मंगलवार, 8 सितंबर 2009

गीत


वरिष्ठ गीतकार-कवि राजेन्द्र गौतम के गीत


(१)
पथरा चुकीं झींलें
कभी मौसम के पड़ें कोड़े
कभी हाकिम जड़े चांटे
खाल मेरे गांव की
कब तक दरिंदों से
यहा खिंचती रहेगी
दूर----तक
जो भूख से सहमे हुए
सीवान ठिठके हैं
कान में उनके सुबकतीं
पथरा चुकी झींलें
रेत के विस्तार में
यों ठूंठ दिखते हैं करीलों के
ज्यों ठुकीं
गणदेवता की
काल-जर्जर देह में कीलें

खुर्पियों को कब इज़ाजत
धूप में भी
रुक सकें पल-भर
जाड़ियां भिंचती अगर हैं प्यास से
भिंचती रहेंगी
चांदनी पीकर अंधेरा
गेंहुआ-सा तानता फन
झोपड़ी भयभीत सिमटी
चाहती इज्जत बचाना
वक्त का मद्यप दरोगा
रोज आकर डांट जाता
टपकता खूनी नजर से
जब इरादा कातिलाना
रक्त अब तो
बूंद भर
बूढ़ी शिराओं में बचा होगा
क्यारियां इनके गुलाबों की
इसी से ही सदा सिंचती रहेंगीं.


(२)
सपनों में घुलता जहर है
रात अभी यह
तीन पहर है
बर्फ हुई
गर्मी धूनी की
पौ-फटनी है दूर
मुड़ी-तुड़ी काया
रल्दू की
ठिठुरन को मजबूर
रोम-रोम में
शीत-लहर है
मुखिया खिला-खिला
रहता था
क्या-क्या खबरें बांच
तब रल्दू के
सपनों में भी
कौंधा करती आंच
अब सपनों में
घुला जहर है

औसारे में
सबद-रमैनी-आल्हा
गुमसुम हैं
बुझे हुए
चूल्हों में पिल्ले
तोड़ चुके दम हैं
पाला ढाता
ग़ज़ब कहर है.
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डॉ- राजेन्द्र गौतम
- सितम्बर १९५२ को बराह कलाँ, जींद, हरियाणा में जन्म.
- दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनन्द कॉलेज में सह प्रोफेसर (हिन्दी)
- बीस से अधिक गीत-कविता और आलोचना पुस्तकें प्रकाशित.
- अनेक संस्थाओं से सम्मानित/पुरस्कृत.
सम्पर्क : बी-२२६, राजनगर-१, पालम, नई दिल्ली -११००७७
ई मेल :
rajendragautam99@yahoo.com
फोन नं. ०११-२५३६२३२१
मोबाईल नं. ०९८६८१४०४६९

6 टिप्‍पणियां:

Dr. Sudha Om Dhingra ने कहा…

कविताएँ अच्छी हैं, बधाई.

Kamal ने कहा…

adarniy Dr. Gautam ji ki donon kavitaayen atyant marmik aur sampreshniy hain . Badhai
kamal -ahutee@gmail.com

सुभाष नीरव ने कहा…

पहले सुने पढ़े होने के बावजूद फिर से पढ़ने पर नये और ताज़गी भरे लगते हैं आदरणीय राजेन्द्र गौतम जी के ये गीत। उन्हें तुम्हारे 'वातायन' पर देखकर सुखद लगा।

सुरेश यादव ने कहा…

डा.राजेंद्र गौतम के नव गीत मानवीय दर्द के जिवंत दस्तावेज हैं संवेदना की ताजगी से भरे हैं.बधाई
m-9818032913

ashok andrey ने कहा…

rajendra goutam jee ki kavitaon se kai baar gujraa hoon unki kavitaen achchha prabhav chhodti hein kyonki aam aadmi ke dard ko apne shabdo se nae arth dete hein
badhai deta hoon unhen tathaa goutam jee ko.

ashok andrey

राजेन्द्र गौतम ने कहा…

गीतों के यहां प्रकाशन के अजसे बाद देख रहा हूँ। टिप्पणी के लिये सभी मित्रों का आभार! वातायन संचालक से एक निवेदन: अब मै रामलालआनन्द कॉलेज मे नहीं दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में हूं।