लियो तोलस्तोय
टिप्पणियां
एल. एन. तोल्स्तोय
मैक्सिम गोर्की
अनुवाद - रूपसिंह चन्देल
यह सब बेतरतीब ढंग से मेरे द्वारा टिप्पणियों
के रूप में तब लिखा गया था जब मैं ओलीज में
रह रहा था. तोल्स्तोय उन दिनों पहले बीमार के रूप में फिर बीमारी से स्वास्थ्य लाभ
करते हुए गास्परा में थे. मैंने इन टिप्पणियों के विषय में विचार किया. मैंने उन्हें
हर प्रकार के कागज के टुकड़ों में लापरवाही से लिखा था, जो खो गए थे, लेकिन बाद में
उनमें से कुछ मिल गए . इसमें मैंने अपना अधूरा पत्र भी सम्मिलित किया है, जिसे तोल्स्तोय
के यास्नाया पोल्याना से प्रस्थान और उनकी मृत्यु के प्रभाव में लिखा था. पत्र में
एक भी शब्द बदले बिना, जैसा वह लिखा गया था, उसे मैं उसी रूप में दे रहा हूं. उसे मैं
पूरा नहीं कर पाया था ,क्यों , कह नहीं सकता .
(1)
स्पष्टतया जिस विचार ने बांरबार उनकी मानसिक
शांति नष्ट की वह कुछ और नहीं बल्कि ईश्वर संबन्धी विचार था . कभी-कभी प्रतीत होता
है कि वह कोई विचार ही नहीं था, लेकिन किसी चीज, जिसके द्वारा वह स्वयं को नियंत्रित
अनुभव करते थे , से यह प्रतिरोध की व्यग्रता है . वह जितना चाहते हैं , उस विषय में
उतनी बात नहीं कर पाते , लेकिन उस विषय में निरंतर सोचते रहते हैं. मैं नहीं समझता
कि यह आयु का संकेत था, अथवा मृत्यु के पूर्वाभास के कारण था . बहुत संभव है वह विचार
एक अच्छे मानवीय आत्मगौरव से आया हो या कुछ क्षति के ज्ञान से भी शायद आया --- क्योंकि
लेव तोल्स्तोय ने शर्मनाक ढंग से स्ट्रेप्टोकॉक्स ( एक प्रकार का बैक्टीरिया जो बीमारी
पैदा करता है , खासकर गले की बीमारी) के समक्ष अपने को समर्पित कर दिया. यदि वह प्रकृति
विज्ञानी होते, निःसंदेह वह एक शानदार कल्पना करते और महत्वपूर्ण अनुसंधान करते .
(2)
उनके हाथ आश्चर्यजनक हैं -- भद्दे , सूजी नसों
के कारण विरूप , फिर भी असाधारण अभिव्यंजक, रचनात्मक शक्ति से परिपूर्ण. संभवतः लियोनार्डो
डा विन्सी के हाथ ऐसे थे. इन हाथों से कुछ
भी किया जा सकता है . कभी-कभी , जब वह बात कर रहे होते हैं अपनी उंगलियां घुमाते रहते
हैं . जब वह कोई उत्कृष्ट वजनदार शब्द बोलते हैं तब धीरे-धीरे उन्हें मोड़ते हैं , फिर
अचानक सीधी कर लेते हैं . वह ईश्वर की भांति हैं , न कि लश्कर के स्वामी अथवा स्वर्ग
से उतरे एक देवता , बल्कि ‘‘स्वर्ण लाइम के वृक्ष के नीचे, मैपल की लकड़ी के सिंघासन
पर बैठे ’’ रूसी देवता की भांति हैं . और वह
इतना अधिक प्रतापी नहीं हैं , क्योंकि शायद वह दूसरे देवताओं की अपेक्षा अधिक चालाक
हैं .
(3)
सुलर्जित्स्की के प्रति उनमें स्त्रियोचित
सदयता है. चेखव के लिए उनमें पितृसुलभ अनुराग है . इस प्रेम में एक रचनाकार का गौरव
अनुभव किया जा सकता है , लेकिन सुलर के लिए उनके भावों में सदयता , अविच्छिन्न दिलचस्पी
, और प्रतीत होता है कि प्रतिभाशाली व्यक्ति के प्रति कभी खत्म न होने वाली प्रशंसा
है . इस भाव में एक बूढ़ी कुमारिका के अपने तोता , बिल्ली अथवा पग (कुत्ता) के प्रेम
की भांति कुछ बेतुकापन हो सकता है . सुलर एक अपरिचित, अज्ञात धरती के आश्चर्यजनक मुक्त
पक्षी की भांति है. कुछ प्रांतीय शहरों के एक सौ ऐसे लोगों के चेहरे और आत्मा बदलने
की वह क्षमता रखता है कि उस चेहरे में वे छिन्न-भिन्न हो जाएं, उस आत्मा में वे अधीर
उद्धत प्रतिभा के लिए उत्साह के साथ ओत-प्रोत हो जाएं. सुलर को प्रेम करना सहज और सुखद
है , और जब मैं महिलाओं को उसकी उपेक्षा करते देखता हूं , मैं चकित और कुपित होता हूं
. लेकिन शायद इस उपेक्षा के नीचे चतुराई-पूर्ण अप्रकट सतर्कता होती है . सुलर पर भरोसा
नहीं . कल तक वह क्या होगा ? शायद वह एक बम फेंकेगा, अथवा वह कलवरिया गायकों की गायक
मंडली में सम्मिलित हो जाएगा . तीन कल्पों के लिए उसमें पर्याप्त ऊर्जा है.
लेकिन एक बार वह सुलर से बहुत नाराज थे --
ल्युपोल्ड (सुलेर्जित्स्की - अनुवादक) जो सदैव अराजकता में रुचि रखता था और व्यक्ति
की आजादी पर गर्मागर्म बहस उसे प्रिय थी , और जब वह ऐसा करता एल.एन. उसका मजाक बनाया
करते थे .
मुझे याद है कि एक बार सुलेर्जित्स्की ने प्रिंस
क्रोपोत्किन से एक तुच्छ पम्फ्लेट प्राप्त किया . उत्साहपूर्वक दिन भर वह उसे
उठाए रहा , और अराजकता के नानाविध कौशल और मर्मभेदक ढंग से अत्यधिक दार्शनिकरूप
में उसे प्रस्तुत किया .
‘‘आह , ल्योवुश्का, बंद करो यह . मैं इससे
उकता गया हूं .’’ एल.एन. ने अप्रसन्नतापूर्वक कहा . ‘‘तुम एक ही शब्द दोहराने वाले
तोते की भांति हो-- आजादी, आजादी, और वास्तव में इसका अर्थ क्या है ? मान लो तुम्हें
तुम्हारे अनुसार आजादी हासिल हो जाती है , जैसी तुम उसकी कल्पना करते हो , परिणाम क्या
होगा ? दार्शनिकरूप से कहूं -- एक अगाध शून्य , जबकि जिन्दगी में , व्यवहार में , तुम
एक आलसी , एक भिखरी हो जाओगे. अपनी अवधारणा के अनुसार यदि तुम स्वतंत्र हो जाते हो
तो जीवन में, मानवता में अपने को कैसे बांधोगे. देखो, पक्षी स्वतंत्र हैं , लेकिन वे
घोसले बनाते हैं . तुम घोसला बनाने नहीं जाओगे . जब तुम चाहोगे , अपनी यौन वृत्ति को
बिलाव की भांति संतुष्ट कर लोगे. एक क्षण के लिए गंभीरतापूर्वक सोचो और तुम देखोगे
, तुम महसूस करोगे, कि आजादी का चरम अर्थ है एक शून्य, रिक्त आकारहीन स्थान .’’
क्रोध से अपनी भौंहें सिकोड़ते हुए वह एक क्षण
के लिए चुप हुए फिर धीरे से बोले:
‘‘ईशा आजाद थे और उसी प्रकार बुद्ध भी, और
उन्होंने सांसारिक पापों को स्वयं ग्रहण किया था . स्वेच्छया सांसारिक जीवन रूपी कारागार में प्रविष्ट
हुए थे . और कोई भी उससे आगे नहीं गया--- कोई भी ! तुमने और मैंने --- हमने क्या किया
? हम अपने पड़ोसी के प्रति अपने कर्तव्यों से स्वतंत्रता चाहते हैं .’’
वह दबी हुई हंसी हंसे .
‘‘फिर भी हम अब इस विषय पर बहस कर रहे हैं
कि गौरवपूर्ण ढंग से कैसे रहा जाए. इससे न अधिक आना है , न कुछ कम. देखो ! तुम मुझसे
बहस करो जब तक तुम्हारे सामने अंधकार है, लेकिन
तुम मुझपर प्रहार मत करना, तुम मुझपर गुर्राना भी नहीं . यदि तुम वास्तव में अपने को
आजाद अनुभव करते हो , तुम मेरा वध कर दो ---बस इतना ही .’’
और दूसरी चुप्पी के बाद, वह आगे बोले: ‘‘आजादी
--उसका अर्थ होगा कि सभी - हर कोई मुझसे सहमत होगें , लेकिन तब मैं जीवित नहीं हूंगा
.’’
(4)
‘‘यदि कोई बौद्धिक था , तो वह गलिच का व्लादीमिर्को
था . बारहवीं शताब्दी में उसने कहने का साहस किया था: ‘‘चमत्कारों का समय बीत गया
. तब से छः सौ वर्ष बीत चुके हैं ; और बुद्धिजीवी एक दूसरे को आश्वस्त कर रहे हैं
- ‘चमत्कार नहीं हैं ’ . लेकिन लोग चमत्कारों में विश्वास करते हैं जैसे वे बारहवीं
शताब्दी में करते थे .’’
(5)
‘‘अल्पसंख्यक वर्ग को ईश्वर की आवश्यकता होती
है , क्योंकि उनके पास अन्य सब कुछ होता है . बहुसंख्यक वर्ग को इसलिए आवश्यकता होती
है , क्योंकि उनके पास कुछ नहीं है .’’
अथवा मुझे कहना चाहिए: ‘‘बहुसंख्यक वर्ग ईश्वर
में अपनी भीरुता के कारण विश्वास करता है , और केवल कुछ ही आत्मा की पूर्णता से करते
हैं .’’
‘‘तुम्हें हैंस ऐंडर्सन की परीकथाएं पसंद हैं
?’’ उन्होंने गंभीर होते हुए पूछा . ‘‘जब वे मार्को वोव्चोक में अनूदित होकर प्रकाशित
हुई तब मैं उन्हें नहीं समझ पाया था , लेकिन दस वर्ष बाद मैंने पुस्तक उठायी , और उन्हें
पुनः पढ़ा , और अचानक स्पष्टता से महसूस किया कि हैंस ऐंडर्सन एकाकी व्यक्ति थे . बहुत
ही एकाकी . मुझे उनके जीवन के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं . मुझे विश्वास है , वह पक्का
लंपट और भ्रमणशील व्यक्ति था. लेकिन मेरी दृढ़ धारणा है कि वह एकाकी व्यक्ति था और इसीलिए वह बच्चों की ओर मुड़ा, लेकिन यह उसकी
भूल थी कि बच्चे बड़ों की अपेक्षा दूसरों के लिए अधिक सहानुभूति रखते हैं . बच्चे किसी
के प्रति सहानुभूति नहीं रखते . वे नहीं जानते कि सहानुभूति का अर्थ क्या है !’’
-----------------------------------------------------
’(दुर्व्याख्या से बचने के लिए मैं कहना चाहूगा कि मैं धार्मिक
लेखन को विशुद्ध साहित्यिक मानता हूं. बुद्ध , ईशा , और मोहम्मद के जीवन काल्पनिक कथा-साहित्य
हैं - गोर्की )
(6)
उन्होंने मुझे बुद्ध के प्रश्नोत्तर पढ़ने की
सलाह दी . मसीह और बुद्ध की बातें करते समय
वह सदैव भावुक हो उठते हैं-- उनके शब्दों मे न तो उत्साह होता है और न ही कारुणिकता
और न हीं हृदयाग्नि की एक भी स्फुलिंग. मैं सोचता हूं , वह मसीह को भोला-भाला , सहानुभूति के योग्य समझते
हैं , और यद्यपि कुछ मामलों में वह उनके प्रशसंक हैं तथापि यह असंभव है कि वह उनसे प्रेम करते हैं .
और वह इस बात से भयभीत जान पड़ते हैं कि यदि मसीह रूसी गांवों में आंए तो लड़कियां उन
पर हंसेगीं .
(7)
मैंने उन्हें अपनी कहानी ‘दि बुल ’ सुनाई
. वह बहुत जोर से हंसे और मेरी ‘‘भाषा की विशेषता ’’ की जानकारी की प्रशंसा की .
‘‘लेकिन तुम नहीं जानते कि शब्दों का प्रयोग
कैसे हो ! तुम्हारे सभी मुज़िक अपने को गर्वित ढंग से व्यक्त करते हैं . वास्तविक जीवन
में मुज़िक मर्खतापूर्वक , बेढंगेपन से बोलते हैं . पहले ही तुम यह नहीं बता सकते कि
वह क्या कहने का प्रयत्न कर रहे हैं . वह प्रयोजन पर किया जाता है .दूसरे व्यक्ति पर
नेतृत्व करने की इच्छा सदैव उनके शब्दों की मूर्खता के नीचे छुपी हुई भासमान होती है.
एक सच्चा मुज़िक सीधे यह कभी प्रकट नहीं करता कि उसके मस्तिष्क में क्या है . यह उसके
अनुकूल नहीं होगा . वह जानता है कि लोग सामान्य रूप और निष्कपटभाव से एक मूर्ख व्यक्ति
के पास जाते हैं और यही वह चाहता है . तुम उसके सामने प्रकटित खड़े रहो, वह तुरंत तुम्हारे
सभी कमजोर जगहों को देख लेता है . वह शक्की होता है . वह अपने रहस्यपूर्ण विचारों को
बताने से घबड़ता है , यहां तक कि अपनी पत्नी से भी. लेकिन तुम्हारी कहानियों में सब
कुछ सीधा-सीधा कहा गया है . प्रत्येक कहानी में ज्ञानदंभ का संचयन है और वे सूक्तियों
में बोलते हैं , शायद -- सूक्तियां रूसी भाषा के अनुकूल नहीं हैं .’’
‘‘और कहावतों - लोकोक्तियों के विषय में क्या
है ?’’
‘‘तुम स्वयं कभी - कभी सूक्तियों में बातचीत
करते हो .’’
‘‘कभी नहीं ! और तब तुम सब कुछ संवारने की
कोशिश करते हो --- लोग और प्रकृति , विशेषरूप से लोगों को . लेस्कोव ने भी यही किया
, उन्होंने ऊंची उड़ान भरी और प्रभावित हुए , लोगों ने बहुत पहले उन्हें पढ़ना छोड़ दिया.
किसी के समक्ष झुको नहीं , किसी से भयभीत मत हो ---फिर तुम बिल्कुल ठीक होगे --
- .’’
(8)
वह सरू
के नीचे एक पत्थर की बेंच पर बैठे थे . उनका चेहरा झुर्रियों से भरा, बूढ़ा था,
और फिर भी वह लश्कर के स्वामी की भांति थे.
वह कुछ-कुछ थके हुए दिख रहे थे और फिंच पक्षी के कूजन का अनुकरण करते हुए अपना ध्यान
उस पर केन्द्रित करने का प्रयत्न कर रहे थे. पक्षी गहरे-हरे पर्ण-समूह में गा रही थी
और तोल्स्तोय अपनी छोटी उत्सुक आंखों को सिकोड़कर पत्तियों में ताकते, एक बच्चे की भांति
होंठों पर दबाव डालते हुए बेसुरे ढंग से सीटी बजा रहे थे.
‘‘छोटी -सी चीज उन्माद में स्वयं क्रियाशील
है . उसे सुनो तो ! यह कौन-सी चिड़िया है ? ’’
मैंने फिंच पक्षी और उन चिड़ियों की ईर्ष्या
के विषय में बताया .
‘‘सारी जिन्दगी एक ही गाना - - और ईर्ष्या.
मनुष्य के हृदय में सैकड़ों गाने हैं -- और उसे ईर्ष्या का मार्ग प्रस्तुत करने का दोषी
ठहराया जाता है -- क्या यह उचित है ?’’ विचारमग्न होते हुए उन्होंने कहा , मानो वह
स्वयं से ही कह रहे थे. ‘‘ऐस क्षण होते हैं जब आदमी अपने विषय में औरत को उससे अधिक
बता देता है जितना वह जानना चाहती है. बाद में वह भूल जाता है कि उसने उससे वह सब कहा
था , लेकिन उसे याद रहता है. संभवतः ईर्ष्या किसी को नीचा दिखाए जाने, अवमानित किए
जाने के भय और हास्यास्पद दिखने से आती है.
यह वह युवती नहीं जिसने आपको वश में कर लिया है-- जो खतरनाक है , बल्कि यह वह जिसने
आपकी आत्मा पर अधिकार कर लिया है .’’
जब मैंने कहा कि इस प्रकार ‘दि क्रुट्जर सोनाटा’ (तोल्स्तोय
का उपन्यास –अनुवादक) के साथ कुछ असंगत था , उनकी दाढ़ी में एक उल्लसित मुस्कान
फैल गयी . ‘‘मैं फिंच पक्षी नहीं हूं .’’ उन्होंने
उत्तर दिया.
शाम को टहलते हुए अचानक वह बोले:
‘‘एक व्यक्ति को भूकंपों , महामारियों , भयंकर
बीमारियों और हर प्रकार की मानसिक यंत्रणाओं से गुजरना पड़ता है , लेकिन सर्वाधिक वेदनाप्रद
त्रासदी वह कभी नहीं जान पाया जो सदा थी और सदा रहेगी -- वह त्रासदी है शयनकक्ष
.’’
यह कहकर वह प्रसन्नतापूर्वक मुस्कराए-- कभी-कभी
वह स्पष्ट, शांत एक ऐसे व्यक्ति की भांति मुस्कराते हैं जिसने अत्यधिक कठिनाइयों पर
विजय प्राप्त कर लिया है , अथवा जो बहुत ही कष्टकर दर्द से पीड़ित था और अचानक उसका
वह दर्द गायब हो गया हो. प्रत्येक विचार उनकी आत्मा में किलनी की भांति छिप जाते हैं.
या तो वह उसे तुरंत बाहर निकाल देते हैं अथवा उसे आत्मसात होने देते हैं , जब तक वह
परिपक्व होकर स्वयं प्रकट नहीं होता .
वह प्रायः मुझसे कहते, ‘‘तुम चीजों को--अपने
शब्दों में, दृढ़ धारणा के साथ बिना पांडित्यपूर्ण प्रदर्शन के, अच्छी तरह वर्णन किया करो .’’
लेकिन वह लगभग सदैव भाषा में असावधानी दर्ज
करते और सांस खींचते हुए मानों स्वयं से कहते
- ‘‘अच्छे रूसी शब्दों का प्रयोग और फिर उसी
वाक्य में ‘सर्वथा’ जैसे शब्द का प्रयोग - -
.’’
कभी - कभी वह मुझे झिड़कते -- ‘‘भाव में पूर्णतया
भिन्न शब्दों को मिला देते हो -- कभी ऐसा मत करो .’’
दॉस्तोएव्सकी की भाषा के विषय में बात करना
उन्हें पसंद था .
‘‘उन्होंने बहुत खराब ढंग से लिखा है. उन्होंने
सोद्देश्य अपनी शैली को कुरूप बनाया -- सोद्देश्य . मैं गतसंदेह हूं कि अनुराग से बाहर
प्रदर्शन करना उन्हें पसंद है . ‘इडियट ’ में तुम्हें ‘कपोल ’ , ‘शेखी’ (बघारना) ,
‘ दिखावटी घनिष्ठता ’ जैसे शब्द एक साथ प्रयुक्त
मिलेगें . मैं सोचता हूं , रूसी बोलचाल के शब्दों को विदेशी मूल के शब्दों के साथ मिलाने
में उन्हें आनंद आता है . ‘इडियट ’ में वह कहते हैं -- ‘‘गधा अच्छा और उपयोगी व्यक्ति
है ’’ लेकिन कोई नहीं हंसता . यद्यपि हंसी उत्पन्न करने अथवा कुछ टिप्पणी देने के लिए
ये शब्द अपर्याप्त हो सकते हैं. यह वह तीन बहनों के सामने कहते हैं, जो उसका मजाक उड़ाती
हैं, खासकर अग्लाया. पुस्तक घटिया मानी गई,
लेकिन उसकी मुख्य कमी यह है कि प्रिंस मिश्किन मिर्गी का रोगी है . यदि वह स्वस्थ व्यक्ति
होता, उसका अकृत्रिम भोलापन, उसके हृदय की पवित्रता हमें गहराई तक स्पर्श करती. दॉस्तोएव्स्की
में इतना साहस नहीं था कि उसे स्वस्थ व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करते. इसके अतिरिक्त
वह स्वस्थ लोगों को पसंद नहीं करते थे. वह मानते थे कि चूंकि वह स्वयं बीमार थे, इसलिए
सारा संसार ही बीमार था ----.’’
उन्होंने सुलर और मेरे लिए फादर सर्मियस के
पतन का विवरण पढ़ा-- एक निष्ठुर दृश्य. अपनी उत्तेजना में सुलर खीजा और छटपटाया .
‘‘क्या बात है ? आपको यह पसंद नहीं ?’’ सुलर
ने पूछा .
‘‘वास्तव में यह बहुत निष्ठुर है . यह बिल्कुल
दॉस्तोएव्स्की की भांति है . वह भ्रष्ट लड़की , और पैनकेक जैसी उसकी छातियां, और वह
सब ! यह पाप वह सुन्दर , स्वस्थ महिलाओं के साथ क्यों नहीं कर सके ? ’’
‘‘वह पाप औचित्य के साथ नहीं होता---- इस रूप
में लड़की के लिए उनकी करुणा पर बहस की जा सकती है -- कोई भी उसे नहीं स्वीकार करेगा,
तुच्छ चीज .’’
‘‘मैं समझ नहीं पाया --- .’’
‘‘ल्योवुश्का तुम बहुत कुछ नहीं समझते. तुममें
कोई छल-कपट नहीं है .’’
अंद्रेई ल्वोविच की पत्नी अंदर आयी और बातचीत
टूट गई , और जब वह और सुलर साथ-साथ चले गए , एल.एन. मुझसे बोले:
‘‘मैं जानता हूं, ल्योवुश्का -- पवित्रतम व्यक्ति
है .’’
-0-0-0-
1 टिप्पणी:
bhai chandel tumne bahut sundar tareeke se sansmarnatmak tippaniyan ka anuwad kiya hai jisse Tolastoy ke saath Gorkhi ko samajhne men sahuliyat milti hai.mujhe ise pad kar kuchh alag tarah se cheenjon ko pakadne men apne-aap men spasht huaa hoon.sundar.
एक टिप्पणी भेजें