रविवार, 18 जून 2023

कहानी

 


टीस

जयराम सिंह गौर

 

हम लगभग प्रतिदिन बात करते हैं, लेकिन कभी-कभी किन्हीं कारणों से दो-तीन दिनों का अंतराल भी हो जाता है. वह अंतराल हम दोनों को ही बेचैन करता है. मैंने उन्हें कह रखा है कि मैं ही उन्हें फोन किया करूंगा और जब मैं दो-तीन दिनों तक फोन नहीं करता तब वह मान लेते हैं कि मेरा स्वास्थ्य शायद मुझे अनुमति नहीं दे रहा. लेकिन चैथा दिन उन्हें बर्दाश्त नहीं हो पाता और वह मेरे कहने के बावजूद मुझे फोन मिला देते हैं, “मैं जानता हूं कि आपका स्वास्थ ठीक नहीं है और वही जानने के लिए फोन किया.” लेकिन कई बार स्वास्थ्य ठीक होने के बावजूद मैं फोन नहीं कर पाताकृपारिवारिक कारण आड़े जाते. इस बार भी यही हुआ. चैथे दिन उनका फोन आया. लेकिन उनकी आवाज ने मुझे परेशान किया. पिछले आठ सालों उनसे परिचय है और पांच-छः वर्षों से बातचीत का सिलसिला चल रहा है, लेकिन उनकी आवाज में इतनी उदासी मैंने कभी अनुभव नहीं की थी.

आप स्वस्थ तो हैं न सोमेश जी.” अत्यंत शिथिल स्वर में उन्होंने पूछा, “आज चैथा दिन बीतने को आया तो मुझे लगा कि आप स्वस्थ नहीं हैं. इसलिए फोन किया.”

मैं पूरी तरह स्वस्थ हूं अनंत. लेकिन आपकी आवाज बता रही है कि आप स्वस्थ नहीं हैं.”

अनंत, जिनका पूरा नाम अनंत कुमार है, चुप रहे. वह सोचते रहे कि हर बात का चहककर उत्तर देने वाले अनंत के स्वर की शिथिलता या कहना सही होगा उदासीनता और उनकी चुप्पी केवल उनके अस्वस्थ होने का परिचायक नहीं. कहीं कुछ खास है जो उन्हें परेशान कर रहा है.

आपने मेरी बात का उत्तर नहीं दिया.”

पहले से अधिक दयनीय और धीमें स्वर, ऎसा लगा मानो वह रो देंगे, में वह बोले, “सोमेश जी, मन बहुत विकल है.”

क्या हुआ?” वह सहम गए. लगा कि अनंत किसी गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं.

अनंत चुप रहे. कुछ क्षण बीते. वे कुछ क्षण उनके लिए भारी लगते रहे. ’कुछ खास है, जो अनंत बताना तो चाह रहे हैं, लेकिन शायद बताने के लिए शब्द खोज रहे हैं.’ तभी उन्हें अनंत कुमार की आवाज सुनाई दी, “सोमेश जी, निर्मल आज चला गया.” अनंत कुमार का स्वर पहले से भी अधिक धीमा था. उन्हें लगा कि इतना कहते हुए वह निश्चित ही रो रहे थे.

क्या कह रहे हैं अनंत जी. कैसे, क्या हुआ?” वह घबड़ा गए. निर्मल उनका पोता है, बहुत प्यारा, सुन्दर, गोल-मटोल, जिसे लेकर वह हर दिन पार्क जाते और उन्हें उसकी हर गतिविधि के बारे में बताते कि आज उसने करवट बदली, कि आज वह हंसा, कि अब वह घिसटने लगा है इत्यादि। दादा पोते में अपना बचपन जीता है इसीलिए पोता दादा को सर्वाधिक प्रिय होता है।

देर तक जब उन्हें अनंत की आवाज नहीं सुनाई दी तब उन्होंने फिर पूछा, “अनंत जी आपने कुछ बताया नहीं. क्या हुआ निर्मल को?”

आज वह लखनऊ चला गया.”

किसके साथ?”

अपनी मां के साथ.”

चार दिन पहले हमारी आपकी जब बात हुई थी तब आप प्रैम में उसे लेकर पार्क में टहल रहे थे. तक आपने ऎसी कोई चर्चा नहीं की थी. अचानक! गया तो अपने नाना-नानी के यहां है न! इसमें इतना दुखी होने की कौन-सी बात है! वहां कोई कार्यक्रम है या कोई बीमार है?”

न कोई कार्यक्रम है और न कोई बीमार है. सब अचानक हुआ.” उनका स्वर पहले कुछ बेहतर था. लगा कि उन्होंने अपने पर नियंत्रण पा लिया था.

तो इसमें इतना दुखी होने की क्या बात है. गया है तो कुछ दिनों में आ ही जाएगा.”

यही तो बात है सोमेश जी. सामान्य स्थिति में गया होता तब बात कुछ और थी. लेकिन---.”

यदि बताने लायक हो तो बताएं. आपका स्वर बता रहा है कि उसका जाना आपको अंदर तक हिला गया है. अवश्य कोई खास घटित हुआ. बताने से मन हलका होगा.”

आपको नहीं बताऊंगा तब किसे बताऊंगा.”

मैं जानता हूं अनंत जी. हमारा परिचय बहुत पुराना नहीं है, लेकिन हमारी आत्मीयता किसी भी पुराने मित्र से कम नहीं है.”

जी.”

लेकिन तभी नेटवर्क की समस्या के कारण फोन कट गया. उन्होंने कोशिश की लेकिन फोन नहीं लगा और निश्चित ही उधर से अनंत जी भी कोशिश कर रहे होंगे, यह सोच उन्होंने प्रयास बंद कर दिया और सोचने लगे अपनी अनंत कुमार मुलाकात के बारे में  भोपाल में एक साहित्यिक कार्यक्रम में अनंत कुमार से उनकी मुलाकात हुई थी. उनसे उम्र में लगभग दस वर्ष छोटे अनंत कुमार साहित्यिक कद में उनसे बहुत बड़े थे. इसका कारण यह था कि तब तक उन्हें लिखते हुए लगभग चालीस वर्ष हो चुके थे. उनके कितने ही उपन्यास और सौ से अधिक कहानियां प्रकाशित हो चुकी थीं. अन्य विधाओं में भी उन्होंने सक्रियतापूर्वक काम किया था. यह सारा लेखन उन्होंने सरकारी नौकरी करते हुए किया. सात वर्ष जब मिले तब वह अवकाश प्राप्त कर चुके थे और अवकाश प्राप्त करने के बाद पूर्णरूप से साहित्य को समर्पित हो चुके थे. घर गृहस्थी से पूरी तरह मुक्त. एक बेटी और बेटा, जिन्हें उन्होंने ऊँचीं तालीम दिलवाई. दोनों बहु-राष्ट्रीय कंपनियों में ऊंचे पदों पर हैं. बेटी का विवाह कर चुके थे जबकि उन दिनों बेटा विवाह के योग्य था. जबकि मैंने अवकाश ग्रहण से पहले अधिक नहीं लिखा था. लिख रहा था, लेकिन सच यह है कि उनके संपर्क में आने के बाद उनके द्वारा प्रेरित किए जाने के बाद लिखा और इन सात वर्षों में बहुत लिखा. कभी सोचा भी नहीं था.

अनंत जी ने पहली ही मुलाकात में प्रभावित किया. प्रभावित करने का कारण उनके प्रगतिशील विचार थे. बातचीत में जब उन्होंने हंसते हुए कहा, “अनंत जी, आपका बेटा अच्छी नौकरी में है उसके विवाह में निश्चित ही मोटा दहेज लेंगे.”

छूटते ही अनंत जी ने कहा था, “सोमेश जी, मैंने आज से बयालिस वर्ष अपना विवाह किया था तब दहेज नहीं लिया था. मैं दहेज लेने और देने के सख्त खिलाफ हूं. बेटी का विवाह भी ऎसे ही परिवार में किया जिन्होंने दहेज की मांग नहीं की थी और बेटे के विवाह में एक रुपया भी नहीं लूंगा. मुझे एक संस्कारी परिवार की योग्य लड़की चाहिए होगी.”

आज के इस दहेजलोभी युग में आप जैसे लोग नहीं बराबर हैं. लेकिन मेरी एक सलाह है कि आप लड़की वालों को यह नहीं कहेंगे कि आप दहेज नहीं लेंगे.” मैंने कहा तो चैंकते हुए अनंत जी ने पूछा था, “क्यों? मैं अपने सिद्धान्त के साथ समझौता नहीं करूंगा सोमेश जी.”

इसलिए कि ऎसा कहने से लड़की वाले आपको मूर्ख समझ सकते हैं. आपकी सरलता का वे गलत अर्थ निकाल सकते हैं. आपके बेटे में किसी कमी की आशंका उन्हें हो सकती है.”

उन्हें जो समझना है समझें. लेकिन मैं अपने विचारों पर अडिग हूं.”

वह चुप रह गए थे. समझ गए थे कि अनंत कुमार अपने विचारों पर दॄढ़ रहने वाले व्यक्ति हैं और यह आवश्यक भी नहीं था कि उन्हें समझने वाले लोग न हों. और यह संयोग ही था उनके बेटे का विवाह उनके शहर में तय हुआ. उन्होंने सूचित किया तब उन्होंने अनंत जी को कहा कि वह आकर कम से एक बार लड़की वालों का घर देख लें. कुछ पता करना है तो बोलें, लेकिन उन्होंने छूटते ही कहा, “सोमेश जी, वे लोग बेटी के साथ भोपाल आए थे. मुझे लड़की पसंद है, बेटे को भी. पता क्या करना. आदमी को एक बार मिलकर समझा जा सकता है. मुझे परिवार संस्कारवान प्रतीत हुआ. लड़की ने मिलते ही मेरे और पत्नी के पैर छुए थे. जबकि वह हमसे पहली बार मिली थी और कुछ भी तय नहीं हुआ था.”

वह अनंत कुमार की सरलता पर मुग्ध हो उठे थे. इतना सरल व्यक्ति उन्हें अपने जीवन में कोई दूसरा नहीं मिला था. उन्होंने अनंत कुमार का सम्पूर्ण साहित्य पढ़ा था. परिचय से पहले कुछ पढा था लेकिन परिचय के बाद अपने निजी पुस्तकालय के उन्होंने  कुछ उनसे मंगाया और कुछ खरीदा और सभी को पढा. उन्होंने पाया कि वह दूसरे लेखकों की भांति नहीं जिनका लेखन और जीवन भिन्न होते हैं. अनंत जी के लेखन में उनके जीवन की छाप स्पष्ट है. जैसा साफ-सुथरा उनका जीवन है वैसा ही उनका लेखन.

उनके बेटे के विवाह में वह भी सम्मिलित हुए थे. होना ही था क्योंकि शादी उनके शहर में हुई थी.

 

वह इतना ही सोच पाए थे कि अनंत जी का फोन दोबारा आ गया. इस बार स्वर पहले से बेहतर था. ’शायद अपने पर नियंत्रण पा लिया था’ उन्होंने सोचा.

बात अधूरी रह गयी थी.” उन्होंने पूछा.

सोमेश जी, कल दोपहर से मैं आपकी बात सोच रहा था.”

कौन-सी बात.”

जब हम भोपाल में पहली बार मिले थे और दहेज की बात चली थी तब याद करें आपने क्या कहा था.”

याद है.”

मैंने बेटे सरस का विवाह आपके शहर में किया और आप जानते हैं कि बिना दहेज. खाली हाथ गया और उनकी बेटी ब्याहकर खाली हाथ लौटा था. सोचा था कि बहुत संस्कारी परिवार है. लेकिन परिवार मेरी सोच के बिल्कुल उलट निकला.”

क्या हुआ?”

कल बहू गायत्री और बेटे के बीच झगड़ा हुआ. पहले भी वह दो-तीन बार झगड़ चुकी थी. लेकिन कल तो उसने आसमान ही सिर पर उठा लिया. आप जानते हैं कि कोविड के कारण कंपनियों ने कर्मचारियों को घर से काम करने की छुट दे रखी है. सरस को भी छूट मिली हुई है.” एक क्षण के लिए रुके वह फिर बोले, “मैं उस समय ड्राइंग रूम में अखबार पढ़ रहा था. सरस ऑफिस का काम कर रहा था. निर्मल मेरी गोद में था. कुछ देर पहले ही उसे पार्क में घुमाकर लाया था. अचानक बेटे के कमरे से गायत्री (बहू) के चीखने की आवाज आने लगी. बेटा बार-बार कह रहा था कि ऑफिस के काम के कारण वह कहीं नहीं जा सकता, जबकि वह जाने की जिद कर रही थी. जब सरस ने जाने से साफ इंकार किया उसने आसमान सिर पर उठा लिया.”

जाना कहां था?” उन्होंने पूछा.

उसकी कोई दूर की बहन यू.के. रहती है. वह आयी हुई है. तिरुपति घूमने जाना चाहती है. दक्षिण की कुछ और भी जगहें. उसके लिए कम से कम आठ दस दिन का समय चाहिए. सरस ने पहले ही मना किया था, लेकिन उसके मना करने के बावजूद उन लोगों ने सरस और गायत्री का आरक्षण करवा लिया था. करवाया था भी या केवल दबाव बनाने के लिए ऎसा कह रहे थे. बस इसी पर वह बिफरी हुई थी. बेटा चुप था जबकि गायत्री के मुंह जो आ रहा था बोल रही थी. उसने मुझे और सरस की मां तक के खिलाफ अपमानजनक ढंग से बहुत कुछ कहा. यह तो अच्छा था कि सरस की मां इन दिनों बेटी के पास हैं.”

ओह!”

उसके बाद उसने अपने पिता के घर जाने की रट लगा ली. सरस के कमरे से निकली और निर्मल को मेरी गोद से छीना और अपने कमरे में चली गयी. आज उसका भाई रात की गाड़ी से आया और वह निर्मल को लेकर चली गयी.”

निर्मल तो बहुत छोटा है, शायद एक साल का भी नहीं हुआ. उसे वह दस दिनों तक कहां लिए घूमेगी.”

वह तो गया सोमेश जी.” उनका स्वर फिर रुंआसा था, “निर्मल के जाने के बाद से मैं विचलित हूं. जब भी उसकी प्रैम की ओर मेरी नजर जाती है मुझे लगता है कि वह निर्जीव वस्तु भी मुझे चिढ़ा रही है. एक टीस उठती रही लगातार. अबोध-नन्हा निर्मल---. फोन फिर कट गया था. उन्हें लगा कि जैसे अंतिम शब्द कहते हुए वह रो पड़े थे.

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परिचय


जयराम सिंह गौर

जन्म--  12 जुलाई 1943 (ग्राम व पोस्ट रेरी जनपद कानपुर (देहात)

माता--  स्व.विद्यावती गौर

पिता--  स्व.कृष्ण पाल सिंह गौर

शिक्षा--  हाई स्कूल, विशारद,साहित्यरत्न,

कार्यक्षेत्र- भारतीय डाक विभाग के रेल डाक व्यवस्था में से 2003 में अवकाश प्राप्त.

प्रकाशित कृतियां:

कथा संग्रह - 1-मेरे गाँव का किंग एडवर्ड’ (2012), 2- ‘मंडी’ (2016),  -‘एक टुकड़ा जमीन  (2020), 4-‘अलगोजा और अन्य कहानियाँ’ (2021), 5-‘झरबेरी के सूखे बेर’(2021), 6-‘मेरी चयनित कहानियाँ (2022)

उपन्यास--   1-‘अपने-अपने रास्ते’ (2020), 2-गढ़ी छोर’(2021),3-‘मुझे सब याद है’(2022)

काव्यकृति-    1-‘ये महकती शाम’(2018)

विशेष : साहित्य पर आलोचनात्मक पुस्तक –’जयराम सिंह गौर: व्यक्तित्व,विचार और कृतित्व’

       सम्पादक – डॉ. लक्ष्मीकांत पाण्डेय

सम्मान--     1-‘कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार’  (2016)

             2-माध्यम साहित्यिक संस्थान कानपुर का श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान  (2017)

             3-‘आगमन साहित्य शिरोमणि सम्मान-2018

             4- ‘नवसृजन कला प्रवीण अवार्ड-क्षत्रपति प्रशिक्षण संस्थान(रजि.) कानपुर-2020

             5-रचनाकार प्रतिभा सम्मान-राष्ट्रीय शिखर संघ(रजि.) कानपुर-2022

             6- विद्यावाचस्पति (मानद-विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ)-2022

 

संपर्क -180/12 बापूपुरवा कालोनी, किदवईनगर,पोस्ट टी पी नगर, कानपुर-208023

मो.9451547042,7355744763

 

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

मन को छू गयी