प्रतिध्वनि
अशोक गुप्ता
'प्रतिध्वनि' सिर्फ इस कहानी का शीर्षक ही नहीं है, इसकी उपज का सच भी है. प्रतिध्वनि को ध्वनि का आभारी होना चाहिए. इस नाते मैं बेबाक रूप सिंह चंदेल की जनसत्ता में छपी कहानी ' अलग ' का आभार प्रकट करता हूँ. मेरी यह कहानी ' अलग ' की विस्तार कथा है. आदर्श सिर्फ एक किताबी अलंकरण नहीं है, यह एक कारगर व्यवहार नीति है, यह बात 'अलग' के जरिये सामने आई थी. मेरी कहानी यह बताने का प्रयास कि यह व्यवहार नीति किस तरह हमारे पक्ष में अपनी भूमिका अदा कर सकती है.
करीब चालीस मिनट बीतने को आये थे. वह घायल लड़का अस्पताल के बराम्दे में एक नंगे बेड पर लिटा छोड़ा गया था. अमित उस लड़के को अपनी गाडी में उस सरकारी अस्पताल में लगभग ढो कर लाया था. वह लड़का खासा घायल था, कम से कम उसकी चिट्टी स्नोव्हाईट कमीज़ पर सिर और गर्दन से बहे खून के दागों से यही आभास होता था. उसके आने के साथ ही एक खडूस से दिखने वाले आला लटकाए सफ़ेद कोट वाले आदमी ने उसे अलट पलट कर देखा था. वह घायल लड़का बेहोश था. उस डाक्टर की अलट पलट की कार्यवाही इतनी लापरवाही भरी थी कि अमित घबरा कर उसके पास आ कर खड़ा हो गया. उस डाक्टर वेशधारी आदमी ने उस घायल लड़के के गाल दो बार थपथपाए और फिर उस पर एक चांटा जोरदार जमा दिया. उस युवक की बेहोशी इस से जरा सी टूटी. उसने आँख खोल कर अमित को देखा.. " तुम ..?" यही निकला उस के मुहं से और वह फिर बेहोश हो गया. "जिन्दा है" कह कर वह बेहूदा सा दिखने वाला डाक्टर पलट कर चल दिया.. उसके बाद करीब आधा घंटा और बीत गया. उस घायल के पास कोई लौट कर नहीं आया.उसकी गर्दन और सिर के पास लगे घाव से खून अभी भी रिस रहा था. ' तुम ' कह कर के उस युवक के फिर अचेत हो जाने के कई कारण हो सकते हैं. अमित को देख कर भय, संशय, अचरज या भर्त्सना, कुछ भी उपज कर उसे फिर अचेत कर सकते हैं. एक्सीडेंट के करीब आधा घंटा पहले उस लड़के ने अकारण ही अमित को उसकी कर से बाहर खींच कर धुन दिया था.तब भी उस लड़के की बाईक निरंकुश बेतरतीब दौड़ते कूदते चल रही थी और अमित की सचेत ड्राइविंग के चलते ही वह लड़का अमितकी कार से टकराते टकराते बचा था. लेकिन इस लड़के ने अमित को ही उसकी कार से खींच कर मारपीट शुरू कर दी थी. तब भी हेलमेट उस लड़के के सिर पर न होकर बाईक पर ही टंगा था.. और उसके आधे घटे बाद ही इस लड़के की तेज़ दौड़ती लहराती बाईक बस से टकरा गई थी. लहूलुहान होकर वह लड़का, बेहोश वहीँ सड़क पर आधा घंटा पड़ा रहा और पीछे से अमित ने ही उसे अकस्मात् दुर्घटनाग्रस्त देख कर इस अस्पताल ला पहुँचाया. अमित ऐसा ही है. ऐसा उसने पहेली बार नहीं किया है. ऐसे ही बदतमीज़ लोगों की लपेट में वह पहले भी कई बार आ चुका है, लेकिन अमित बदल जाने वाला आदमी कहाँ है भला.. अभी भी अमित इस इंतजार में रुका हुआ है कि शायद इस लड़के को खून देने की ज़रूरत पड़े..या यहाँ से उठा कर कहीं और ले जाने की.. यहाँ का हाल तो उसके सामने साफ़ ही है. तभी एक वार्ड बॉय टाइप छोकरा आ कर उस लड़के को उठा कर एक ट्राली पर डालता है और खींच कर भीतर ले जाता है. दस मिनट..गिनती के सिर्फ दस मिनट बाद ही एक फुर्तीली से हरकत माहौल में दिखने लगती है. एक सीनियर सा डाक्टर और दो नर्सें भाग कर अन्दर जाते हैं और अफरा तफरी सी नज़र आती है. अमित चिंतित हो जाता है, शायद मामला कुछ गंभीर है. तभी एक आदमी आ कर आवाज लगता है, ' पवन मनचंदा के साथ कौन है..?' जल्दी जल्दी दो बार पुकार कर वह आदमी सीधे अमित के पास आ कर पूछता है, ' पवन मनचंदा के साथ तुम हो..?' 'कौन पवन मनचंदा..?' अमित पूछता है. ' अरे वही, एक्सीडेंट वाला..' ' हाँ, हाँ, मैं ही..' अमित घबरा कर कह पड़ता है. 'तो बोलते क्यों नहीं, चलो..' अमित कहता है कि वह भला उस घायल आदमी का नाम कैसे जाने, लेकिन वह आदमी सिर्फ हड़बड़ी मैं है, और अमित को भीतर ले जाने को उतावला है . भीतर उस लड़के के चारों ओर डाक्टरों नर्सों का घेरा बना हुआ है. इस बीच उस लड़के की जेब तलाशी से उसकी पहचान ज़ाहिर हो चुकी है. अमित के भीतर आते ही एक सीनियर से दिखने वाले डाक्टर आ कर अमित के पास खड़े हो जाते हैं. 'इन्हें आप लाये थे.. कैसे..?' अमित एक सांस में दुर्घटना का जितना व्योरा उसे पता चला था, बता देता है. वह डाक्टर उतावलेपन में कहता है, ' यह लड़का इनकम टैक्स कमिश्नर मिस्टर मनचंदा का बेटा है, आपको नहीं पता..?' अमित हँसता है, ' डाक्टर, मैं इनकम टैक्स देता ज़रूर हूँ, लेकिन किसी कमिश्नर वगैरह को नहीं जानता..' साथ ही अमित जेब से अपना विजिटिंग कार्ड निकाल कर डाक्टर को थमा देता है. पर्यावरण मंत्रालय में उसका वज़न भी कम नहीं है. डाक्टर कार्ड देख कर जरा चौंकता है, ' ओह, मिस्टर अमित सारस्वत..आप..' ' वह छोडिये, यह बताइये इसका क्या हाल है..? खून तो काफी बह गया लगता है..' ' नहीं, कुछ सीरियस बात नहीं है. हाँ, घाव भरने में टाइम लगेगा.इंजेक्शन दे दिया है, जल्दी ही होश आ जाना चाहिए.' अमित चुप रहा. करीब पंद्रह मिनट बाद उस घायल लड़के ने आँख खोल दी. दर्द कम करने वाली दवाओं ने काम किया तो उसमे चेतना का संचार हुआ. करीब तीन मिनट बाद उसके शब्द बाहर आये, ' मेरी बाईक..? ' ' है..फिक्र मत करो..अब कैसे हो..?' डाक्टर ने पूछा., लड़का चुप रहा. अपने चारों ओर ऐसे ताकता रहा जैसे स्थितियों को समझने की कोशिश कर रहा हो..बीच बीच में उसकी नज़र अचानक घूम कर अमित पर ठहर जाती. डाक्टर ने लड़के का हाव भाव समझ कर उस लड़के को बताया, ' यह मिस्टर अमित सारस्वत हैं..यही तुम्हें एक्सीडेंट के बाद अपनी कार में अस्पताल लेकर आये..' ' हलो ' अमित ने मुस्कुरा कर कहा. तभी तेज़ी से आते क़दमों की आहट ने किसी के आने का संकेत दिया. पवन के पिता मिस्टर मनचंदा आ पहुंचे. उनके साथ शहर के डी. आई. जी. भी थे, वर्दी में. मिस्टर मनचंदा ने आते ही डाक्टर से सवालों की झड़ी लगा दी. बीच में डी. आई. जी. ने फुसफुसा कर डाक्टर से किसी के आने के बारे में पूछा और डाक्टर ने उसी तरह से जवाब दिया.बात उस इलाके के ट्रैफिक आफिसर को तलब करने की थी. इस बीच डाक्टर ने मनचंदा को अमित के बारे में बताया. अमित सारस्वत सुन कर डी. आई. जी. थोड़ा मुस्काया. यह नाम उसका खूब सुना हुआ था. ' ओह गुड लक, तभी ये हज़रत यहाँ तक पहुँच पाए..' पवन लगातार अमित का चेहरा ताक़ रहा था. अमित के चेहरे पर न खौफ था न कोई दबाव.. दवा के असर से पवन कुछ और सहज हुआ. डाक्टर ने उसे एक कमरे में शिफ्ट कर दिया, जहाँ अब कॉफी का दौर चल रहा था. इस बीच ट्रैफिक ऑफिसर आ गया.उसने पूरा व्योरा डी. आई. जी. और मनचंदा साहब को दिया.. कैसे लापरवाह तेज़ चलती मोटर साईकिल बेकाबू हो कर बस से जा भिड़ी थी..सिर पर हेलमेट नहीं था..यह साहब करीब बीस मिनट बाद अचानक उधर से गुजर रहे थे. भीड़ देख कर रुके और फिर घायल को ले कर अपनी कार में चल दिए. ' कहाँ ले जाओगे ? मैंने पूछा था सर..पता चला अस्पताल, तो मैंने कहा ठीक है.. इनकी गाड़ी का नंबर मैंने नोट किया है सर..' अपनी बात पूरी कर के ट्रैफिक अफसर चुप हो गया. तभी नर्स ने आकर घायल को एक इंजेक्शन और दिया. ' एंटी टिटनेस है..' डाक्टर ने जानकारी दी. सब के चेहरों से दबाव अब कम होता जा रहा था... एक अजीब सा भाव केवल पवन के चेहरे को घेरे हुए था.. तभी एक नया दृश्य सामने आया. डी. आई. जी. ने जेब से सिगरेट का पैकेट निकला और उसे खोलने लगे, तभी अमित आवेश में बोल उठा.. ' नो..नो सर. यहाँ वार्ड में नहीं..' डी. आई. जी. ने हाथ रोक लिया और अपने मनोभाव को मुस्काहट से छिपाने लगे. मिस्टर मनचंदा इस स्थिति से जरा परेशान हुए. 'क्यों..?' उन्होंने पूछा ' ये अस्पताल है..हर जगह नो स्मोकिंग के बोर्ड लगे हैं.. दूसरे, पवन के लिए.. सिर में चोट है. उसके लिए जरा भी खांसना तकलीफदेह हो सकता है. उसे चक्कर आ सकता है.. क्यों डाक्टर..? ' डाक्टर ने सिर हिला कर अमित की बात की पुष्टि की. ' ओ के, ओ के सारस्वत..मान लिया. चलिए मनचंदा साहब, हम बाहर चलते हैं. ' उन दोनों के साथ डाक्टर भी पीछे पीछे चल दिया. कमरे में अब केवल अमित और पवन रह गये. पवन अब काफी सचेत हो चला था. दर्द का असर हुआ था और डाक्टर की बात नें भी उसे राहत पहुंचाई थी. पवन लगातार अमित को देखे जा रहा था. उसकी कार्यवाही ने तो पवन को हैरत में डाला ही था, इस बेखौफ हस्तक्षेप नें उसे एकदम भौचक कर दिया था.. डी. आई. जी. को सिगरेट जलाने से रोक दिया और वह मान भी गये... पवन जानता है कि डी. आई. जी. अंकल अपने तेवर में किसी ड्रैगन से कम नहीं हैं. अमित भी देर से पवन का चेहरा पढ़ रहा थाकि कोई इबारत वहां उभर रही है. ' अब बोलो पवन, कुछ आराम है..? ' पवन ने तत्काल कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन कुछ पल ठहर कर यकायक बोल उठा, ' इतने निडर कैसे हैं आप..? आपने पुलिस चीफ़ को टोक दिया ' ' डर.. डर किस बात का..? ' ' यही कि वह पावरफुल हैं..बदला ले सकते हैं..उनका जवाब भारी पड़ सकता है.` ' पवन, मैं न बदला लेता हूँ, न बदले की कार्यवाही से डरता हूँ. अगर दूसरे की तरफ से ऎसी कोई कार्यवाही होती है, तो मैं उसे एक हादसा मानता हूँ, दूसरे की बीमारी का लक्षण... बीमार से तो हमेशा हमदर्दी ही की जाती है न.. उस से बच कर कैसे निकला जा सकता है. यह इंसानियत तो नहीं हुई न.. ' पवन अवाक अमित का चेहरा देखता रह गया, तो अमित नें ही आगे कहा, '..क्यों, क्या कुछ गलत कहा मैनें.. हम सब लोग इंसानियत के ख़त्म होते जाने का रोना रोते रहते हैं, लेकिन जब खुद हमारे सामने मौका आता है तो हम भी इंसानियत के खिलाफ़ हरकत कर बैठते हैं. ..हैं न..?' ' मजबूरी होती है सर, खुद पर काबू नहीं रहता.. बहुत सी बातें अपना दबाव बना कर रखती हैं..' ' हाँ, मुझे पता है. तुम्हारे पापा भी सी बी आई की गिरफ्त मैं आ गये हैं...' ' हाँ सर, उन्होंने कई मामले लगा दिए हैं पापा के खिलाफ़. डी. आई. जी. अंकल पापा के बहुत पुराने दोस्त हैं और लगातार उनके साथ इसलिए रहते हैं कि पापा कहीं परेशानी मैं कोई उल्टा सीधा कदम न उठा लें. बरसों से बहुत तनाव है घर में. मम्मी को एक अटैक पिछले साल आ चुका है. मेरा कालेज का दूसरा साल है. पढ़ाई में मन नहीं लगता.. पता नहीं क्या होगा फैमिली में..? रिश्तेदारी में सब पढ़े लिखे लोग हैं, पता नहीं मेरा क्या होगा..?' अमित को इस स्थिति का अंदाज़ हो गया था... तनाव. उसने उठ कर पवन की पीठ पर हाथ फेरा. ' चिंता मत करो, अपने सोच को बदलो. मेरी ओर देखो, मैंने तुम्हारे तनाव को दोषी माना, तुम्हें नहीं.' ' आप तो गांधी हैं सर..' ' तो तुम भी गांधी बन जाओ न.. मुश्किल नहीं है. आस पास होने वाली घटनाओं की तह में जाओ. तुम्हारी बदहवासी का कारण तुम्हारा तनाव है. तुम्हारे तनाव का कारण फैमिली में सुरक्षा का संकट है.. तो उस असुरक्षा से बचाव का रास्ता खोजो न. वह खतरा तुम्हारे पापा के परिवार तथा करिअर तक आ गया है, उसे अपने आने वाले परिवार तथा करिअर तक आने से तो रोको..' ' वह कैसे होगा..? ' ' बस, तय कर लो. पहचानो कि तुम्हारे भीतर भय किस से पैदा होता है.. और उस भय को जीतने का पक्का रास्ता अपना लो. अगर इन्टेलीजेन्स ड्रैगन है तो कैसा भी लालच उस से बड़ा ड्रैगन है. अगर बड़ा ड्रैगन मार दोगे, तो छोटा ड्रैगन तुमसे डरेगा. दरअसल हर ड्रैगन भीतर से डरा हुआ होता है और उसी पर हमला करता है, जो उस से डर जाता है. असलियत में ड्रैगन को भी इंसानियत की जबरदस्त तलब होती है. अगर तुम में इंसानियत है तो ड्रैगन खुद ब खुद तुम्हारे सामने देर सबेर झुक जाएगा.' ' ठीक कहते हैं आप..मैं बदलूँगा अपने आप को. पापा को चैलेन्ज किये बगैर उनसे अलग अपनी राह खुद चुनुँगा. इस तनाव से खुद को दूर रखने का जतन करूँगा, नहीं तो यह मेरी लाइफ़, मेरे कैरिअर को खा जाएगा.' ' गुड..फिर देखना तुम खुद को कितना निडर महसूस करने लगोगे.सच कहूँ तो तुम्हारा गांधी बनना जितना सोसाइटी से हित में है उस से कहीं ज्यादा वह तुम्हारे अपने लिए सुकून भरा है.' पवन ने सिर उठा कर अमित को देखा, एक पल, दो पल .. और फिर मुस्कुरा उठा. ' अब एक और बात कहूँ ..? ' ' कहो..' ' आई एम् सौरी अंकल..' अमित ने इसका प्रतिवाद नहीं किया. यह परिवर्तन की प्रतिध्वनि थी, जैसे इंसानियत वापस लौटने की तैयारी में हो...
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29 जनवरी 1947 को देहरादून में जन्म। इंजीनियरिंग और मैनेजमेण्ट की पढ़ाई। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पढाई के दौरान ही साहित्य से जुड़ाव ।अब तक सौ से अधिक कहानियां, अनेकों कविताएं, दर्जन भर के लगभग समीक्षाएं, दो कहानी संग्रह, एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। एक उपन्यास शीघ्र प्रकाश्य। बेनजीर भुट्टो की आत्मकथा Daughter of the East का हिन्दी में अनुवाद।
सम्पर्क : बी -11/45, सेक्टर 18, रोहिणी, दिल्ली - 110089
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2 टिप्पणियां:
भाई अशोक जी, आपकी कहानी पढ़ी। अच्छी कहानी है। कभी कभी दूसरों की कहानियाँ हमें इंस्पायर करती हैं और हम से एक अलग कहानी लिखवा ले जाती है। आपने भाई रूपसिंह चन्देल की कहानी 'अलग' को इतनी गंभीरता से लिया होगा, और उसने आपके भीतर हलचल मचाई होगी, तभी आपकी 'प्रतिध्वनि' कहानी ने जन्म लिया। खैर, अच्छी कहानी के लिए बधाई ! और हाँ आपने जो अपनी टिप्पणी में सुझाव दिया है, उसे चन्देल न कर पाए, पर मैंने कर दिया है, अब तो ठीक है न ?
सुभाष नीरव
अशोक गुप्ता को एक अच्छी कहानी के लिए बधाई.कितने लोगों में यह साहस है जो आप की तरह रूप सिंह चंदेल की अलग कहानी का जिक्र कर पाएंगे.निश्चित ही एक मजबूत रचनाकार आप के भीतर है.बधाई. 09818032913
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