद दिए बिना ही तेजी से गाड़ी से उतर गया. लड़के को जाता देख गाड़ीवान को अफसोस नहीं हुआ, हालांकि वह एक दयालु हृदय व्यक्ति था और उस लड़के के लिए कुछ करने के विषय में मन में सोच रहा था, क्योंकि लंदन जैसे शहर में उस लड़के का कोई नहीं था.

बेचारा डिक. उसे लंदन की सड़कों पर सोने के बजाय कीचड़ और धूल दिखी. वह दुखी हुआ. उसने कहीं काम पाने की बहुत कोशिश की, लेकिन असफल रहा और उसे पेट भरने के लिए भीख मांगने के लिए विवश होना पड़ा. गांव की अपेक्षा उसने अपने को लंदन में अधिक ही दयनीय स्थिति में पाया. 

कई रातें फुटपाथ पर या जो भी जगह उसे मिली वह वहां सोया. एक हलके ठण्ड वाले दिन फुटपाथ पर बिताकर शाम को डिक एक सुन्दर मकान के दरवाजे पर पहुंचा और रात में खाने के लिए रोटी का एक टुकड़ा मांगा. दरवाजा घर के मालिक फित्जवॉरेन ने खोला जो धनी व्यापारी और लंदन शहर का मेयर था. जब उसने डिक को रात खाने के लिए रोटी का एक टुकड़ा मांगते सुना वह क्रुद्ध हो उठा.

“यह शर्मनाक है.” वह बोला, “तुम जैसा मजबूत लड़का भीख मांग रहा है. तुम्हें जीने के लिए काम करना चाहिए.”

श्रीमान जी.” डिक ने उत्तर दिया, “मैंने सब जगह काम तलाशा, लेकिन कोई भी मुझे रखने को तैयार नहीं हुआ. श्रीमान जी, मैं कुछ भी करने को तैयार हूं—वास्तव में कुछ भी.”

“मैं शीघ्र ही कुछ देखता हूं.” फित्जवॉरेन बोला, “घूमकर पिछले दरवाजे पर पहुंचो. मैं आदेश दूंगा कि तुम्हें किसी प्रकार का काम मिल जाए.”

डिक मकान के पिछले दरवाजे पर पहुंचा. कुछ ही देर बाद कठोर चेहरे वाली रसोइया ने दरवाजा खोला. जैसे ही उसने उसे देखा वह बड़बड़ाने लगी.

“बहुत सुन्दर” वह बोली, “अब मैं अपनी रसोई में सड़क का कूड़ा-कबाड़ भरूंगी. ऎ भिखारी बच्चे, अन्दर आओ और रात का खाना पाने से पहले कुछ काम करो.”

वह उसे बर्तन मांजने के स्थान पर ले गई, और  दिन भर की जूठी प्लेटें और थालियों के अंबार के सामने मांजने के लिए उसे बैठा दिया. डिक उस काम को देर रात से समाप्त कर सका. उसके बाद उसे थोड़ा बचा हुआ खाना दिया गया, जिसे उसने वहीं बैठकर खाया. उसे एक भूसा भरे बोरे पर सोने के लिए कहा गया. वह ढंग की नींद ले पाता कि इससे पहले ही रसोइया ने चीखते हुए झकझोरकर उसे उठा दिया और काम करने के लिए कहा.

प्रतिदिन उसकी यही दिनचर्या बन गयी. डिक सूर्योदय से पहले उठ जाता. रात देर तक काम करते हुए थककर चूर हो भूसा के बोरे पर सो जाता. वह बहुत परिश्रम करता था, लेकिन रसोइया उसे डांटती, दुर्व्यवहार करती और खाने के लिए बहुत कम देती थी. उसकी एक ही मित्र थी, एक बिल्ली, उसीकी भांति भूखी और घिसटकर चलने वाली, जिसे उसने भोजन के डस्टबिन के पास पाया था. डिक बिल्ली को उठा लाया और उसे खिलाया, हालांकि रसोइया बड़बड़ाती रही थी. वास्तव में घर में बड़ी मात्रा में चूहे-चुहिया थे. जब डिक के खिलाने से बिल्ली मजबूत हो गयी उसे घर में रहने दिया गया.

डिक रसोइया के दुर्व्यवहार से अत्यधिक दुखा था. उसने सोचा कि लंदन आकर उसने गलती की थी. उसने गांव की अपनी पिछली जिन्दगी को याद किया जहां यद्यपि जीवन कठिन था, तथापि वहां खेतों में सारा दिन रहना अधिक अच्छा था बजाए बर्तन मांजनेवाली जगह के. हालांकि वहां भी उसे घास-फूस पर ही सोना होता था, लेकिन वह जगह लंदन से कहीं अधिक बेहतर थी.

उसने अपनी योजना बिल्ली को बतायी. जब सभी सो रहे थे, उसने अपना सामान एक बार फिर पोटली में बांधा, उसे डण्डे में टांग कंधे से लटकाया और बिल्ली को साथ लेकर अपने गांव लौटने के लिए तैयार हुआ. उस दिन उसने पहले की तरह जमकर काम किया था,  इसलिए कुछ दूर जाने के बाद ही वह थक गया. जैसे ही वह लंदन के बाहर पहुंचा उसे घास के चट्टे पर आरामदेह कोना मिला. उसने बिल्ली को साथ लेटाया और गर्माहट पाकर सो गया.

अगली सुबह उसे रसोइए के कठोर हाथों के बजाए सूर्य की किरणों के स्पर्श ने जगाया. उसने बचाकर लयी रोटी और चीज का नाश्ता किया और बिल्ली ने मैदान में अपने नाश्ते के लिए कुछ चूहों का शिकार किया. पास तेज बहते झरने में उन्होंने पानी पिया और दोनों यात्री ताजादम हो आगे बढ़े.

दोपहर के समय वे हाई गेट हिल पर चढ़े. उस समय सुर्य तेज चमक रहा था और बहुत गर्मी थी. डिक सड़क के किनारे एक पत्थर पर आराम करने के लिए बैठ गया और बिल्ली अपने पंजों पर बैठ गयी. पहाड़ी पर से वह हाई गेट और लंदन के बीच खड़े भर-भरे चारागाह को देखने लगा. उसने शहर के दुर्ग और मीनारों पर सुर्य को चमकते देखा, बो चर्च को भी देखा, जिसके पास मिस्टर फित्जवॉरेन का घर था. जब उसने उस शहर पर नजर डाली जिसने उसके साथ क्रूर व्यवहार किया था, उसने सदैव के लिए उस शहर की ओर से पीठ कर लेने के विषय में सोचा तभी उसे बो चर्च के स्टील के घण्टे की घनघनाहट हवा में तैरकर आती सुनाई दी और उसके दिमाग में यह शब्दध्वनि गूंजरित हुई—

“एक बार फिर लौटो ह्विटिंगटन,

तुम हो योग्य अभिजन,

तीन बार बन मेयर

रहोगे तुम लंदन.”

डिक ने बिल्ली की ओर देखा और देखा कि उसके कान भी उस ध्वनि को सुन बहुत उत्तेजित हो रहे हैं.

“क्या तुमने भी इसे सुना?” डिक ने बिल्ली से पूछा.

“म्याऊं.” बिल्ली बोली, जिसका अर्थ डिक ने ’हां’ में लगाया.

“अच्छा, हमें क्या करना चाहिए!” डिक ने फिर बिल्ली से पूछा.

लेकिन बिल्ली पहले ही पीछे मुड़कर देखती हुई कि डिक उसके पीछे आ रहा  है या नहीं पहाड़ी से नीचे उतरने लगी थी.

(वस्तुतः हाई गेट पहाड़ी पर अभी भी एक पत्थर है जिसे ह्विटिंगटन पत्थर कहा जाता है. उस पत्थर ने उस दृश्य को देखा था.)

 

फित्जवॉरेन के घर में डिक की अनुपस्थिति से उत्तेजक वातावरण था.

मेयर की पत्नी कुछ वर्ष पहले मर गयी थी और उसके घर की मालकिन उसकी प्यारी बेटी एलिस थी. मेयर फित्जवॉरेन उस रात नगर के कुछ धनी व्यापारियों को प्रीतिभोज दे रहे थे और एलिस ने रसोइए को भोजन की अच्छी व्यवस्था देखने और यह पक्का करने के लिए कहा कि सब कुछ दुरस्त है.

“सब कुछ ठीक है मिस एलिस.” रसोइया ने कहा जो अपनी मालकिन के प्रति बहुत ही विनम्र और आदरास्पद थी, जबकि बेचारे डिक के प्रति वह उतनी ही क्रूर थी, “लेकिन वह किशोर फटीचर जिसे आपके पिता ने कुछ दिन पहले रसोई में काम करने के लिए रखा था वह भाग गया है. ऎसी कृतघ्नता मैंने कभी नहीं देखी. उस बर्तन मांजने वाले लड़के की सहायता के बिना मैं सब कुछ कैसे कर पाऊंगी.” रसोइया ने कहा.

“अच्छा.” मिस एलिस ने कहा, “तुम जितना संभव हो करो, और अगर वह बर्तन मांजने वाला लड़का आ जाए तो उसे तुरंत मेरे पास भेज देना, मैं उसे थोड़ी नसीहत दूंगी.”

जब डिक वापस आया, वह चाहता था कि छुपकर निकल जाए, लेकिन रसोइया तो उसीकी प्रतीक्षा में थी. उसने उसके कान उमेठे और उसे तुरंत मालकिन के पास भेज दिया. मिस एलिस बहुत नाराज हुईं लेकिन डिक चुप सुनता रहा.

“अच्छा नौजवान,” मिस एलिस ने कहा, “तुम्हें अपने बारे में क्या कहना है! तुम्हारी यह कामचोरी—जबकि मेरे पिता ने कृपापूर्वक तुम्हें नाली से बाहर निकालकर जीवन यापन का सुनहरा अवसर दिया था.”

डिक ने अपने पिता की मृत्यु से लेकर लंदन के लिए प्रस्थान करने और रसोइया के सख्त व्यवहार की कहानी मिस एलिस से कह दी, जिसके कारण उसे अंततः वहां से जाने के लिए विवश होना पड़ा था.

मिस एलिस उसकी कहानी सुन दुखी हुई और रसोइया की क्रूरता से आहत. “तुम दरिद्र बच्चे” वह बोली, “फिर यहां लौटकर तुम आए ही क्यों?”

डिक क्षणभर के लिए हिचकिचाया, लेकिन उस सुन्दर लड़की की आंखों में दयार्द्रता थी. वह मुस्करा रही थी. अतः उसने बो चर्च के घण्टे के ध्वनि की बात बता दी. एलिस उस दरिद्र, भोंडे, विरूप लड़के के इस सोच पर हंसी कि वह महान नगर लंदन का भावी मेयर बनने की कल्पना कर रहा है.

“डिक.” वह बोली, “जब तुम रसोइया के सहायक के रूप में अधिक काम नहीं कर सकते तब तुम अपना भविष्य इतना उज्वल करने की आशा कैसे कर रहे हो!”

“मुझे नहीं मालूम मिस.” डिक बोला, “मैं केवल एक अवसर चाहता हूं और आप देखेंगी कि मैं क्या कर सकता हूं.”

“हां, डिक.” एलिस बोली, “मेरे पिता आज रात कुछ धनी व्यापारियों को प्रीतिभोज दे रहे हैं और वे व्यापारिक जहाजों का बड़ा बेड़ा अफ्रीका भेजने की तैयारी कर रहे हैं. मेरे पिता उसमें भागीदारी के लिए सभी को एक अवसर देना चाहते हैं और उसमें बहुत लाभ भी होगा. तुम्हारा क्या विचार है? क्या तुम भाग्य आजमाने के लिए कुछ जोखिम उठाना चाहोगे? तुम्हारे लिए यह एक बड़ा अवसर है.”

“हां मिस.” डिक गंभीरतापूर्वक बोला, “लेकिन मेरे पास भाग्य आजमाने और जोखिम उठाने के लिए कुछ है नहीं. कोई भी वस्तु नहीं है.”

“मैंने तुम्हारी बात समझ ली है डिक.” एलिस बोली, “क्या मैं तुम्हें कुछ रुपए दे सकती हूं और तुम मुझे वह लौटा सकते हो जब जहाज वापस लौट आएगा.”

“आपकी बहुत-बहुत मेहरबानी मिस.” डिक बोला, “मैं आपको अपनी बिल्ली सौंपना चाहता हूं. यह बहुत चालाक बिल्ली है जो चूहों को कुशलता से पकड़ती है. रसोइया भी इस बात को जानती है.”

एलिस मुस्कराई. उसने उसकी मदद के लिए एक योजना सोच ली. “बहुत अच्छा डिक.” वह बोली.

 

जब उसके पिता घर आए उसने उस विषय में उन्हें बताया. बिल्ली बेंचकर डिक के भाग्य आजमाने की बात पर वह खिलखिलाकर हंसे, लेकिन एलिस ने उनसे कहा कि वह चाहेगी कि उस अभियान के लाभ का आधा भाग डिक को मिले, और यह डिक को बता देना होगा कि वह उसकी बिल्ली के बेंचने से ही आएगा.

जहाज के कप्तान को बिल्ली को बेंचकर अच्छे लाभ की कोई आशा न थी, लेकिन वह उसे प्रसन्नतापूर्वक जहाज में ले जाने के लिए तैयार हो गया, क्योंकि जहाज में बहुत चूहे थे और उसे बिल्ली की आवश्यकता थी.

डिक ने यह समाचार बिल्ली को बताया और कहा कि हालांकि वह उससे अलग होने से दुखी है, लेकिन उम्मीद करना चाहिए कि अच्छा ही होगा. बिल्ली ने आंखें झपकायीं, अपनी मूंछें हिलायीं और बुद्धिमानी के साथ देखा. दूसरों की भांति वह भी आश्वस्त नहीं थी कि उस अभियान में बिल्ली भेजना अच्छा निवेश है. फिर भी वह दुनिया देखना चाहती थी और वह अपने मालिक के लाभ के लिए अपनी आंखें खुला रखना चाहती थी.

डिक जहाज को रवाना होता देखने के लिए बन्दरगाह पर था और उसके दिल का एक हिस्सा उनके साथ था,केवल इसलिए नहीं कि वह बिल्ली को बहुत चाहता था, बल्कि उसे आशा थी कि जहाज उसका सौभाग्य लेकर लौटेगा.

उन दिनों पोतयात्री अपना जीवन गदोली पर रखकर पोतयात्रा करते थे. दिशाओं और भूगोल की जानकारी बहुत कम होती थी और तब न तो वायरलेस थे और न ही मौसम का पूर्वानुमान होता था. एक भयानक तूफान के दौरान डिक का जहाज भटक गया और जहाज के पाल और दूसरे साज-सामान को इतना नुकसान हुआ कि कप्तान ने जो भी पहला बन्दरगाह दिखा उसे मरम्मत के लिए रोक दिया.

यह अफ्रीका के दूरवर्ती समुद्र तट पर बसा एक राज्य था, जिसके निवासी काले थे और उन्होंने कभी गोरे लोगों को नहीं देखा था, लेकिन वे बहुत सहृदय और मददगार थे. कप्तान और नाविक दल तट पर उतरे, और जब इन विदेशियों के पहुंचने का समाचार राजा के कानों तक पहुंचा, उसने आदेश दिया कि उन्हें उसके सामने लाया जाए. कप्तान और उसका साथी जहाज के माल से कुछ अच्छे उपहार लेकर राजमहल में गए. इसके परिणाम-स्वरूप वे सारा माल ऊंचे दामों में बेंचने में सफल रहे. उसमें बहुत-सी चीजें ऎसी थीं जिन्हें उस धनी राजा ने कभी देखा नहीं था और उन्हें पाकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ.

कुछ सप्ताह में जहाज की मरम्मत का काम पूरा हो गया और स्थानीय लोगों से बहुत सस्ता खरीदा माल जहाज में भरकर कप्तान इंग्लैण्ड लौटने के लिए तैयार हुआ. लेकिन राजा ने कहा कि उसके लौटने से पहले वह उसे और उसके नाविकों को प्रीतिभोज देना चाहता है. इसकी व्यवस्था की गई और जब अतिथि आए, मेजें सुन्दर खाद्य पदार्थों से भरी हुई थीं. लेकिन जैसे ही वे खाने के लिए बैठने लगे चूहे और चुहियों का दल आया, मेजों पर चढ़ा, कुछ खाना खाया और अधिकांश कुतरकर और उछलकर खराब कर दिया.

राजा और उसके दरबारी चुपचाप देखते रहे, लेकिन कप्तान और उसके आदमी आश्चर्यचकित थे. राजा उनके प्रति बहुत सहृदय था. कप्तान ने कुछ दरबारियों से बहुत होशियारी से जानकारी प्राप्त की और वह यह जानकर विस्मित हुआ कि उहोंने कभी बिल्ली नहीं देखी थी, बल्कि वे यह समझने के लिए भी तैयार नहीं थे कि उस तरह का कोई जानवर भी होता है. इसलिए वह राजा के पास गया और बोला कि जहाज में उसके पास एक ऎसा जानवर है जो चूहों से निबट सकती है. हालांकि राजा को कठिनाई से उस पर विश्वास हुआ. फिर भी उस जानवर को देखने के लिए वह अधीर हो उठा. कप्तान ने अपने एक साथी को जहाज से डिक की बिल्ली लाने के लिए भेजा.

राजा और रानी अत्यधिक आनन्दित और विस्मित हुए जब उन्होंने बिल्ली को चूहा-चुहियों को झपटकर मारते और कुछ का पीछा करते देखा.

“अब” राजा बोला, “अपना सबसे बड़ा खजाना तो आपने आखीर के लिए रख छोड़ा था और मुझे संदेह है कि मेरे राज्य का सम्पूर्ण धन भी इस चमत्कारी जीव को खरीदने के लिए पर्याप्त होगा.”

“आप ठीक कह रहे हैं श्रीमान!” चतुर कप्तान बोला, “मेरे देश में भी इस प्रकार के जानवर दुर्लभ और बहुमूल्य हैं. लेकिन यात्रा के दौरान बिल्ली के कुछ बच्चे हुए थे और यदि पर्याप्त ऊंची कीमत मिले तो उनमें से एक मैं आपको बेंच सकता हूं.”

अंत में कप्तान ने राजा को बिल्ली के सभी बच्चे बेंच दिए और उसके लिए इच्छित धन पाया. वह यह सोचकर प्रसन्न हुआ कि मिस्टर फित्जवॉरेन के रसोई में काम करने वाला गरीब लड़का कितना धनी हो जाएगा.

उसके तुरंत बाद उन्होंने जलयात्रा प्रारंभ कर दी और अनुकूल हवा पाकर वे शीघ्र ही सुरक्षित इंग्लैण्ड पहुंच गए. दूसरे जहाज बहुत पहले ही वापस लौट आए थे और उन्हें घाटा हुआ था. मिस्टर फित्जवॉरेन को तुरंत सूचना भेजी गयी और वह अपने क्लर्क के साथ कप्तान के स्वागत और माल और हिसाब-किताब देखने के लिए आ पहुंचे.

उनके सामान की सभी गांठों पर ’फ’ अक्षर अंकित था, लेकिन एक गांठ में उन्होंने ’व’ लिखा पाया.

“पोत के प्रधान चालक कप्तान, एक बात जानना है,” वह बोले, “यह गांठ किसकी है?”

कप्तान ने उसे बिल्ली की आश्चर्यजनक कहानी कह सुनाई और फित्जवॉरेन उस गरीब लड़के के सौभाग्य से अत्यधिक आनन्दित हुए, जिसकी उन्होंने सहायता की थी. जब वह घर पहुंचे, उन्होंने डिक को बुलाया. चेहरे को लंबा खींच वह उससे बोले, “अपने को दुखद सूचना के लिए तैयार करो डिक, मेरे बच्चे. गुम हुआ जहाज वापस आ चुका है. तुम्हारी बिल्ली उसमें वापस लौट आयी है.”

लेकिन डिक पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. वह शांत रहा. कुछ देर बाद वह बोला, “मुझे प्रसन्नता हुई. मुझे अपनी बिल्ली खोकर बहुत दुख होता और हालांकि वह एक चतुर बिल्ली है, मैं अनुमान नहीं लगाता कि यदि कप्तान उसे बेंचता तो मुझे अधिक धन मिल पाता. वह कहां है?” 

एलिस, जो पास ही खड़ी थी, डिक की अपेक्षा अधिक दुखी हुई. उसकी इच्छा थी कि उसके पिता पहले उससे बात करते तब वह उनको व्यवस्था की याद दिला सकती थी. अब वह दूसरे ढंग से डिक की सहायता करने की बात सोच रही थी, लेकिन उस जैसे गर्वीले लड़के के लिए यह आसान न था.

मि. फित्जवॉरेन ने उन दोनों को कुछ क्षण तक देखा तब उन्होंने वह सब बता दिया जो वास्तव में घटित हुआ था कि डिक को अपनी बिल्ली भी वापस मिल गयी और मोलभाव में बड़ी मात्रा में खजाना भी मिला.

उन दोनों को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. अगली सुबह तक प्रतीक्षा की घड़ियां बहुत कठिन प्रतीत हुईं जब उन्हें समुद्र तट पर ले जाया गया और उन्होंने माल-गोदाम में सारा दिन उस खजाने के निरीक्षण में बिताया, जिसे जहाज का कप्तान बिल्ली के बच्चों के बदले लेकर आया था.

“अच्छा डिक” मि. फित्जवॉरेन जब वे बच्चों को बग्घी में लेकर घर लौट रहे थे, बोले “अपने इस विशाल खजाना से तुम क्या करने की सोच रहे हो?”

“श्रीमान, मैंने इसके विषय में सोचा है,” डिक बोला, “मैं चाहता हूं कि आप वह खजान बेंच दें और मेरे लिए रुपए जुटा दें.”

“तब तो तुम मुझसे अधिक धनवान हो जाओगे.” मिस्टर फित्जवॉरेन बोले.

“ओह डिक” एलिस बोली, “तब तुम कितने महान बन जाओगे.”

“मेरे लिए सब बराबर है श्रीमान,” डिक बोला, “मैं नहीं जानता कि रुपयों का भी मैं क्या करूंगा.”

“अच्छा, मैं इस पर सोचूंगा.” मिस्टर फित्जवॉरेन ने कहा, “और मैंने जो सोचा है, वह कल शाम घर लौटने पर तुम्हें बताऊंगा.”

 

अगली शाम उन्होंने डिक से कहा, कि वे उस पैसे को अपने व्यवसाय में लगाएगें और उसका सही हिसाब-किताब रखेंगे. इस दौरान डिक ने सदैव के लिए रसोई छोड़ दी. वह सुन्दर कपड़े पहनने लगा और उसके पास अपनी एक गाड़ी हो गयी. वह अभी भी मिस्टर फित्जवॉरेन के यहां ही रहता रहा. जब वह इक्कीस वर्ष का हुआ फित्जवॉरेन ने उससे कहा कि वह उसे अचंभित करना चाहते थे---उन्होंने उसे अपने व्यवसाय में भागीदार बना लिया था.

डिक ने उन्हें गर्मजोशी से धन्यवाद दिया, लेकिन उतनी गर्मजोशी से नहीं जितनी की फित्जवॉरेन अपेक्षा कर रहे थे.

“आओ डिक,” वह बोले, “यह क्या है? क्या और भी कुछ ऎसा है जो तुम चाहते हो?”

“हां श्रीमान” डिक निर्भीकतापूर्वक बोला, “मैं एलिस से विवाह करना चाहता हूं.”

“एलिस का इस विषय में क्या विचार है!” पिता ने पूछा.

“वास्तव में मैंने उससे पूछा नहीं है.” डिक बोला.

“मैं नहीं सोचता और न हमें ऎसा संदेह है कि जब तुम उससे पूछोगे तब वह कोई और उत्तर देगी.”

और एक दिन डिक ने मिस्टर फित्जवॉरेन की सुन्दर बेटी से विवाह कर लिया. बो चर्च की घण्टी का संदेश पूरा हो चुका था. डिक वास्तव में लंदन शहर का तीन बार मेयर बना और बाद में सर रिचर्ड ह्विटिंगन नाम से प्रसिद्ध हुआ. वह गरीब और उन बच्चों के प्रति सदैव सहृदय रहा जो अपना भाग्य आजमाने लंदन आते थे और यदि वे वास्तव में गंभीर और कठोर परिश्रमी होते  तो वह उनकी सहायता अवश्य करता था.

वह वहां के राजा हेनरी चतुर्थ का मित्र बना और लंबी आयु तक जीवित रहा. मृत्यु के समय उसने अपनी सारी सम्पत्ति धर्मार्थ कार्यों के लिए दान दे दी थी.

-0-0-0-0-


 

  


     

 

      

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

अद्भुत बाल कहानी के लिए बधाई स्वीकारें,शुभ रात्रि

बेनामी ने कहा…

'डिक ह्विटिंगन और उसकी बिल्ली' जैसी अद्भुत बालकहानी के अनुवाद के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें चंदेल जी शुभ रात्रि।
जयराम सिंह गौर