मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

लघुकथाएं

(चित्र : विजय बोधांकर)

रामेश्वर काम्बोज’हिमांशु’ की तीन लघुकथाएं

एजेण्डा

"आप इस देश की नींव हैं। नींव मज़बूत होगी तो भवन मज़बूत होगा । भवन की कई कई मंजिलें मज़बूती से टिकी रहेंगी-" पहले अफ़सर ने रूमाल फेरकर जबड़ों से निकला थूक पोंछा। सबने अपने कंधों की तरफ़ गर्व से देखा, कई कई मंज़िलों के बोझ से दबे कंधों की तरफ़ ।

अब दूसरा अफ़सर खड़ा हुआ, "आप हमारे समाज की रीढ़ है। रीढ़ मज़बूत नहीं होगी तो समाज धराशायी हो जाएगा।" सबने तुरंत अपनी अपनी रीढ़ टटोली। रीढ़ नदारद थी। गर्व से उनके चेहरे तन गए - समाज की सेवा करते करते उनकी रीढ़ की हड्डी ही घिस गईं। स्टेज पर बैठे अफ़सरों की तरफ़ ध्यान गया … सब झुककर बैठे हुए थे। लगता है उनकी भी रीढ़ घिस गई है।

"उपस्थित बुद्धिजीवी वर्ग"- तीसरे बड़े अफ़सर ने कुछ सोचते हुए कहा, "हाँ, तो मैं क्या कह रहा था ," उसने कनपटी पर हाथ फेरा, , "आप समाज के पीड़ित वर्ग पर विशेष ध्यान दीजिए।"

पंडाल में सन्नाटा छा गया। बुद्धिजीवी वर्ग ! यह कौन सा वर्ग है ? सब सोच में पड़ गए। दिमाग़ पर ज़ोर दिया। कुछ याद नहीं आया। सिर हवा भरे गुब्बारे जैसा लगा। इसमें तो कुछ भी नहीं बचा। उन्होंने गर्व से एक दूसरे की ओर देखा ­ समाज हित में योजनाएँ बनाते बनाते सारी बुद्धि खर्च हो भी गई तो क्या ।

अफ़सर बारी बारी से कुछ न कुछ बोलते जा रहे थे। लगता था ­ सब लोग बड़े ध्यान से सुन रहे हैं। घंटों बैठे रहने पर भी न किसी को प्यास लगी, न चाय की ज़रूरत महसूस हुई ,न किसी प्रकार की हाज़त।

बैठक ख़त्म हो गई। सब एक दूसरे से पूछ रहे थे ­ "आज की बैठक का एजेंडा क्या था? "
भोजन का समय हो गया। साहब ने पंडाल की तरफ़ उँगली से चारों दिशाओं में इशारा किया। चार लोग उठकर पास आ गए। फिर हाथ से इशारा किया , पाँचवाँ दौड़ता हुआ पास में आया ­ 'सर'

"इस भीड़ को भोजन के लिए हाल में हाँक कर लेते जाओ।, इधर कोई न आ पाए।" साहब ने तनकर खड़ा होने की व्यर्थ कोशिश की।

पाँचवाँ भीड़ को लेकर हाल की तरफ़ चला गया।

"तुम लोग हमारे साथ चलो।" साहब ने आदेश दिया।

चारों लोग अफ़सरों के पीछे पीछे सुसज्जित हाल में चले गए।

चारों का ध्यान सैंटर वाले सोफे की तरफ़ गया, ।वहाँ चीफ़ साहब बैठे साफ्ट ड्रिंक पी रहे थे। साहब ने चीफ़ साहब से उनका परिचय कराया, " ये बहुत काम के आदमी हैं। बाढ़, सूखा,
भूकंप आदि जब भी कोई त्रासदी आती है ;ये बहुत काम आते हैं।"

चीफ़ साहब के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया।

"चलिए भोजन कर लीजिए।" उन्होंने चीफ़ साहब से कहा ­ "हर प्रकार के नानवेज का इंतज़ाम है।"

"नानसेंस"­ चीफ़ साहब गुर्राए, "मैं परहेज़ी खाना लेता हूँ । किसी ने बताया नहीं आपको ?"

" सारी सर" -छोटा अफ़सर मिनमिनाया­ "उसका भी इंतज़ाम है, सर ! आप सामने वाले रूम में चलिए।"

वहाँ पहुँचकर चारों को साहब ने इशारे से बुलाया। धीरे से बोले, निकालो।"

धीरे से चारों ने बड़े नोटों की एक एक गड्डी साहब को दे दी। साहब ने एक गड्डी अपनी जेब में रख ली तथा बाकी तीनों चीफ़ साहब की जेबों में धकेल दीं।

चीफ़ साहब इस सबसे निर्विकार साफ्ट ड्रिंक की चुश्कियाँ लेते रहे , फिर बोले, "जाने से पहले इन्हें अगली बैठक के एजेंडे के बारे में बता दीजिएगा।"
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चोट

मज़दूरों की उग्र भीड़ महतो लाल की फ़ैक्टरी के गेट पर डटी थी।मज़दूर नेता परमा क्रोध के मारे पीपल के पत्ते की तरह काँप रहा था - "इस फ़ैक्टरी की रगों में हमारा खून दौड़ता है।इसके लिए हमने हड्डियाँ गला दीं ।क्या मिला हमको भूख, गरीबी, बदहाली ।यही न , अगर फ़ैक्टरी मालिक हमारा वेतन डेढ़ गुना नहीं करते हैं तो हम फ़ैक्टरी को आग लगा देंगे।"

परमा का इतना कहना था कि भीड़ नारेबाजी करने लगी ­ 'जो हमसे टकराएगा ,चूर - चूर हो जाएगा।'

अब तक चुपचाप खड़ी पुलिस हरकत में आ गई और हड़ताल करने वालों पर भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़ी।कई हवाई फायर किये।कइयों को चोटें आईं।पुलिस ने परमा को उठाकर जीप में डाल दिया।भीड, का रेला जैसे ही जीप की और बढ़ा , ड्राइवर ने जीप स्टार्ट कर दी।
रास्ते में पब्लिक बूथ पर जीप रुकी।परमा ने आँख मिचकाकर पुलिस वालों का धन्यवाद किया।

परमा ने महतो का नम्बर डायल किया।

"कहो, क्या कर आए"­उधर से महतो ने पूछा।

"जो आपने कहा था , वह सब पूरा कर दिया ।चार ­ पाँच लोग जरूर मरेंगे।आन्दोलन की कमर टूट जाएगी।अब आप अपना काम पूरा कीजिए।"
"आधा पेशगी दे दिया था।बाकी आधा कुछ ही देर बाद आपके घर पर पहुँच जाएगा । बेफ़िक्र रहें ।"

घायलों के साथ कुछ मज़दूर परमा के घर पहुँचे ;तो वह चारपाई पर लेटा कराह रहा था। पूछने पर पत्नी ने बताया ­ " इन्हें गुम चोट आई है।ठीक से बोल भी नहीं पा रहे हैं ।"
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खूबसूरत

विजय से मिले पाँच बरस हो गए थे ।उसकी शादी में भी नहीं जा सका था ।सोचा. अचानक पहुँचकर चौंका दूँगा ।इस शहर में आया हूँ तो मिलता चलूँ ।

दरवाज़ा एक साँवली थुलथुल औरत ने खोला ।मैंने सोचा. होगी कोई।

मैंने अपना परिचय दिया ।

‘बैठिए अभी आते होंगे नज़दीक ही गए हैं’.थुलथुल औरत मधुर स्वर में बोली।

मेरी आँखें श्रीमती विजय की तलाश कर रही थी । आसपास कोई नज़र नहीं आया ।

‘क्या लेंगे आप , चाय या ठण्डा’थुलथुल ने विनम्रता से पूछा ।

चाय ही ठीक रहेगी.मैंने घड़ी की तरफ़ देखा ।

तब तक आप हाथ .मुँह धो लीजिए-साबुन तौलिया थमाकर उसने बाथ रूम की तरफ़ संकेत किया ।

हो सकता विजय की पत्नी ही हो ।पर विजय जिसके पीछे कालेज की लड़कियाँ मँडराया करती थीं , ऐसी औरत से शादी क्यों करने लगा ।हाथ –मुँह धोते हुए मैं सोचने लगा ।यदि यही उसकी पत्नी है तो वह शर्म के कारण मेरे सामने नज़र भी नहीं उठा सकेगा ।कहाँ वह ,कहाँ यह ।

‘भाई साहब आ जाइए । चाय तैयार है। साँवली की मधुर आवाज़ कानों में जलतरंग –सी बजा गई ।

ड्राइंगरूम में आकर बैठा ही था कि विजय भी आ गया ।

तुम्हारी पत्नी-मैंने अचकचाते हुए पूछा।

बहुत खूब ! इतनी देर से आए हो , मेरी पत्नी से भी नहीं मिल पाए ।तुम भी हमेशा बुद्धू ही रहोगे ।

उसने थुलथुल की तरफ़ इशारा किया और गर्व से कहा- यही है मेरी पत्नी सविता ।
लीजिए भाई साहब –सविता ने बर्फ़ी की प्लेट मेरी तरफ़ बढ़ाई ।उसकी आँखें खुशी से चमक रही थीं।

मैंने उसे ध्यानपूर्वक देखा. वह मुझे बहुत ही खूबसूरत लग रही थी ।
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परिचय

जन्म: 19 मार्च,1949
शिक्षा : एम ए-हिन्दी (मेरठ विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में) , बी एड
प्रकाशित रचनाएँ : 'माटी, पानी और हवा', 'अंजुरी भर आसीस', 'कुकडूँ कूँ', 'हुआ सवेरा' (कविता संग्रह), 'धरती के आँसू','दीपा','दूसरा सवेरा' (लघु उपन्यास), 'असभ्य नगर'(लघुकथा संग्रह),खूँटी पर टँगी आत्मा( व्यंग्य –संग्रह) , भाषा -चन्दिका (व्याकरण ) , मुनिया और फुलिया (बालकथा हिन्दी और अंग्रेज़ी), झरना (पोस्टर कविता -बच्चोंके लिए )अनेक संकलनों में लघुकथाएँ संकलित तथा गुजराती, पंजाबी,उर्दू एवं नेपाली में अनूदित। आकाशवाणी से नाटक का प्रसारण , ऊँचाई लघुकथा पर लघु फ़िल्म निर्माणाधीन ।

सम्पादन :आयोजन ,नैतिक कथाएँ(पाँच भाग), भाषा-मंजरी (आठ भाग)बाल मनोवैज्ञानिक लघुकथाएँ एवं www.laghukatha.com ( 40 देशों में देखी जाने वाली लघुकथा की एकमात्र वेब साइट), http://patang-ki-udan.blogspot.com/ (बच्चों के लिए ब्लॉगर)
- हिन्दी हाइकु (आस्ट्रेलिया) http://hindihaiku.wordpress.com के सहयोगी सम्पादक
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वेब साइट पर प्रकाशन:रचनाकार ,अनुभूति, अभिव्यक्ति,हिन्दी नेस्ट,साहित्य ,गर्भनाल साहित्य कुंज ,लेखनी,इर्द-गिर्द ,इन्द्र धनुष ,उदन्ती ,कर्मभूमि, हिन्दी गौरव आदि ।

प्रसारण –आकाशवाणी गुवाहाटी ,रामपुर, नज़ीबाबाद ,अम्बिकापुर एवं जबलपुर से ।

निर्देशन: केन्द्रीय विद्यालय संगठन में हिन्दी कार्य शालाओं में विभिन्न स्तरों पर संसाधक(छह बार) ,निदेशक (छह बार) एवं केन्द्रीय विद्यालय संगठन के ओरियण्टेशन के फ़ैकल्टी मेम्बर के रूप में कार्य.

सेवा : 7 वर्षों तक उत्तरप्रदेश के विद्यालयों तथा 32 वर्षों तक केन्द्रीय विद्यालय संगठन में कार्य । केन्द्रीय विद्यालय के प्राचार्य पद से सेवा निवृत्ति।

सम्प्रति: स्वतन्त्र लेखन ।

संपर्क:- रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
37, बी /2 रोहिणी सैक्टर -17
नई दिल्ली-110089
ई मेल rdkamboj@gmail.com
सम्पादक- www.laghukatha.com
मोबाइल- 9313727493

5 टिप्‍पणियां:

सुभाष नीरव ने कहा…

हिमांशु जी की पहली दो लघुकथाएं आज के समय का कड़वा सच हैं। ऐसे घिनौने सच पर से परदा उठाना रचनाकार का धर्म होता है। बहुत ही खूबी से हिमांशु जी ने इन चरित्रों को अपनी उक्त लघुकथाओं में नंगा किया है। तीसरी लघुकथा 'खूबसूरत' शीर्षक को चरितार्थ करती बेहद खूबसूरत लघुकथा है। शक्ल-सूरत और रंग ही सब कुछ नहीं होता, अच्छे दिल और अच्छी सीरत से खूबसूरत क्या हो सकता है।

PRAN SHARMA ने कहा…

HIMANSHU JI KEE MARMSPARSHEE LAGHU
KATHAAON KE LIYE BADHAAEE .

Devi Nangrani ने कहा…

Laghukatha apna paigham jis dhang se rakhti hai usise uska parichay milta hai. Khoobsoorat LK padhte hi ek baat kaundhi ki khoobsoorthi Rishton ke naam mein nahin unhein apnane se badhti hai. Jo jaisa hai use usi roop mein pehchnne se rishton mein pukhtagi bhi aati hai.
Rameshwar ji ko unki lekhni aur prastutilaran ke liye shubhkamnayein

बलराम अग्रवाल ने कहा…

सच कहूँ तो 'खूबसूरत' के समापन-वाक्य को पढ़कर मेरी आँखें भर आईं। समूचे भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कारिक उत्कृष्टता इस लघुकथा की छोटी काया से सूर्य-किरणों-सी प्रभासित हो रहा है। यह कायिक-सौंदर्यहीनता पर आत्मीयता की विजय का शास्वत इतिहास व्यक्त करती है, उसे प्रतिष्ठा प्रदान करती है। ऐसी लघुकथाएँ हममें लघुकथाकार होने का गर्व रोपती हैं।

rachana ने कहा…

sanaj ka aina hai aap ki kahaniyan .dard aur sachchhi ka sangam hai.
bahut khoob likha hai
badhai
saader
rachana