इला प्रसाद की पांच कविताएं
(1)
धूप का टुकड़ा
उस उदास शाम को
धूप का एक छोटा टुकड़ा
वृक्षों और दीवारों से होता हुआ
मेरी बगल में आकर बैठ गया था
मुझसे पूछे बिना ।
कुछ देर वहीं ठहरा रहा
शायद स्थिति का जायजा ले रहा था ।
फिर सांत्वना दे वातावरण की बोझिलता को
कम करने के लिए
मेरे आंसू पोंछने के भी विचार से शायद,
मेरे चेहरे पर आ गया ।
लेकिन उस बेचारे को पता भी न चला
कि क्यों और कैसे
मेरे आंसू तो सूख गए
पर मेरा उदास चेहरा
उसकी उपस्थिति से
और पीला पड़ गया था ।
खीझ और झुंझलाहट लेकर
एक दृष्टि
दार्शनिकों सी
मुझ बेवकूफ पर
डालकर
वह आगे बढ़ गया था ।
मेरी उदासी
ग्हनतर हो गयी थी ,
जिसमें, अब, उसके जाने पर,
अकेलेपन का अहसास भी
जुड़ गया था .......
(2)
यात्रा
अंधरे और उदासी की बात करना
मुझे अच्छा नहीं लगता ।
निराशा और पराजय का साथ करना
मुझे अच्छा नहीं लगता ,
इसीलिए यात्रा में हूं ।
अंधेरे में उजाला भरने
और पराजय को जय में बदलने के लिए
चल रही हूं लगातार.....
(1)
धूप का टुकड़ा
उस उदास शाम को
धूप का एक छोटा टुकड़ा
वृक्षों और दीवारों से होता हुआ
मेरी बगल में आकर बैठ गया था
मुझसे पूछे बिना ।
कुछ देर वहीं ठहरा रहा
शायद स्थिति का जायजा ले रहा था ।
फिर सांत्वना दे वातावरण की बोझिलता को
कम करने के लिए
मेरे आंसू पोंछने के भी विचार से शायद,
मेरे चेहरे पर आ गया ।
लेकिन उस बेचारे को पता भी न चला
कि क्यों और कैसे
मेरे आंसू तो सूख गए
पर मेरा उदास चेहरा
उसकी उपस्थिति से
और पीला पड़ गया था ।
खीझ और झुंझलाहट लेकर
एक दृष्टि
दार्शनिकों सी
मुझ बेवकूफ पर
डालकर
वह आगे बढ़ गया था ।
मेरी उदासी
ग्हनतर हो गयी थी ,
जिसमें, अब, उसके जाने पर,
अकेलेपन का अहसास भी
जुड़ गया था .......
(2)
यात्रा
अंधरे और उदासी की बात करना
मुझे अच्छा नहीं लगता ।
निराशा और पराजय का साथ करना
मुझे अच्छा नहीं लगता ,
इसीलिए यात्रा में हूं ।
अंधेरे में उजाला भरने
और पराजय को जय में बदलने के लिए
चल रही हूं लगातार.....
(3)
रास्ते
अपने पावों से चली
तो जाना
रास्ते कितने लंबे हैं
वरना कब, इस तरह, अकेले,
घर से निकलना हुआ था !
(4)
अपने पावों से चली
तो जाना
रास्ते कितने लंबे हैं
वरना कब, इस तरह, अकेले,
घर से निकलना हुआ था !
(4)
मौसम
कल रात फिर रोया आसमान
कि क्यों बादलों ने चेहरे पर सियाही पोत दी !
सितारे काजल की कोठरी में बैठे बिलखते रहे
नसीब में इतना अंधेरा बदा था !
हवा शोर मचाती रही
पेड़ सिर धुनते रहे
धरती का दामन भीगता रहा
किसको फ़र्क़ पड़ा......
बादल गरजते रहे
अट्टहास करते रहे
उन्हें मालूम था
मौसम उनका है ।
कल रात फिर रोया आसमान
कि क्यों बादलों ने चेहरे पर सियाही पोत दी !
सितारे काजल की कोठरी में बैठे बिलखते रहे
नसीब में इतना अंधेरा बदा था !
हवा शोर मचाती रही
पेड़ सिर धुनते रहे
धरती का दामन भीगता रहा
किसको फ़र्क़ पड़ा......
बादल गरजते रहे
अट्टहास करते रहे
उन्हें मालूम था
मौसम उनका है ।
(5)
यह अमेरिका है
रात भर
रह-रह कर
चमकता रहा जुगनू
किताबों की आलमारी पर ।
हरी रोशनी
जलती रही ,
बुझती रही ।
मैं देखती रही
आंख भर, रात भर
जब भी नींद टूटी ।
सोचती रही
कल सुबह पकड़ूंगी......
रख लूंगी शीशे के जा़र में
जैसे बचपन में रख लेती थी ।
सुबह हुई!
उत्सुक कदम
आलमारी तक गए
‘स्मोक डिटेक्टर’ आलमारी पर पड़ा
मुंह चिढ़ा रहा था !
यह अमेरिका है !
रात भर
रह-रह कर
चमकता रहा जुगनू
किताबों की आलमारी पर ।
हरी रोशनी
जलती रही ,
बुझती रही ।
मैं देखती रही
आंख भर, रात भर
जब भी नींद टूटी ।
सोचती रही
कल सुबह पकड़ूंगी......
रख लूंगी शीशे के जा़र में
जैसे बचपन में रख लेती थी ।
सुबह हुई!
उत्सुक कदम
आलमारी तक गए
‘स्मोक डिटेक्टर’ आलमारी पर पड़ा
मुंह चिढ़ा रहा था !
यह अमेरिका है !
*****
झारखंड की राजधानी राँची में जन्म। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से सी. एस. आई. आर. की रिसर्च फ़ेलॊशिप के अन्तर्गत भौतिकी(माइक्रोइलेक्ट्रानिक्स) में पी.एच. डी एवं आई आई टी मुम्बई में सी एस आई आर की ही शॊध वृत्ति पर कुछ वर्षों तक शोध कार्य । राष्ट्रीय एवं अन्तर-राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में शोध पत्र प्रकाशित । भौतिकी विषय से जुड़ी राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय कार्यशालाओं/सम्मेलनों में भागीदारी एवं शोध पत्र का प्रकाशन/प्रस्तुतीकरण।कुछ समय अमेरिका के कालेजों में अध्यापन।छात्र जीवन में काव्य लेखन की शुरुआत । प्रारम्भ में कालेज पत्रिका एवं आकाशवाणी तक सीमित।"इस कहानी का अन्त नहीं " कहानी , जो जनसत्ता में २००२ में प्रकाशित हुई , से कहानी लेखन की शुरुआत। अबतक देश-विदेश की विभिन्न पत्रिकाओं यथा, वागर्थ, हंस, कादम्बिनी, आधारशिला , हिन्दीजगत, हिन्दी- चेतना, निकट, पुरवाई , स्पाइल आदि तथा अनुभूति- अभिव्यक्ति , हिन्दी नेस्ट, साहित्य कुंज सहित तमाम वेब पत्रिकाओं में कहानियाँ, कविताएँ प्रकाशित। "वर्तमान -साहित्य" और "रचना- समय" के प्रवासी कथाकार विशेषांक में कहानियाँ/कविताएँ संकलित । डा. अन्जना सन्धीर द्वारा सम्पादित "प्रवासिनी के बोल "में कविताएँ एवं "प्रवासी आवाज" में कहानी संकलित। कुछ रचनाओं का हिन्दी से इतर भाषाओं में अनुवाद भी। विश्व हिन्दी सम्मेलन में भागीदारी एवं सम्मेलन की अमेरिका से प्रकाशित स्मारिका में लेख संकलित। कुछ संस्मरण एवं अन्य लेखकों की किताबों की समीक्षा आदि भी लिखी है । हिन्दी में विज्ञान सम्बन्धी लेखों का अनुवाद और स्वतंत्र लेखन। आरम्भिक दिनों में इला नरेन के नाम से भी लेखन।कृतियाँ : "धूप का टुकड़ा " (कविता संग्रह) एवं "इस कहानी का अंत नहीं" ( कहानी- संग्रह) ।लेखन के अतिरिक्त योग, रेकी, बागवानी, पर्यटन एवं पुस्तकें पढ़ने में रुचि।सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन ।सम्पर्क : 12934, MEADOW RUNHOUSTON, TX-77066USAई मेल ; ila_prasad1@yahoo.com
9 टिप्पणियां:
इसीलिए यात्रा में हूं ।
अंधेरे में उजाला भरने
और पराजय को जय में बदलने के लिए
चल रही हूं लगातार.....
इला जी का परिचय पा कर सुखद अनुभूति हुई। उनकी ये पँक्तियाँ उनकी सकारात्मक सोच को दर्शाती हैं ाउर सब को प्रेरणा देती हैं सभी रचनायें गहरी संवेदनाओं को संमेटे हुये । उन्हें बहुत बहुत शुभकामनायें
बहुत ही सुन्दर कविताएं हैं इला जी की। एक सृजनशील कवि की जीवन के अनुभव में पकी-रची बेहद संवेदनशील कविताएं ! पाठक को स्पर्श करती हैं भीतर तक। 'यात्रा', 'रास्ते', 'मौसम' और 'यह अमेरिका है',मन को छूती हुई कविताएं है पर 'रास्ते' तो न भूलने वाली कविता है।
सुभाष नीरव
इला जी की कवितायेँ मार्मिक भी हैं और सार्थक भी हैं.उन्हें भरपूर बधाई. चंदेल जी को धन्यवाद.ऐसी रचनाएँ आगे भी पढवाते रहें.
Ila Jee, Sadar namaskar, Maine aapji kavitayen vatayan ke taje ank mein padhee. Achhee kvitaon ke liye badhayee vishesh roop se RASTA and YAH AMERICA HAI. mera bhee ek blog hai. Main chahata hoon ki hindi mein jo hindustan se bahar likha ja raha hai uspar ek kram jaree kar sakoon. Atah ho sake to kuchh kavitayen, parichay evam photo bhej dein. Mere blog ka URl - www.pradeepindore.blogspot.com
Pradeep Mishra
ILA JEE,
AAPNE APNEE IN PAANCHON
KAVITAAON MEIN BHAVON KE PRAN
FOONK DIYE HAIN.LIKHTEE RAHEN
YUN HEE CHHOTEE-CHHOTEE KAVITAYEN.
CHHOTEE -CHHOTEE KAVITAAON KEE BAAT
HEE KUCHH AUR HOTEE HAI.
ek lambe samaya ke baad Ila jee ki itni sundar kavitaen pedne ko milin unki kavita dhoop ka tukda tathaa yatraa ne kaphee pravabhit kiya hei-
uss shaam ko
dhoop ka ek chhota tukdaa
vrikshon aur deevaron se hotaa hua
meri bagal men aakar baith gayaa tha
mujhse puchhe bina.tatha-
mere aansoo ponchhne ke bhee vichar se shayad
mere chehre par aagayaa.
inn sundar se bimb ke liye mai Ila jee ko badhai deta hoon
इसीलिए यात्रा में हूं ।
अंधेरे में उजाला भरने
और पराजय को जय में बदलने के लिए
चल रही हूं लगातार.....
Ila prasad ji ki kavitataye padhi,yatra ,raste,yah amerika hai,moisum,aadi yaatra or raste me jo abhivykt huya hai bah kavya ke prabhav hai ,unhe badhi
Ila ji ki Kavitayein aaj hee dekhee aur sabhee sakaratmak soch liye man ko prasann ker gayeen --
Badhyee --
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