मित्रो,
लंबे
समय पश्चात वरिष्ठ कथाकार, ग़ज़लकार और आलोचक प्राण शर्मा जी की ग़ज़लों के माध्यम से
पुनः वातायन पर लौट पा रहा हूं. आशा इस अंतराल की अनुपस्थिति के लिए आप क्षमा करेंगे
और प्राण जी प्रस्तुत ग़ज़लों पर अपनी प्रतिक्रिया देकर मुझे अनुग्रहीत करेंगे.
प्राण शर्मा की ग़ज़लें
वो सबके दिल लुभाता है कभी हमने नहीं देखा
कि कौवा सुर में गाता है कभी हमने नहीं देखा
ये सच है झोंपड़े सबको गिराते देखा है लेकिन
महल कोई गिराता है कभी हमने नहीं देखा
जवानी सबको भाती है चलो हम मान लेते हैं
बुढ़ापा सबको भाता है कभी हमने नहीं देखा
जो करता है सभी की निंदा यारो उससे मिलने को
कोई मेहमां भी जाता है कभी हमने नहीं देखा
उड़ाओ तुम भले ही पर कोई बरखा के मौसम में
पतंगों को उड़ाता है कभी हमने नहीं देखा
वो आपस में तो लड़ते हैं मगर पंछी को पंछी से
कोई पंछी लड़ाता है कभी हमने नहीं देखा
बहुत कुछ देखा है जग में मगर ऐ `प्राण` दुश्मन
को
गले दुश्मन लगाता है कभी हमने नहीं देखा
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कितने हो नादान तुम पतझड़ के आ जाने के बाद
ढूँढ़ते हो खुशबुओं को फूल मुरझाने के बाद
सब्र करने की कोई हद होती है ऐ साहिबो
क्यों न मुँह खुलता हमारा गालियाँ खाने के
बाद
ये कभी मुमकिन नहीं मंज़िल न आये सामने
रास्तों की ठोकरें ही ठोकरे खाने के बाद
पाँव हर इक के रुके होंगे घड़ी भर के लिए
ज़िंदगानी के सफ़र में मुश्किलें आने के बाद
याद रखते आपको गर शहर को हम छोड़ते
याद कैसे रक्खेंगे संसार से जाने के बाद
चाहता है आदमी जीना हमेशा के लिए
नीयत उसकी देखिये संसार में आने के बाद
`प्राण` तुम भी दोस्तों में कुछ तो मुस्काया
करो
हर कोई मासूम सा दिखता है मुस्काने के बाद
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मुस्कराहट में किसीकी मुस्करा कर देखना
उसकी खुशियों में कभी खुशियाँ मना कर देखना
राख की मानिंद तू उस को बना कर देखना
आग अपने आशियाने को लगा कर देखना
दर्द कितना होता है ये सब पता चल जाएगा
उंगली पर अपनी तू सूई को चुभा कर देखना
हर किसी में ढूँढता है दोस्ती का आसरा
पहले खुद में दोस्ती की टोह पा कर देखना
यूँ तो राजाओं के आगे सर झुकाता है बहुत
रंक के आगे कभी सर को झुका कर देखना
आता है वो पास तो मुँह फेरना उससे नहीं
सुख के जैसा दुःख को भी अपना बना कर देखना
तू सुना देता है अपने नौकरों को
कुछ न कुछ
`प्राण` हिम्मत है तो अफसर को सूना कर देखना
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सीने में ऐसा भी कोई अरमान होता है
जैसे कि बाँध तोड़ता तूफान होता है
पलड़ा हमेशा उसका ही भारी है दोस्तो
यारों के बीच शख़्स जो धनवान होता है
हर ठौर रौनकें हों ज़रूरी तो ये नहीं
फूलों भरा बगीचा भी सुनसान होता है
जीवन में एक बार कभी जा के देखिये
घर में फ़क़ीर के सभी का मान होता है
उड़ते हैं इक क़तार में वो किस कमाल से
दिल सारसों को देख के हैरान होता है
अपनी ही कहने वाला ये माने न माने पर
सच तो यही है वो बड़ा नादान होता है
ऐ `प्राण` नेक बन्दों की जग में कमी नहीं
इंसान में भी देव या भगवान होता है
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इस तरफ और उस तरफ उड़ता हुआ पंछी
खेल अद्भुत सैंकड़ों दिखला गया पंछी
छूता है आकाश की ऊँचाइयाँ दिन भर
मस्ती में डूबा हुआ इक आस का पंछी
क्यों न आ कर बैठता तरुवर की छाया में
तपती -तपती धूप में जलता
हुआ पंछी
बिजलियों का शोर था यूँ तो घड़ी भर का
घोंसलों में देर तक सहमा रहा पंछी
आ गया लो ख़ूनी हाथों में शिकारी के
एक दाने के लिए भटका हुआ पंछी
था कभी आज़ाद औरों की तरह लेकिन
बिन किसी अपराध के बंदी बना पंछी
हाय री मजबूरियाँ , लाचारियाँ उसकी
उड़ न पाया आसमां में पर कटा पंछी
भूला अपनी सब उड़ानें फिर भी पिंजरे में
एक नर्तक की तरह नाचा सदा पंछी
देखते ही रह गयीं आँखें ज़माने की
राम जाने किस दिशा में उड़ गया पंछी
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समंदर में बहती हुयी भायी कश्ती
ज़माने की नज़रों को रास आयी कश्ती
नज़र में नज़ारा वो लहराता क्यों ना
लहर पर लहर जैसी लहरायी कश्ती
न तूफ़ान था और न आँधी कहीं थी
हवाओं की मस्ती में इतरायी कश्ती
कभी डगमगायी कभी लड़खड़ायी
भले ही भँवर से निकल आयी कश्ती
हुआ ख़त्म उसका सफ़र `प्राण` आख़िर
कि चट्टान से जा के टकरायी कश्ती
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बातों में कुछ ऐसे बोल सुना जाते हैं
लोग कई तन-मन में आग लगा जाते हैं
चिंगारी फूटे न कभी ये नामुमकिन है
दो पत्थर आपस में जब टकरा जाते हैं
मेरे घर में आये तब मैंने ये जाना
दुःख के बवंडर कैसे होश उड़ा जाते हैं
लाख भले ही रख ले उनसे दूरी प्यारे
छाने वाले लेकिन मन पर छा जाते हैं
सुन्दर-सुंदर चेहरों की ख़ूबी क्या कहिये
मैले-कुचैले कपड़ों में भी भा जाते हैं
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कुछ तो जाने कुछ तो माने अपनी उस नादानी को
कैसे खोया हमने अपने घर के दाना - पानी
को
अपने को पहचान न पाये जान न पाये हम खुद को
पूज रहे हैं हम सदियों से अब भी राजा-रानी
को
कब तक धोखा देते रहेंगे अपने को या औरों
को
कब तक साथ चलेंगे ले कर अपनी बेईमानी
को
जिसकी मीठी बानी में जो रोज़ ही सुनता था किस्से
क्यों न याद करे वो अपनी प्यारी-प्यारी नानी
को
जिसकी जितनी `प्राण` पहुँच थी उसने उतना
साथ दिया
छोटा और बड़ा मत समझो ज्ञानी को या दानी को
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किसीके सामने ख़ामोश बन के कोई क्यों नम हो
ज़माने में मेरे यारो किसीसे कोई क्यों कम हो
कफ़न में लाश है इक शख़्स की लेकिन बिना सर के
किसी की ज़िंदगी का अंत ऐसा भी न निर्मम हो
हरिक ग़म सोख लेता है क़रार इंसान का अक़्सर
भले ही अपना वो ग़म हो भले ही जग का वो ग़म हो
जताया सब पे हर अहसान जो भी था किया उसने
कभी उस सा ज़माने में किसीका भी न हमदम हो
कभी टूटे नहीं ऐ `प्राण` सूखे पत्ते की
माफ़िक
दिलों का ऐसा बंधन हो दिलों का ऐसा संगम हो
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ज़रा ये सोच मेरे दोस्त दुश्मनी क्या है
दिलों में फूट जो डाले वो दोस्ती क्या
है
हज़ार बार ही उलझा हूँ उसके बारे में
कोई तो मुझको बताये कि ज़िंदगी क्या है
ये माना,आदमी की ज़ात है मगर तूने
कभी तो जाना ये होता कि आदमी क्या है
कभी तो बेबसी से सामना तेरा होता
तुझे भी कुछ पता चलता कि बेबसी क्या है
खुदा की बंदगी करना चलो ज़रूरी सही
मगर इंसान की ऐ दोस्त बंदगी क्या है
किसी अमीर से पूछा तो तुमने क्या पूछा
किसी गरीब से पूछो कि ज़िंदगी क्या है
नज़र में आदमी अपनी नवाब जैसा सही
नज़र में दूसरे की `प्राण` आदमी क्या है
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प्राण शर्मा
:
जन्म 13 जून , 1937 में वज़ीराबाद (
वर्तमान पाकिस्तान )में हुआ था।
बचपन में तुकबंदी करना और फ़िल्मी गीतों की
तर्ज़ पर गीत बना कर यारों - दोस्तों
को सुनाना मेरा शौक़ था। देश के विभाजन के बाद
मैं अपने माता - पिता के साथ
दिल्ली आ गया । वहीं मेरी प्रारम्भिक
शिक्षा हुयी। पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी
में एम ए की डिग्री हासिल की।
लगभग पाँच दशकों
से मैं यू के एक छोटे नगर कोवेंट्री में रह रहा हूँ। ग़ज़ल
लेखन में रुचि है। कभी - कभी कहानी और
छोटी कहानी में भी क़लम चलाता हूँ।
तीन - चार पुरस्कार और पुस्तकें ही मेरे
नाम से हैं। उन्हीं से संतुष्ट हूँ। मेरी पुस्तकों
के नाम हैं - सुराही ( मुक्तक संग्रह )
, ग़ज़ल कहता हूँ ( ग़ज़ल संग्रह ) और
पराया देश ( छोटी - बड़ी कहानियाँ )
सम्प्रति : ब्रिटेन में निवास
16 टिप्पणियां:
प्राण दादा की गजलें जिंदगी के जीवंत दस्तावेज हैं.जितना पढ़ो उतना कम. सादर प्रणाम.
प्राण दादा की गज़लें ज़िन्दगी के जीवंत दस्तावेज़ हैं. सादर प्रणाम.
ज़िन्दगी की हकीकतों को समेटे बेहतरीन गज़लें ...........हर शेर मानो ज़िन्दगी की एक एक सच्चाई को बयां कर रहा हो ............शानदार गज़लें पढवाने के लिए हार्दिक आभार
प्राण साहब को जो महारत सादा, सरल और दिल को छू लेने वाली गजलों में है वो कम ही देखने को मिलती है ... हर शेर खिलता हुआ गुंचा हो जैसे ... जीवन की सचाई समेटे सभी गजलें लाजवाब हैं ...
प्राण साहब की गज़लें अद्भुत होती हैं. हर एक अलफ़ाज़ अनुभव के धूप से तपकर सँवरते हैं और जीवन जीने का मंत्र देते हैं. सभी ग़ज़ल का हर शेर बहुत उम्दा है. प्राण साहब को हार्दिक बधाई. प्राण साहब की ग़ज़लों को एक साथ पढवाने के लिए धन्यवाद!
इतने इन्तजार के बाद खजाना तो हाथ लगना ही था...बहुत बेहतरीन गज़लों का खजाना...वाह प्राण जी..
परम आदरणीय प्राण सर की ग़ज़लें हर शेर में मौजूद अनुभवों के क़ीमती दस्तावेज़ हैं।हम पढ़ें गुने तो निश्चित ही लाभान्वित होंगे।यहाँ एक साथ कई ग़ज़लों को पढ़ना एक ऐसे ही अवसर पा लेना है ।
प्राण साहेब की गज़लों के बारे में कुछ भी कहना जैसे सूरज को दिया दिखलाने के बराबर है जी .
हर ग़ज़ल में ज़िन्दगी की दस्तक मौजूद है .
कभी कभी तो मैं ये सोचता भी हूँ कि दुष्यंत के बाद प्राण जी का ही गज़लों में कमाल है .
उनकी लेखनी को मेरा सलाम !
विजय
प्राण साहेब की गज़लों के बारे में कुछ भी कहना जैसे सूरज को दिया दिखलाने के बराबर है जी .
हर ग़ज़ल में ज़िन्दगी की दस्तक मौजूद है .
कभी कभी तो मैं ये सोचता भी हूँ कि दुष्यंत के बाद प्राण जी का ही गज़लों में कमाल है .
उनकी लेखनी को मेरा सलाम !
विजय
सर्वश्री संजीव सलिल , समीर लाल समीर , वंदना गुप्ता , डॉकटर जेन्नी शबनम , दिगंबर
नासवा , विजय कुमार सप्पत्ति और सोनरूपा मुझसे बेहतर लिखते हैं। उनके प्रति आभार
है कि उन्होंने मेरी ग़ज़लों की सराहना करके मेरे उत्साह को बढ़ाया है। मूर्धन्य लेखक श्री
रूप सिंह चंदेल जी के प्रति भी आभार कि उन्होंने मेरी ग़ज़लों को अपने ब्लॉग में बड़ी
आत्मीयता से स्थान दिया है।
आदरणीय प्राण साहब के बारे में जब भी कुछ कहने की कोशिश करता हूँ लफ़्ज हमेशा कम पड़ जाते हैं । ज़िन्दगी में उनसे बहुत सीखा अब भी सीख रहा हूँ । उनकी ग़ज़लें इन्सानियत की पाठशालायें हैं । हर शेर बहुत कुछ कहता है । उनकी विशेषता है कि उनकी रचनायें जब पढ़ें नयी लगती हैं और नयी बात कहती नज़र आती हैं ।
उनकी एक से बढ़कर एक ग़ज़लों को एक साथ हम जैसे उनके उपासकों तक पहुँचाने के लिये आप का बहुत धन्यवाद ।
Hardik Dhanyawaad Neeraj Ji .
प्राण जी की चार ग़ज़लें पढ़ कर मन प्रफुल्लित हो गया. किस शेर को खास कहू, ? सबके सब लाज़वाब है , काबिलेगौर हैं , प्राण जी को पढ़ना नए अनुभव लोक से गुजरना होता है, वे शतायु हो और इसी तरह साहित्य को समृद्ध करते रहे
Dhanyawaad Girish Babu
प्राण भाई की ग़ज़लें पढ़ना जीवन से रूबरू होना है | जो हम जीते भोगते हैं उन्हें सुन्दर शब्दों में बंधा देख कर आनन्द की अनुभूति होती है | हर गजल को बार बार पढने से हर बार एक नया अर्थ समझ आता है | प्राण जी को बधाई और आपका धन्यवाद इतनी उम्दा ग़ज़लें पढवाने के लिए |
सादर ,
शशि पाधा
प्राण जी की गजलों को पढ़ना जीवन से रूबरू होना लगता है | इन्हें जितनी बार पढो, उतनी बार एक नया अर्थ सामने आता है | सरल भाषा में लिखीं यह ग़ज़लें जीवन के जिए-भोगे सत्य जैसी हैं | प्राण जी को बधाई एवं आपको धन्यवाद इतनी उम्दा ग़ज़लें पढवाने के लिए |
सादर,
शशि पाधा
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