शुक्रवार, 11 मार्च 2011

वातायन - मार्च,२०११


हम और हमारा समय

सड़कें, शिकारी और महिलाएं

रूपसिंह चन्देल

साफ़-चौड़ी सड़कें, सड़कों पर दौड़ते वाहन और भागती जिन्दगी--- जिन्दगी इतनी व्यस्त कि उसके आस-पास क्या हो रहा है, क्या हो चुका है इस ओर ध्यान देने का वक्त नहीं है उसके पास और यदि वक्त है भी तो वह इतनी खुदगर्ज हो चुकी है कि सारा वक्त केवल अपने लिए ही सुरक्षित रखना चाहती है. यह तस्वीर है आज की उस दिल्ली की, जहां संसद है, संसद में देश के भाग्य विधाता बैठते हैं, जिनमें से कितनों ही की गाढ़ी कमाई के हजारों करोड़ डॉलर विदेशी बैंकों में जमा है और मज़ाल है किसीकी कि उस पर चर्चा करने का साहस कर सके. साहस करने वालों को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं ये लोग. इसी दिल्ली में चमचमाती सरकारी कारों में घूमते हैं ब्यूरेक्रेट्स, जिनमें हर दूसरा भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है.

इसी दिल्ली में दौड़ती हैं कालेरंग की स्क्रीन चढ़ी कारें और उन कारों के अंदर बैठे होते हैं अपराधी. अपराधी केवल ऎसी कारों में ही नहीं घूमते, वे सड़कों पर खुले सांड़ की भांति घूमते रहते हैं और उनके समक्ष विवश है दिल्ली पुलिस, जिसे देश की सर्वश्रेष्ठ पुलिस होने का गौरव प्राप्त है. देश की राजधानी में अपराधों का ग्राफ तेजी से बढ़ा है और उनमें सर्वाधिक अपराध बढ़े हैं महिलाओं के विरुद्ध. यद्यपि दिल्ली पुलिस का दावा है कि पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में कमी आई है . पिछले वर्ष के अंतिम दो माह में जहां ७७ बलात्कार के मामले प्रकाश में आए थे, वहीं बीते दो माह में ४४, लेकिन एक सर्वेक्षणकर्ता के अनुसार यह ग्राफ सही नहीं है, क्योंकि ग्राफ कम दिखाने के लिए पुलिस अनेक मामले दर्ज ही नहीं करती.

बात दिल्ली की ही नहीं, पूरे देश में अपराधों में वृद्धि हुई है. आज की दिल्ली में दिन दहाड़े किसी लड़की को काले रंग की स्क्रीन चढ़ी कार में अपराधी घसीट लेते हैं और सड़क पर दौड़ती उस कारे में उसके साथ बलात्कार होता रहता है--- दिल्ली पुलिस मुस्तैद रहती है और अपराधी अपने काले कारनामों को अंजाम देते रहते हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैम्पस के पास रिंग रोड पर बने फुट ओवर ब्रिज पर सरे आम पचास-साठ लोगों की उपस्थिति में एक अपराधी युवक राधिका तंवर को गोली मारकर निश्चिन्तता के साथ निकल जाता है और जिन्दगी ठहर कर यह भी नहीं देखती कि खून से लथपथ मृत्यु से जूझती वह लड़की थी कौन? ’हर समय आपके साथ’ रहने का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस अपने ही एक सिपाही द्वारा लगातार भेजे गए संदेशों के बावजूद घटनास्थल पर विलंब से पहुंचती है और अस्पताल पहुंचने से पूर्व ही राधिका अपनी अंतिम सांस ले चुकी होती है.

दिल्ली में महिलाएं किस कदर असुरक्षित हैं इसका अनुमान दिल्ली में बारह वर्षों से एक-छत्र राज करने वाली मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के उस वक्तव्य से लगाया जा सकता है, जब वे कहती हैं कि वह भी अपने को असुरक्षित अनुभव करती हैं. वह जब यह कहती हैं कि अपराधियों के विरुद्ध जनता को भी जागरूक होने की आवश्यकता है, तब मीडिया उनकी इस सलाह की धज्जियां उड़ाने लगता है, लेकिन हमें सब कुछ पुलिस पर ही नहीं छोड़ देना चाहिए. डेढ़ करोड़ की आबादी वाली इस दिल्ली में लोग इतना खुदगर्ज और संवेदशून्य हो गए हैं कि सड़क पर तड़प रहे दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को तड़पता छोड़ लोग उसके पास से गुजरते रहते हैं. राजौरीगार्डन के पास रिंगरोड पर दुर्घटनाग्रस्त सड़क पर पड़ी एक महिला को रौंदती कितनी ही कारें गुजरती रहीं और मानवता कराहती और शर्मसार होती रही. तो यह है आज की दिल्ली.

दिल्ली में अपराधों में वृद्धि का कारण पुलिस और राजनीतिज्ञों में व्याप्त भ्रष्टाचार भी है. कितने ही अपराधी वहां संरक्षण पाते हैं और क्यों पाते हैं यह बताने की आवश्यकता नहीं . अपराधियों के हौसले इसलिए भी बुलंद हैं क्योंकि न्याय प्रणाली लचर है. बलात्कारियों को फांसी की मांग करने वाले लालकृष्ण आडवाणी गृहमंत्री बनते ही अपने इस मुद्दे को भूल बैठे थे. बलात्कारियों को मृत्युदंड से कम सजा नहीं दी जानी चाहिए. महिलाओं के प्रति अन्य अपराधों के लिए भी कठोरतम दंड का विधान किया जाना चाहिए--- संविधान को बदला जाना चाहिए. तभी महिलाओं के शिकार के लिए घूमने वाले अपराधियों के हौसले ही नहीं पस्त होंगे, घरों और दफ्तरों में भी उनके प्रति कुदृष्टि रखने वालों पर अंकुश लगेगा.
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वातायन के मार्च अंक में प्रस्तुत है ले-मिज़ेराबल के इटैलियन—रूपांतर के प्रकाशक एम.डाएल्ली के नाम विक्तोर ह्यूगो का पर, कामिल बुल्के पर चर्चित कथाकार और कवयित्री इला प्रसाद का संस्मरण और वरिष्ठ हिन्दी और सिन्धी कवयित्री देवी नागरानी की कविता और गज़ल.

4 टिप्‍पणियां:

सुभाष नीरव ने कहा…

जिस वक़्त 'वातायन' पर देश और देश की राजधानी दिल्ली में बढ़ते अपराधों, विशेषकर महिलाओं पर लिखा तुम्हारा सम्पादकीय पढ़ने बैठा,मन पहले से ही उद्विग्न और खौफज़दा था, टीवी पर आ रही खबरें मनुष्य की बेबसी की कहानी को प्रकट कर रही थीं। जापान में आई प्राकृतिक आपदा ने दिल को हिलाकर रख दिया। जापान में आए जबरदस्त भूकम्प और सुनामी के चलते वहां के परमाणु संयंत्र में विस्फोट से रेडिएशन का बढ़ता ख़तरा जाने वहाँ के लोगों पर क्या कमायत ढाये ! भाई चन्देल, मनुष्य ने लाख तरक्की कर ली हो, बेशुमार सुविधाएं जुटा ली हों, पर वह सुरक्षित कहाँ है ? अपराध, आतंक, युद्ध और प्राकृतिक प्रकोपों के आगे वह कितना निरीह प्राणी है !

ख़ैर, तुमने अपनी बात ज़ोरदार ढ़ंग से कही है। केवल साहित्य रचना ही लेखक की जिम्मेदारी नहीं होती, उसे अपने अन्दर एक जागरूक पत्रकार को भी जिन्दा रखना आज बेहद ज़रूरी जान पड़ता है।
तुम्हारे अन्दर लेखक और पत्रकार दोनों जिन्दा हैं, यह कम बात नहीं है।

PRAN SHARMA ने कहा…

Jab desh kee rajdhani kee shochniy
sthiti hai to anya rajya kaese
bache rah sakte hain ? Desh kaa
aslee mudda bhrashtachaar hai .Iske
unmoolan sarkar nikammee saabit
huee hai . kyonki " anjaam - e -
gulistan kaa kya hoga , har shaakh
pe ulloo baithe hain .
Aapne badee khoobsoortee se
desh mein faile bhrashtachaar kee
samasya ko ujaagar kiyaa hai .

ashok andrey ने कहा…

प्रिय भाई चंदेल तुम्हारा आलेख पडा बहुत गहरी बात को व्यक्त कर के जो कुछ भी लिखा है वह हम सब के लिए चिंतनीय तथा अशोभनीय भी है हम सभी मूक दर्शक की तरह खड़े मात्र शब्दों को ठेलते रहते हैं ऐसा लगता की हम संवेदनहीन हो चुके हैं आज सुभेह की अखबार पर जब मैंने उसकी सुर्ख़ियों पर नजर डाली तो अन्दर तक दहल गया आखिर हम किस मोड़ पर आ गए हैं खबर-एक रिक्शेवाले ने ७७ वर्षीय असहाए औरत बुरी तरह पीटने के बाद उसके साथ बलात्कार किया सोचो हम सभी कब तक ऐसी स्थितियों को घटते हुए देखते रहेंगे तुम्हारे इस सारगर्भित लेख के लिए सिर्फ मूक शुभकामनायें ही दे सकता हूँ.

Badri Nath Upadhyay ने कहा…

Respecte Chandel Sir Ji,

Mujhe es baat ka bahut dukha hai ki aam aadmi ke sath es prkar ki ghatnayen ho rahi hai parntu usse se bada dukh es baat ka hai ki bahut saare Media, Patrkar aur Lakhak bhi apna farj nahin nibha rahe hai.......
aap ka pryaas sarahniya hai..aap badhai ke patr hai...