गुरुवार, 2 जुलाई 2009

वातायन - जुलाई, २००९


हम और हमारा समय

कामरेड ! आप चुप क्यों हैं ?

देश लुट रहा है -- वे मौन हैं . ऎसे हर अवसर पर उनके चेहरों पर चुप्पी चिपक जाती है. देश हित और सर्वहारा की माला जपने वाली उनकी जुबान पर ताला क्यों लटक जाता है जब सर्वहारा के हित में खर्च किये जाने वाले धन से कोई सिरफिरा और भ्रष्ट राजनीतिक अपनी, अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह और पार्टी के संस्थापक की मूर्तियां गढ़ा और खुदा रहा होता है. जिस धन का वह आपराधिक दुरुपयोग कर रहा होता है वह धन आम लोगों का होता है -- टैक्स के रूप में उनसे उगाहा गया धन. एक लोकतांत्रिक देश में ऎसा हो, इससे बड़ी शर्मनाक बात और क्या हो सकती है. यहां सद्दाम हुसैन की याद ताजा हो उठती है. उसने भी अपने बुत गढ़वाये और खुदवाये थे. सद्दाम तानाशाह था और एक तानाशाह ही कानून और जनता की उपेक्षा कर ऎसे समाज विरोधी कार्य कर सकता है. हमे नहीं भूलना चाहिए कि हर तानाशाह भ्रष्ट होता है. अपने भ्रष्ट कारनामों को वह अपनी तानाशाही की ओट देता है. और यह भी इतिहास सिद्ध है कि हर तानाशाह का दुखद पतन होता है.
वे जिन्हें प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे उन्होंने यह कर डाला. यदि वे उन्हें प्रधानमंत्री बनाने में सफल हो जाते तब देश की क्या स्थिति होती कल्पना की जा सकती है.

धन के ऎसे दुरुपयोग को रोकने और दुरुपयोग करने वालों के लिए कठोर दण्ड का प्रावधान किये जाने के लिए यदि संविधान परिवर्तन की आवश्यकता हो तो वह किया जाना चाहिए. लेकिन संभव है तब उस परिवर्तन के विरोध में कामरेड मुखर हो उठें. लेकिन अभी आप चुप क्यों हैं कामरेड ! देश हित सर्वोपरि है या व्यक्तिहित ? पिछली गलतियों से सबक लेते हुए आप आगे आयें और कुछ और नहीं तो भर्त्सना के दो शब्द ही कहें वर्ना इसके लिए भी इतिहास आपको याद रखेगा, किस रूप में यह आप स्वयं सोच सकते हैं.
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वातायन के जुलाई, २००९ अंक में प्रस्तुत है - मेरे द्वारा अनूदित और संवाद प्रकाशन मेरठ/मुम्बई से शीघ्र प्रकाश्य संस्मरण पुस्तक - ’लियो तोल्स्तोय का अंतरंग संसार’ में संग्रहीत जी.ए.रुसानोव का संस्मरण, वरिष्ठ कवयित्री अंजना संधीर की पांच कविताएं और वरिष्ठ कवि-कथाकार सुभाष नीरव की कहानी.
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मेरे अनुरोध पर वातायन के लिए अंजना जी की कविताएं प्रसिद्ध कहानीकार और कवयित्री इला प्रसाद (यू.एस.ए.) ने उपलब्ध करवायीं हैं. इसके लिए मैं उनका हृदय से आभारी हूं. कविताओं के विषय में इलाजी की छोटी -सी टिप्पणी कविताओं से पूर्व दृष्टव्य है.
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संस्मरण
यास्नाया पोल्याना की यात्रा
(२४-२५ अगस्त, १८८३)

जी.ए. रुसानोव
(गव्रील अन्द्रेयेविच रुसानोव (१८४६-१९०७) एक वकील,
ऑस्त्रोगोझ्स्क के प्रथम सदस्य , फिर खारकोव बार के सदस्य और तोल्स्तोय के अंतरंग मित्र )
अनुवाद : रूपसिंह चन्देल

------उसके बाद तोल्स्तोय इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि नयी पीढ़ी---- सौम्य पेरोव्स्की जैसे सभी ----बरबादी की ओर बढ़ रहे थे, कि उन्होंने प्रकाश नहीं देखा, कि उन्हें शिक्षित कर सही मार्ग पर वापस लाना आवश्यक था.

"शायद आपका कहना ठीक है." मैं बोला, "फिर भी नौजवानों के प्रिय लेखक शेद्रिन हैं. वह उन्हें दूसरों की अपेक्षा अधिक पसंद करते हैं क्योंकि वह राजनीति और समसामयिक मामलों में रुचि लेते हैं."

"और वह उनके प्रेम के पात्र हैं " तोल्स्तोय ने अपने विचार रखे, "मुझे स्वयं शेद्रिन प्रिय हैं. एक लेखक के रूप में वह विकास कर रहे हैं. उनके नवीनतम कार्य में विषाद के संकेत खोजे जा सकते हैं."

फिर बातचीत तुर्गनेव की ओर मुड़ गयी थी.
"क्या तुर्गनेव नास्तिक हैं ?" मैंने पूछा.

"ओह, हां," तोल्स्तोय ने उत्तर दिया ," तुर्गनेव एक भले , प्रतिभा-सम्पन्न और विशाल हृदय वाले व्यक्ति हैं---- मैं उन्हें प्रेम करता हूं और उनके प्रति खेद अनुभव करता हूं---- वह इतना अधिक बीमार हैं --- तुमने सुना इन दिनों वह कैसे हैं ?"

"मैंने अखबारों से प्राप्त नवीनतम समाचार उन्हें बताया. "मैंने वह पढ़ा है " तोल्स्तोय बोले.

"वे कहते हैं कि रूसियों का एक दल उन्हें देखने जायेगा और यह कि ---- एर---- उसका नाम क्या है ? ओगियर ? ---- उन्हें कॉमेडी पढ़कर सुनायेंगे. प्रहसनों के लिए अच्छा समय !" निन्दात्मक स्वर में उन्होंने टिप्पणी की. बहुत अधिक समय नहीं बीता, जब वह पेन पकड़ने की क्षमता रखते थे. उन्होंने मुझे बहुत ही सहृदय और प्रेरणास्पद पत्र लिखा था कि लिखना बंद नहीं करूं."

"और आपने लिखने का विचार किया ? मेरा मतलब कथा-साहित्य ."

"हां, निश्चय ही. यदि कोई व्यक्ति लिख सकता है, उसे अवश्य लिखना चाहिए. यदि कोई व्यक्ति बोल सकता है तो उसे अवश्य बोलना चाहिए."

"क्या यह सही है कि आप समाचार पत्र और अपने कार्यों की समीक्षाएं नहीं पढ़ते ?"

"ऎसा है. लेकिन हाल में मैंने नियम में परिवर्तन किया है. रुस्काया मिस्ल में ग्रोमेस्का का आलेख पढ़ा. एक उत्कृष्ट आलेख है."

फिर सेल्फ में रखी अपनी पुस्तकों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा :

"मुझे भय है कि सामान्यतः हमारा और विशेष रूप से मेरा कुछ भी शेष नहीं रहेगा."

"आप ऎसा क्यों कहते हैं ?" मैंने विस्मित होते हुए पूछा.

"क्योंकि हम इतना अधिक लिखते हैं. ध्यान से देखो हम सभी ने विपुल मात्रा में लिखा है. सदियों तक जो कुछ बचा रहता है वह मात्रा में विशाल कभी नहीं होता."

"शेक्सपीयर के विषय में क्या सोचते हैं ?" मैंने पूछा.

"शेक्सपीयर मुझे कभी बहुत प्रिय नहीं रहा ---- शेक्सपीयर के बारे में इतना संभ्रम फैलाया गया कि उसके विरुद्ध बोलने का साहस कोई भी नहीं जुटा पाता. लेकिन मैंने उसके विषय में कभी अधिक नहीं सोचा."

बातचीत के दौरान ---- मैंने रूसी और फ्रांसीसी आलोचकों द्वारा उनके विषय में व्यक्त विचारों का उल्लेख किया .

"बहुत देर से" मेरे कथन के उत्तर में तोल्स्तोय ने कहा, "मेरे प्रति उनके हृदय परिवर्तित देखकर मुझे कुछ आश्चर्य हुआ था. पहले उन लोगों ने निर्दयतापूर्वक मुझे बुरा-भला कहा और एक विचारक के रूप में मुझे स्वीकार करने से इंकार कर दिया था. याद करो ’वार एण्ड पीस" . वह सब कैसा था ? उन दिनों मैं ऎसी चीजों पर सोच-विचार करता था.अन्नेन्कोव का आलेख याद है ? कई पहलुओं से वह बदनाम करने वाला था, लेकिन अन्य सभी आलोचकों की भर्त्सना के बाद मैंने आराम के साथ उसे पढ़ा था---- उन्होंने किस प्रकार मेरी भर्त्सना की थी. मैं उन सब खराब चीजों को याद भी नहीं करना चाहता जो उन्होंने ’अन्ना कारनिना’ के विषय में लिखी थीं.’

अन्ना कारनिना के विषय में दो दिन पूर्व ट्रेन में एक छात्रा द्वारा व्यक्त कुतूहलपूर्ण विचार की मुझे याद हो आयी और मैंने तोल्स्तोय से कहा :

"वे कहते हैं कि ’अन्ना कारनीन” को ट्रेन के नीचे फेंक देना आपकी हृदयहीनता है. निश्चय ही आप उससे यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि वह आजीवन उस उबाऊ अलेक्सेई अलेक्जान्द्रोविच की कैद में रहती ."

तोल्स्तोय मुस्कराये.

"इसने मुझे याद दिला दिया कि एक बार पुश्किन ने अपने एक मित्र से क्या कहा था. ’तुम्हे पता है तात्याना ने मेरे साथ क्या चालाकी की थी ?’ वह बोले थे, ’उसने शादी कर ली थी. उससे मैं यह अपेक्षा बिल्कुल नहीं करता था.’ अन्ना कारेनिना में मैंने बिलकुल वही बात कही है. उन्होंने उसी रूप में चीजें की जिस रूप में वे वास्तविक जीवन में करते बजाय इसके कि जैसा मैं उनसे करवाता."

"काउण्टेस पास्केविच द्वारा ’वार एण्ड पीस’ के फ्रेंच अनुवाद के बाद फ्रेंच आलोचकों के दृष्टिकोण में आए परिवर्तन को देखकर मुझे प्रसन्नता हुई " उन्होंने कहना जारी रखा. मास्को प्रदर्शनी में मुझसे मिलने वाले फ्रांसीसी लोगों ने जो विचार व्यक्त किये उससे मैं आश्चर्यचकित था. मैं महसूस कर सका कि ’वार एण्ड पीस’ में अभिव्यक्त मेरे ऎतिहासिक दृष्टिकोण को स्वीकृति मिलनी प्रारंभ हो गयी है. तुम्हे याद है जब पहली बार पुस्तक प्रकाशित हुई तब उसे किस प्रकार ग्रहण किया गया था ?"

"मुझे याद है, लेकिन दूसरी धारणाएं भी हैं. " उदाहरण के लिए , स्वर्गीय पोपोव के विचार, जिन्होंने १८१२ के युद्ध का इतिहास लिखा और जो पूरी तरह से अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ. ’दि नीवा’ में मैंने उनके विचार पढ़े थे."

"पोपोव कौन थे ? अंद्रेई निकोलायेविच ? हां, वह क्या सोचते थे, उन्होंने मुझे बताया था."

इस बिन्दु पर बातचीत का विषय बदल गया था, लेकिन क्या यह मुझे याद नहीं. केवल यह कहना याद है कि किस प्रकार गोन्चारोव की लेखकीय गतिविधियों की पचासहवीं वर्षगांठ के अवसर पर महिलाओं का एक प्रतिनिध मंडल उनके अभिनंदन के लिए उनसे मिला था, और यह कि विलंब से ही सही पढ़ने के प्रति लोगों की अभिरुचि में इतनी उन्नति हुई है कि किसी लेखक के विषय में लोगों को किसी आलोचक के मूल्याकंन की अब दरकार नहीं रही है.

"गोंचारोव को लिखते हुए पचास वर्ष हो चुके ?"

"जी हां ."

"मुझे यह जानकारी नहीं थी. मुझे गोंचारोव के लिए खेद अनुभव हो रहा है. वह इतने बूढ़े और अकेले हैं और भुला दिए गये हैं----- वह बहुत कष्ट पा रहे हैं."

"किससे ?"
"घोर अपमान से ."
मैं पुनः तोल्स्तोय के काम पर वापसे लौट आया और बोला, "दूसरी चीजों के साथ उनका ’चाइल्ड हुड’ और तुर्गनेव का ’ए हण्टर्स स्केचेज’ लगभग एक ही समय प्रकाशित हुए थे. (ए हण्टर्स स्केचेज १८४७-५२ के मध्य और ’चाइल्डहुड’ १८५२ में ) और जब कि ’ए हण्टर्स स्केचेज’ में चित्रण के कई अनाधुनिक अंश हैं (उदाहरण के लिए छोटे बच्चे ’बेझिन मीड’ का भावुक चित्रण) जबकि चाइल्डहुड में अनाधुनिकता या उस जैसा होने की जोखिम नहीं दिखती . इस पर तोल्स्तोय ने उत्तर दिया कि उनका ’चाइल्डहुड’ चाशनी जैसा है (मुझे आशंका है कि तोल्स्तोय ने ठीक यही शब्द इस्तेमाल नहीं किया था, लेकिन जो भी किया था उसका भाव यही था) . स्वभावतः मैंने मौन स्वीकृति नहीं दी और अपना प्रतिरोध दर्ज किया. तोल्स्तोय ने आगे कोई टिप्पणी नहीं की.

अंत में उन्होंने कहा कि "तुर्गनेव की जिस एक मात्र पुस्तक को मैं पसंद करता हूं वह है ’ए हण्टर्स स्केचेज’ . निश्चित ही कोई भी लोक जीवन की अभिव्यक्ति उस तरह नहीं कर सकता जैसा कि उन्होंने किया है. मैंने उनके शेष कार्य का अधिक अध्ययन नहीं किया , और मेरा विश्वास है कि वह उन्हें अधिक समय तक जीवित नहीं रखेगा. मुझे लगता है कि भावी पीढ़ियों के लिए तुर्गनेव उतने ही अल्पज्ञात होंगे जितना जुकोव्स्की. हालांकि वह अत्यधिक भले , और स्नेही और अनुग्रही हैं, और उन्होंने बहुत से लोगों की सहायता की है."

उनकी गद्य कविताओं की चर्चा करते हुए उन्होंने आगे कहा --

"मैंने उन्हें प्रसन्नतापूर्वक पढ़ा, लेकिन सोचा कि तीस वर्ष पहले उन्होंने अधिक प्रभाव डाला होता."

मैंने "सांग ऑफ लव ट्रम्फैण्ट" का उल्लेख किया. तोल्स्तोय ने विषय को घृणित ठहराया.

"लेव निकोलायेविच , क्या आपने नताशा रोस्तोवा का रूपचित्र जीवन से खींचा था." मैंने पूछा.

"अधिकांशतया."

"और आंद्रेई बोल्कोन्स्की ?"

"नहीं, उसका नहीं---- मेरे कुछ चरित्र जीवित आदर्श से ग्रहण किये हैं, कुछ नहीं. पहले वाले कम सफल हुए. यद्यपि जीवन से चित्रण सदैव अधिक सजीव होता है. लेकिन वे एकपक्षीय हो जाते हैं."

"आपके प्रारंभिक दौर में, ’वार एण्ड पीस’ से पहले , बहुत से प्रतीतात्मक उद्धरण मिलते हैं, जबकि ’वार एण्ड पीस’ में कुछ , और ’अन्ना कारनिना’ में बिलकुल ही नहीं हैं."

"एक दिन व्यक्ति को मजुर्कस (Mazurkas) से बाहर विकास करना ही होता है. " मुस्कराते हुए लेव निकोलायेविच ने कहा.

हमारी बातचित दॉस्तोएव्स्की पर आ टिकी.

"नोट्स फ्राम अ डेड हाउस ’ (दॉस्तोएव्स्की ) प्रशंसा योग्य कार्य है, लेकिन उनके दूसरे कामों के विषय में मैं अधिक नहीं सोचता." तोल्स्तोय बोले, "कुछ विशिष्ट स्थानों की ओर मेरा ध्यान खींचा गया, और वास्तव में वे अद्भुत थे, लेकिन संपूर्णता में --- संपूर्णता में मैंने उन्हें भयानक पाया. कृत्रिम भाषा, मूल चरित्र खोजने का सतत प्रयास, फिर उनका स्थूल चित्रण. मुख्य बात यह, कि दॉस्तोएव्स्की संलाप और संलाप करते हैं, और अंत में पाठक अपने को कोहरे में पाता है कि वह कहना क्या चाहते थे."

"आपने ’दि करमाज़ोव ब्रदर्श पढ़ा’ ?"

"उसे समाप्त नहीं कर सका ."

"उस पुस्तक के साथ परेशानी" मैं बोला , "यह है कि उसके सभी चरित्र, १५ वर्ष की लड़की से लेकर, सभी एक ही ढंग से बोलते हैं---- लेखक के ढंग से ."

"न केवल वे एक ही और समान ढंग से , लेखक के स्वर में बोलते हैं, बल्कि वे एक ही और समान विचार व्यक्त करते हैं जैसा कि लेखक करता है और क्रत्रिम भाषा में."

"लेकिन ’क्राइम एण्ड पनिशमेण्ट’ उनका अच्छा उपन्यास है . उसके विषय में आपके क्या विचार हैं. "

"क्राइम एण्ड पनिशमेण्ट ? हां, वह अच्छा है. लेकिन जब आप प्रारंभ के कुछ चरित्रों को पढ़ लेते हैं, तब आप जान जाते हैं कि पूरे उपन्यास में उसीका अनुकरण होगा शेष उसीका दोहराव होता है जो आप प्रारंभ में पढ़ चुके होते हैं."

"लेव निकोलायेविच, आपका ’चाइल्डहुड’ बच्चों को पढ़ने के लिए दिए जाने के लिए किस उम्र के बच्चों को दिया जाना आप उचित मनते हैं."

"किसी आयु के नही."

"किसी आयु के नहीं."

"मैं सोचता हूं नहीं. मैं मानता हूं ’चाइल्डहुड’ और ’ब्वॉयहुड’ पुस्तकें बच्चों के लिए नहीं हैं. ’दि प्रिजनर ऑफ कॉकेशस’, और ’झिलिन’ (zhylin) और कोस्तिलिन (Kostylin) --- वे भिन्न हैं. " तोल्स्तोय बोले, "मैं उन दोनों पुस्तकों को प्यार करता हूं ,हालांकि इन्हें और अच्छा लिखा जा सकता था."

"किस रूप में ?"

"भाषा और सरल की जा सकती थी. कुछ अकलात्मक लोक अभिव्यक्तियों को बदला जा सकता था, लेकिन मैं ऎसा नहीं कर सकता. मैं सदैव ऎसा ही लिखता हूं." हल्की मुस्कान के साथ वह बोले.

"नहीं." क्षणभर रुककर तोल्स्तोय आगे बोले, "वार एण्ड पीस’ के अतिरिक्त कोई भी ऎतिहासिक उपन्यास लिखने में मुझे सफलता नहीं मिली. मैंने ’पीटर दि ग्रेट’ के समय को लेकर उपन्यास लिखना चाहा, फिर दिसम्बरवादियों को लेकर. ’पीटर दि ग्रेट’ के काल को विषय बनाकर लिखने में मैं असमर्थ रहा क्योंकि वह बहुत पहले की बात थी . हमसे बिलकुल भिन्न लोगों के हृदय और मर्म के रहस्य को समझना मेरे लिए बहुत कठिन था. और दिसम्बरवादियों पर लिखना ठीक उसके विपरीत कारणों से कठिन प्रतीत हुआ. वे बहुत निकट और बहुत जाने समझे थे. बड़ी मात्रा में उस समय के विवरण, संस्मरण और पत्र मेरे पास हैं और मैं निश्चित ही उनको लेकर छटपटाता रहता हूं."

"दिसम्बरवादियों पर लिखे जाने वाले उपन्यास में छोटा निकोलई बोल्कोन्स्की एक चरित्र के रूप में नहीं होता ?"

"ओह, हां," तोल्स्तोय ने कहा. उनके चेहरे पर प्रसन्न मुस्कान फैल गयी थी. फिर कुछ क्षण रुककर , "और इस प्रकार मैंने आपके ऑस्त्रोगोज्स्क की यात्रा कभी नहीं की. दिसम्बरवादियों पर अपने उपन्यास के संबन्ध में निश्चित रूप से मैं ऑस्त्रोगोज्स्क जाना चाहता था."

"तेव्याशॉव्स ने मुझे यह बताया था . आप उनके साथ ठहरना चाहते थे. क्या ऎसा नहीं था ?"

"नहीं. कौन तेव्याशॉव्स ? तेव्याशॉव्स कौन हैं ? आह, हां. रेलेयेव, लगता है, तेव्याशॉव्स के साथ उसका विवाह हुआ है ?"

"जी."

"क्या आपका ऑस्त्रोगोज्स्क इतनी उन्नत और समृद्ध जगह है, जैसा कि मुझे बताया गया था."

"मैं क्या कहूं ! निजी तौर पर मैं उसे ऎसा नहीं पाता."

इस बिन्दु पर किसी कारण से बातचित पुनः तुर्गनेव की ओर मुड़ गयी थी.

"उनका प्रकृति चित्रण असाधारण है." मैं बोला.
"अतुलनीय." तोल्स्तोय ने अनुमोदन किया.

फिर हमने फ्लॉबर्ट और डॉडेट के विषय में चर्चा की. तोल्स्तोय ने कहा कि उन्हे डॉडेट (Daudet) का ’इवान्गेलिस्ते’ (Evangeliste) पसंद नहीं आया था, लेकिन बहुत समय पहले उन्होंने फ्लाबर्ट का ’मादाम बावेरी ’ (Madame Bovary) पढ़ा था, और हालांकि वह यह भूल गये थे कि उसका विषय क्या था लेकिन उन्हें यह याद था कि उन्होंने उसे पसंद किया था.

अन्य बातों के साथ उन्होंने कहा --

"मैंने एक कहानी छोटे बच्चों के लिए लिखी है. मैं प्रायः इसे उन्हें सुनाता हूं. उसमें केवल यही बात कही गयी है कि एक छोटा बालक था, जिसे सात खीरे मिले. उसमें से उसने सबसे छोटे को सबसे पहले खाया, फिर उसके बाद वाले को, फिर उसके बाद----- इस प्रकार उसने सभी खा लिए. आप बच्चों की प्रसन्नता तब देख सकते हैं जब मैं उस स्थान पर पहुंचता हूं जहां वह बालक आखिरी सबसे बड़े खीरे को खाना प्रारंभ करता है." और हंसते हुए तोल्स्तोय ने बाहें फैलाकर बताया कि आखिरी खीरा कितना बड़ा था.

हम पुनः कला पर चर्चा करने लगे और तोल्स्तोय लेर्मेन्तोव के विषय में बताने लगे.

"कितने दुख की बात है कि उनकी मृत्यु युवावस्था में हो गयी. उसमे कितनी जबर्दस्त प्रतिभा थी. उसने क्या नहीं किया. वह उन लोगों की भांति सीधे शुरू हो गया था जिन्हें सम्पूर्ण सामर्थ्य प्राप्त होती है. उसके लेखन में आपको कुछ भी सतही नहीं मिलेगा." उन्होंने कहा, "सतही चीजें लिखना बहुत सहज है, लेकिन उसका प्रत्येक शब्द इस प्रकार लिखा गया है मानो उसे नैसर्गिक प्रतिभा प्राप्त थी."

’तुर्गनेव एक साहित्यिक व्यक्ति थे, " तोल्स्तोय ने आगे कहा , "पुश्किन भी थे, लेकिन गोंचारोव तुर्गनेव से अधिक साहित्यिक व्यक्ति थे. लेर्मेन्तोव और मैं साहित्यिक व्यक्ति नहीं हैं."

इस बातचीत के दौरान मैंने अपना अनुभव बताया कि पुश्किन को पढ़ते हुए एक ऎसे व्यक्ति की उपस्थिति की प्रतीति होती है जो चतुर, अच्छे स्वभाववाला, प्रसन्न और यद-कदा विनोदशील था.

"सच" तोल्स्तोय ने कहा

दुख प्रकट करते हुए हमने तुर्गनेव की बीमारी पर चर्चा की.

"कुछ दिन पहले तक वह हृष्ट-पुष्ट और स्फूर्तिवान वृद्ध व्यक्ति थे." तोल्स्तोय ने कहा.

"वर्डोट के साथ उनके सम्बन्ध कैसे हैं ?"

"मुझे बताया गया, विशुद्ध आध्यात्मिक." तोल्स्तोय ने उत्तर दिया.

"मैंने सुना कि उनके एक बेटी है ."

"लेकिन वह वर्डोट की नहीं है. " तोल्स्तोय बोले, "और पुत्री के विषय में कुछ संदेह हैं. मुझे उनके लिए बहुत खेद है."

"आप ऎसा इसलिए कहते हैं क्योंकि वह खराब स्थिति में हैं ."

"वह नहीं जानते कि कितनी ईमानदारी से वर्डोट उनकी देखभाल करती है. निश्चित ही कुछ ऎसे क्षण अवश्य होंगे जब वह सोचती होगी, ’यदि अंत तेजी से आ जाए."

"लोग लिखते हैं कि वह रूस लौटने का स्वप्न देखते हैं."

"हां, तुर्गनेव ने अंत में स्पष्ट अनुभव किया ----." तोल्स्तोय ने कहना प्रारंभ किया, लेकिन वाक्य अधूरा छोड़ दिया. "फ्रांस के एक घर में रह रहे उस वृद्ध व्यक्ति का विचार घृणित और दयनीय है. हां, रूस में होने की ललक है उनमें ---- वह इस ललक को पूरा नहीं कर सकते."

"उन्होंने लिखा कि एक ऑपेरा हाउस से उन्हें जोड़ने के लिए एक टेलीफोन लगाया गया है."

"आह, हां . वह खराब स्थिति में हैं." तोल्स्तोय ने दोहरया, "सोचिए, एक बूढ़ा व्यक्ति मर रहा है, मृत्यु से भयभीत है वह और टेलीफोन द्वारा ऑपेरा संगीत में सांत्वना खोजता है. निश्चित ही बहुत तुच्छ सांत्वना---."

हमने टेलीफोन के भविष्य पर चर्चा प्रारंभ कर दी.

"महत्वपूर्ण और चमत्कारिक भविष्य." तोल्स्तोय बोले, " रेलवे और टेलीग्राफ बड़ा परिवर्तन लाये, लेकिन टेलीफोन इनसे भी बड़ा परिवर्तन लायेगा."

"आप ऎसा कैसे सोचते हैं ?"

"निम्न बातों की आप कल्पना करें. जार जनता को संदेश देना चाहते हैं. वह बोलते हैं और एक साथ शब्दशः वह संदेश रूस की प्रत्येक क्षेत्रीय सरकारों के प्रशासनिक केन्द्रों में सुना जाता है."

हमने रूस की वर्तमान स्थिति पर चर्चा प्रारंभ की.

"यह विस्मयकरी है. विस्मयकारी इसलिए कि सेण्ट पीटर्सबर्ग में क्या हो रहा है !" तोल्स्तोय ने कहा, " जार अलेक्जेंण्डर को जनता की भलाई के लिए कुछ करने की सलाह देने के बजाय, अधिकारी वर्ग रोड़े अटकाने के हर संभव प्रयत्न करते रहे. जनता असंतुष्ट , आशान्वित, हताश थी और उसमें कुछ उत्तेजना थी. जार की स्थिति बैर योग्य नहीं थी . उसके पूर्ववर्तियों ने उसके लिए चीजें खराब कर दीं थीं. उसने खराब चीजों से किसानों को मुक्त किया. लोगों की दृष्टि में वह हीरो बन गया. लेकिन वर्तमान जार उनके लिए कुछ भी करने का इच्छुक नहीं है, फिर भी उन्हें उससे अपेक्षाएं हैं. सारी बातें आश्चर्यजनक हैं. आश्चर्यजनक अंधापन. केवल एक बात जो वह उनसे कह सकता है -- "आभिजात्यवर्ग की आज्ञा मानो." वह किसानों से कहता है कि कृषि अनुदान में वृद्धि की अपेक्षा मत करो ; क्योंकि कुछ नहीं होगा. ऎसी बातें कहने का साहस उसमें कैसे होता है ? . किसानों की यह मांग है. हर व्यक्ति इस विषय पर बातें कर रहा है और लिख रहा है, और वह इस प्रकार की बातों से इंकार करता है . वह अपने शब्द वापस लेने के लिए विवश हो सकता है ? संभव है वह परिदृश्य से पूरी तरह ओझल हो जाये---- वह मर सकता है ---- और तब अनुदान में वृद्धि हो सकती है, अथवा काफी समय बाद प्रशासनिक व्यवस्था परिवर्तित हो सकती है, और जानते हो तब क्या होगा ?" तोल्स्तोय का स्वर उत्तेजित था.

हम शेद्रिन के विषय में पुनः बातें करने लगे.

"तुमने उनका नवीनतम ग्राम्यगीत पढ़ा ?" उन्होंने पूछा, "मीनिकाओं का संकट याद है ?"

"निश्चय ही " मैंने उत्तर दिया, "और उन छैलों की भी ."

"एक आनंदप्रद चीज," तोल्स्तोय बोले, और छैलों के विषय में एक छोटा-सा अंश उद्धृत किया. "वह अच्छा लिखते हैं. " उन्होंने निष्कर्ष दिया, "और वह कितनी मौलिक भाषा प्रयोग करते हैं !"

"जी" मैंने सहमति प्रकट करते हुए कहा, "दॉस्तोएव्स्की की भाषा भी मौलिक है."

"ओह, नहीं," तोल्स्तोय ने विरोध किया, "शेद्रिन की भाषा बहुत ही सुस्पष्ट , उत्तम, विशुद्ध जन- भाषा है, जबकि दॉस्तोएव्स्की की कृत्रिम और अस्वाभाविक है."

"----- मैंने एक सूचना पढ़ी थी कि इस वर्ष कला पर एक आलेख खुदोजेस्त्वेन्नी जर्नल को आप देने वाले हैं. क्या यह सच है ?"

"हां, मैंने एक आलेख का वायदा किया था. मैं नहीं जानता कि उन्होंने इस सूचना को प्रकाशित क्यों किया. मैंने सम्पादक से कहा था कि ऎसा नहीं करें, लेकिन उन्होंने मेरे अनुरोध की उपेक्षा की. आलेख लिखा जा चुका है, लेकिन मुझे उस पर एक दृष्टि और डालनी है और उसमें संशोधन करना है. मैं उसे यों ही नहीं दे सकता, और उसके लिए समय की अपेक्षा होगी जो कि इस समय मेरे आस नहीं है."

"मेरा विश्वास है कि तुर्गनेव अपने काम पर बार-बार दृष्टि डालते थे." मैंने कहा.

"न---हीं---s---s ." तोल्स्तोय ने हिचकते हुए कहा. "वह तेजी से लिखते थे और बहुत कम संशोधन करते थे . मैंने उनकी ’वर्कबुक्स’ देखी थीं. वह ’बाउण्ड कॉपी-बुक्स’ में लिखते थे. उहोंने मुझे दिखाया था."

"मैं इस बात के प्रभाव में था कि वह गोगोल की (लेखन) पद्धति के अनुसार लिखते थे ." मैं बोला.

"गोगोल की पद्धति क्या थी ?"

"गोगोल रचनाकारों को सलाह देते थे कि अपने पहले ड्राफ्ट को वह छुपाकर रख दें और लंबा समय गुजर जाने के बाद उसे पुनः उठायें , उसे संशोधित करें, और उसे भी रख दें, फिर उसे संशोधित करें और फिर रख दें ----- और लगातार ---- कम से कम आठ बार ---- ऎसा करें"

"यह एक अच्छी पद्धति है---- किसी पाण्डुलिपि का कुछ समय तक अनछुआ पड़ा रहना. आप जब उसे दोबारा पढ़ते हैं तब दृष्टि भिन्न हो चुकी होती हैं."
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6 टिप्‍पणियां:

सुभाष नीरव ने कहा…

भाई चन्देल, मैं तुम्हारे ब्लाग पर और विशेषकर तुम्हारे संपादकीयनुमा लेख एवं ताल्स्ताय से जुड़े तुम्हारे द्वारा अनूदित संस्मरण पर यह टिप्पणी इस लिए नहीं कर रहा हूँ कि तुम मेरे मित्र हो और मुझे टिप्पणी करनी ही है। कई बार हम चाहते हुए भी वक्त की कमी के बावजूद अपने आप को टिप्पणी छोड़ने से नहीं रोक पाते क्योंकि जिस मैटर को हमने पढ़ा होता है, वह हमारा पीछा नहीं छोड़ता… वाकई तुमने अपने संपादकीय में एक बेहद क्ड़वे सच पर उग़ली रख दी है। हम सब जानते हैं कि भ्रष्ट राजनीति का आज चेहरा कितना विद्रूप हो चुका है और ये हमारे तथाकथित राजनीतिज्ञ(नेता) जब भी अवसर पाते हैं जनता के पैसे का ही दुरपयोग करने की पहल करते हैं, चाहे वे इसे अपना घर भरने के लिए घोटालों का सहारा लें अथवा अपनी झूठी शान औ शौकत को भविष्य में सुरक्षित रखने के लिए मूर्तियां या पार्क आदि बनवाने का। गाज तो बेचारी आम जनता पर ही गिरती है जिसे दो जून की रोटी के लिए न जाने क्या कुछ नहीं करना पड़ता। ताल्स्ताय' पर तुम्हारे द्वारा अनूदित संस्मरण बहुत बढ़िया है और एक महान लेखक को और अधिक बेहतर ढ़ंग से जानने-समझने का अवसर देता है। अनुवाद की भाशा बहुत अच्छी है और अनुवाद में जो मौलिकता-सा प्रवाह होना चाहिए, उसे बरकरार रखती है। अनुवाद के क्षेत्र में किए गए तुम्हारे इस श्रम का आने वाले समय में मूल्यांकन अवश्य होगा, ऐसी मैं उम्मीद करता हूँ। बधाई !

Dr. Sudha Om Dhingra ने कहा…

रूप भाई,
आप के सम्पादकीय से सहमत हूँ. पर इतिहास की कौन परवाह करता है? अगर करते हों तो यह हाल न होता .संस्मरण पढ़ कर ऐसा नहीं लगता कि हम अनुवाद पढ़ रहे हैं. बहुत सुघड़ता से अनुवाद किया है, मौलिक रचना का भास होता है. सुभाष भाई से सहमत हूँ कि इसका मूल्यांकन ज़रूर होगा.
बधाई!

PRAN SHARMA ने कहा…

CHANDEL JEE KE LEKHAN KO MAIN JAB-
JAB PADHTA HOON APNE AAP MEIN MUJHE GAURANVIT HONE KEE BHAVNAA KAA AABHAAS HOTA HAI.VE SHEERSH
SAHITYAKAAR HAIN.VISHESH BAAT TO
YAH HAI KI UNKAA ANUVAD BHEE MAULIK
JAESA HEE LAGTA HAI.TOLSTOY SE
SAMBADDH SANSMARNON KAA UNKA ANUVAD
JEEVANT UDAHRAN HAI.

बेनामी ने कहा…

तोल्स्तोय के पूरा व्यक्तित्व और साहित्य और समाज को लेकर उनकी सोच को उद घाटित करती यह बातचीत सचमुच पठनीय है। अनुवाद न होकर मौलिक कृति लगती है! बधाई!
इला

सुरेश यादव ने कहा…

भाई चंदेल जी ,आप के विचार जिन तानाशाह शाशकों के भृष्ट आचरण पर वार करहैं ते उसकी जड़ें गहरी हैं और निरंतर शाषक इस ओर बेशर्मी से बढ़ रहे हैं .इस चिंता के लिए आप को बधाई और आप के द्वारा महान लेखक तालस्ताय के जीवन के महत्वपूर्ण विचारों को रचनात्मक और सहज अनुवाद के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है ,उसके लिए विशेष वधाई.

Randhir Singh Suman ने कहा…

good