मंगलवार, 3 नवंबर 2009

कविताएं


अतीत
याद किसी की गीत बन गई!
कितना अलबेला सा लगता था, मुझे तुम्‍हारा हर सपना,
साकार बनाने से पहले , क्यों फेरा प्रयेसी मुख अपना,
तुम थी कितनी दूर और मैं, नगरी के उस पार खड़ा था,
अरुण कपोलों पर काली सी, दो अलकों का जाल पड़ा था,
अब तुम ही अनचाहे मन से अंतर का संगीत बन गई।
याद किसी की गीत बन गई!
उस दिन हंसता चांद और तुम झांक रही छत से
मदमातीआंख मिचौनी सी करती थीं लट संभालती नयन घुमाती
कसे हुए अंगों में झीने पट का बंधन भार हो उठा
और तुम्‍हारी पायल से मुखरित मेरा संसार हो उठा
सचमुच वह चितवन तो मेरे अंतर्तम का मीत बन गई।
याद किसी की गीत बन गई!
तुम ने जो कुछ दिया आज वह मेरा पंथ प्रवाह बना है
आज थके नयनों में पिघला आंसू मन की दाह बना है
अब न शलभ की पुलक प्रतीक्षा और न जलने की अभिलाषा
सांसों के बोझिल बंधन में बंधी अधूरी सी परिभाषा
लेकिन यह तारों की तड़पन धड़कन की चिर प्रीत बन गई।
याद किसी की गीत बन गई!
जाने अजाने
गीत तो गाये बहुत जाने अजाने
स्वर तुम्‍हारे पास पहुंचे या न पहुंचे कौन जाने !
उड़ गये कुछ बोल जो मेरे हवा में,
स्‍यात् उनकी कुछ भनक तुम को लगी हो
स्‍वप्‍न की निशि होलिका में रंग घोले,
स्‍यात्‌ तेरी नींद की चूनर रंगी हो
भेज दी मैंने तुम्‍हें लिख ज्‍योति पाती,
सांझ बाती के समय दीपक जलाने के बहाने ।

जाने अजाने

गीत तो गाये बहुत जाने अजाने

स्‍वर तुम्‍हारे पास पहुंचे या न पहुंचे कौन जाने !

उड़ गये कुछ बोल जो मेरे हवा में,

स्‍यात् उनकी कुछ भनक तुम को लगी हो

स्वप्न की निशि होलिका में रंग घोले,

स्‍यात्‌ तेरी नींद की चूनर रंगी हो

भेज दी मैंने तुम्‍हें लिख ज्‍योति पाती,

सांझ बाती के समय दीपक जलाने के बहाने ।

यह शरद का चांद सपना देखता है,

आज किस बिछड़ी हुई मुमताज़ का यों

गुम्बदों में गूंजती प्रतिध्‍वनि उड़ाती,

आज हर आवाज़ का उपहास यह क्‍यों ?

संगमरमर पर चरण ये चांदनी के,

बुन रहे किस रूप की सम्‍मोहिनी के आज ताने ।

छू गुलाबी रात का शीतल सुखद तन,

आज मौसम ने सभी आदत बदल दी ओस

ओस कण से दूब की गीली बरौनी,

छोड़ कर अब रिम झिमें किस ओर चल दीं

किस सुलगती प्राण धरती पर नयन के,

यह सजलतम मेघ बरबस बन गये हैं अब विराने ।

प्रात की किरणें कमल के लोचनों में,

और शशि धुंधला रहा जलते दिये में

रात का जादू गिरा जाता इसी से,

एक अन‍जानी कसक जगती हिये में

टूटते टकरा सपन के गृह - उपगृह,

जब कि आकर्षण हुए हैं सौर - मण्‍डल के पुराने ।

स्‍वर तुम्‍हारे पास पहुंचे या न पहुंचे कौन जाने !!

नयनों से कितने ही जलकण…

कवि हृदय विकल जब होता है तो भाव उमड़ ही आते हैं

नयनों से कितने ही जलकण कविता बन कर बह जाते हैं

आते बसंत को जब देखा, हो विकसित कवि का मन बोला

आई उपवन में हरियाली, सुमनों ने दृग अंचल खोला

मुस्का कर देखा ऊपर को, जहां अंशुमालि थे घूम रहे

अपनी आल्हादित किरणों से सुमनों को मुख से चूम रहे

मधुमास में उनकी किरणों से पल्लव शृंगार बनाते हैं

नयनों से कितने ही जलकण कविता बन कर बह जाते हैं।

हो कर ओझल क्षण भर में ही, स्वप्नों का खंडन कर डाला

क्षण भर को ही क्यों आई थी, बोलो मधु बासंती बाला

अब नयनों में ले भाव सजल अधरों पर ले कम्पित वाणी

क्या हुआ तुम्हारे यौवन को पतझड़ में बोलो कल्याणी

कवि की वीणा के सुप्त तार बस वीत राग अब गाते हैं

नयनों से कितने ही जलकण कविता बन कर बह जाते हैं।

महावीर शर्मा

जन्मः १९३३ , दिल्ली, भारतनिवास-स्थानः लन्दनशिक्षाः एम.ए. पंजाब विश्वविद्यालय, भारतलन्दन विश्वविद्यालय तथा ब्राइटन विश्वविद्यालय में गणित, ऑडियो विज़ुअल एड्स तथा स्टटिस्टिक्स ।
उर्दू का भी अध्ययन।
कार्य-क्षेत्रः १९६२ – १९६४ तक स्व: श्री उच्छ्रंगराय नवल शंकर ढेबर भाई जी के प्रधानत्व में भारतीय घुमन्तूजन (Nomadic Tribes) सेवक संघ के अन्तर्गत राजस्थान रीजनल ऑर्गनाइज़र के रूप में कार्य किया । १९६५ में इंग्लैण्ड के लिये प्रस्थान । १९८२ तक भारत, इंग्लैण्ड तथा नाइजीरिया में अध्यापन । अनेक एशियन संस्थाओं से संपर्क रहा । तीन वर्षों तक एशियन वेलफेयर एसोशियेशन के जनरल सेक्रेटरी के पद पर सेवा करता रहा । १९९२ में स्वैच्छिक पद से निवृत्ति के पश्चात लन्दन में ही मेरा स्थाई निवास स्थान है।१९६० से १९६४ की अवधि में महावीर यात्रिक के नाम से कुछ हिन्दी और उर्दू की मासिक तथा साप्ताहिक पत्रिकाओं में कविताएं, कहानियां और लेख प्रकाशित होते रहे । १९६१ तक रंग-मंच से भी जुड़ा रहा ।दिल्ली से प्रकाशित हिंदी पत्रिकाओं “कादम्बिनी”,”सरिता”, “गृहशोभा”, “पुरवाई”(यू. के.), “हिन्दी चेतना” (अमेरिका), “पुष्पक”, तथा “इन्द्र दर्शन”(इंदौर), “कलायन”, “गर्भनाल”, “काव्यालय”, “निरंतर”,”अभिव्यक्ति”, “अनुभूति”, “साहित्यकुञ्ज”, “महावीर”, “मंथन”, “अनुभूति कलश”,”अनुगूँज”, “नई सुबह”, “ई-बज़्म” आदि अनेक जालघरों में हिन्दी और उर्दू भाषा में कविताएं ,कहानियां और लेख प्रकाशित होते रहते हैं। इंग्लैण्ड में आने के पश्चात साहित्य से जुड़ी हुई कड़ी टूट गई थी, अब उस कड़ी को जोड़ने का प्रयास कर रहा हूं।
दो ब्लॉग:'मंथन'
http://mahavir.wordpress.com/
'महावीर'
http://mahavirsharma.blogspot.com/

6 टिप्‍पणियां:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

Aadarniy Mahaveer ji ki kavita Chhayawaad ke swarn kaal ki yaad karvatee huee bahut pasand aayeen

Unhe Naman
sadar,
- lavanya

ashok andrey ने कहा…

aadarniya mahaveer jee kee teeno geet pade unke baad ke done geeton ne kaphee prabhaavit kiya hai,unki-

kavi hridaya vikal jab hotaa hai to bhaav oomad hee aate hain
naynon se kitne hee jalkan kvitaa bankar beh jaate hain
badhai

ashok andrey ने कहा…

aadarniya mahaveer jee kee teeno geet pade unke baad ke done geeton ne kaphee prabhaavit kiya hai,unki-

kavi hridaya vikal jab hotaa hai to bhaav oomad hee aate hain
naynon se kitne hee jalkan kvitaa bankar beh jaate hain
badhai

PRAN SHARMA ने कहा…

SUNDAR AUR SAHAJ SHABD AUR BHAAV
MAHAVIR SHARMA JEE KEE KAVITA,GEET
AUR GAZAL KO CHAAR CHAAND LAGAA
DETE HAIN.UNKEE RACHNAYEN PADHWANE
KE LIYE SHRI ROOP SINGH CHANDEL KAA
BAHUT-BAHUT DHANYAWAD.

Dr. Sudha Om Dhingra ने कहा…

महावीर जी की ग़ज़लें तो अक्सर पढ़ती हूँ, गीत, कविताएँ कभी -कभी ही पढ़ने को मिलती हैं,
रूप जी आभारी हूँ आप की महावीर जी की कविताएँ पढ़वाने के लिए...

शेरघाटी ने कहा…

पुरस्कार : राष्ट्रीय अज्ञेय शिखर सम्मान एवं नई धारा साहित्य सम्मान .


aur

पुरस्कार मिलते नहीं , लिए या झटके जाते हैं