( टीसती यादें :यह चित्र सादतपुर के मेरे घर का है, जहां अब अब गमले या तो धारूहेड़ा आ गए हैं या उजाड़ हैं.)
मित्रो,
जैसा कि कई बार आपको बता चुका हूं कि इन दिनों मैं हेनरी त्रायत द्वारा लिखित लियो तोल्स्तोय की जीवनी का अनुवाद कर रहा रहा हूं--तमाम बाधाओं के बावजूद. समय समय पर आपको उसको धारावाहिक पढ़वाने का प्रयास करता रहूंगा. जीवनी के पहले चैप्टर का पहला अध्याय आपके अवलोकनार्थ यहां प्रस्तुत है. उससे उनके परिवार की वंशावली भी.
मित्रो,
जैसा कि कई बार आपको बता चुका हूं कि इन दिनों मैं हेनरी त्रायत द्वारा लिखित लियो तोल्स्तोय की जीवनी का अनुवाद कर रहा रहा हूं--तमाम बाधाओं के बावजूद. समय समय पर आपको उसको धारावाहिक पढ़वाने का प्रयास करता रहूंगा. जीवनी के पहले चैप्टर का पहला अध्याय आपके अवलोकनार्थ यहां प्रस्तुत है. उससे उनके परिवार की वंशावली भी.
तोलस्तोय
परिवार की वंशावली
चेर्नीगोव के एक इतिहासकार के अनुसार
तोल्सतोय वंश के संस्थापक इन्द्रिस थे, जो १३५३ में जर्मनी से अपने दो पुत्रों और ३०००
शक्तिशाली अंगरक्षकों के साथ चेर्नीगोव आए थे. वे ग्रीक ऑर्थोडॉक्स में आस्था रखते
थे. चेर्नीगोव में इन्द्रिस को ल्योण्टी के नाम से जाना गया.
वंशावली
१.
इन्द्रिस
(ल्योण्टी)
२.
कांस्टैण्टाइन
लियोन्त्येविच
३.
हैरिटॉन
कांस्टैण्टाइनोविच
४.
आन्द्रे
हैरिटॉनोविच, जिन्हें तोलस्तोय कहा गया.
५.
कार्प
आन्द्रेएविच तोलस्तोय
६.
थियोडोर
दि बिगर कार्पोविच तोलस्तोय
७.
इव्स्तैफी
फेदोरोविच तोलस्तोय
८.
आन्द्रे
इव्स्तैफ्येविच तोलस्तोय
९.
वसिली
आन्द्रेएविच तोलस्तोय
१०.माइकल वसील्येविच तोलस्तोय
११.आन्द्रे मिखाइलोविच तोलस्तोय
१२. याकोव आन्द्रेएविच तोलस्तोय
१३. वसीली यकोव्लेविच तोलस्तोय
१४. आन्द्रे वसील्येविच तोलस्तोय (जन्म- १६८८), इनका दूसरा विवाह माइकल मिलोस्लाव्स्की
की एक पुत्री से हुआ था. इस विवाह से जन्मे
थे –
१५. पीटर आन्द्रेएविच तोलस्तोय (१६४५-१७२९)- ये बाद में काउण्ट तोलस्तोय कहलाए.
१६. इवान पेत्रोविच तोलस्तोय (मृत्यु-१७२८)- ये कोर्ट के प्रेसीडेण्ट थे. इनका
विवाह प्रिन्सेज
पी.आई त्रोएकुरोव (मृत्यु – १७४८) से हुआ
था.
१७. आन्द्रे इवानोविच तोलस्तोय (१७२१-१८०३) – इनका विवाह प्रिन्सेज ए.आई.शितिनिन
(मृत्यु- १८११) से हुआ था.
१८. इल्या आन्द्रेएविच (१७५७-१८२०) – ये कज़ान के गवर्नर रहे थे. इनका विवाह
प्रिंसेज
पी.एन.गोर्चाकोव (१७६२-१८३८) से हुआ था.
१९. निकोलय इल्यिच (१७९७-१८३७). इनका विवाह मारिया
एन.वोल्कोन्स्की (१७९०-
१८३०) से हुआ था.
२०. लेव निकोलाएविच तोलस्तोय (अगस्त-२८,१८२८
– नवम्बर-७, १९१०)
-0-0-0-
(प्रिंस दोल्गोरुकोव द्वारा १८५४-१८५७
में चार भागों में प्रकाशित पुस्तक ’रशियन वंशावली’ से)
तोलस्तोय
लेखक - हेनरी त्रायत
अनुवाद- रूपसिंह चंदेल
भाग-1
लियो तोल्स्तोय से पहले
नेपोलियन और अलेक्जेंडर प्रथम ने भले ही मैत्रीपूर्ण पत्रों
का आदान-प्रदान किया हो,
अथवा अपने राजदूतों
को वापस बुला लिया हो,
अपनी जनता को शांति का आश्वासन दिया हो अथवा उन्हें युद्ध
में झोंक दिया हो,
ईलाऊ (Eylau) में हजारों सैनिकों को कुर्बान किया हो अथवा तिल्सित में उन्हें
गले लगाया हो, लेकिन सन् 1800 से यास्नाया पोल्याना में अपनी पारिवारिक रियासत में कार्यमुक्त
जीवन व्यतीत कर रहे वृ़द्ध प्रिंस निकोलस सर्गेयेविच वोल्कोन्स्की ने उस लौकिक जीवन
की चाह से अपना मुंह मोड़ लिया था,
जहां अब उनके लिए
कोई स्थान नहीं था. पूर्णरूप से कोई भी यह नहीं जानता था कि उन्होनें अपने को सामाजिक
जीवन से क्यों अलग कर लिया था. उनके कुछ घनिष्ट परिचितों के अनुसार वह राजसत्ता की
प्रतिच्छाया की पृष्ठभूमि में रहने वाले व्यक्ति थे. वर्षों पहले उन्होनें युवा वरेंन्का
एगेंलहार्टड से यह कहते हुए कि ‘‘उन्हें सोचने के लिए जो कुछ भी अनुप्रेरित कर रहा है वह यह कि
वह उसकी पथभ्रष्टता से विवाह करेगें” विवाह करने से अस्वीकार कर दिया था, जो कैथरिन द्वितीय के अत्यधिक कृपापात्र पोतेश्किन की भतीजी-और
प्रियतमा थी. तथापि इस अंहकारपूर्ण अस्वीकार के बावजूद, अथवा इस कारण ही,
साम्राज्ञी की
उन पर विशेष अनुकंपा थी. गार्डस (सेना) के कैप्टेन नियुक्त होकर वह उनके (साम्राज्ञी)
साथ आस्ट्रिया के जोसेफ द्वितीय से मिलने मोगिलेव गये थे. उसके पश्चात् तेजी से पदोन्नत
होते हुए, वह प्रशिया के राजा के विशेष दूत, अजोव मस्कटियरों (राइफल के ईज़ाद
होने से पहले विशेष प्रकार की लंबी बंदूकें धारण करने वाले सैनिक) के कमाण्डर
और अंततः जनरल और श्वेत समुद्र (White
Sea) तट पर अर्खार्गेल्स्क
के मिलिटरी गवर्नर नियुक्त हुए थे. हिमानी
जलवायु वाली इस चौकी पर उनकी नियुक्ति जार पॉल प्रथम, जो कैथरिन महान के स्थान पर गद्दी पर बैठा था, ने प्रदान की थी,
लेकिन यह कहना
संभव नहीं कि ऐसा उसने उनके प्रति विशेष अनुकंपावश किया था अथवा अपमानित करने के लिए.
लेकिन शीघ्र ही प्रिंस वोल्कोंस्की का नए सम्राट से संघर्ष प्रारंभ हो गया था, जिसकी विद्वेषी और अस्थिर प्रकृति से सम्पूर्ण रूस पहले से ही
आतंकित था. जब एक सामान्य पेशेवर घटना के बाद उन्हें सम्राट से एक पत्र प्राप्त हुआ, जिसमें पारम्परिक,‘‘मैं आपका शुभचिन्तक सम्राट” वाक्य पृष्ठ के अंत में लिखा गया था, उन्होंने अनुमान किया कि यह उनके करियर का अंत था, और स्वयं पहल करते हुए उन्होनें अपने को तुरंत सेवा-मुक्त करने
के लिए कहा था.
एक बार यास्नाया
पेल्याना (रूसी शब्द यास्नी का अर्थ ‘प्रभावशाली‘ अथवा ‘साफ‘ और यासेन का ऐश वृक्ष है, अतः कुछ यास्नाया पोल्याना का अर्थ ‘साफ निर्वृक्ष क्षेत्र‘ और दूसरे कुछ कम काव्यात्मक लेकिन वास्तविकता के निकट
‘ऐश वन का मैदान‘ लगाते हैं.) में व्यवस्थित होने के बाद, इस उच्च-शिक्षित,
ओजस्वी और घोर
स्वाभिमानी व्यक्ति ने उससे बाहर न जाने का दृढ़ संकल्प किया था. उनका कहना था कि उन्हें किसी की और कुछ भी की आवश्यकता
नहीं थी और उनसे मिलना चाहने वाला कोई भी व्यक्ति वहां की यात्रा कर सकता था, क्योकि उनकी जागीर मास्को से केवल एक सौ तीस मील दूर थी.(एक सौ छियासहवें वर्स्ट . एक वर्स्ट 3500 कदमों के बराबर अथवा 0.66 मील.) प्रायः
वह अपने को एक
कमरे में बंद कर लिया करते और अपने वंश-वृक्ष के विषय में चिन्तन किया करते, मानो वह अपने महत्व के प्रति स्वयं को विश्वास दिलाते थे.
उनके वंश-वृक्ष के विशिष्ट नामों की सर्पिल फेहरिश्त से भरा
हुआ ट्रंक चेर्नम्गोव के प्रिंस सेंट माइकेल के अधिकार में था. इस दस्तावेज के अनुसार, वोल्कोन्स्की प्रसिद्ध प्रिंस रूरिक के वंशज थे, जिनकी एक संतान को चौदहवीं शताब्दी में तुला सरकार में वोल्कोना
नदी किनारे कृषि-भूमि पर अधिकार दिया गया था. एक प्रिंस वोल्कोन्स्की (फ्योदोर इवानोविच) की गोल्डेन होर्ड के तातारों
से कुलिकोवो रणस्थल में युद्ध करते हुए एक हीरो की भांति मृत्यु हुई थी, जबकि दूसरे (सेर्गेई
फ्योदोरोविच) ‘सप्त वर्षीय युद्ध‘
में जनरल थे और
वह भी मार दिए गए होते लेकिन उन्होनें अपनी गर्दन के चारों ओर एक छोटी-सी ईसा की मूर्ति
पहन रखी थी, जिसने शत्रु के आघातों से उनकी रक्षा की थी.
इस महान परिवार द्वारा की गई राज्य सेवा के सम्मान-स्वरूप प्रिंस
निकोलस मर्गेएविच वोल्कोन्स्की को यास्नाया पोल्याना में दो सशस्त्र पहरेदार रखने का
विशेषाधिकार प्रदान किया गया था. वे अपनी जीर्ण-शीर्ण यूनीफार्म में बांए कंधे पर बंदूक
रखे और तिरछी बेलनाकार टोपी पहने सफेदी की हुई ईंटों के दो बुर्जों, जिनकी छत ढलुआ आकार की थी, और जो जागीर के प्रवेश द्वार के निकट थे, के बीच दिन-रात आगे-पीछे कदम-ताल करते रहते थे. किसान, व्यापारी,
यहां तक कि सम्मानित
अतिथियों को ये सैनिक स्मरण कराते रहते कि यद्यपि गृहस्वामी ने अपने को संसार से विरक्त
कर रखा है और राजदरबार में वह अब प्रभावशाली भी नहीं हैं तथापि तुला सरकार में सभी
उन्हें आदर देते हैं. उनके भूदास उन्हें प्यार करते और उनसे भयभीत भी रहते, वह खेती करने संबन्धी उन्हें सलाहें देते और उनके अच्छे रहन-सहन, भोजन और कपड़ों की ओर ध्यान देते थे, वह प्रांतीय प्रशासनिक प्राधिकरण द्वारा तंग किए जाने पर उनसे
उनकी (किसानों की) रक्षा करते,
और उनके लिए आनंदोत्सवों
का आयोजन किया करते थे.
उनकी कठोरता कुख्यात
थी, लेकिन उनके भूदासों की पिटाई कभी नहीं हुई. प्रतिदिन सुबह सात
बजे लंबे-चैड़े ब्लाउजों,
पायजामों, सफेद मोजों और पंप जूतों में सजे आठ भूदास संगीतकार प्राचीन
एल्म वृक्ष (गोल पत्तियों वाला विशाल वृक्ष जिसकी पत्तियां
जाड़े में झरती हैं.) के निकट के अपने म्यूजिक स्टैण्ड के सामने एकत्रित होते थे.
एक छोटा बच्चा गर्म पानी का घड़ा ले जाते हुए चीखकर कहता, ‘‘वह जाग चुके हैं’’.
उसके पश्चात् आर्केस्ट्रा
बज उठता और वाद्य स्वरों का सुरीलापन प्रिंस के शयनकक्ष की खिड़कियों की ओर ऊपर उठने
लगता. प्रभाती की समाप्ति के बाद संगीतकार तितर-बितर हो जाते, एक सुअरों को भोजन खिलाने, दूसरा नौकरों के हॉल में मोजे बुनने और तीसरा बाग में खुदाई
करने चला जाता था.
घर के अभ्यागत,
वे किसी भी पद
में होते, प्रातःकालीन भेंट वाले विशाल उपकक्ष में प्रतीक्षा करते थे.
और अंत में जब ड्रेसिगं रूम का दो पल्लों वाला
दरवाजा झूलता हुआ खुलता,
एकत्रित लोगों
में एक भी ऐसा न होता जो घनी काली भौहों पर पाउडर लगा विग पहने, युवा स्फूर्ति और वयस का गांभीर्य प्रकट करते, शरीर को सहजता से न मोड़ पाने के कारण लरज कर अपनी ओर आते उदासीन
वृद्ध व्यक्ति को देखकर उनके प्रति सगेपन के गहरे आदर को अनुभव न करता हो. वह तेजी
से साग्रही मुलाकातियों से मिलकर टहलने अथवा अपनी जागीर का चक्कर लगाने के लिए प्रस्थान
करते, जिस पर उन्हें बहुत गर्व था. जागीर विस्तृत भूभाग में अव्यवस्थित
ढंग से फैली हुई थी,
जिसके रास्तों
में पुराने जंभीर-नींबू- के वृक्ष,
विशाल लाइलक, अव्यवस्थित एमल्डर वृक्ष, पिंघल वृक्षों के झुरमुट, और भोजवृक्ष और काले देवदारु के वृक्ष थे.वहीं शफरी मछलियों
(कार्प) से युक्त चार तालाब, एक गहरा झरना (वोरोन्का),एक फलोद्यान और दर्जनों गांव थे. स्वामी का निवास काष्ठ निर्मित, और स्तम्भों-परिस्तभों और नव-शास्त्रीय त्रिकोणिका से सज्जित
था, जिसमें सदैव ताजा सफेद पेण्ट किया हुआ होता था. उसके पार्श्व
में दो पविलयैन-दर्शक उंडप- थे. पहाड़ी पर से घुमावदार प्राकृतिक दृश्य शांत दिखाई देता
जिसके बीच से कीव का पुराना राजमार्ग जाता था जिससे गर्मी के मौसम में तुला की ओर जाने वाली गाड़ियों की एकरस चरमराहट और गाड़ीवानों की चीख
सुनाई देती थी.
प्रिंस वोल्कोन्स्की प्रकृति, पुस्तकें,
संगीत और दुर्लभ
फूलों, जिन्हें वह अपने ग्रीन हाउस में उगाते थे, को प्यार करते थे,
और शिकार से घृणा
करते थे. वह अंघविश्वास और निष्क्रियता को समस्त बुराइयों की जड़ मानते थे. वह पुरानी
चीजों से फ्रांसीसी विश्वकोष रचइताओं को पढ़कर आत्मसंघर्ष करते, आत्मसंस्मरण लिखकर उनसे बचते, और गणित का अध्ययन करते, जो वह एक ऊंची डेस्क पर
खड़े होकर करते थे. उस समय वह नसवार की डिबिया घुमा रहे होते,... पैर पेडल पर रखे होते,
हाथ से पोकली को
निर्देशित कर रहे होते,
और उल्लास से चमकती
उनकी आंखे लकड़ी के पीले बुरादे के बादलों पर जमी होतीं. लेकिन उनका अधिकांश समय अपनी एक मात्र संतान पुत्री मार्या, जो प्रिंसेज कैटरिना द्मित्रीव्ना त्रुबेत्स्कोया से उनके विवाह
से जन्मी संतान थी,
की शिक्षा के लिए
समर्पित था. पिंसेज 1792 में मर गयी थीं जब मार्या मात्र दो वर्ष की थी ( प्रिंसेज मार्या निकोलाएव्ना का जन्म 10 दवम्बर , 1790 को हुआ था.) प्रिंस विधुर रहे और इस निस्तेज, भद्दी और आज्ञापरायण
बच्ची को अत्यंत प्रेम करते हुए उसका पालन-पोषण किया. यद्यपि उनमें प्रबल भावनात्मकता
निसृत थी, तथापि प्रिंसेज की उपस्थिति में ऊपरी तौर वह रिजर्व रहते थे.
सबसे बड़ी बात यह कि वह चाहते थे कि वह परिष्कृत मस्तिष्क, फ्रेंच के अतिरिक्त,
जिसे उच्च रूसी
समाज के सभी लोग पढ़ना पसंद करते थे,
वह अंग्रेजी, जर्मन और इटैलियन भाषा भी पढ़े. उसकी कुछ रुचियां थीं. वह आकर्षक
ढंग से पियानो बजा लेती थी,
और कला के इतिहास
में उसकी रुचि थी. उसके पिता स्वयं उसे अल्जेब्रा और ज्यामिति जोश और तेजी से पढ़ाते
हुए उस पर झुक जाया करते और डांट-फटकार करते हुए वह उस पर प्रश्नों की बौछार किया करते
थे. वृद्धावस्था और अस्वस्थता के कारण उनके बालों में प्रयुक्त पोमेड (एक प्रकार का
तेल) की कटु गंध से वह बेहोश हो जाया करती थी. हां, यदि वह उसे गणितज्ञ नहीं बना सकते थे, आखिरकार वह उसे आत्म-नियंत्रक, स्पष्ट और तार्किक मस्तिष्क तो बना ही सकते थे और उसे इस प्रकार
तैयार कर सकते थे कि वह तूफानी जीवन सागर को अनुद्विग्न पार कर सके. इस कटु और निरंकुश
वृद्ध व्यक्ति के संसर्ग में रहती हुई मार्या ने अपनी भावनाओं को छुपाना सीख लिया था
लेकिन हृदय से दिवास्पप्नदर्शी वह लड़की भावुक बनी रही थी. वह गरीबों की चिन्ता करती, फ्रेंच उपन्यास पढ़ती,
और स्वाभाविकरूप
से पिता के समादर में वह अपने जीवन को समर्पित करने की सोचती. विवाह का विचार उसके मस्तिष्क में उत्पन्न ही नहीं
होता था. प्रिंस उसे कहीं जाने की अनुमति कभी
नहीं देते थे. इसके अतिरक्त वह सुन्दर भी न
थी. पिता की ही भांति उसकी भौहें घनी थीं,
और किसी बात से
जब वह खीजती उत्तेजनावश उसका रंग सिन्दूरी हो जाता था. किसी ने भी उसमें रुचि प्रदर्शित
नहीं की थी. यह निकोलस सेर्गेयेविच वोल्कोन्स्की की फौलादी उग्र दृष्टि थी जिसने बीस
मील इर्द-गिर्द के युवकों को दो टूक जवाब दे दिया था. केवल एक पर ही उनकी कृपादृष्टि
हुई. वह था प्रिंस सेर्गेय फ्योदोरोविच गोलिस्सिन और उसी वरेन्का ऐंगेलहार्टड, जो पोतेम्किन की भतीजी और प्रेमिका थी, और जिससे उन्होनें युवावस्था में विवाह करने से इंकार कर दिया
था, का पुत्र. जीवन के उस
पड़ाव पर दोनों व्यक्ति अच्छे मित्र बन गये थे. पारस्परिक सम्मान को दृढ़ करते हुए अपने
बच्चों से बिना विचार-विमर्श किए उनके विवाह का दृढ़ संकल्प किया था. पहले कदम के रूप
में दोनों जागीरों के भूदासों द्वारा बनाए गए दोनों परिवारों के चित्रों का आदान-प्रदान
किया गया था. मार्या,
जिससे कभी किसी
ने प्रणय निवेदन नहीं किया था,
उस रहस्यमय विवाहार्थी
के विषय में सोचकर उल्लसित थी,
जिसे उसने कभी
नहीं देखा था, लेकिन जिसका पिता सेण्ट ऐण्ड्रयू के आर्डर के फीते से घिरा हुआ
था और अति समृद्ध,
लालबालों वाली, आभूषणों से लदी उसकी मां की अध्यक्षता वाला चित्र यास्नाया पोल्याना
के ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ा रहा था. जब उसका उद्वेग व्यग्र अवस्था में पहुंचा, एक भयानक विपत्ति टूट पड़ी थी. उसका मंगेतर टॉयफायड ज्वर से मर
गया था. उसके लिए यह ईश्वरीय संकेत था. वह पिता के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के विषय
में सोच ही नहीं पाती थी. उसने अपने आंसू पी
लिए, क्योंकि उसे ऐसी ही शिक्षा मिली थी, लेकिन पीछे मुड़कर वह अपने इस उदीयमान प्रेम पर विचार करती, जिसकी पवित्रता और विषादासक्ति बचपन में पढी़ रोमांचक चीजों
की भांति संस्मरणशील थीं. अब, दूरस्थ प्रांत में कैद, वह जानती थी कि एक बूढ़ी कुमारिका के रूप में ही उसकी मृत्यु
नियत थी, और उसने प्रयास किया कि इस वास्तविकता से वह और अधिक दुखी न
हो पाए. आखिरकार,
यास्नाया पोल्याना
में जीवन बहुत सुखद था. उसके पिता ने उसके मनोरंजन के लिए दो युवा सहचरियां नियुक्त
कर दी थीं. वह मिस सुइस हेनिसीने (युद्ध और शांति ‘ में मिले बौरीने) शरारती, फ्रेंच युवती को विशेष पसंद करती थी, लेकिन ‘‘मैं दोनों के साथ भलीप्रकार मैनेज कर लेती हूं.” उसने लिखा था,
‘‘मैं एक के साथ
संगीत बजाती, ठीं ठीं और उछल कूद करती हूं, और दूसरी के साथ उदात्त विचारों पर बातें करती, और असारता पर दुखी होती हूं, और दोनों ही मुझे भयानक रूप से प्रिय हैं.”
कभी-कभी इन फाख्ताओं
की गुटरगूं से क्लांत मार्या उधर से गुजरने वाले तीर्थयात्रियों से बातचीत करने के
लिए बहिर्भवन की ओर निकल जाती थी. वे प्रिंस के विषय में अनभिज्ञ, जो आदर्शवादी यायावरों के प्रति असहनशीलता के लिए विख्यात थे, वहां भोजन और सोने के लिए ठहरते थे. बालों से युक्त उनके शरीर
पिस्सुओं से ग्रस्त होते. पीठ पर पोटली लादे और आंखों में आसमान समेटे वे रूस के एक
छोर से दूसरे छोर को नापते किसी चमत्कारी मठ में पहुंचते थे. उनकी कहानियों पर एक शब्द भी विश्वास न करती हुई
मार्या उनकी धर्मनिष्ठा की दृढ़ता पर अचम्भित होती थी. अगर वह भी, अपने बंधनों को तोड़ सकती और विश्व भ्रमण के लिए निकल सकती! लेकिन
वह यास्नाया पोल्याना से जकड़ी हुई थी. और वह बूढ़ी और म्लान हो रही थी. जब वह अपनी सहचरियों
से अपनी तुलना करती,
वह अपने सपाट, समय से पूर्व बूढ़ी,
भारी भौहों और
क्लांत मुख से घृणा करती. ‘‘पूजा के लिए मैं किसी कस्बे जाऊंगी” उसने लिखा,
‘‘और फिर, ‘‘उससे पहले कि वहां बस जाने का समय हो, और मैं लगाव अनुभव करने लगूं, मैं वहां से खिसक लूंगी. मैं तब तक चलती रहूंगी जब तक मेरे नीचे
मेरे पैर साथ देंगे और फिर कहीं नीचे पड़ रहूंगी, और मर जाऊंगी और अंततः उस शाश्वत शांत स्वर्ग में पहुंच जाऊंगी, जहां न दुख होगा न उदासी”.
वह अपने जीवन को समाप्त करने की कल्पना करती, लेकिन उसके पिता की मृत्यु हो गयी. 3 फरवरी 1821 को अकस्मात उसने अपने को इस संसार में अकेला पाया. वह इकतीस
वर्ष की थी और तब तक उसके जीवन का उद्देश्य यास्नाया पोल्याना के स्वामी की उनकी वृद्धावस्था
में प्रेमपूर्वक परिचर्या करना ही रहा था. उनके जाने के साथ, वह बेसहारा और सुकून रहित हो गयी थी. आगे आने वाले दिनों में
उसे थेड़ा-सा भी आकर्षण नहीं दिख रहा था. अपने प्रति समर्पित होने की उसकी आवश्यकता
के स्थान पर रिक्तता व्याप्त हो गयी थी. अपने स्नेह के अतिरेक की प्रतीति को अभिव्यक्त
करते हुए उसने लुइस हेनिसीन्स की बहन का विवाह अपने एक चचेरे भाई प्रिंस माइकल अलेक्जैंड्रोविच
वोल्कोन्स्की के साथ करवाने की जिममेदारी अपने सिर ली.
पूरा परिवार इस ‘बेमेल विवाह’
पर चीखा-चिल्लाया, लेकिन मार्या अडिग रही थी. उसने अपनी एक जागीर बेच दी और युवा
दम्पति की सहायता के लिए पैसा अपनी एक सहचरी के नाम जमा कर दिया. मास्को के पोस्ट-मास्टर
जनरल बुल्गाकोव ने रुष्ट भाव से अपने भाई को लिखा था, ‘‘अपने वैवाहिक जीवन का सुख उठाने की समस्त उम्मीदों के नष्ट हो
जाने के बाद प्रिंसेज,
प्रिंस निकोलस
सेर्गेएविच की बेटी...घनी भौंहों वाली एक बूढ़ी कुमारिका ने अपनी सम्पत्ति का एक भाग
एक फ्रांसीसी महिला,
जो उसके साथ रहती
है, को दे दी है.”
लुइस हेनिसीन्स की बहन और माइकल अलेक्जैंड्रोविच वोल्कोन्स्की
का विवाह मास्को में अप्रैल 1821 को हुआ. मार्या ने विशेष रूप से वहां की यात्रा की थी. मंगेतर-माइकल-
के बहुसंख्यक रिश्तेदारों में वही एक मात्र
थी जो धार्मिक समारोह में उपस्थित थी. जब उसने दोनों युवाओं को पादरी द्वारा आशीर्वाद
दिया जाता देखा,
उसका हृदय संकुचित
होने लगा था. उसके अंदर प्रेम,
विवाह और मातृत्व
के विचार आधिकाधिक आ रहे थे. क्या वास्तव में
वह आम महिलाओं को प्राप्त इस साधारण खुशी से वंचित थी?
मास्को में वह अपने
पारिवारिक घर में रही,
जो उनकी आवश्यकता
से अधिक बड़ा था,
लेकिन वहां यास्नाया
पोल्याना की अपेक्षा वृद्ध प्रिंस की स्मृतियां कम थीं. उनके मित्रों ने उन्हें घर
से बाहर निकलने और जीवन का आनंद लेने के लिए प्रोत्साहित किया. एक दिन एक ड्राइंग रूम
में उनका आमना-सामना एक औसत कद व्यक्ति से हुआ जिसके बाल घुंघराले, मुद्रा उदास,
और नीचे की ओर
ऊंछी मूंछो से विनम्रता प्रकट हो रही थी. उसने उत्तम ढंग से यूनीफार्म पहना हुआ था
और शुद्ध फ्रेंच बोल रहा था. उसने मार्या को अपना परिचय काउण्ट निकोलस इलिच तोलस्तोय
के रूप में दिया. मार्या को वह पर्याप्त प्रीतिकर प्रतीत हुआ लेकिन, जैसाकि प्रायः उनके साथ होता था उन्होंने अपनी भावनाओं को प्रकट
नहीं होने नहीं दिया. यह मुलाकात संयोगतः नहीं थी. अगले ही दिन दोनों पक्षों के पूर्णाधिकार
प्राप्त दूतों के मध्य विवाह के संबंध में विचार-विमर्श प्रारंभ हो गया था.
वास्तविकता यह थी कि काउण्ट निकोलस इलिच तोलस्तोय उस महिला के
साथ विवाह को लेकर बहुत उल्लसित नहीं थे क्योंकि वह न केवल उत्साहहीन घरेलू प्रकृति
की स्त्री थी बल्कि आयु में उनसे पांच वर्ष बड़ी भी थी. लेकिन चूंकि वह दिवालिएपन की
कगार पर थे और एक धनी महिला के साथ विवाह ही उन्हें उससे बचा सकता था. सुविख्यात नामधारी
होने के कारण रूस में किसी भी उत्तराधिकारिणी की संस्तुति उनके लिए हो सकती थी. तोलस्तोय
लोगों का दावा था कि वह लिथुआनियावासी इंडिस
नामक सामंत के वंशज थे,
जो चैदहवीं शताब्दी
में चेर्नीगोव में आकर बस गए थे और विधिवत शिक्षा प्राप्त की थी. उनके प्रपौत्र को
ग्रैण्ड ड्यूक बासिल द्वारा तोलस्तोय अथवा ‘‘शूरवीर’’
नाम प्रदान किया
गया था. पीटर ऐन्द्रेएविच तोलस्तोय को पीटर महान द्वारा कांस्तैंतिनोपोल का राजदूत
और उसके पश्चात गुप्त चांसलरी का प्रधान नियुक्त किया गया था. 1724 में अपनी सेवाओं के कारण वह सामंत वर्ग में स्थान प्राप्त करने
में सफल रहे थे,
लेकिन यह सब कैथरीन
द्वितीय के विरुद्ध षडयंत्र रचने के आरोप में उन्हें जेल में शेष जीवन व्यतीत करने
से नहीं रोक पाया था. अपने पूर्वजों की तुलना में कम महत्वाकांक्षी इल्या तोलस्तोय
ने अपनी और अपनी पत्नी श्रीमती गोर्चाकोव की संपत्ति का अपव्यय अपने कपड़े धुलने के लिए हालैण्ड भेजने, ब्लैक सी (काला सागर) से जहाज द्वारा सीधे मछली मंगवाने, बेल्येव के निकट अपनी रियासत में नृत्य और नाट्य मंचनों के आयोजन
करने, होम्बर और ताश के खेलों में पर्याप्त धन गंवाने में तब तक किया
जब तक वह भयानकरूप से कर्जदार नहीं हो गए. अंततः कुछ बेहतरी की आशा में उन्होंने कज़ान
के गवर्नर का पद स्वीकार कर लिया था. इस बीच अठारह वर्षीय उनका पुत्र निकोलस आकस्मिक
अंतःप्रेरणा से सेना में भर्ती हो गया. वह वर्ष 1812 का वर्ष था जब नेपोलियन रूस की ओर बढ़ रहा था. नौजवानों के हृदय
में देशप्रम की ज्वाला धधक रही थी. हुसार रेजीमेण्ट के ध्वजवाहक से निकोलस शीघ्र ही
अपनी मां के निकट रिश्तेदार जनरल गोर्चाकोव के परिसहायक नियुक्त हो गए, लेकिन उस शक्तिशाली संरक्षक के बावजूद 1813 के युद्ध में वह बहुत नाम नहीं कमा सके थे. एरफर्ट के नाकेबंदी
के शीघ्र बाद ही सेंट पीटर्सबर्ग अभियान से लौटते हुए वह फ्रांसीसियों द्वारा बंदी
बना लिए गए थे. 1814 में मित्र सेनाओं के पेरिस में प्रवेश करने के बाद वह मुक्त
होकर रूस लौटे और उन्हें मेजर,
फिर ले. कर्नल
नियुक्त किया गया था. क्या वह स्थायी सुरक्षा थी? नहीं. कज़ान के राज्यपाल के रूप में वयोवृद्ध काउण्ट इल्या तोलस्तोय
की फिजूलखर्ची ने इतना विकराल रूप ग्रहण किया कि पुत्र का सम्मानजनक रूप से सैन्य सेवा
में बने रहने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता था. परिवार तबाह हो गया, बेल्येव जागीर गिरवी हो गयी. दिवालिएपन का आभास होते ही निकोलस
ने सैन्य कमीशन से त्यागपत्र दे दिया और अपने माता-पिता के साथ रहने के लिए कज़ान चले
गए. जब वे बाहर थे उनकी दोनों बहनों,
एलिन और पेलाग्या
का विवाह हो चुका था. पहली का काउण्ट ऑस्टेन-सेकन और दूसरी का वी.आई. युश्कोव के साथ
हुआ था और वे घर से जा चुकी थीं. उन दोनों के विदा हो जाने के बाद भी उनकी दूर की चचेरी
बहन तात्याना एलेक्जैंद्रोव्ना एर्गोल्स्काया, जिसका उपनाम ‘ट्वायनेट’
था के कारण घर
का आकर्षण ज्यों का त्यों बना रहा था. वह एक निर्धन अनाथ थी, जिसे तोलस्तोय परिवार ने उस समय से ही अपने संरक्षण में ले लिया
था जब वह बच्ची ही थी और उसका पालन-पोषण अपने बच्चे की भांति ही किया था. वह निकोलस
की हमउम्र थी और मौनभाव से उन्हें पसंद कती थी. उसके घने भूरे बाल किंचित कठोर किन्तु
सुंदर मुखाकृति की शोभा को द्विगुणित करते थे और उसके भूरे नेत्र गोमेद की भांति देदीप्यमान
थे. उसके व्यवहार में सुघड़पन और ओजस्विता थी. जब उसका चचेरा भाई सर्वप्रथम कज़ान से
वापस आया उसने सोचा कि वह उससे विवाह का प्रस्ताव करने वाला था. यद्यपि निकोलस को इस
बात का बोध था कि इन अनेक वर्षों तक उसने अपने हृदय में उनके प्रति विचक्षण अनुराग
भाव पाल रखा था लेकिन उनकी रुचि केवल आमोद-प्रमोद में थी. कस्बे के पत्येक मदिरालय
में उनकी पूछ थी. प्रत्येक समारोह का वह प्राण थे. नृत्य और ताश खेलने में वह इतना
निमग्न हो जाते कि परिवार की चिन्ताजनक स्थिति वह भूल जाते. आखिर उनके पिता ने गैरजिम्मेदारी
का एक दक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया हुआ था. उनके कुप्रंबधन और अप्रतिष्ठापूर्ण कार्यकलापों
के कारण कज़ान सरकार का बजट दिन-प्रतिदिन संकट में
पड़ता जा रहा था,
फिर भी वृद्ध काउण्ट
इल्या तोलस्तोय सदैव प्रसन्न रहते थे. वह मानते थे कि अंततः सब कुछ सामान्य हो जाएगा.
रूसी सिनेट द्वारा नियुक्त एक समिति ने अकस्मात
उनके लेखे की जांच का निर्णय किया. भयग्रस्त हो वह अस्वस्थ हो गए और अपने बचाव में
लिखित तथ्य प्रस्तुत करने से पूर्व ही उनकी मृत्यु हो गयी थी. कुछ लोगों ने दावा किया
कि उन्होंने आत्महत्या की थी.
निकोलस तोलस्तोय
ने पहले शायद ही कभी धन-संपत्ति के विषय में विचार किया था, लेकिन रसातल के प्रति रातों-रात उन्होंने अपनी आंखें खोलीं.
उन्होंने अपनी जमीन बेच दी और अपनी चचेरी बहन ट्वायनेट और मां के साथ मास्को के एक
साधारण अपार्टमण्ट में चले गए और उनके भरण-पोषण के लिए वरिष्ठ नागरिकों के एक अनाथालय
में अनिच्छापूर्वक उप-निदेशक का पद ग्रहण किया. ट्वायनेट घर संभालती और अपनी आण्ट की
देखभाल करती, उनके लिए पुस्तकें पढ़ती और सिरचढ़ी, निरंकुश और तुनकमिज़ाज वृद्ध महिला की प्रत्येक सनक को झेलती
थी. ट्वायनेट के व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता यह थी कि वह दूसरों की प्रसन्नता के
लिए स्वयं को कष्ट देती थी. सबको गले लगाने की उसकी भावना दोनों - काउण्टेस, जिनसे वह परिवार की आर्थिक स्थिति को छुपाने का प्रयत्न करती
थी, तथा अनुचरों,
जिनके प्रति वह
दयालु और दृढ़ रहती थी,
के प्रति एक समान
थी. लेकिन उसका चचेरा भाई निकोलस तोलस्तोय उसके मन-मस्तिष्क का उत्कृष्ट और अलभ्य केन्द्रबिन्दु
था. वह उससे कुछ भी गोपनीय नहीं रखता था. वह उन्हें एक आदर्श व्यक्ति नहीं मानती थी
और उनकी प्रत्येक त्रुटियों को सहानुभूतिपूर्वक देखती थी. वह ‘‘गुणों का मूर्तिमान आदर्श’’ बनने से पर्याप्त दूर रहते थे. सोलह वर्ष की आयु में उनके माता-पिता
ने जीवन के सत्य का पाठ पढ़ाने के लिए उन्हें एक दासी उपलब्ध करवाया था. इस संबन्ध से
उन्हें निशेन्का नामका एक बच्चा उत्पन्न हुआ जो बाद में एक अश्वारोही बना और मुफ़लिसी
में मरा था. जब वह सेना में थे उनके अनेक प्रेम-प्रसंग थे जिनके विषय में वह ट्वायनेट
के समक्ष प्रच्छन्न और अस्पष्ट रूप से उल्लेख किया करते थे. वह आशा करती थी कि अनेक
साहसिक कार्यों से थके होने और सहज धनराशि के अभाव के कारण स्थिर चित्त हो जाने की
अवस्था में उनके मन में यही विचार आता होगा कि केवल वही उन्हें प्रसन्न रख सकती है.
और यह सही भी था. कितने ही ऐसे दिन थे कि जब वह उसकी ओर कारुणिक दृष्टि से ऐसी भावना
से देखते कि वह उत्तेजनापूर्ण भ्रम में पड़
जाती थी. फिर भी उन्होंने अपने भविष्य के संबंध में कभी कोई बात नहीं की. वह भव्यतापूर्ण
जीवन जीने के आदी थे और अपनी दुखद स्थितियों पर झुंझलाहट भी प्रकट करते थे. अपनी धनराशि
की गणना ने उन्हें मानव-दोषी बना दिया था. कभी-कभी वह अपने को घण्टों कमरे में बंद
कर लेते थे और पाइप पीते रहते थे. काउझटेस सिसकती हुई कहतीं कि एक अच्छा विवाह ही उन्हें
बचा सकता है. ट्वायनेट के मस्तिष्क में बीते वे दिन कौंधने लगते जब एक छोटी-सी बालिका
के रूप में वह म्यूसिअस स्केवोसा की कहानी
से अत्यधिक प्रभावित हुई थी और उसने यह दृढ़ निश्चय किया था कि वह अपने चचेरे भाई-बहनों
के साथ यह सिद्ध कर देगी कि वह भी वीरता में समर्थ थी जिसका प्रदर्शन उसने अपने हाथ
के अग्र भाग को सुलगते लोहे की छड़ को स्पर्श करके किया था. जब उसकी त्वचा जलने लगी
थी तब भी उसके मुंह से चीत्कार का एक शब्द भी नहीं निकला था. उसका निशान अभी तक मौजूद
था. उस पर खिन्नतापूर्वक मुस्कराते हुए उसने सोचा कि अपने चरित्रबल के प्रदर्शन का
अवसर एक बार फिर आ गया था. जब परिवार अत्यधिक घरेलू, लगभग अधेड़,
घनी भौंहोंवाली, प्रबल भाग्यशाली उस महिला मार्या निकोलाएव्ना वोल्कोन्स्की की
बात करने लगा तब उसने अपनी ईर्ष्या दबाते हुए निकोलस तोलस्तोय से यह आग्रह किया कि
वह विचार-मंथन कर विवाह कर लें.
9 जुलाई,
1822 को यास्नाया पोल्याना
जागीर की उत्तराधिकारिणी प्रिंसेज मार्या निकोलाएव्ना वोल्कोन्स्की का विवाह काउण्ट
निकोलस इलिच तोलस्तोय के साथ हो गया. दहेज
में तुला और ओरेल सरकार के आठ सौ कृषि दास भी शामिल थे. उनके मंगेतर के पास उपहार स्वरूप
देने के लिए अपने नाम और सुरुचिपूर्ण व्यवहार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था.
यह स्नेहहीन संबंध सरसपूर्ण संबंध सिद्ध हुआ. यह सही है कि मार्या
के हृदय में पति के प्रति भावप्रवण प्रेम नहीं था, फिर भी वह उनके प्रति अनुराग, आदर और कृतज्ञता के सदृश कोई भाव रखती थी. जहां तक उनके पति
का संबंध है, उन्हें अपनी पत्नी के उस सत्यनिष्ठा के गुण से परिचित होने में
अधिक समय नहीं लगा जो किसी भी बाह्य सौन्दर्य को बहुत पीछे छोड़ देता है. उन्होंने उनकी
नैतिक और बौद्धिक श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया. वस्तुतः अपनी सुसराल वालों के साथ
सामंजस्य स्थापित करने में उनका आत्मनियंत्रण निश्चितरूप से पूर्णरूपेण उल्लेखनीय रहा.
चूंकि अपने पुत्र की स्थिति सुरक्षित हो गयी थी तो वृद्धा काउण्टेस को खेद था कि (उसने
उनके पुत्र ने) अधिक चकाचैंध वाली किसी स्त्री से विवाह नहीं किया था. वह इसलिए भी
अप्रसन्न थीं क्योंकि उनका पुत्र अपनी पत्नी के कारण उनकी उपेक्षा कर रहा था. उन्हें
ईर्ष्या थी और उन्होंने ऐसा प्रदर्शित भी किया. युवा दम्पति के साथ निवास करने वाली
ट्वयनेट ने भी उनके विवाह आनंद की नित्य की यंत्रणा को चुपचाप सहा. वह मार्या की प्रत्येक
गतिविधि पर नज़र रखती और उससे घृणा का कोई न कोई कारण खोजने का प्रयत्न करती, लेकिन उसे सफलता प्राप्त नहीं हो सकी. नवागतुंका के स्नेहपूरित
और विनम्र स्वभाव के वशीभूत वह यह बिल्कुल ही नहीं समझ पा रही थी कि वह निकोलस की प्रसन्नता
अथवा निराशा पर आनंदित हो अथवा नहीं क्योंकि वह उसे किसी अन्य के साथ साझा कर रहा था.
31 जून,
1823 को काउण्टेस मार्या
ने एक पुत्र निकोलस -- ‘कोको’
को जन्म दिया--
और उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि मानो उनकी संपूर्ण इच्छाएं पूर्ण हो गयी थीं. बालक उनके
संसार का केन्द्र बिन्दु बन गया. उन्होंने अपने पति से कहा कि वह त्यागपत्र दे दें
और 1824 में संपूर्ण परिवार ने यास्नाया पोल्याना में बस जाने के लिए
मास्को छोड़ दिया था.
निकोलस तोलस्तोय
ने, जो कृषि में बहुत कम रुचि दिखाते थे अपने को कस्बे के एक जमींदार
के रूप में बदल लिया था. परंपरा से आबद्ध एक रूढ़िवादी की भांति उन्होंने कृषि के सभी
आधुनिक तरीकों को ठुकरा दिया था,
लेकिन वह सदैव
खेतों में रहते,
अपने कृषिदासों
से पितृसुलभ भाव से गपशप करते,
आवश्यकता पड़ने
पर उन्हें सलाह देते और यदा-कदा और अनिच्छा से अवज्ञा अथवा उपेक्षा के दोषी किसी व्यक्ति
को कशाघात के आदेश देते. शरत्काल में वह प्रायः भोर के समय अपने बोर्सोई कुत्ते के
साथ निकल जाते और झुटपुटा हाने तक घर वापस नहीं लौटते थे. लौटते तब थके, उल्लसित और धूलधूसरित होते थे. उनकी उच्च विचारधारा और जिन्दादिली
भोजन की मेज पर प्रकट होती थी. वह अपने पुस्तकालय में अपने को बंद कर अध्ययनरत होने
के लिए भी विख्यात थे. वहां हास्य पुस्तकों के साथ अंडेविल्स VIII ई सीसल, दि ट्रेवेल्स
ऑफ यंग एनकैरिसिस के बगल में क्यूवियर और हिस्ट्री ऑफ पोप्स के साथ सांग्स ऑफ दि फ्रीमैसंस
पुस्तकें रखी थीं. वह उन पुस्तकों को बेतरतीब ढंग से पढ़ते और कहते कि जो पुस्तकें उनके
पास हैं जब तक उन्हें वह समाप्त नहीं कर लेंगे और पुस्तकें नहीं खरीदेंगे. जब उन्हें
पिता के कर्जदाताओं द्वारा जागीर के विरुद्ध दायर बहुसंख्य मुकदमों की पैरवी के लिए
यास्नाया पोल्याना से मास्को जाने के लिए बाध्य होना पड़ा तब उन्होंने और मार्या ने
संयमित प्रेम पत्रों का आदार-प्रदान किया था. जिन दिनों विवाहित जोड़ों में गीतात्मक
भावोद्गार व्यक्त करने की परंपरा थी,
निकोलस तोलस्तोय
अपने पत्रों का प्रारंभ सादगीपूर्वक,
‘‘मेरी करुणामयी
मित्र’’ से करते,
और उनकी पत्नी
उत्तर में, ‘‘मेरे स्नेही मित्र’’
और हस्ताक्षर के
रूप में ‘‘आपकी समर्पिता मार्या’’
लिखतीं. वह एकाकी
अपने कमरे में फ्रेंच में कविताएं लिखते हुए समय व्यतीत करतीं, जिनमें छंदशास्त्र का अंदाजन प्रयोग होता, लेकिन उच्च भाव प्रवाहित होते.
‘‘ओ परिणीत प्रेम! हमारे हृदयों के अति कोमल बंध.
हमारे सर्वाधिक स्नेहिल आनंद के उद्गम और संरक्षक!
तेरी दिव्य ज्योति निरंतर करती है हमारी आत्मा को प्रेरित,
और तेरी शांति में हो हमारी अभिलाषाएं अभिषिक्त.....
हां,
मेरा हृदय पुष्टि
कर रहा, यह स्पर्धित प्रारब्ध,
मेरे और तुमहारे लिए आरक्षित हैं स्वर्गिक श्रेष्ठताएं,
और जुड़ गए अब ये दोनों नाम, निकोलस और मैरी,
सदैव सूचित करेंगे कि मिली दो आत्माएं सौभाग्य से.
ये अभ्यास जीवन की गंभीर समस्याओं के विवेचन से अलग कर देते
थे. मार्या संक्रांतिकाल में विचार करने के लिए नीति वाक्यों की रचना, फ्रेंच में भी,
करना पसंद करती
थीं. युवावस्था की उदार मानसिक प्रेरणा प्रौढ़ावस्था की नीतियां होनी चाहिए....‘‘जब हम युवा होते हैं सभी बाह्य वस्तुओं की कामना करते हैं....’’ ‘‘प्रायः हम अपने भावावेगों का प्रतिरोध तो कर सकते हैं, लेकिन दूसरों के भावावेगों में बह जाते हैं......’’
नन्हें निकोलस के तीन वर्ष के होने से पहले ही उन्हें दूसरा
पुत्र सेर्गेई उत्पन्न हुआ (फरवरी 17,
1826) उसके अगले वर्ष
द्मित्री जन्मा (अप्रैल 23,
1827) और एक वर्ष बाद, चैथा तोल्सतोय नामका महान उत्तराधिकारी पुरोहित के रिकार्ड में
दर्ज हुआ. अगस्त 28, 1828 (यह तिथि अन्य तिथियों की भांति रशियन जूलियन कलेण्डर
के अनुसार दी गई है जो ग्रिगोरियन कलेण्डर से उन्नीसवीं शताब्दी में बारह दिन और बीसवीं
में तेरह दिन पीछे थी.) को यास्नाया पोल्याना गांव में काउण्ट निकोलस इलिच के घर पुत्र
लियो का जन्म हुआ,
और 29 अगस्त को डीकन आर्खिप इवानोव, गिनिजादार अलेक्जेंडर योदोरोव और गायक फ्योदार ग्रिगोर्येव के
सहयोग से पादरी वसीली मझेस्की ने उसका बपतिस्मा किया. धर्म पिता-मां बने बेल्येव जिले
के जमींदार साइमन इवानोविच यसिकोव और काउण्टेस पेलग्या तोलस्तोय.
जो मार्या तोलस्तोय
बत्तीस वर्ष की आयु में इस बात को स्वीकार करती थीं कि वह एक अविवाहिता के रूप में अपना जीवन व्यतीत
कर लेंगी, वह अड़तीस वर्ष की आयु में चार बच्चों की मां बनकर अपने को उस
आनंद का आदी नहीं बना सकीं. वह उन्हें इतना प्यार करतीं जितना उन्होंने अपने पिता को
भी कभी नहीं किया था. अपने पति से कहीं अधिक उन्हें प्यार करतीं. घर संभालने की जिम्मेदारी
ट्वायनेट पर छोड़कर उन्होंने अपने शरीर और आत्मा को एक शिक्षक के रूप में समर्पित कर
दिया था. वह अंतिम जन्मे लियों ‘नन्हें बेंजामिन’
को सर्वाधिक प्रम
करती थीं, लेकिन सबसे बड़े निकोलस - ‘कोको’
उनका उत्कट ध्यान
प्राप्त करता था. अपने पिता की भांति ही वह अपने समक्ष उसे असाधारण योग्यताओं से परिपूर्ण
देखना चाहती थीं. उसके शब्दों और कार्यों को वह प्रतिदिन रात में अपनी डायरी में दर्ज
करतीं. उसकी त्रुटियों को लिखकर उन्हें सुधारने का वह सर्वोत्तम तरीका मानती थीं. मुख्यतः
उनका मानना था कि उसे अपने को अत्यधिक सुक्ष्मग्राही
सिद्ध करना चाहिए. जब वह चार वर्ष का था उन्होंने उसे एक पक्षी के घायल होने की कहानी
सुनने अथवा कुत्तों को लड़ता देखने पर डांटा था. वह उसे बहादुर बनाना चाहती थीं, ‘‘जो एक ऐसे पिता के पुत्र के लिए उचित था जिसने बहादुरीपूर्वक
देश की सेवा की थी.’’
पढ़ाई में उसकी
प्रगति पर वह उसे कागज के टुकड़ों पर पुरस्कारस्वरूप --‘‘बहुत अच्छा...’’,
‘‘खरा’’, ‘‘प्रारंभ में बहुत धीमा, लेकिन बाद के पृष्ठों में अच्छा...’’
कुछेक बातो के संघर्ष के बाद, मार्या,
उनकी सास और ट्वानेट
के मध्य मेल-मिलाप स्थापित हो गाया था. एक यात्रा के दौरान मार्या ने ट्वायनेट को लिखा, ‘‘प्रिय ट्वायनेट आप यह अनुमान कैसे कर सकती हैं कि केवल इसलिए
कि मैं अन्यत्र वातारण में हूं इसलिए आपको भूल गयी हूं या आपके विषय में सोचना बंद
कर दिया है. आप जान लें कि जो मुझे प्रिय होते हैं उन्हें जब मैं प्रेम करती हूं, उन्हें कुछ भी मेरे हृदय से मिटा नहीं सकता.’’ और अन्यत्र,
‘‘आप मुझ पर इतने
कृपालु हैं और मेरी नन्हीं गौरय्या के प्रति इतना स्नेहशील हैं कि मैं यह अनुभव करती
हूं कि जब उसके विषय में बात करूं तब मैं आपको उतनी ही खुशी प्रदान करूं जितनी स्वयं
को.’’ उनके बेटे सुन्दर और स्वस्थ बढ़ रहे थे. निकोलस के प्रबन्धन में
जागीर की समृद्धि प्रारंभ हो गयी थी,
और भविष्य उज्वल
दिखाई दे रहा था. तभी 1829 में उस युवा स्त्री को ज्ञात हुआ वह एक और बच्चे की मां बनने
वाली हैं. इस पांचवें गर्भ से उनके जीवन की सक्रियता बाधित नहीं हुई. जब बच्चे सो रहे
होते वह पियानों बजातीं- फील्ड द्वारा रचित संगीत-रचना अथवा पैथेटिक सोनाज, उच्च स्वर में पढ़तीं,
अपनी चचेरी बहन
को इटैलियन भाषा पढ़ातीं,
अथवा रूसो के एमिले
के सिद्धान्तों पर चर्चा करतीं. निकोलस ड्राइंग रूम में उनके साथ आ बैठते और अपनी शिकार
कथाओं और परिहासों से उनका मनोरंजन करते. बातें करते हुए वह अपना पाइप निकाल लेते और
खिड़की से बाहरे नीचे अंधेरे में ताकते-- और बीच-बीच में उन्हें रात के चैकीदार को लोहे
की प्लेट को ठक-ठक करते हुए जाने की आवाज सुनाई देती. फरवरी, 1830 के अंत में घर में एक बड़ा हो-हल्ला हुआ. चमड़े का एक काला दीवान
जिसे मार्या ने बच्चे को जन्मने के लिए बनवाया था उसके कमरे में लाया गया जहां उसने
2 मार्च को एक बच्ची को जन्म दिया जिसका नाम भी मार्या रखा गया.
उसके तुरंत बाद
मां का स्वास्थ्य गिरने लगा. बच्चा जन्मने से वह निढाल हो गयी थी. उन्हें निरंतर ज्वर
और प्रचंड सिर दर्द की शिकायत रहने लगी थी. नौकर कहते कि निश्चित ही वह अपना दिमागी
संतुलन खो देंगी. उन्होंने अपने सभी अत्मीयों से मिलने और उनसे विदाई लेने का प्रयत्न
किया. परिवार के लोग उनके बेड के इर्द-गिर्द एकत्रित हुए. अपनी नर्स के हाथों में तेइस
माह का नन्हा लियो नीलाभ चेहरे पर आंसुओं से परिपूर्ण आंखों को देखकर भय से चीख उठा
था जो असह्य कोमलता के साथ उस पर टिकी हुई थीं. वह अपनी मां को पहचान नहीं पाया. वह
इस विचित्र महिला से घृणा कर रहा था. नर्स उसे वापस बेडरूम में ले गयी जहां वह अपने
खिलौनों के बीच पुनः शांत हो गया था. 4 अगस्त,
1830 को काउण्ट्स मार्या
निकोलोएव्ना तोलस्तोया की मृत्यु हो गयी थी.
विधुर होने के पश्चात् निकोलस तोलस्तोय ने पूर्णरूप से अनुभव
किया कि गत आठ वर्षों से उस स्त्री का कितना बड़ा स्थान उनके जीवन में था. उसके बिना
बच्चों और घर का क्या होगा?
संभवतः उन्हें
अपनी चचेरी बहन ट्वायनेट को दूसरा अवसर देने का समय आ गया था जिसे वह आर्थिक कारणों
से पहले इंकार कर चुके थे. दुनिया को दिखाने के लिए उन्होंने कुछ वर्ष बीत जाने दिए
और फिर उन्होंने उससे विवाह का प्रस्ताव किया. वह अत्यंत प्रभावित हुई, क्योंकि वह उन्हें गुप्त रूप से लंबे समय से प्रेम कर रही थी.
लेकिन दिवगंता के प्रति सम्मान के कारण उसने शादी से अस्वीकार कर दिया. वार्तालाप की
शाम उसने कागज के एक टुकड़े पर लिखा,
‘‘अगस्त 16, 1836. निकोलस ने एक व्यक्तिगत प्रस्ताव कियाः अपनी पत्नी और अपने बच्चों
की मां बनने का,
और उन्हें कभी
न छोड़ने का. मैंने पहला प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया लेकिन दूसरे को आजीवन पूरा करने
का वचन दिया.’’
उसने उस नोट को
मोतियों के बेल-बूटा कढ़े छोटे से पर्स में रखा और उसके द्वारा न कभी कुछ कहा गया अथवा
न ही उसके चचेरे भाई ने ऐसा कुछ सोचा जिससे दोनों का एक-दूसरे के प्रति आदरभाव नष्ट
हो जाता.
-0-0-0-0-
1 टिप्पणी:
प्रसिद्ध साहित्यकार रूप सिंह चंदेल जी की रचनाओं को पढ़ कर
सदैव आनंदानुभूति होती है। टॉलस्टॉय की जीवनी का पहला
अध्याय पढ़ कर भी बहुत अच्छा लगा है। क्या ही हृदयस्पर्शी
प्रस्तुति है ! दो बार मैं पढ़ गया हूँ।
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