हम और हमारा समय
रूपसिंह चन्देल
२६ नवम्बर, २००८ को मुम्बई में हुआ आतंकवादी हमला ११ सितम्बर, २००१ को अमेरिका के 'वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर" पर हुए हमले की भांति ही सुनियोजित था. अमेरिकी हमले के तार किसी न किसी रूप में हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान से जुड़े हुए थे, जबकि हमारे देश में होने वाले सभी आतंकवादी हमलों की रूपरेखा पाकिस्तान की धरती पर ही तैयार की जाती है. वहीं चल रहे प्रशिक्षण केन्द्रों में आतंकवादियों को लश्कर- ए- तैय्याबा और आई.एस.आई. द्वारा संयुक्त रूप से प्रशिक्षित किया जाता है.यही नहीं विश्व के अन्य देशों में होने वाली आतंकवादी घटनाओं में सम्मिलित आतंकियों में से कुछ को पाकिस्तान में ही प्रशिक्षण दिए जाने के प्रमाण मिलते रहे हैं. आज सम्पूर्ण विश्व इस बात को समझ रहा है कि विश्व में व्याप्त आतंकवाद की जड़ें पाकिस्तान में हैं और उन्हें आई.एस.आई. का प्रश्रय प्राप्त है. प्रश्रय ही नहीं, आई.एस.आई अपने अनुसार उनका इस्तेमाल करती है-----खासकर भारत के विरुद्ध.
पाकिस्तान की जमीन से संचालित आतंकवादी गतिविधियों के विषय में भारत द्वारा लगातार उपलब्ध करवाये जाते रहे प्रमाणों पर अमेरिका आंखें मूंदे रहा. आंखें ही नहीं मूंदे रहा बल्कि आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में पाकिस्तान के छद्म सहयोग को महत्व देते हुए इसी उद्देश्य से उस पर करोड़ों डॉलर की राशि लुटाता रहा और आई.एस.आई. उस धन का दुरुपयोग आतंकवादी तैयार करने के निमित्त करता रहा. आज विश्व के कम-से कम दस ऎसे देश हैं, जो भायनक रूप से आतंकवाद से प्रभावित हैं. अपने को सशक्त मानने वाला चीन भी इस बात से आशंकित और आतंकित है और इसीलिए २६ नवम्बर को मुम्बई में हुए हमले के बाद उसने अपनी सीमाएं सील कर दी हैं.
(मुम्बई में आतंकवादी हमले का एक दृश्य)
पाकिस्तन को आतंकवाद की जड़ मानते हुए भी अमरीका अपने किंचित निहितार्थ के कारण न उसे छोड़ पा रहा है और न ही उसकी सहायता में कटौती करता दिख रहा है, बावजूद अपनी ध्वस्त हो रही आर्थिक स्थिति के. लेकिन हमारी विवशता क्या है कि हम कोई सख्त कदम उठा पाने में असमर्थ रहे और मुम्बई जैसे बड़े और घातक हमले के लिए आतंवादियों और आई.एस.आई के हौसले बुलंद हो जाने दिए. यह सब राजनैतिक इच्छा- शक्ति की कमजोरी को प्रमाणित करता है जिसके पीछे तुष्टिकरण का सीधा गणित है. संसद पर हमले का जिम्मेदार अतंकवादी अफ़जल गुरू जानता है कि वोट की राजनीति उसे फांसी के फंदे तक नहीं पहुंचने देगी. कितना दुखद है कि कलाम साहब से लौटी उसकी 'मर्सी अपील' की फाइल पर आजतक दिल्ली सरकार ने कोई टिप्पणी नहीं दी. वास्तविकता यह है कि फाइल उसी रूप में बंधी रखी है---- खोली ही नहीं गई.
अफजल गुरू एक मात्र उदाहरण नहीं है. यह सिलसिला स्व० विश्वनाथ प्रताप सिंह साहब के समय कश्मीरी नेता और तत्कालीन गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी के अपहरण से प्रारंभ हुआ था. उसके बाद------ एक जान के लिए देश के हजारों आमजनों की जाने जाती रहीं. आज वे ही राजनेता एक दूसरे पर दोषारोपण करते नहीं अघा रहे. उन्हें आमजन की रक्षा से अधिक अपने वोटों की चिन्ता अधिक सताती है. अपनी सुरक्षा के लिए चीख-पुकार करने वाले इन लोगों ने देश की सुरक्षा के प्रति कितनी जिम्मेदारी अनुभव की यह जनता से छुपा नहीं है. आज देश चारों दिशाओं से आतंकवादियों से घिरा हुआ है. अभी तक समुद्री मार्ग सुरक्षित माना जा रहा था, लेकिन मुम्बई हमले ने सिद्ध कर दिया कि हमारी लापरवाही और नेताओं की राजनीति के कारण आतंकवादियों के लिए कुछ भी असंभव नहीं रहा.
अब इन समाचारों का क्या अर्थ कि हमारे रक्षा मंत्री ने तीन बार भारतीय नेवी को चेताया था कि समुद्री मार्ग से हमला हो सकता है या नरेन्द्र मोदी ने इस बात की आशंका केन्द्र सरकार से पहले ही व्यक्त की थी. यदि एण्टनी साहब ने यह आशंका व्यक्त की थी या नेवी को चेताया था तब उन्होंने चीफ ऑफ नवल स्टॉफ को बुलाकर उस दिशा में कुछ कार्यवाई करने और उसकी प्रगति रपट लगातार देने के लिए क्यों नहीं कहा? और यदि कहा था तब उस दिशा में क्या कोताही रही कि इतना बड़ा हादसा घटित हो गया. उसी दिन समुद्री मार्ग से आए दस आतंकवादी कितनी मात्रा में असलहा और आठ-आठ किलो के आर.डी.एक्स. बम ले आये थे, जो ताज महल होटल के अलावा अन्य जगहों में पाये गये. संभवतः असलहा पहले से ही यहां पहुंचाया जा चुका होगा और आतंकवादियों की संख्या कहीं अधिक रही होगी. निश्चित ही मुम्बई काण्ड में कुछ स्थानीय लोगों की भूमिका रही है और इस घटना को एक दिन में अंजाम नहीं दिया गया. समाचार यह हैं कि आज चौदह खूंखार आतंकवादी दिल्ली में किसी बड़ी घटना को अंजाम देने के लिए मौजूद हैं और ४४०० पाकिस्तान में तैयार बैठे हैं अपने आका आई.एस.आई. से निर्देश पाने के इंतजार में.
वर्षों से हम आतंकवादी हमलों से जूझते आ रहे हैं. आतंकवाद की जड़ें पड़ोसी देश में हैं यह प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कहते भी रहे हैं लेकिन कोई ठोस कदम क्यॊं नहीं उठा पाये. संसद में हुए हमले के बाद सेना को पश्चिमी सीमा में तैनात कर दिया गया था और आशंका व्यक्त की जा रही कि कभी भी युद्ध हो जाएगा. लेकिन कुछ जाहिल सिरफिरों के लिए दोनों देशों की जनता पर युद्ध थोपना कोई विकल्प नहीं है. दरअसल हम अमेरिका की भांति यहां होने वाले आतंकवादी हमलों का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने में विफल रहते आए हैं. लेकिन आज स्थिति भिन्न है. मुम्बई हमले से पाकिस्तान समर्थन के इतने प्रमाण मिले हैं कि भारत को सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव १३७३ के तहत इसे सुरक्षा परिषद में अवश्य उठाना चाहिए. इतने दिन बीत जाने के बाद भी चुप्पी क्यों है? इस हमले में अनेकों विदेशी नागरिक मारे गये हैं, जिनमें छः अमेरिकी नागरिक हैं. कोण्डालिसा राइस का भारत दौरा इससे पहले हुए आतंकवादी हमलों के बाद क्यों नहीं हुआ इस बात को भारत को समझना चाहिए. भारत को पाकिस्तान स्थित आतंकवादी शिविरों को ध्वस्त करने के लिए विश्व समुदाय की सहायता लेनी चाहिए और आज के संदर्भ में वह मिलना असंभव नहीं है. लेकिन यहां भी कहीं वोटों की राजनीति आड़े न आ जाये हमें यह आशंका है.
इस संदर्भ में मुझे दिल्ली के बाटला हाउस में दिल्ली पुलिस और आतंकवादियों के बीच हुई मुठभेड़ की याद आ रही है, जिसमें दिल्ली पुलिस के जांबाज इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा शहीद हुए थे. राजनीतिज्ञों का एक बड़ा समूह ( जिसकी अग्रणी भूमिका ठाकुर अमर सिंह, पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव, केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान, रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव जैसे लोग निभा रहे थे ) उसे फेक एन्काउण्टर बता रहे थे और उसकी सी. बी. आई. जांच की मांग कर रहे थे. हमारे प्रगतिशील बुद्धिजीवियों का एक वर्ग भी यही सब कह रहा था. उनके अनुसार शर्मा को दिल्ली पुलिस के किसी सिपाही ने ही गोली मारी होगी. जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर ने दस कदम आगे जाकर पकड़े गये आतंकवादियों के लिए विश्वविद्यालय की ओर से कानूनी सयायता उपलब्ध करवाने की घोषणा भी कर दी, जिसे शिक्षा जगत में एक अनोखा उदाहरण माना जाएगा. यह सब लिखने का आभिप्राय यह कि आज देश की जनता आतंकवाद के जिस अभिशाप को झेल रही है वह हमारी कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिणाम है. अमेरिका में ९/११ के बाद कोई आतंवादी दुर्घटना क्यों नहीं घटी, क्योंकि वहां का हर नागरिक और नेता अमेरिकी पहले है---- डेमोक्रेट या रिपब्लिकन बाद में.
किसी दूसरे देश से संचालित आतंकवादी हमला उसकी सम्प्रभुता पर हुआ हमला है और उससे उसी प्रकार कठोरता से नपटने की आवश्यकता है जिस प्रकार अमेरिका और रूस नपटते हैं. सभी जानते हैं कि आतंकवादियों का कोई धर्म-जाति नहीं होता, फिर किसी धर्म-जाति की राजनीति में फंसकर आतंकवादियों के हौसलों को क्यों बुलन्द हो जाने दिया गया कि वे एक साथ पांच हजार लोगों की जाने लेने के लिए मुम्बई में उतर पड़े. पिछले आतंकवादी हमलों के दोषी आतंवदियों को अब तक फांसी क्यों नहीं दी गई?
यद्यपि मुम्बई हमले से हमारी सरकार का रुख सख्त दिख रहा है और सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे वोट की राजनीति करने वाले नेताओं को भी सांप सूंघ गया है----- तथापि आम जनता पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पा रही है. सरकार जागी तो है, लेकिन वह कितने दिन जागी रहेगी --- यह भविष्य बताएगा.
अफजल गुरू एक मात्र उदाहरण नहीं है. यह सिलसिला स्व० विश्वनाथ प्रताप सिंह साहब के समय कश्मीरी नेता और तत्कालीन गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी के अपहरण से प्रारंभ हुआ था. उसके बाद------ एक जान के लिए देश के हजारों आमजनों की जाने जाती रहीं. आज वे ही राजनेता एक दूसरे पर दोषारोपण करते नहीं अघा रहे. उन्हें आमजन की रक्षा से अधिक अपने वोटों की चिन्ता अधिक सताती है. अपनी सुरक्षा के लिए चीख-पुकार करने वाले इन लोगों ने देश की सुरक्षा के प्रति कितनी जिम्मेदारी अनुभव की यह जनता से छुपा नहीं है. आज देश चारों दिशाओं से आतंकवादियों से घिरा हुआ है. अभी तक समुद्री मार्ग सुरक्षित माना जा रहा था, लेकिन मुम्बई हमले ने सिद्ध कर दिया कि हमारी लापरवाही और नेताओं की राजनीति के कारण आतंकवादियों के लिए कुछ भी असंभव नहीं रहा.
अब इन समाचारों का क्या अर्थ कि हमारे रक्षा मंत्री ने तीन बार भारतीय नेवी को चेताया था कि समुद्री मार्ग से हमला हो सकता है या नरेन्द्र मोदी ने इस बात की आशंका केन्द्र सरकार से पहले ही व्यक्त की थी. यदि एण्टनी साहब ने यह आशंका व्यक्त की थी या नेवी को चेताया था तब उन्होंने चीफ ऑफ नवल स्टॉफ को बुलाकर उस दिशा में कुछ कार्यवाई करने और उसकी प्रगति रपट लगातार देने के लिए क्यों नहीं कहा? और यदि कहा था तब उस दिशा में क्या कोताही रही कि इतना बड़ा हादसा घटित हो गया. उसी दिन समुद्री मार्ग से आए दस आतंकवादी कितनी मात्रा में असलहा और आठ-आठ किलो के आर.डी.एक्स. बम ले आये थे, जो ताज महल होटल के अलावा अन्य जगहों में पाये गये. संभवतः असलहा पहले से ही यहां पहुंचाया जा चुका होगा और आतंकवादियों की संख्या कहीं अधिक रही होगी. निश्चित ही मुम्बई काण्ड में कुछ स्थानीय लोगों की भूमिका रही है और इस घटना को एक दिन में अंजाम नहीं दिया गया. समाचार यह हैं कि आज चौदह खूंखार आतंकवादी दिल्ली में किसी बड़ी घटना को अंजाम देने के लिए मौजूद हैं और ४४०० पाकिस्तान में तैयार बैठे हैं अपने आका आई.एस.आई. से निर्देश पाने के इंतजार में.
वर्षों से हम आतंकवादी हमलों से जूझते आ रहे हैं. आतंकवाद की जड़ें पड़ोसी देश में हैं यह प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कहते भी रहे हैं लेकिन कोई ठोस कदम क्यॊं नहीं उठा पाये. संसद में हुए हमले के बाद सेना को पश्चिमी सीमा में तैनात कर दिया गया था और आशंका व्यक्त की जा रही कि कभी भी युद्ध हो जाएगा. लेकिन कुछ जाहिल सिरफिरों के लिए दोनों देशों की जनता पर युद्ध थोपना कोई विकल्प नहीं है. दरअसल हम अमेरिका की भांति यहां होने वाले आतंकवादी हमलों का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने में विफल रहते आए हैं. लेकिन आज स्थिति भिन्न है. मुम्बई हमले से पाकिस्तान समर्थन के इतने प्रमाण मिले हैं कि भारत को सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव १३७३ के तहत इसे सुरक्षा परिषद में अवश्य उठाना चाहिए. इतने दिन बीत जाने के बाद भी चुप्पी क्यों है? इस हमले में अनेकों विदेशी नागरिक मारे गये हैं, जिनमें छः अमेरिकी नागरिक हैं. कोण्डालिसा राइस का भारत दौरा इससे पहले हुए आतंकवादी हमलों के बाद क्यों नहीं हुआ इस बात को भारत को समझना चाहिए. भारत को पाकिस्तान स्थित आतंकवादी शिविरों को ध्वस्त करने के लिए विश्व समुदाय की सहायता लेनी चाहिए और आज के संदर्भ में वह मिलना असंभव नहीं है. लेकिन यहां भी कहीं वोटों की राजनीति आड़े न आ जाये हमें यह आशंका है.
इस संदर्भ में मुझे दिल्ली के बाटला हाउस में दिल्ली पुलिस और आतंकवादियों के बीच हुई मुठभेड़ की याद आ रही है, जिसमें दिल्ली पुलिस के जांबाज इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा शहीद हुए थे. राजनीतिज्ञों का एक बड़ा समूह ( जिसकी अग्रणी भूमिका ठाकुर अमर सिंह, पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव, केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान, रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव जैसे लोग निभा रहे थे ) उसे फेक एन्काउण्टर बता रहे थे और उसकी सी. बी. आई. जांच की मांग कर रहे थे. हमारे प्रगतिशील बुद्धिजीवियों का एक वर्ग भी यही सब कह रहा था. उनके अनुसार शर्मा को दिल्ली पुलिस के किसी सिपाही ने ही गोली मारी होगी. जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर ने दस कदम आगे जाकर पकड़े गये आतंकवादियों के लिए विश्वविद्यालय की ओर से कानूनी सयायता उपलब्ध करवाने की घोषणा भी कर दी, जिसे शिक्षा जगत में एक अनोखा उदाहरण माना जाएगा. यह सब लिखने का आभिप्राय यह कि आज देश की जनता आतंकवाद के जिस अभिशाप को झेल रही है वह हमारी कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिणाम है. अमेरिका में ९/११ के बाद कोई आतंवादी दुर्घटना क्यों नहीं घटी, क्योंकि वहां का हर नागरिक और नेता अमेरिकी पहले है---- डेमोक्रेट या रिपब्लिकन बाद में.
किसी दूसरे देश से संचालित आतंकवादी हमला उसकी सम्प्रभुता पर हुआ हमला है और उससे उसी प्रकार कठोरता से नपटने की आवश्यकता है जिस प्रकार अमेरिका और रूस नपटते हैं. सभी जानते हैं कि आतंकवादियों का कोई धर्म-जाति नहीं होता, फिर किसी धर्म-जाति की राजनीति में फंसकर आतंकवादियों के हौसलों को क्यों बुलन्द हो जाने दिया गया कि वे एक साथ पांच हजार लोगों की जाने लेने के लिए मुम्बई में उतर पड़े. पिछले आतंकवादी हमलों के दोषी आतंवदियों को अब तक फांसी क्यों नहीं दी गई?
यद्यपि मुम्बई हमले से हमारी सरकार का रुख सख्त दिख रहा है और सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे वोट की राजनीति करने वाले नेताओं को भी सांप सूंघ गया है----- तथापि आम जनता पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पा रही है. सरकार जागी तो है, लेकिन वह कितने दिन जागी रहेगी --- यह भविष्य बताएगा.